-अरविंद जयतिलक
झारखंड राज्य के देवघर में बाबा वैद्यनाथ मंदिर में मची भगदड़ में 11 श्रद्धालुओं की मौत ने मंदिर प्रबंधन और स्थानीय प्रशासन की भूमिका को कठघरे में खड़ा कर दिया है। समझना कठिन है कि जब स्थानीय प्रशासन और मंदिर प्रबंधन इस तथ्य से अच्छी तरह अवगत था कि सावन का दूसरा सोमवार होने के कारण मंदिर में उम्मीद से अधिक हजारों श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ सकती है तो फिर उनकी सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम क्यों नहीं किया? बताया जा रहा है कि सुबह भगवान शिव को जल अर्पित करने के लिए लाइन लगने की जल्दबाजी में यह भगदड़ मची और उपर से पुलिस ने लाठियां भांजनी शुरु कर दी जिससे श्रद्धालु जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। नतीजा जो लोग गिरे फिर उठ नहीं सके। मंदिर प्रबंधन का तर्क है कि चूंकि 90 हजार श्रद्धालुओं की आने की उम्मीद थी लेकिन डेढ़ लाख से अधिक श्रद्धालु आ पहुंचे जिससे स्थिति अनियंत्रित हो गयी। हो सकता है कि इस बात में सच्चाई हो। लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या इस कुतर्क से मंदिर प्रबंधन अपनी नाकामी छिपा सकता है? देवघर का बाबा वैद्यनाथ मंदिर जगत प्रसिद्ध है। हर वर्ष यहां आने वाले श्रद्धालुओं की तादाद बढ़ रही है। बावजूद इसके मंदिर प्रबंधन और स्थानीय प्रशासन ने आने वाले श्रद्धालुओं की तादाद और सुरक्षा को लेकर सतर्कता नहीं यह उसकी नाकामी को ही रेखांकित करता है। अगर सावधानी बरती गयी होती तो यह हादसा नहीं होता। बहरहाल मंदिर में मची भगदड़ का सच क्या है यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा। लेकिन यह पर्याप्त नहीं कि राज्य सरकार ने मृतकों और घायलों के परिजनों को मुआवजा थमाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ ली है। बेहतर होगा कि वह इस बात का ध्यान रखे कि भविष्य में इस तरह के हादसे दोबारा न हो। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि धर्मस्थलों पर इस तरह के हादसे बार-बार हो रहे हैं, लेकिन संबंधित राज्य सरकारें, स्थानीय प्रशासन और मंदिर प्रबंधन श्रद्धालुओं की सुरक्षा को लेकर सतर्क और संवेदनशील नहीं हैं। अभी गत माह पहले ही आंध्रप्रदेश राज्य के गोदावरी पुश्करम महोत्सव में मची भगदड़ में तकरीबन ढाई दर्जन श्रद्धालुओं की मौत हुई।
इसी तरह मध्यप्रदेश के कामतानाथ मंदिर में अफवाह की वजह से मची भगदड़ में तकरीबन एक दर्जन से अधिक श्रद्धालुओं को जान गयी। अभी गत वर्ष ही मध्यप्रदेश के दतिया जिले में स्थित प्रसिद्ध रतनगढ़ माता मंदिर के पास भगदड़ की घटना में 115 श्रद्धालुओं की मौत हुई। पिछले वर्ष 11 फरवरी को इलाहाबाद महाकुंभ के दौरान स्टेशन पर यात्रियों की भगदड़ में तीन दर्जन से अधिक लोगों की जान चली गयी। 20 नवंबर 2012 को बिहार में गंगा नदी पर छठ पुजा के लिए बना अस्थायी पुल टुटने से 8 श्रद्धालुओं की मौत हुई। गत वर्ष मथुरा स्थित बरसाना के राधा मंदिर में मची भगदड़ में भी कई लोगों को अपनी जान गंवानी पड़ी। झारखांड राज्य के देवघर में ठाकुर अनुकूल चंद की 125 वीं जयंती पर दो दिवसीय सत्संग में मची भगदड़ में भी कई श्रद्धालुओं को जान से हाथ धोना पड़ा। 14 जनवरी 2011 को मकर संक्रान्ति के पावन अवसर पर केरल के सबरीमाला मंदिर में मची भगदड़ में करीब 106 श्रद्धालुओं की मौत हुई। इसी तरह 3 अगस्त 2008 को हिमाचल प्रदेश के विलासपुर स्थित नैना देवी के मंदिर में भीषण हादसा हुआ जिसमें 162 लोगों की जान गयी। 14 अप्रैल 1986 में हरिद्वार कुंभ मेले में हर की पैड़ी के उपर कांगड़ा पुल पर मुख्य स्नान के दौरान मची भगदड़ में 52 लोग काल के ग्रास बने। 3 फरवरी 1954 को इलाहाबाद कुंभ मेले में भगदड़ मचने से लगभग 800 लोगों की जान गयी। 16 अक्टुबर 2010 को बिहार राज्य के बांका जिले के दुर्गा मंदिर में हादसे में 10 लोगों को प्राण खोना पड़ा। 14 अप्रैल 2010 को हरिद्वार में शाही स्नान के दौरान मचे भगदड़ में भी 10 लोग मारे गए। 14 जनवरी 2010 को पश्चिम बंगाल के गंगासागर मेले में भगदड़ से आधा दर्जन लोगों की मौत हुई। इसी तरह 21 दिसंबर 2009 को राजकोट के धोराजी कस्बे में धार्मिक कार्यक्रम के दौरान भगदड़ में 8 लोगों को जान से हाथ धोना पड़ा। उत्तर प्रदेश के प्रतापगढ़ के मनगढ़ स्थित कृपालु महाराज के आश्रम, जोधपुर के चामुंडा देवी मंदिर और महाराष्ट्र के मांधरा देवी मंदिर में भी इस तरह के भयानक हादसे हो चुके हैं। देखा जाए तो इन सभी स्थलों पर हुए हादसे के लिए पूर्ण रुप से शासन-प्रशासन और मंदिर प्रबंधतंत्र ही जिम्मेदार रहा है। लेकिन हैरानी की बात यह कि हर हादसे में शासन-प्रशासन और मंदिर प्रबंधतंत्र अपनी गलतियां स्वीकारने के बजाए एक दूसरे को जिम्मेदार ठहराता है।
नतीजतन दोषी और जिम्मेदार लोग आसानी से बच निकलते हैं। सच यह है कि जब तक राज्य प्रशासन और आयोजकगण अपनी महती जिम्मेदारियों का समुचित निर्वहन नहीं करेंगे तब तक इस तरह के हादसे होते रहेंगे। हादसों के उपरांत अक्सर राज्य सरकारों और आयोजकों द्वारा भरोसा दिया जाता है कि भविष्य में ऐसे हादसे पुनः नहीं होंगे। बावजूद इसके हादसे टाले नहीं टलते। आखिर क्यों? क्या राज्य सरकारें और आयोजकगण हादसों को लेकर गंभीर और संवेदनशील नहीं होते हैं? या यह समझा जाए कि हादसों के लिए जिम्मेदार तत्वों के खिलाफ कार्रवाई न होना इसका कारण है? ये दोनों ही बातें सच हैं। अगर सरकारी अमला और मंदिर प्रबंधन अपनी जिम्मेदारियों का सही निर्वहन करे तो इस तरह के हादसों को टाला जा सकता है। लेकिन यह तब संभव होगा जब स्थानीय प्रशासन और आयोजकगण धार्मिक आयोजनों से पहले श्रद्धालुओं की सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम और संभावित हादसों से निपटने के लिए रोडमैप तैयार करेंगे। देश में बहुतेरे ऐसे मंदिर हैं जहां श्रद्धालुओं की सुरक्षा और संभावित हादसों को टालने का पूरा बंदोबस्त होता है। मां वैष्णो देवी के यहां आम दिनों में 15 से 20 हजार और नवरात्रों में यह संख्या 40 हजार श्रद्धालुगण पहुंचते है। लेकिन यहां भक्तों के समूह को बारी-बारी से दर्शन कराया जाता है। श्रद्धालुओं की संख्या बढ़ने पर पंजीकरण रद्द भी कर दिया जाता है। इसी तरह असम के कामख्या मंदिर में हर रोज तीन हजार, अजमेर शरीफ में 12 हजार, तिरुपति के बालाजी मंदिर में 80 हजार और स्वर्ण मंदिर अमृतसर में तकरीबन एक लाख श्रद्धालुगण आते हैं। लेकिन वे आसानी से दर्शन कर सकें इसका समुचित प्रबंध किया जाता है। यहां पर्याप्त मात्रा में सुरक्षा बलों की उपस्थिति रहती है और भगदड़ की स्थिति न बने इसके सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम किया जाता है। भीड़ के बेहतर प्रबंधन के लिए बैरीकेड की समुचित व्यवस्था के साथ प्रवेश व निकास के अलग-अलग मार्ग होते हैं। रास्ते में लोगों के आराम की पर्याप्त व्यवस्था होती है। लोगों पर नजर रखने के लिए सेवादार तैनात किए जाते हैं। राज्य का खुफिया तंत्र चौकस रहता है। क्या उचित नहीं होगा कि देश के अन्य मंदिर भी इस तरह की व्यवस्था से लैस हों? लेकिन ऐसा क्यों नहीं हो रहा है यह हैरान करने वाला है। जरुरत आज इस बात की है कि राज्य सरकारें, स्थानीय प्रशासन, मंदिर प्रबंधनतंत्र और श्रद्धलुगण सभी अपनी जिम्मेदारियों को समझें। श्रद्धालुगणों का व्यवहार भी संयमित होना चाहिए। शीध्र दर्शन की जल्दबाजी में व्यवस्था को भंग नहीं करना चाहिए। साथ ही अफवाहों की सत्यता पर पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिए। सरकारी प्रशासन, मंदिर प्रबंधतंत्र एवं धार्मिक आयोजकों चाहिए कि अफवाह फैलाने वाले शरारती तत्वों पर कड़ी निगरानी रखें। श्रद्धालुओं की जानमाल की सुरक्षा प्राथमिकता में होनी चाहिए। अब इस बात पर भी ध्यान देने की जरुरत है कि देश के प्रसिद्ध धर्मस्थल और तीर्थस्थान आतंकियों के निशाने पर हैं। अनेकों बार वे हमला भी कर चुके हैं। इससे निपटने के लिए राज्य सरकारों को अपना खुफिया तंत्र मजबूत करना होगा। धर्मस्थलों पर श्रद्धालु सुरक्षित रहें इसके लिए केंद्र सरकार को दिशा निर्देष जारी करना चाहिए। समझना होगा कि भारत विभिन्न धर्मों, संप्रदायों और मतावलंबियों का देश है। यहां आस्था के हजारों केंद्र हैं। इन स्थलों पर वर्ष भर श्रद्धालुओं का आना जाना लगा रहता है। ऐसे में श्रद्धालुओं की सुरक्षा राज्य सरकारों की शीर्ष प्राथमिकता होनी चाहिए .