अवमानना के लिए विशेषाधिकार का प्रयोग क्यूँ नहीं ?

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विनायक शर्मा

हर मुद्दे पर संसद में आक्रामक होने और जनता की अदालत में निरंतर विफल रहने वाली कांग्रेस मोदी के रेनकोट के जाल में स्वतः ही फंस गई।

कांग्रेस के अनाड़ी सिपहसलार विरोध के जिस धागे में नोटबंदी का कांटा लगा राज्यों के चुनावी दौर में संसद के बजट सत्र में मछली फंसने की बाट जोह रहे थे, उसके ठीक विपरीत राष्ट्रपति के अभिभाषण पर जवाब देते हुए तथ्यों पर आधारित प्रधानमंत्री के साधारण से भाषण के जाल में वो जल्दबाजी में स्वयं फंस गए। सदन की कार्यवाई के लाइव टेलीकास्ट के चलते इसे सारे देश ने देखा कि किस प्रकार से एक साधारण और अकाट्य तथ्य का विरोध करते हुए प्रमुख विपक्षी दल ने पहले तो निरंतर शोर शराबा किया और फिर प्रतिष्ठा का मुद्दा बनाते हुए सदन से ही विहर्गमन किया ।
अब प्रश्न यह है कि किसी प्रकाशित पुस्तक या समाचार पत्र का उल्लेख करना, किसी नौकरशाह या संविधानिक पद कोईपर रह चुके व्यक्ति के प्रकाशित आरोप का उल्लेख करना, वामदल के किसी राजनेता की पूर्व प्रधानमंत्री के सम्बन्ध में प्रकाशित हुए आरोप को सदन में पढ़ कर सुनाना या फिर पूर्व प्रधानमंत्री के कार्यकाल में हुए घोटालों, जिसके कारण न केवल उसकी सरकार ही गई बल्कि जनता ने 44 पर लाकर बैठा दिया का सदन में चर्चा के दौरान उल्लेख करना क्या किसी भी प्रकार से सदन के नियमों का उल्लंघन है ? दूसरी बात यह कि इन सब का उल्लेख करते हुये सदन के किसी भी नए या पुराने माननीय सदस्य के लिए “रेनकोट पहनकर नहाने की कला” जैसे साधारण से मुहावरे के प्रयोग से क्या सदन या उस सदस्य विशेष की अवमानना होती है ? कांग्रेस ने प्रधानमंत्री मोदी के इस वक्तव्य का जिस प्रकार से विरोध किया और प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर सदन से बहिर्गमन किया इससे स्वयं कांग्रेस की स्थिति ही हास्यास्पद हुई है।

सदन के सभी सदस्य माननीय होते हैं और सदन में सभी के समान अधिकार होते हैं चाहे कोई प्रथम बार सदस्य बना हो, कोई पूर्व मंत्री या प्रधानमंत्री हो या फिर चाहे सदन का नेता यानि वर्तमान प्रधानमंत्री ही क्यूँ न हो।

सदन की कार्यवाई को नियमानुसार और सुचारू रूप से चलाने का दायित्व सभापति का होता है । स्थापित नियमों के अनुसार अपने सहयोगियों की सहायता से सदन की कार्यवाई को चलाना सभापति का कर्तव्य होता है । सरकार हो या विपक्ष, दोनों को ही सदन के सभापति के माध्यम से ही प्रश्न पूछने और उत्तर प्राप्त करने का अधिकार है । अब यदि राज्यसभा में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर हुई चर्चा का उत्तर देते समय प्रधानमंत्री मोदी द्वारा यदि किसी सदस्य की अवमानना सहित किसी भी नियम का उल्लंघन हुआ है तो उसे नियमानुसार पॉइंट ऑफ़ आर्डर के तहत उसी समय सदन में उठाना चाहिए । जिस पर सभापति भी तुरंत अपना निर्णय देते और उन तथाकथित विवादित शब्दों को जो नियमों का उल्लंघन करते हैं, को सदन की कार्यवाई से निकलने का आदेश दे सकते थे । यही नहीं, अवमानना के मुद्दे पर विशेषाधिकार हनन के नियमानुसार इसकी लिखित शिकायत भी सभापति से की जा सकती है । इन तमाम विकल्पों को छोड़ कर एक साधारण से मुहावरे के प्रयोग को प्रतिष्ठा का प्रश्न बना कर सदन का बहिष्कार करना देश की जनता की समझ से परे है ।
60 वर्षो से अधिक केंद्र और राज्यों पर एकछत्र शासन करनेवाली कांग्रेस को ज्ञात होना चाहिए कि सदन की कार्यवाई नियमों पर चलती है। सदन में किसी भी प्रकार की अमर्यादित, अशिष्ट और अभद्र व्यवहार या भाषा का प्रयोग वर्जित होता है और उल्लंघन करनेवाले को दंड भी दिया जा सकता है । संसद में प्रयोग की जा सकनेवाली भाषा को ही संसदीय भाषा कहा जाता है और जिसे प्रयोग करने की वर्जना है सके उसे असंसदीय भाषा खा जाता है। जो भी शब्द या उल्लेख नियमानुसार न हो उसे कार्यवाई से expunge यानि कि निकाल दिया जाता है। अवमानना सदन की हो या किसी व्यक्ति की, उसके लिये अवमानना के नियम हैं और विशेषाधिकार की समितियां भी हैं।
नेता विपक्ष खड़गे द्वारा लोकसभा में स्वतंत्रता संग्राम में किसी के कुत्तों के भाग लेने या न लेने जैसी भाषा का प्रयोग करने पर जब विवाद उठा तो सभापति ने उन शब्दों को कार्यवाई से निकालने का आदेश दिया था। इसी प्रकार से प्रधानमंत्री मोदी द्वारा राज्यसभा में कहे गए शब्द किसी भी प्रकार से अमर्यादित, अशोभनीय या असंसदीय हैं और इससे यदि किसी के मान का हनन हुआ है तो इस पर हंगामा क्यों ? नियमानुसार इसकी शिकायत सभापति को करनी चाहिए क्योंकि वक्तव्य सदन में दिया गया था।
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का कितना बड़ामखौल है इस देश में कि वर्तमान प्रधानमंत्री के लिये अभद्रशब्दों और गालियों का प्रयोग अधिकतर विपक्ष के नेता और छुटभइये कर सकते हैं परंतु वर्तमान प्रधानमंत्री किसी पूर्व प्रधानमंत्री को रेनकोट पहनकर स्नान करने की बात नहीं कह सकता। वर्तमान सरकार के नोटबंदी के निर्णय को पूर्व प्रधानमंत्री संगठित लूट और कानूनी लूट की संज्ञा तो दे सकता है परंतु पूर्व प्रधानमंत्री के कार्यकाल में हुए अरबों के बहुचर्चित घोटालों जिनके लिये सर्वोच्च न्यायालय तक को हस्तक्षेप करना पड़ा था, की ओर इशारा तक वर्तमान प्रधानमंत्री नहीं कर सकता। ये कैसी लोकतान्त्रिक सोच है लोकतंत्र की दुहाई देने वाले दल की ?
तुम करो तो मील का पत्थर और हम करें तो घोर अपराध। मोदी कुछ कहें तो परम्पराओं और परिपाटियों की हत्या की दुहाई दी जाती है जबकि दूसरी ओर राजीव गांधी गर्व से विदेश यात्रा से पूर्व और पश्चात् तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह से औपचारिक मुलाकात की परिपाटियों का बंधन न मानने और परिपाटियों को तोड़ने की बात स्वीकार किया करते थे और कांग्रेसियों ने इसका कभी विरोध नहीं किया।
जो भी हो, हर बात के लिये प्रधानमंत्री मोदी को व्यक्तिगत रूप से कोसना और मोदी द्वारा कही हर बात को दल और परिवार विशेष की प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लेना कांग्रेस की पुरानी आदत है और इस प्रकार के मुद्दे को लेकर सदन की कार्यवाई को बाधित करने के प्रयास को देश की जनता की जनअदालत भलीभांति समझती है।

 

-विनायक शर्मा

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