बाबरी मस्जिद विवाद- असत्य के प्रचारक हैं हिन्दुत्ववादी

-जगदीश्‍वर चतुर्वेदी

‘रथयात्रा’ के कारण जगह-जगह सांप्रदायिक उन्माद पैदा हुआ और दंगे हुए जिनमें सैकड़ों निरपराध व्यक्ति मारे गए जिनका ‘रथयात्रा’ से कोई लेना-देना नहीं था, क्या ये मौतें आडवाणी की यात्रा का लक्ष्य स्पष्ट नहीं करतीं ?

आडवाणी ने यह भी कहा था ‘मंदिर बनाने की भावना के पीछे बदला लेने की भावना नहीं है!’ अगर ऐसा नहीं था तो फिर अधिकांश स्थानों पर मुसलमानों के खिलाफ नारे क्यों लगाए गए? क्यों निरपराध मुसलमानों पर हमले किए गए उनके जानो-माल का नुकसान किया (इस क्रम में हिंदू भी मारे गए)।

दूसरी बात यह है कि इतिहास की किसी भी गलती के लिए आज की जनता से चाहे वह हिंदू हो या मुसलमान से उत्तर औ समर्थन क्यों मांगा जा रहा है? आरएसएस के पूर्व सरसंघचालक स्व. बाला साहब देवरस ने 29 दिसंबर 1990 को कहा था कि मैं मुसलमानों से सीधा प्रश्न पूछता हूं कि क्या वे अतीत में ‘मंदिर को तोड़े जाने की स्वीकृति देते हैं’ अगर नहीं तो ‘वे क्या इस पर खेद व्यक्त करते हैं’ यानी कि जो मुसलमान इस प्रश्न का सीधा उत्तर ‘ना’ में दे? उसका भविष्य …? क्या होगा इस पर सोचा जा सकता है। मैं यहां एक प्रश्न पूछता हूं कि क्या आरएसएस के नेतागण हिंदू राजाओं के द्वारा मंदिर तोड़े जाने खासकर कल्हण की राजतरंगिणी में वर्णित राजा हर्ष द्वारा मंदिर तोड़े जाने की बात के लिए ‘हिंदुओं से सीधा प्रश्न करके उत्तर चाहेंगे?’ क्या वे ‘हिंदुओं से बौद्धों एवं जैनों के मंदिर तोड़े जाने का भी सीधा उत्तर लेने की हिमाकत कर सकते हैं?’ असल में, यह प्रश्न ही गलत है तथा सांप्रदायिक विद्वेष एवं फासिस्ट मानसिकता से ओतप्रोत है।

आडवाणी एवं आरएसएस के नेताओं ने इसी तरह के प्रश्नों को उछाला है और फासिस्ट दृष्टिकोण का प्रचार किया है। आडवाणी ने कहा था कि वे हिंदू सम्मान को पुनर्स्थापित करने के लिए रथयात्रा लेकर निकले हैं। 30 सितंबर को मुंबई में उन्हें 101 युवाओं के खून से भरे कलश भेंट किए गए थे। इन कलशों में बजरंग दल के युवाओं का खून भरा था। यहां यह पूछा जा सकता है कि ‘युवाओं के खूनी कलश’ क्या सांप्रदायिक सद्भाव के प्रतीक थे? या सांप्रदायिक एवं फासिस्ट विद्वेष के? आखिर बजरंग दल के ‘मरजीवडों’ को किस लिए तैयार किया गया? क्या उन्होंने राष्ट्रीय एकता में अवदान किया अथवा राष्ट्रीय सद्भाव में जहर घोला?

आडवाणी एवं अटल बिहारी वाजपेयी ने जो घोषणाएं ‘राम जन्मस्थान’ की वास्तविक जगह के बारे में की थीं, वह भी सोचने लायक हैं। अंग्रेजी दैनिक हिंदुस्तान टाइम्स के 18 मई 1989 के अंक में अटल बिहारी वाजपेयी ने कहा था कि ‘उस वास्तविक जगह को रेखांकित करना मुश्किल है, जहां हजारों वर्ष पूर्व राम पैदा हुए थे,’ जबकि इन्हीं वाजपेयीजी ने 24 सितंबर 1990 को हिंदुस्तान टाइम्स से कहा कि ‘राम का एक ही जन्मस्थान’ है। यहां सोचा जाना चाहिए कि 18 मई 1989 तक कोई वास्तविक जगह नहीं थी, वह 24 सितंबर 1990 तक किस तरह और किस आधार पर जन्मस्थान की जगह खोज ली गई ? इसी तरह लालकृष्ण आडवाणी ने कहा कि ‘यह कोई साबित नहीं कर सकता कि वास्तविक जन्मस्थान की जगह कौन-सी है। पर यह ‘आस्था’ का मामला है जिसको सरकार नजरअंदाज नहीं कर सकती’ (द इंडिपेंडेंट 1 अक्टूबर 1990) यानी मामला आस्था का है, वास्तविक सच्चाई से उसका कोई संबंध नहीं है।

आडवाणी ने लगातार यह प्रचार किया कि बाबर हिंदू विरोधी था, हिंदू देवताओं की मूर्ति तोड़ता था, वगैरह-वगैरह। इस संदर्भ में स्पष्ट करने के लिए दस्तावेजों में ‘बाबर की वसीयत’ दी है, जो बाबर के हिंदू विरोधी होने का खंडन करती है। वे तर्क देते हैं कि ‘देश बाबर और राम में से किसी एक को चुन ले’। आडवाणी के इससे तर्क के बारे में पहली बात तो यह है कि इसमें से किसी एक को चुनने और छोड़ने का सवाल ही पैदा नहीं होता। बाबर राजा था, यह इतिहास का हिस्सा है। राम अवतारी पुरूष थे, वे सांस्कृतिक परंपरा के अंग हैं। अत: इन दोनों में तुलना ही गलत है। दूसरी बात यह कि हिंदुस्तान के मुसलमानों में आज कोई भी बाबर को अपना नेता नहीं मानता, आडवाणी स्पष्ट करें कि किस मुस्लिम नेता ने बाबर को अपना नायक कहा है ? अगर कहा भी है तो क्या उसे देश के सभी मुसलमान अपना ‘नायक’ कहते हैं ?

एक अन्य प्रश्न यह है कि आडवाणी हिंदुओं को एक ही देवता राम को मानने की बात क्यों उठा रहे हैं? क्या वे नहीं जानते कि भारतीय देवताओं में तैंतीस करोड़ देवता हैं, चुनना होगा तो इन सबमें से हिंदू कोई देवता चुनेंगे? सिर्फ एक ही देवता राम को ही क्यों मानें? आडवाणी कृत इस ‘एकेश्वरवाद’ का फासिज्म के ‘एक नायक’ के सिद्धांत से गहरा संबंध है।

हाल ही में जब पत्रकारों ने आडवाणी से पूछा कि वह कोई राष्ट्रीय संगोष्ठी मंदिर की ऐतिहासिकता प्रमाणित करने के लिए आयोजित क्यों नहीं करते? जिसमें समाजविज्ञान, पुरातत्त्व, साहित्य आदि के विद्वानों की व्यापकतम हिस्सेदारी हो तो उन्होंने कहा कि ऐसे सेमीनार तो होते रहे हैं। पत्रकारों ने जब उत्तर मांगा कि कहां हो रहे हैं? तो आडवाणीजी कन्नी काटने लगे। 16 दिसंबर 1990 के स्टेट्समैन अखबार की रिपोर्ट के मुताबिक आडवाणी ने कहा कि कुछ महीने पहले मैंने महत्वपूर्ण दस्तावेजों से युक्त एक पुस्तक जनता के लिए जारी की है जिसे बेल्जियम के स्कॉलर कोनार्ड इल्स्ट ने लिखा है। नाम है- राम जन्मभूमि वर्सेंज बाबरी मस्जिद। मैंने इस पुस्तक को कई बार गंभीरता से देखा-पढ़ा एवं आडवाणीजी के बयानों से मिलाने की कोशिश की तो मुझे जमीन आसमान का अंतर मिला।

आडवाणी इस पुस्तक को महत्वपूर्ण मानते हैं तथा बाबरी मस्जिद विवाद पर यह पुस्तक उनके पक्ष को पेश भी करती है, यह उनका बयान है। आइए, हम आडवाणी के दावे और पुस्तक के लेखक के दावे को देखें।

आडवाणी का मानना है कि राम का जन्म वहीं हुआ है जहां बाबरी मस्जिद है, राम मंदिर तोड़कर बाबर ने मस्जिद बनाई, अत: ‘राष्ट्रीय’ सम्मान के लिए मस्जिद की जगह मंदिर बनाया जाना चाहिए। बेल्यिजम के इस तथाकथित ‘स्कॉलर’ या विद्वान ने अपनी पुस्तक में बहुत सी बातें ऐसी लिखा हैं, जिनसे असहमत हुआ जा सकता है, यहां मैं समूची पुस्तक की समीक्षा के लंबे चक्कर में नहीं जा रहा हूं, सिर्फ लेखक का नजरिया समझाने के लिए एक-दो बातें रख रहा हूं। लेखक ने अपने बारे में कहा है कि वह ‘कैथोलिक पृष्ठभूमि’ से आता है पर उसने यह नहीं बताया कि आजकल उसकी पृष्ठभूमि या पक्षधरता क्या है? क्या इस प्रश्न की अनुपस्थिति महत्वपूर्ण नहीं है?

एक जमाने में आरएसएस के गुरू गोलवलकर ने बंच ऑफ पॉटस में हिंदुत्व के लिए तीन अंदरूनी खतरों का जिक्र किया था, ये थे-पहला मुसलमान, दूसरा ईसाई और तीसरा कम्युनिस्ट। क्या यह संयोग है कि बेल्जियम के विद्वान महाशय ने बाबरी मस्जिद वाली पुस्तक में लिखा है कि ‘हिंदू विरोधी प्रचारक हैं ईसाई, मुस्लिम और मार्क्सवादी’! क्या लेखक के दृष्टिकोण में और गोलवलकर के दृष्टिकोण में साम्य नहीं है? क्या इससे उसकी मौजूदा पृष्ठभूमि का अंदाजा नहीं लगता। खैर, चूंकि आडवाणी इस विद्वान की पुस्तक का समर्थन कर रहे हैं तो यह तो देखना होगा कि आडवाणी क्या पुस्तक की बातों का समर्थन करते हुए अपना फैसला बदलेंगे। बेल्जियम के विद्वान ने प्राचीन मार्गदर्शक अयोध्या माहात्म्य में राम मंदिर का जिक्र नहीं है- इस प्रश्न का उत्तर खोजते हुए लिखा है कि -‘यह बताया जा सकता है, पहली बात तो

यह कि अयोध्या माहात्म्य से संभवत: राम मंदिर का नाम लिखने से छूट गया हो, यह तो प्रत्यक्ष ही है। अपने इस प्रश्न का उत्तर खोजते हुए विद्वान लेखक ने इस बात को रेखांकित किया है कि ‘बाबर के किसी आदमी ने जन्मभूमि मंदिर’ नहीं तोड़ा। सवाल उठता है क्या आडवाणी अपने फैसले को वापस लेने को तैयार हैं? क्योंकि उनके द्वारा जारी पुस्तक उनके तर्क का समर्थन नहीं करती। इस पुस्तक में साफ तौर पर

विश्व हिंदू परिषद् के तर्कों से उस सिद्धांत की धज्जियां उड़ जाती हैं कि राम मंदिर तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाई गई थी। चूंकि, आडवाणी इस पुस्तक पर भरोसा करते हैं, अत: वे इसके तथ्यों से भाग नहीं सकते। आडवाणी का मानना है कि बाबरी मस्जिद में 1936 से नमाज नहीं पढ़ी गई, बेल्जियम का विद्वान इस धारणा का भी खंडन करता है और कहता है कि ‘हो सकता है, नियमित नमाज न पढ़ी जाती हो, यदा-कदा पढ़ी जाती हो, पर 1936 से नमाज जरूर पढ़ी जाती थी।’ एक अन्य प्रश्न पर प्रकाश डालते हुए लेखक ने लिखा है कि ‘यह निश्चित है कि विहिप द्वारा ‘हिंदुत्व’ को राजनीतिक चेतना में रूपांतरित करने की कोशिश की जा रही है, उसे इसमें पर्याप्त सफलता भी मिली है। यह भी तय है कि राम जन्मभूमि का प्रचार अभियान इस लक्ष्य में सबसे प्रभावी औजार है, ‘विहिप’ अपने को सही साबित कर पाएगी: यह भविष्य तय करेगा, पर उसने कोई गलती नहीं की। हम हिंदू राष्ट्र बनाएंगे और इसकी शुरूआत 9 नवंबर 1989 से हो चुकी है।’ यानी कि आडवाणी के द्वारा बतलाए विद्वान महाशय का यह मानना है कि यह सिर्फ राम मंदिर बनाने का मसला नहीं है, बल्कि यह हिंदू राष्ट्र निर्माण की कोशिश का सचेत प्रयास है। क्या यह मानें कि आडवाणी अब इस पुस्तक से अपना संबंध विच्छेद करेंगे? या फिर बेल्जियम के विद्वान की मान्यताओं के आधार पर अपनी नीति बदलेंगे। असल में, बेल्जियम के लेखक की अनैतिहासिक एवं सांप्रदायिक दृष्टि होने के बावजूद बाबरी मस्जिद बनाने संबंधी धारणाएं विहिप एवं आडवाणी के लिए गले की हड्डी साबित हुई हैं। वह उस प्रचार की भी पोल खोलता है कि विहिप एवं भाजपा तो सिर्फ राम मंदिर बनाने के लिए संघर्ष कर रहें हैं। यह वह बिंदु है जहां पर आडवाणी अपने ही बताए विद्वान के कठघरे में खड़े हैं।

13 COMMENTS

  1. यह चीनी साम्राज्य वाद…..के पैरोकार, विदेशी सरकरों, गरीबों का खून चूसने वाले गिरोहों, के दुम-छल्ले, स्तालिन + माओ = बर्बर + खूनी = मूढ अंध विदेशी जाल मे फंसे तत्व देश और दुनिया के लिये विनाशकारी, अनिष्टकारी भ्रष्टव्यवस्था की पैर के पोंछन जो स्वयं ही दुनिया से गायब हो चुकी है, उसके …..। ये रूस और चीन की विचार धारा जो अब वहाँ ही नही चलती तो यहाँ यह कितना ही विधवा विलाप कर लें, कितनी ही धर्मनिरपेक्षता की फतिहा पढ लें, धर्मनिरपेक्षता के ्नाम पर इस देश की संस्कृति के साथ खिलवाड की कितनी भी कोशिश कर लें पर इस देश मे अब इनका समय बीत गया है। नन्दीग्राम और सिंगूर के पापों का बदला अगले चुनाव मे जरूर मिलेगा, तब बताना कि तुम्हारी विचारधारा को किस कब्र मे दफन करना है।

  2. आदरणीय श्रभ्मान चतुर्वेदीजी,
    ऐसा लगता है कि हिन्दुस्तान में रहकर हिन्दुओं को जुल्मी, आक्रमणकारी साबित करना और सदियों से हिन्दु समाज को पैरो तले रौंदने वाले मुसलमानों को महिमामण्डित करना आप जैसे सेकुलर लेखकों का पंसदीदा विषय बन गया है। बाबर आपकी निगाह में महान था, उसका पोता अकबर भी महान था यह बात इतिहास की तथाकथित सेकुलर लेखकों द्वारा लिखी गई पुस्तकों के माध्यम से पढ़ने को मिल रही है, अगर अकबर महान था तो चित्तौड़ की आजादी के लिए उससे जंग करने वाला महाराणा प्रताप तो निन्दनीय है ना! आपको भारत के प्रतिमान अच्छे नहीं लगते, भारत की गौरव गाथा, शौयपूर्ण इतिहास , भारत की संस्कृति कुछ भी अच्छा नहीं लगता। श्रीमानजी एक बात पर आप गौर करें कि भारत अब अपनी स्वाभाविक निद्रा को त्याग कर उठ रहा है और आप जैसे चन्द सेकुलर ब्रांड इतिहासकारों द्वारा लिखे गए इतिहास को वो अमान्य कर हा है, यही कारण है कि आज कम्युनिस्टों की नर्सरी कहे जाने वाले जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में भी भगवा लहरा रहा है। तर्क या कुतर्क करने की बात नहीं है अब तो सामने दीवार पर लिखी इबारत आपको भी ठीक से समझ आ रही होगी कि भविष्य का भारत कैसा होगा? तो फिर इसे स्वीकार कर देश की माटी से जुड़ने में शर्म कैसी?

  3. चतुर्वेदी साहब आपके निरपराध मुसलामानों ने पूर्वी पाकिस्तान, पश्चमी पाकिस्तान, बंगाल और पंजाब प्रान्त में आपकी नज़र में अपराधी हिन्दुओं का 1934 से 1948 तक बेरहमी से संहार किया था उसको आप क्या कहेंगे l चलो हिन्दू तो हमेशा से अपराधी है आप जैसे लोगो की नज़र में फिर सिखों का क़त्ल क्यूँ हुआ इसीलिए की वो हिन्दुओं की रक्षा कर रहे थे और क्या कांग्रेस ने 1984 में इसी बात का बदला तो नही लिया l देश विभाजन के वक्त जब हिन्दू सिख संहार हो रहा था तो गाँधी और नेहरु जैसे आप के आदर्श कहाँ थे ल
    जिस संघ को आप जैसे लोग गाली देते है वही संघी काम आये थे उस वक्त हिन्दुओं की रक्षा में..
    आप के गाँधी ने तो हिन्दुओं को कायर कहा था और मुसलमानों को सांड….
    आप लोगो के आँख के सामने आपके परिवार वालों को जब सरेआम ये जेहादी क़त्ल करेंगे तो आपकी सेकुलरवादी अक्ल से पर्दा हटेगा…..
    ………………………………………………………………………….
    जय जवान, जय किसान, जय विज्ञानं, जय भगवन……

    • बिलकुल सटीक उत्तर दिया है आपने इन सेकुलरवादियों को, जब तक इनका अपना कोई नहीं मरेगा तब तक इन —-को कोई अक्ल नहीं आएगी.बरबाद करके रख दिया हैं इन जैसे लोगों ने मेरे देश को. कहा यहाँ भगवान् राम का वास था, मानव को भी देवता बनने का अवसर इसी देश में मिला है. हर तरफ खुशहाली थी, और अब इन वामपंथियों ने क्या माहोल बनाया है. जहाँ देखो चीख ओउकार मची है. इन मदरसों में इस्लामी शिक्षा के नाम पर जेहाद सिखाया जा रहा है. आज कल तो कोई दाढ़ी बढाए टोपी पहने किसी मुसलमान को देख कर यही शक होता है कि शायद ये भी कोई आतंकी ही होगा…

  4. चतुर्वेदी जी और तिवारी जी के कथनों को समझ सकें तो समझ लें. वे लाखों की हत्याओं के जिम्मेवार जिहादियों और वाम पंथियों को किसी प्रकार भी अपराधी या दोषी नहीं मानते. अपराधी और दोषी हैं केवल वे जो हिन्दुओं को जागने की व उन्हें , अपने देश व स्वाभिमान की रक्षा को प्रेरित करते हैं. तो समझ लें की ये क्या चाहते हैं, किसके दोस्त हैं और किसके दुश्मन हैं ये लोग. इनकी असलियत को जाने बिना हम भीतर बैठे अहिंसक हिन्दुओं के शत्रुओं से हिन्दुओं की रक्षा नहीं कर पायेंगे.

  5. हर तरह के विचारों को मंच देना, बहस मुहाबिसे को जगह देना एक सभ्य समाज की निशानी है. लेकिन इस बात का क्या करें कि कोई लेखक किसी संपादक द्वारा प्रस्तुत मंच को अपनी भड़ास निकालने का औज़ार बना ले. यूं तो जबाब हर वाहियात सवाल का भी दिया ही जा सकता है. आश्चर्य यह है कि मुस्लिम समाज से पूछे गए दो टूक सवाल कि क्या वह बाबर के आक्रमण को उचित मानते हैं? यह लेखक के हिसाब से निन्दनीय हो गया, लेकिन खुद ही ढेर सारे वाहियात सवालों के साथ लेखक अपनी विद्वता झारने उपस्थित हैं. हद है.
    यदि आज यह सवाल पैदा होता है जैसा देवरस जी ने पूछा था तो इसका जबाब किसी भी भारतीय को देने में क्या आपत्ति है कि हां हम विदेशी आक्रांता के आक्रमण को गलत मानते हैं. आपने प्रतिप्रश्न उछाल दिया कि हिंदू अपने पुरुखों द्वारा किये आक्रमण को उचित मानते हैं? पहला सवाल तो यह कि ऐसा कोई आक्रमण आपको दुर्भावना पूर्वक खोजने पर ही मिलेगा.और ऐसा जो कुछ भी इतिहास में हुआ है उसपर हर हिंदू निश्चित तौर पर कहेगा कि हां वे निंदा करते हैं ऐसे किसी भी कारगुजारियों की. दो-टुक ऐसा जबाब देने में किसे भी हिंदू को कोई आपत्ति नहीं होगी. यह वैसे ही हुआ जैसे ‘जाति’ के नाम पर अपने ही धर्म के लोगों पर कथित सवर्णों द्वारा काफी अत्याचार किया गया है. तो आज आप किसी भी हिंदू से पूछिए तो ज़रूर बताएगा कि हां इतिहास में की गयी ऐसी कारवाई की वे निंदा करते हैं. लेकिन मुश्किल तो यह है कि दुसरे द्वारा पूछे गए बाजिब सवाल आपकी नज़र में उल-जुलूल हो गया और आप द्वारा जान-बूझ कर दुर्भावना से उछाले गए सवाल महत्वपूर्ण? इस हिप्पोक्रेसी को छोड़ दीजिए महाशय. अपनी विद्वता का राष्ट्र हित में प्रदर्शन कीजिये.

  6. First of all Jagdishwar Chaturvedi should change his name to Jahaluddin Chishti.I do not understand what he wanted to convey by putting this trash on the website.Moreover,which Ullu Ka patha told him that the demolished structure at Ayodhya was a mosque?The strucutre neither had MINARETS for AZAAN call nor it had any water arrangement for performing VUZU.Both these features are essential for any strucuture to be called a mosque.Nowhere in the official records this structure is mentioned as a mosque.It was Congress and other secularists,who gave it this name.Never in the history NAMAAZ has ever been performed at that site.The reality is that the demolished structure at Ayodhya was just a commemorative structure erected by the coronies of the barbarian aggressor Babur to commemorate his brutal victory over he Hindus.This was done after demolition of a grand old Shri Ram Mnadir at that place to demoralise the Hindus.The demolished structure was a blot on the face of Bharat Mata.This structure should have been demolished immidiately after India gained freedom,but unfortunately India never gained real freedom.In 1947 it was simple transfer of power from the GORE ANGREZ to KALE ANGREZ.The demolition was the first step towards restoration of the national self-respect.Now construction of grand Shri Ram Mandir at that spot would be the final step in this diection.

  7. ये अमरीकी साम्राज्वाद के ,देशी विदेशी सटोरियों ,भूतपूर्व जमींदारों के ,निजी कार्पोरेट सेक्टर के ,लम्पट -गुमराह -बुर्जुआ वर्ग के ,सामंती भग्नावशेषों –
    के दुम्छल्ल्ये और हिटलर +मुसोलनी =फासीवाद +नाजीवाद =दिग्भ्रमित अंध सम्प्रदायिक ,तत्व देश ओर दुनिया के गरीबों की शोषण कारी;पूंजीवादी भृष्ट व्यवश्था की कुल्हाड़ी के बेंट बनकर ,स्वयम ही नष्ट हो जाते हैं .ये इटली और जर्मन {विदेशी}
    विचारधारा जो डॉ मुंजे हिंदुस्तान लाये थे -जब इटली और जर्मनी में ही ख़त्म हो गई तो संघ कितनी ही शाखाएं बढ़ा ले ,रथ यात्रायें निकाल ले ,अल्पसंख्यकों के बहाने देश की अमन पसंद आवाम पर झूंठे लांछन मढ़े किन्तु एक समय आएगा जब भारत में इस फासिस्ट विचार को जमीदोज कर दिया जायेगा

    • What about your stanilin vichar and maoist bichar Mr Tiwari Ji, which you have brought from USSR AND CHINA and is used by your Communist party (CPM and Maiosts) in Nandigram and Singur and Dantewada and rest of tthe counrty

    • बहुत बढ़िया आलेख है चतुर्वेदी जी का! चतुर्वेदी जी और तिवारी जी जैसे विद्वानों के कारन इस देश में थोड़ी बहुत शांति बची हुई है अन्यथा इस भगवा ब्रिगेड ने तो जीना हराम कर दिया है! अपने आदेश जनता पर थोंपना इनकी आदत बन गयी है! ये भी तालिबान से ही पर्शिक्षण लेकर आये हैं! पूरा देश ही इनकी हठधर्मी से दुखी है! इन मुट्ठी भर आतंकियों ने अपने आपको पूरा देश मान रखा है! इनकी ग़लत फहमी जल्दी ही दूर होजाएगी!

      • देश मे १०० से अधिक सीट पाने वाले मुठ्ठी भर और २० सांसद पर अटक जाने वाले देश की आवाज, क्या analysis है।

      • वाह राज singh जी आपने बड़ी आसानी से कह दिया भगवा आतंकवादी, फिर तो शायद सरदार भगत सिंह भी आतंकवादी होंगे जिन्होंने कहा था “मेरा रंग दे बसंती चोला”. हम हिन्दू वादी आपको असत्य के प्रचारक दीखते हैं और वे जो कश्मीर में हमारे भाइयों को मार के भगा चुके वे किस के प्रचारक हैं? वे तो आपको बिहारी के दोहे सुनाते होंगे न…ओह क्षमा करें बिहारी के दोहे भी तो आपके लिए किसी जानलेवा फतवे की तरह ही होंगे क्यों की हिन्दू भगवान् के सम्मान में जो लिखे गए हैं…
        राज सिंह जी आज अगर हिन्दुओं को हथियार उठाना पड़ा है तो अपनी आत्म रक्षा के लिए, हम किसी के रक्त के प्यासे नहीं हैं. और अपनी व अपने परिजनों की रक्षा करना आतंकवाद है तो फिर तो गुरु गोविन्द सिंह भी आतंकवादी ही होंगे, उनके द्वारा निर्मित पूरी खालसा कौम भी आतंकवादी ही होगी जिन्होंने हिन्दुओं की रक्षा के लिए शास्त्र उठाया. क्यों राज सिंह जी अब बताइये गुरु गोविन्द सिंह आपकी दृष्टि से आतंकवादी ही होंगे? हमें कोई आश्चर्य नहीं होगा जब ५० साल बाद उनके जन्म पर भी प्रश्नचिन्ह लगा दिया जाएगा, जब भगवान् राम के जन्म पर लगा दिया तो गुरु गोविन्द सिंह के जन्म पर भी लगा सकते हैं.
        इस इस्लामियों ने तो कब की हमारी नस्ल ही ख़त्म कर दी होती, ये तो भाग्य से गुरु गोविन्द सिंह भगवान् बनकर हमारी रक्षा के लिए आ गए नहीं तो आज आपका नाम राज सिंह नहीं सरफराज खान या कुछ और होता…और अब जब फिर से कोई गुरु गोविन्द सिंह की भूमिका निभाना चाहता है तो आप उसे आतंकवादी घोषित करने पर तुले हैं…शर्म करो राज सिंह जी…

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