बाबरी मस्जिद विध्वंस की 23वीं बरसी: हालात आज भी जस के तस….

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babrimasjid6 दिसंबर….बाबरी मस्जिद विध्वंस विशेष:

प्रतिमा शुक्ला

आज 6 दिसम्बर है, बाबरी मस्जिद विध्वंस की 23वीं बरसी मनाई जा रही है। शौर्य दिवस, स्याह दिवस, काला दिवस, कलंक दिवस, स्वाभिमान दिवस और ना जाने कितने दिवस देश के विभिन्न संगठनों द्वारा मनाया जा रहा है।
बाबरी मस्जिद ढहे 23 साल बीत गए। बीते 22 वर्षों में अब एक नई पीढ़ी तैयार हो गई है। 23 साल पहले अयोध्या में क्या हुआ था इसकी चर्चा भी नई पीढ़ी नहीं करती। जिन लोगों ने उस समय का मंजर देखा था, वे भी उसे याद नहीं करना चाहते, लेकिन ये सियासत ऐसी है कि उन्हें कुछ भूलने ही नहीं देती।
दरअसल इस देश के राजनीतिक दलों की पूरी कोशिश होती है कि लोग इस हादसे को भूलने न पाएं। राजनीतिक दलों के नेता फिर से लकीर पीट रहे है। उस पर भी लोकसभा चुनाव निकट हैं, लिहाजा इस तैयारी पर सियासत का मुलम्मा चढ़ना स्वाभाविक है। राजनेताओं और राजनीति के भंवर में फंसी बाबरी मस्जिद विध्वंस को लेकर कहीं खुशी तो कहीं गम है लेकिन अयोध्या की आम जनता को इससे कोई लेना-देना नहीं है। आज भी यहां के बाशिंदे एक दूसरे के साथ प्यार और स्नेह से रहते हैं। शायद यही वजह है कि मुस्लिम कारीगरों की तैयार पूजन सामग्री अयोध्या के हर मंदिरों में प्रयोग किए जाते हैं।
बीस साल से राजनीति के शिकार यहां के बाशिंदे चाहे वह मुस्लिम हो या हिन्दू उनके मन में सिर्फ एक ही सवाल है कि आखिर कब भुलेंगे हम इस तारीख को। कब बंद होगी हमारे अमन चैन पर होने वाली राजनीति। बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद हुए उपद्रव में जिन लोगों ने अपना सब कुछ खो दिया था वे भी अमन चैन और शांति के पक्षधर हैं। लेकिन ये सियासत ही कुछ ऐसी है कि 6 दिसम्बर को भूलने ही नहीं देती।

राम लला को कब मिलेगी आजादी
बाबरी मस्जिद मामले की आज 23वीं बरसी है पर आज भी मंदिर मस्जिद के पफेर मंे न मंदिर बना और न ही मस्जिद। आज भी अयोध्या में राम मंदिर एक तिरपाल के ही अंदर सिमटा हुआ है। धर्म केनाम पर हो रही सियासत से देश दुखी हैं। रामलला आज तिरपाल में रह रहे हैं और दूसरी ओर उनके नाम पर राजनीति करने वाले कुछ राजनेता महलों में आराम से रह रहे है। राजनीतिक स्वार्थ के लिए ये राजनेता मंदिर मस्जिद के नाम पर देश के लोगों को लड़ाए जा रहे है और उसका फायदा राजनैतिक पार्टियां भुनाने में लगी है।

राम मंदिर-बाबरी मस्जिद विवाद का इतिहास
सरयू के तट पर अयोध्या के राम कोट मोहल्ले में सोलहवीं शताब्दी में बनी मस्जिद और राम जन्मभूमि को लेकर यूँ तो सदियों से विवाद चला आ रहा है. लेकिन रामजन्म भूमि बनाम बाबरी मस्जिद की लंबी कानूनी लड़ाई का दौर भारत के आजाद होने के बाद दिसंबर 1949 में शुरू हुआ.
अयोध्या में सदियों से चले आ रहे राम जन्म भूमि बनाम बाबरी मस्जिद के ऐतिहासिक विवाद का वर्तमान अध्याय 22-23 दिसंबर, 1949 को मस्जिद के अंदर कथित तौर पर चोरी-छिपे मूर्तियां रखने से शुरू हुआ था. शुरूआती मुद्दा सिर्फ़ ये था कि ये मूर्तियां मस्जिद के आँगन में कायम कथित राम चबूतरे पर वापस जाएँ या वहीं उनकी पूजा अर्चना चलती रहे। मगर 60 साल के लंबे सफर में अदालत को अब मुख्य रूप से ये तय करना है कि क्या विवादित मस्जिद कोई हिंदू मंदिर तोड़कर बनाई गई थी और क्या विवादित स्थल भगवान राम का जन्म स्थान है? वैसे तो हाईकोर्ट को दर्जनों वाद बिंदुओं पर फैसला देना है, लेकिन दूसरा सबसे महत्वपूर्ण मुद्दा ये है कि क्या विवादित इमारत एक मस्जिद थी, वह कब बनी और क्या उसे बाबर अथवा मीर बाकी ने बनवाया?
इसी के साथ कुछ तकनीकी या कानूनी सवाल भी हैं. मसलन क्या जिन लोगों ने दावे दायर किए हैं , उन्हें इसका हक है? क्या उन्होंने उसके लिए जरुरी नोटिस वगैरह देने की औपचारिकताएँ पूरी की हैं और क्या ये दावे कानून के तहत निर्धारित समय सीमा के अंदर दाख़िल किए गए? अदालत को ये भी तय करना है कि क्या इसी मसले पर करीब सवा सौ साल पहले 1885 – 86 में अदालत के जरिए दिए गए फैसले अभी लागू हैं. उस समय हिंदुओं की पंचायती संस्था निर्मोही अखाड़ा ने मस्जिद से सटे राम चबूतरे पर मंदिर बनाने का दावा किया था, जिसे अदालत ने यह कहते हुए खारिज कर दिया था कि ऐसा होने से वहाँ रोज- रोज सांप्रदायिक झगड़े और खून- खराबे का कारण बन जाएगा। अदालत ने ये भी कहा था कि हिंदुओं के जरिए पवित्र समझे जाने वाले स्थान पर मस्जिद का निर्माण दुर्भाग्यपूर्ण है लेकिन अब इतिहास में हुई गलती को साढ़े तीन सौ साल बाद ठीक नही किया जा सकता. मामले को हल करने के लिए सरकारों ने अनेकों बार संबंधित पक्षों की बातचीत कराई, लेकिन कोई निष्कर्ष नही निकला. लेकिन बातचीत में मुख्य बिंदु यह बन गया कि क्या मंदिर तोड़कर मस्जिद बनाई गई अथवा नही। सुप्रीम कोर्ट ने भी 1994 में इस मामले में अपनी राय देने से इनकार कर दिया कि क्या वहाँ कोई मंदिर तोड़कर कोई मस्जिद बनाई गई थी। गेंद अब हाईकोर्ट के पाले में है।
सरकार की तरफ से शुरुआत में सिर्फ ये कहा गया था कि वह स्थान 22- 23 दिसंबर 1949 तक मस्जिद के रूप में इस्तेमाल होती रही है। इसी दिन मस्जिद में मूर्तियाँ रखने का मुकदमा भी पुलिस ने अपनी तरफ से कायम करवाया था, जिसके आधार पर 29 दिसंबर 1949 को मस्जिद कुर्क करके ताला लगा दिया गया था। इमारत तत्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष प्रिय दत्त राम की सुपुर्दगी में दे दी गई और उन्हें ही मूर्तियों की पूजा आदि की जिम्मेदारी भी दे दी गई।
करीब चार दशक तक यह विवाद अयोध्या से लखनऊ तक सीमित रहा, लेकिन 1984 में राम जन्म भूमि मुक्ति यज्ञ समिति ने विश्व हिंदू परिषद और राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सहयोग से जन्म भूमि का ताला खोलने का जबरदस्त अभियान चलाकर इसे राष्ट्रीय मंच पर ला दिया। इस समिति के अध्यक्ष गोरक्ष पीठाधीश्वर हिंदू महासभा नेता महंथ अवैद्य नाथ ने और महामंत्री कांग्रेस नेता तथा उत्तर प्रदेश सरकार में पूर्व मंत्री दाऊ दयाल खन्ना इसमें शामिल थे। एक स्थानीय वकील उमेश चंद्र पाण्डे की दरखास्त पर तत्कालीन जिला जज फैजाबाद के एम पाण्डे ने एक फऱवरी 1986 को विवादित परिसर का ताला खोलने का एकतरफा आदेश पारित कर दिया, जिसकी तीखी प्रतिक्रिया मुस्लिम समुदाय में हुई। इसी की प्रतिक्रिया में फरवरी, 1986 में बाबरी मस्जिद संघर्ष समिति का गठन हुआ और मुस्लिम समुदाय ने भी विश्व हिंदू परिषद की तरह आन्दोलन और संघर्ष का रास्ता अख़्तियार किया। ताला खोलने के आदेश के खिलाफ मुस्लिम समुदाय की अपील अभी भी कोर्ट में लंबित है। मामले में एक और मोड 1989 के आम चुनाव से पहले आया जब विश्व हिंदू परिषद के एक नेता और रिटायर्ड जज देवकी नंदन अग्रवाल ने एक जुलाई को भगवान राम के मित्र के रूप में पांचवां दावा फैजाबाद की अदालत में दायर किया। इस दावे में स्वीकार किया गया कि 23 दिसंबर 1949 को राम चबूतरे की मूर्तियाँ मस्जिद के अंदर रखी गईं। दावा किया गया कि जन्म स्थान और भगवान राम दोनों पूज्य हैं और वही इस संपत्ति के मालिक। इस मुक़दमे में मुख्य रूप से जोर इस बात पर दिया गया है कि बादशाह बाबर ने एक पुराना राम मंदिर तोड़कर मस्जिद बनवाई. दावे के समर्थन में अनेक इतिहासकारों, सरकारी गजेटियर्स और पुरातात्विक साक्ष्यों का हवाला दिया गया है. यह भी कहा गया कि राम जन्म भूमि न्यास इस स्थान पर एक विशाल मंदिर बनाना चाहता है। इस दावे में राम जन्म भूमि न्यास को भी प्रतिवादी बनाया गया। याद रहे कि राजीव गांधी ने 1989 में अपने चुनाव अभियान का श्रीगणेश फैजाबाद में जन सभा कर राम राज्य की स्थापना के नारे के साथ किया था. चुनाव से पहले ही विवादित मस्जिद के सामने करीब दो सौ फुट की दूरी पर वीएचपी ने राम मंदिर का शिलान्यास किया, जो कांग्रेस से मुस्लिम समुदाय की नाराजगी का कारण बना।

अयोध्या विवाद को दशकों बीत रहे हैं। मसला आज भी जस का तस है। विवाद इस बात पर है कि देश के हिंदूओं की मान्यता के अनुसार अयोध्या की विवादित जमीन भगवान राम की जन्मभूमि है जबकि देश के मुसलमानों की पाक बाबरी मस्जिद भी विवादित स्थल पर स्थित है। मुस्लिम सम्राट बाबर ने फतेहपुर सीकरी के राजा राणा संग्राम सिंह को वर्ष 1527 में हराने के बाद इस स्थान पर बाबरी मस्जिद का निर्माण किया था। बाबर ने अपने जनरल मीर बांकी को क्षेत्र का वायसराय नियुक्त किया। मीर बांकी ने अयोध्या में वर्ष 1528 में बाबरी मस्जिद का निर्माण कराया।
इस बारे में कई तह के मत प्रचलित हैं कि जब मस्जिद का निर्माण हुआ तो मंदिर को नष्ट कर दिया गया या बड़े पैमाने पर उसमे बदलाव किये गए। कई वर्षों बाद आधुनिक भारत में हिंदुओं ने फिर से राम जन्मभूमि पर दावे करने शुरू किये जबकि देश के मुसलमानों ने विवादित स्थल पर स्थित बाबरी मस्जिद का बचाव करना शुरू किया। प्रमाणिक किताबों के अनुसार पुनरू इस विवाद की शुरुआत सालों बाद वर्ष 1987 में हुई। वर्ष 1940 से पहले मुसलमान इस मस्जिद को मस्जिद-ए-जन्मस्थान कहते थे, इस बात के भी प्रमाण मिले हैं। वर्ष 1947- भारत सरकार ने मुस लमानों के विवादित स्थल से दूर रहने के आदेश दिए और मस्जिद के मुख्य द्वार पर ताला डाल दिया गया जबकि हिंदू श्रद्धालुओं को एक अलग जगह से प्रवेश दिया जाता रहा। वर्ष 1984- विश्व हिंदू परिषद ने हिंदुओं का एक अभियान शिरू किया कि हमें दोबारा इस जगह पर मंदिर बनाने के लिए जमान वापस चाहिए। वर्ष 1989- इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने आदेश दिया कि विवादित स्थल के मुख्य द्वारों को खोल देना चाहिए और इस जगह को हमेशा के लिए हिंदुओं को दे देना चाहिए। सांप्रदायिक ज्वाला तब भड़की जब विवादित स्थल पर स्थित मस्जिद को नुकसान पहुंचाया गया। जब भारत सरकार के आदेश के अनुसार इस स्थल पर नये मंदिर का निर्माण सुरू हुआ तब मुसलमानों के विरोध ने सामुदायिक गुस्से का रूप लेना शरु किया। वर्ष 1992- 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद विध्वंस के साथ ही यह मुद्दा सांप्रदायिक हिंसा और नफरत का रूप लेकर पूरे देश में संक्रामक रोग की तरह फैलने लगा। इन दंगों में 2000 से ऊपर लोग मारे गए। मस्जिद विध्वंस के 10 दिन बाद मामले की जांच के लिए लिब्रहान आयोग का गठन किया गया। वर्ष 2003- उच्च न्यायालय के आदेश पर भारतीय पुरात्तव विभाग ने विवादित स्थल पर 12 मार्च 2003 से 7 अगस्त 2003 तक खुदाई की जिसमें एक प्राचीन मंदिर के प्रमाण मिले।
भारतीय पुरात्तव विभाग के अनुसार खुदाई में मिले भग्वशेषों के मुताबिक विवादित स्थल पर एक प्रचीन उत्तर भारतीय मंदिर के प्रचुर प्रमाण मिले हैं। विवादित स्थल पर ढांचे का मंदिर के प्रमाण मिले हैं।

2 COMMENTS

  1. बाबरी और राम मंदीर के अन्दर भारत के हिन्दू और मुसलमानों के बीच एकता का सूत्र छुपा है. दोनों समूह के नेता इस अवसर का लाभ उठाए. जिससे हम ६ दिसम्बर को हिन्दू मुस्लिम एकता दिवस के रूप में मना सके. इतिहास में कभी मामले उलझ जाते है. लेकिन उन्हें सुलझाने का प्रयास जारी रखना होगा.

  2. बाबरी मस्जिद केवल हिन्दू मुस्लिम का सवाल नहीं है। भारत का संविधान और न्याय व्यवस्था भारतीय नागरिकों को स्वतन्त्रता और समानता का अधिकार देने के लिए है। उसका उद्देश्य यह नहीं है कि बाबर जैसे सभी विदेशी आक्रमणकारियों को यह अधिकार दे कि वे जब चाहें तब किसी भी भारतीय की हत्या और लूटपाट करें, केवल अपहरण, बलात्कार करें, मन्दिर तोड़ते रहें। भारतीय न्यायालय भारतीयों की सुरक्षा के लिए हैं या लुटेरों के समर्थन और उनकी भक्ति के लिए? यदि विदेशी आक्रमणकारी बाबर को भारतीय भी मानें और संविधान भूलकर केवल कुरान के अनुसार भी फैसला हो तब भी बाबरी मस्जिद अवैध है। इस्लामी कानून में मुस्लिम राजा के अधीन गैर मुस्लिम लोग केवल गुलाम की तरह रह सकते हैं। पर यदि राजा उनसे जजिया लेता है तो उसके बदले उसका कर्तव्य है कि उनके जानमाल की रक्षा करे। उनके मन्दिर तोड़ने का अधिकार उसे नहीं है। कुरान के अल बकरा में स्पष्ट लिखा है कि अन्य मत वालों के मन्दिर तोड़कर मस्जिद नहीं बनायी जा सकती।

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