बैसाखी

अवधेश सिंह

विरासत में मिली है मुझे

सोने के फ्रेम में मढ़ी

वंचित – निषिद्ध

तमाम अमानुषिक पीड़ाओं

और जख्मों से कराहती ,

आज भी भय से थरथराती …

टूटे सपनों , लुटे अरमानों व

आसुओं की एक तस्वीर

जिसमें हमारे पूर्वज

रोज माला देते हैं

विरासत में मिली हैं

कुछ किताबें

जो बताती हैं पता

हमारे शत्रुओं का ….

विरासत में मिली है

एक बैसाखी

जो देती है

सफलता का शार्ट कट …

और विरासत में मिली हैं

भीड़ , रैली , आंदोलन में शामिल समूह का

व्यक्ति बने रहने की मजबूरी

हमारी पहचान ।

2.

बैसाखी हँसती है हम पर

हमारी अलग पहचान के टैग पर

इतना सब होते हुए भी

हमारी उपलब्धियों पर

कामयाबी के ऊपरी पायदान

को चिढ़ाती है बैसाखी …

मुस्कराती है बैसाखी

देख हमारे मजबूत कंधे

देख हमारी मजबूत टांगे

देख हमारा दम खम….

फुसफुसा के कहती हैं

किसने कहा है कि

“हम हैं किसी से कम”

कमतर नहीं है किसी से

हमारे खून की रफ्तार

कम नहीं हमारी धार..

एक ही छलांग से हम भी

कर सकते हैं

कई योजन का समुद्र

एक झटके में पार …

कम नहीं है किसी से

हमारे दिलों कि आग

73 साल हो गए कह रही है बैसाखी

भई, अब तो जाग ॥

3.

हम हैं बैसाखी जन

[ छुटका जन व बड़का जन ]

क्यों की वो चाहते हैं

हमें बनाए रखना बैसाखी युक्त

वरना कहाँ मिलेगी उन्हें

रेलियों के लिए झंडे और

बैनर थामें हाथों के समूह

बड़ी बड़ी सभाओं मे

रैलियों में / तकरीरों में

वे गिनाते हैं तरह तरह की बैसाखी

[ मुफ्त का गैस चूल्हा , टायलेट , छत , पढ़ाई , चकित्सा …. आदि ]

उनके नुमाइंदे कानो में फूकते हैं

बैसाखी के उनके रचे फायदे

दोनों हाथों से कैसे इसको थामे रहो इसके

तौर , तरीके कायदे …

दरअसल जानते हैं वे

बैसाखी से निकलता है

राजशाही में पहुँचने का जुगाड़

जानते हैं वे

बैसाखी ही बना देती है उनके कामों की

लंबी फेहरिस्त बिना ठोस काम

तिल का ताड़

बिना रुकावट , बिना पात्रता

जीत का सेहरा बांधने की आड़

जानते हैं वे

बैसाखी ही है

सामाजिक समरसता सदाशयता

के बीच का फाड़ ।

4.

हर रात

बैसाखी आती है सपनों में

और घेर लेती है मुझे

अपाहिजों की भीड़

बिना हाथ पाँव के लोग

भूख और प्यास से तड़पते

आसुओं के सैलाब में डूबे लोग

बैसाखी करती है सवाल

कब तक धोके में रहेंगे हम

कब तक करेंगे कमजोर होने का प्रपंच

कौन प्रमाणित करेगा

हमारी आस्था

हमारे विश्वास

हमारे सामर्थ्य

कब तक बनाते रहेंगे वे

अपने मकसद के लिये

खुद हो कर सत्ता के स्वार्थी

हमें बना लाभार्थी …        

  – अवधेश सिंह [ 20-08-2019 ]

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here