अयोध्या और पाकिस्तान

-हामिद मीर, इस्लामाबाद से

बाबरी मस्ज़िद विवाद के मामले में इलाहाबाद उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये फैसले पर किसी पाकिस्तानी मुसलमान के लिये निष्पक्ष टिप्पणी करना बेहद मुश्किल है। पाकिस्तान के अधिकांश मुसलमान मानते हैं कि यह ‘कानूनी’ नहीं ‘राजनीतिक’ फैसला है। फैसला आने के तुरंत बाद मैंने अपने टीवी शो ‘कैपिटल टॉक’ के फेसबुक पर आम पाकिस्तानी लोगों की राय जानने की कोशिश की।

बहुत से पाकिस्तानी इस फैसले से खुश नहीं थे लेकिन मैं एक टिप्पणी को लेकर चकित था, जिसमें कहा गया था कि “इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने भारतीय मुसलमानों को बचा लिया।” कुछ पाकिस्तानियों ने मुझे लिखा कि “यह उचित फैसला है।”

इन ‘अल्पसंख्यक’ लेकिन महत्वपूर्ण टिप्पणियों ने मुझे एक भारतीय समाचार माध्यम के लिये लिखने को प्रेरित किया।

सबसे पहले तो मैं अपने भारतीय पाठकों को साफ करना चाहूंगा कि पाकिस्तानी मीडिया ने कभी भी इस फैसले को लेकर हिंदुओं के खिलाफ नफरत फैलाने की कोई कोशिश नहीं की। पाकिस्तान के सबसे बड़े निजी टेलीविजन चैनल जिओ टीवी पर इसका कवरेज बेहद संतुलित था। जिओ टीवी ने मुस्लिम जज जस्टिस एस.यू. खान के फैसले को प्रमुखता दी, जो हिंदू और मुस्लिम दोनों कौमों को अयोध्या की जमीन बराबरी से देने पर सहमत थे।

पाकिस्तानी मुसलमानों में अधिकांश सुन्नी विचारधारा के लोग हैं। सुन्नी बरेलवी मुसलमानों में सर्वाधिक सम्मानित विद्वान मुफ्ती मुन्नीबुर रहमान 30 सितंबर की रात 9 बजे के जीओ टीवी के न्यूज बुलेटिन में उपस्थित थे। उन्होंने फैसले पर अपनी राय देते हुये कहा कि इलाहाबाद उच्च न्यायालय का यह फैसला राजनीतिक है लेकिन उन्होंने भारतीय मुसलमानों से अपील की कि “उन्हें अपनी भावनाओं पर काबू रखना चाहिये और इस्लाम के नाम पर किसी भी तरह की हिंसा से उन्हें दूर रहना चाहिये।”

मैं 1992 में बाबरी मस्ज़िद के गिराये जाने के बाद पाकिस्तान में हिंदू मंदिरों पर किये गये हमले को याद करता हूं। पाकिस्तान में चरमपंथी संगठनों ने उस त्रासदी का खूब फायदा उठाया। असल में चरमपंथी इस विवाद के सर्वाधिक लाभ उठाने वालों में थे, जो यह साबित करने की कोशिश में थे कि भारत के सभी हिंदू भारत के सभी मुसलमानों के दुश्मन हैं, जो सच नहीं था। 2001 तक बाबरी मस्ज़िद विवाद बहुत से लेखकों और पत्रकारों के लेखन का विषय था।

9/11 की घटना ने पूरी दुनिया को बदल दिया और पाकिस्तानी चरमपंथी गुटों की निगाहें भारत से मुड़कर अमरीका की ओर तन गईं। 2007 में पाकिस्तानी सेना द्वारा इस्लामाबाद के लाल मस्ज़िद पर किये गये हमले के बाद तो बाबरी मस्ज़िद विवाद का महत्व और भी कम हो गया। अधिकांश पाकिस्तानी मुसलमानों की सही या गलत राय थी कि अपदस्थ किये गये पाकिस्तान के मुख्य न्यायाधीश के पक्ष में वकीलों के आंदोलन से ध्यान हटाने के लिये यह परवेज मुशर्रफ द्वारा खुद ही रचा गया ड्रामा था।

मुझे याद है कि 2007 में बहुत से मुस्लिम विद्वानों ने यह कहा था कि हम उन अतिवादी हिंदुओं की भर्त्सना करते हैं, जिन्होंने बाबरी मस्ज़िद पर हमला किया लेकिन अब पाकिस्तानी सेना द्वारा इस्लामाबाद में एक मस्ज़िद पर हमला किया गया है, तब हम क्या कहें?

लाल मस्ज़िद ऑपरेशन ने पाकिस्तान में ज्यादा अतिवादिता फैलाई और वह एक नये दौर की शुरुआत थी। चरमपंथियों ने सुरक्षाबलों पर आत्मघाती हमले शुरु कर दिया और कुछ समय बाद तो वे उन सभी मस्ज़िदों पर भी हमला बोलने लगे, जहां सुरक्षा बल के अधिकारी नमाज पढ़ते थे।

मैं यह स्वीकार करता हूं कि भारत में गैर मुसलमानों द्वारा जितने मस्ज़िद तोड़े गये होंगे, पाकिस्तान में उससे कहीं अधिक मस्ज़िदें तथाकथित मुसलमानों द्वारा तोड़ी गयीं।

मेरी राय में किसी भी पाकिस्तानी राजनीतिज्ञ या मजहबी गुट को बाबरी मस्ज़िद विवाद का फायदा उठाने की कोशिश नहीं करनी चाहिये। इस विवाद को भारत के मुसलमानों और हिंदुओं को पर छोड़ देना चाहिये, जो अपने कानूनी प्रक्रिया से इसे सुलझायेंगे। सुन्नी वक्फ़ बोर्ड फैसले से खुश नहीं है लेकिन ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इलाहाबाद उच्च न्यायालय के फैसले की पृष्ठभूमि में सुलह की उम्मीद देख रहा है। एक पाकिस्तानी के तौर पर हम क्या कर सकते हैं?

मैं सोचता हूं कि बतौर पाकिस्तानी हमें अपने मुल्क के अल्पसंख्यकों को और अधिक कानूनी, राजनीतिक और नैतिक संरक्षण दें; सत्ता और विपक्ष में शामिल अपने कई मित्रों को मैंने पहले भी सुझाव दिया है कि हम पाकिस्तानी हिंदुओं, सिक्खों और इसाइयों के हितों का और ख्याल रखें। वो जितने मंदिर या चर्च बनाना चाहें, हम इसकी अनुमति उन्हें दें। हमें पाकिस्तान के ऐसे भू-माफियाओं को हतोत्साहित करने की जरुरत है, जो सिंध और मध्य पंजाब के हिंदू मंदिरों और गिरजाघरों पर कब्जे की कोशिश करते रहते हैं। जब हम पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों को अधिक से अधिक संरक्षण देंगे तो भारतीय भी ऐसा ही करेंगे और वे अपने मुल्क के अल्पसंख्यकों की ज्यादा हिफाजत करेंगे।

पाकिस्तानियों को अपने मस्ज़िदों की हिफाजत करनी चाहिये। आज की तारीख में हमारे मस्ज़िद हिंदू अतिवादियों के नहीं, मुस्लिम अतिवादियों के निशाने पर हैं। अतिवाद एक सोच का तरीका है।। इनका कोई मजहब नहीं होता। लेकिन कभी ये इस्लाम के नाम पर, कभी हिंदू धर्म के नाम पर तो कभी इसाइयत के नाम पर हमारे सामने आते हैं। हमें इन सबकी भर्त्सना करनी चाहिये।

(लेखक पाकिस्तानी टीवी चैनल जिओ टीवी के संपादक हैं।)

10 COMMENTS

  1. हामिद मीर साहेब बड़ी अच्छी बात करते हैं. पाकिस्तान के हिन्दू सिखों और उनके धार्मिक स्थलों की रक्षा करने की चिंता उनके सहिष्णु स्वाभाव का परिचायक है.पर उनकी चिंता अधिक समय तक रहने वाली नहीं है. पाकिस्तान में मोमिनों ने काफिरों की संख्या जो१९४७ में कुल jansankhya का २०-२२ प्रतिशत थी उसको घटा कर १ प्रतिशत तो कर ही दिया है रहे सहे भी इंशाल्लाह जल्दी ही ग़ायब हो जायेंगे.ऐसा नहीं है की पाकिस्तान में मुक्त विचार वाले लेखक नहीं हैं. पर जान तो सब को प्यारी होती है. मैं पाकिस्तान के लेखकों में इरफ़ान हुसैन साहब जो पहले dawn में लिखा करते थे को सबसे अधिक सम्मान योग्य समझता हूँ. बाबरी मस्जिद तोड़ने पर जो पाकिस्तानी मुसलमान लेखक अपने विचार के अनुसार हिन्दुओं पर आरोप लगा रहे हैं उनसे मेरा एक विनय पूर्वक निवेदन है . यदि आप कल्पना करें की आपके पवित्र sthan काबे को तोड़ कर उसी स्थान पर अगर कोई आक्रान्ता girijaghar या यहूदी synegogue या हिन्दू मंदिर बना deta तो आपको कैसा लगता . यदि आप इस पहलु से भी सोचें तो सद्भाव स्थापित करने में कोई मुश्किल नहीं hogi

  2. हमने जो छवि पकिस्तान के बारे में बनाई थी उसे प्रकारांतर से जनाब हामिद मीर ने सही सवित कर दिया .हालांकि मैं उनके उस विचार का विरोध करता हूँ जिसमें उनने कहा है -में सोचता हूँ ……………………………….भर्त्सना करनी चाहिए ………………
    अव्वल तो जनाब को मालूम हो की दुनिया में भारत के अलावा शायद इंडोनेसिया को छोड़ कर और इतने मुसलमान कहीं नहीं …पकिस्तान में भी नहीं …इन भारत के मुसलमानों को उस टूटे खंडहर से कोई जातीय लगाव न तो पहले था और न अब है ..
    भारत के मुसलमानों की हालत ठीक रहे इसके लिए आपने जो फ़ॉर्मूला दिया है की
    पाकिस्तान में अल्पसंख्यकों [हिन्दुओं से भी ]से अच्छा व्यहार होगा तो भारत के मुस्लिम सलामत और खुशाल होंगे …अच्छा विचार है
    किन्तु भारत के मुसलमान तो आपसे ज्यादा किस्मत वाले hain .
    भारत में कोई kisi का दुश्मन नहीं सिर्फ पकिस्तान यदि मेहरवानी करे तो .भारत की सारी परेशानी के दो ही कारण १-पकिस्तान के लगातार हमारे खिलाफ षड्यंत्र
    २-भारत में फैला अंदरूनी भृष्टाचार .
    पाकिस्तान ने लगातार aatankwadi bhej -bhej कर ,nakli note chhap -chhap कर और hathiyaron की hod मचाकर पूरी bharteey janta का अहित किया है की नहीं ?इस janta का 20 feesdi मुस्लिम hain की नहीं ? arthat पकिस्तान ने भारत के मुसलमानों का अहित किया की नहीं ? हामिद साब आपको यह जानकार ताजुब होगा की भारत में dharmnirpekshta और समाजवाद के विचारों का इतना सम्मान
    है की १०० करोड़ हिदुओं में से एक भी अजमल कसाब बनाने के लिए तैयार नहीं …कुछ बडबोले जरुर हैं जो हिदुओं के अलंबरदार बनकर अल्फाजों से खेल कर कभी -कभी राजनीती का स्वार्थ साध लेते हैं .इससे ज्यादा कुछ नहीं .उधर लन्दन में मुशरफ खुद स्वीकार कर रहा है की हाँ पकिस्तान ये सब कलि करतूतों में शामिल है .
    मीर साब आप को इन्सानियित का वास्ता आप सिर्फ पाकिस्तान में भारत के खिलाफ चल रहे षड्यंत्र रुकवाइये इधर के मुसलमानों की चिंता मत कीजिये .यदि २० करोड़ भारतीय मुसलमानों का दिल जीतना है तो हमारे जैसे बनो जो एलन करते हैं की -ईश्वर ,अल्लाह तेरे नाम और अपने मुस्लिम भाइयों की खातिर ही तो पूज्य बापू ने अपने ही हिन्दू भाई के हाथों प्राण त्यागे थे .पकिस्तान में ऐसे उदाहरन जो भी हों दुनिया को जरुर बतावें .भारत के मुसलमानों की खातिर आप पकिस्तान में अल्पसंख्यकों का दमन शोषण बंद करने का आह्वान अब कर रहे जब वहाँ से और सती हुई सीमाओं से स्सरे हिन्दू इधर पलायन कर चुके हैं .भारत से एक भी मुस्लिम
    पाकिस्तान गया तो बतावें ….अब अगर आप दाऊद जैसों का नाम मत बता देना वर्ना पाकिस्तान की isi और मिलिट्री आपको पता नहीं कब कहाँ ख़त्म करवा देगी .क्योकि वे पाकिस्तान और भारत के मुसलमानों के जुड़वाँ शत्रु हैं .आप कैसे सोच सकते हैं की अहिंसा का पालन करने वाले हिन्दुओं से दाऊद को कोई खतरा है …

  3. bhai haamid meer ko kuchh galatfahmi hai .unka yh pavitr khyal ki paakistaan men alpsnkhykon se achchha vywhaar karoge to hindustan ke musalmaan bhi khush haal honge. mujhe is tajbeej par itraj hai .bharat or pakistaan ki jameeni schchai ye hai ki bharat ka musalmaan dunia ke kisi bhi desh ke musalmano se jyada mhfooj hai .bharat men dharmnirpekshta ka bolbala hai .pakistaan men kya hai?hmen sb maaloom hai .paakistaan ke musalmaan apni khud ki dekhbhaal karlen yhi bahut hai .pakistaan ke tamaam buddhijivi darponk hain .pakistan men bharat ke khilaf aatanki shivir chal rahe hain us par bolne men unki juban band kyon hain .bharat men jb kattar hindu ugrwad ki agar aashanka bhi hotee hai to hm dharmnirpeksh or saihshnu hindu apne musalmaan bhaiyon ke paksh men khulkar khade hote hain .hmen gaaliyan dee jatee hain .ki hm to gaddar hain kyoki hm bharat ke praytek naagrik ke adhikaron ko samaan najar se dekhte hain .isi pravkta .com par dekhiye shree jagdeeshwarji chaturvedi ji ko nyaay ki pakshdharta ke kaaran kitnii laanat malaanat jhelni pad rahi hai .paakistaan ke muslim bhaiyon ke prati hmen daya aatee hai ki we abhi bhi dunia se 50 saal peechhe hain or manavta se koson door .

    • “नीति निर्देशक सिध्दांतों के पहले हिस्से में ‘सरकारी नीति के लिए प्रेरक सिध्दांत’ शीर्षक के तहत अनुच्छेद-44 है, जिसमें साफ़ लिखा है-”सरकार नागरिकों के लिए एक ऐसी ‘समान नागरिक संहिता’ बनाएगी, जो भारत की समूची धरती पर लागू होगी। मगर जब-जब अनुच्छेद-44 के इस्तेमाल की बात आई तो देशभर में विरोधी स्वर मुखर होने लगे, जिससे साबित होता है कि इस देश का एक बड़ा तबक़ा भारतीय संविधान में यक़ीन नहीं करता।” – फिरदौस खान
      https://www.pravakta.com/?p=१२२९२
      अगर मुसलमानों के साथ न्याय करना है तो सामान नागरिक संहिता लागू करों

    • चतुर्वेदी जी ने सच मुच न्याय का पक्ष लिया है – शायद अब वो संतोष सिंह को उम्र कैद से छुडवाने के लिए जन आंदोलन भी करेंगे क्योंकि उन्हे न्याय की ज्योति जलाए रखने के लिए न्यायाधीशों की लानत मलानत करने की जरूरत जो होगी।

  4. कम से कम पाकिस्तान में बैठ कर वहाँ के नज़रिए से इससे अच्छा विश्लेषण तो नहीं हो सकता. वास्तव में मेरे साहब ने बेहतरतम लिखा है. शायद सद्भाव के किसी अच्छे जीवाणु का संक्रमण हो गया है मेरे महाद्वीप में. हे भगवान…मेरे इस महादेश को ऐसा ही बनाए रखना.

    • कृपया ‘मेरे साहब’ के बदले ‘मीर साहब’ पढ़ा जाय. सोरी.

  5. मीर साहब फ़रमाते हैं “…मैं यह स्वीकार करता हूं कि भारत में गैर मुसलमानों द्वारा जितने मस्ज़िद तोड़े गये होंगे, पाकिस्तान में उससे कहीं अधिक मस्ज़िदें तथाकथित मुसलमानों द्वारा तोड़ी गयीं…” ???????

    मीर साहब को कौन समझायेगा कि भारत में गैर-मुसलमानों द्वारा एक भी मस्जिद तोड़ी नहीं गई है। यदि तोड़े गये हैं तो सिर्फ़ मन्दिर…

  6. मीर साहब नमस्कार सर्वप्रथम तो आपको एक निष्पक्ष लेख लिखने के लिए धन्यवाद् सायद पाकिस्तान में आपका पहला न्यूज़ चैनल है जिसको हिन्दुस्तानी भी पसंद करते हैं वर्ना बाकी सब तो बस हिन्दुस्तान के खिलाफ जहर ही उगलते रहते हैं, प्रयास करते रहिये हो सकता है एक दिन हमारे दिलों में जमी बर्फ पिघल ही जाय.
    वैसे पाकिस्तान में रहकर सच को सच कहने के लिए बहुत ही हिम्मत की जरुरत होती है. और हिंदुस्तान मुर्दाबाद न कहने वाले के लिए तो हम बस लम्बी उम्र की दुवा ही कर सकते हैं…….

    मुकेश चन्द्र मिश्र

  7. इस बात में कोई दो राय नहीं हो सकती कि लेखक ने एक अत्यधिक संवेदनशील और विवादास्पद मामले पर सन्तुलित विचार व्यक्त करने में ईमानदारी का परिचय दिया है। लेखक ने दो देशों के बीच की खाई को पाटने के साथ-साथ हिन्दू-मुसलमानों के बीच खाई पाटने वालों को भी अपने तरीके से सन्देश दिया है। जिसके लिये लेखक साधुवाद के पात्र हैं। आशा की जा सकती है कि आगे भी लेखक के इस प्रकार के आलेख पढने को मिलेंगे। प्रवक्ता को भी इसके लिये साधुवाद।

    लेखक के निम्न विचार प्रशंसनीय हैं।
    “……मैं सोचता हूं कि बतौर पाकिस्तानी हमें अपने मुल्क के अल्पसंख्यकों को और अधिक कानूनी, राजनीतिक और नैतिक संरक्षण दें; सत्ता और विपक्ष में शामिल अपने कई मित्रों को मैंने पहले भी सुझाव दिया है कि हम पाकिस्तानी हिंदुओं, सिक्खों और इसाइयों के हितों का और ख्याल रखें। वो जितने मंदिर या चर्च बनाना चाहें, हम इसकी अनुमति उन्हें दें। हमें पाकिस्तान के ऐसे भू-माफियाओं को हतोत्साहित करने की जरुरत है, जो सिंध और मध्य पंजाब के हिंदू मंदिरों और गिरजाघरों पर कब्जे की कोशिश करते रहते हैं। जब हम पाकिस्तान के अल्पसंख्यकों को अधिक से अधिक संरक्षण देंगे तो भारतीय भी ऐसा ही करेंगे और वे अपने मुल्क के अल्पसंख्यकों की ज्यादा हिफाजत करेंगे।
    पाकिस्तानियों को अपने मस्ज़िदों की हिफाजत करनी चाहिये। आज की तारीख में हमारे मस्ज़िद हिंदू अतिवादियों के नहीं, मुस्लिम अतिवादियों के निशाने पर हैं। अतिवाद एक सोच का तरीका है।। इनका कोई मजहब नहीं होता। लेकिन कभी ये इस्लाम के नाम पर, कभी हिंदू धर्म के नाम पर तो कभी इसाइयत के नाम पर हमारे सामने आते हैं। हमें इन सबकी भर्त्सना करनी चाहिये।….”

    लेखक को सुखद एवं स्वस्थ जीवन की शुभकामनाएँ।
    शुभाकांक्षी
    डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

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