बैलिस्टिक मिसाइल का सफल परिक्षण

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ballistic misileअग्नि पांच स्वदेशी तकनीक का कमाल

प्रमोद भार्गव

देश की मारक क्षमता में एक और मील का पत्थर स्थापित करते हुए भारत ने 20 मिनट मे पांच हजार किलोमीटर की दूरी तक मार कर सकने वाली बैलेस्टिक मिसाइल अग्नि -5 का सफल परीक्षण किया है। यह अपने साथ एक टन विस्फोटक ले जा सकती है। अमेरिका, रुस, फ्रांस और चीन के बाद भारत ऐसा पांचवां देश है, जिसने इस तरह का अंतर-महाद्वीपीय प्रक्षेपास्त्र प्रक्षेपित किया है। यह प्रक्षेपण उड़ीसा के बालाषोर के व्हीलर द्वीप स्थित प्रक्षेपण परीसर में किया गया। कुछ और प्रयोगों के बाद अग्नि-5 को सामरिक सेवाओं में शामिल कर लिया जाएगा। हालांकि लंबी दूरी की मारक क्षमता वाली मिसाइल का यह तीसरा प्रायोगिक परीक्षण है। पहला परीक्षण 19 अप्रैल 2012 को और दूसरा 15 सितंबर 2013 को किया गया था। इन मिसाइलों की खास बात यह है कि ये सभी स्वदेश में ही विकसित की गई तकनीकों से आविश्कृत की गई हैं। इससे जाहिर होता है कि हमारे वैज्ञानिकों को प्रयोग के उचित अवसर और वातावरण दे दिए जाए तो वे अपनी मेधा का उपयोग करके वैज्ञानिक आविश्कारों के क्षेत्र में क्रांति ला सकते है।

20 मिनट में 5 हजार किलोमीटर की दूरी तक का अचूक निशाना साधने वाली बैलेस्टिक मिसाइल का परीक्षण देश के लिए सामरिक दृष्टि से तो महत्वपूर्ण हैं ही, सेना एवं जनता का मनोबल मजबूत करने की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। हमें यह कामयाबी आशंकाओ के उस संक्रमण काल में मिली है, जब भारत चीन से पिछड़ रहा है और देश की सुरक्षा संबंधी नीतियां बहुराष्ट्रीय कंपनियों के हवाले करने के उद्देश्य से बनाई जाने लगी हैं। इन प्रयोगों से साबित हुआ है कि वैज्ञानिक अनुसाधनों में नवोन्मेष के लिए पूंजीपतियों की शरण में जाने की जरूरत नहीं है? मसलन शोध केन्द्रों में निजी पूंजी निवेश जरूरी है, ऐसी विरोधावासी अटकलों में 85 प्रतिशत स्वदेशी तकनीक से निर्मित अग्नि 5 यह उम्मीद जगाती है कि हम देशज ज्ञान, स्थानीय संसाधन और बिना किसी बाहरी पूंजी के वैज्ञानिक उपलब्धियां हासिल करने में सक्षम हैं। वैसे भी पश्चिमी देशों ने भारत को मिसाइल तकनीक देने पर प्रतिबंध लगाया हुआ है। इस लिहाज से अग्नि 5 की उपलब्धि पश्चिमी देशों के लिए भी आईना दिखाना है। सामरिक महत्व के हथियार यदि हम अपने ही बूते बनाएगें तो हमारी गोपनीयता भंग होने का खतरा नही रहेगा।

भारत मे रक्षा उपकरणों की उपलब्धता की दृष्टि से प्रक्षेपास्त्र श्रंखला प्रणाली की अहम भूमिका है। अब तक इस कड़ी में देश के पास पृथ्वी से वायु में और समुद्री सतह से दागी जा सकने वाली मिसाइलें ही उपलब्ध थीं, लेकिन अग्नि 5 ऐसी अद्भुत मिसाइल हैं,  जो सड़क और रेलमार्ग पर चलते हुए भी दुश्मन पर हमला बोल सकती है। इस श्रृंक्ष्ला में अग्नि-1 की मारक क्षमता 700 किमी, अग्नि-2 की 2000 किमी, अग्नि-3 की 3000 किमी, अगिन-4 की 3500 किमी और अग्नि – 5 की 5000 किमी है।

इनके निर्माण में कैनेस्तर तकनीक का इस्तेमाल किए जाने से इनकी खूबी यह भी है कि जासूसी उपकरण और उपग्रह भी यह मालूम नहीं कर पाएगें कि इसे कहां से दागा गया है और यह किस दिशा में उड़ान भर रही है। यह तीन चरणों में 800 किमी तक की उचांई पर उड़ान भरने में सक्षम है, इसलिए दुश्मन देश को इसे बीच में ही नष्ट करना नमुमकिन होगा। इसकी खासियत यह भी है कि इसे एक बार छोड़ने के बाद लक्ष्य साधने वाले सैनिक व वैज्ञानिक भी रोक नहीं पाएंगे। 50 टन वजनी इस मिसाइल में एक हजार किलोग्राम परमाणु हथियार ले जाने की क्षमता है। संपूर्ण यूरोप, एश्यिा और अफ्रीका इसकी मारक क्षमता के दायरे में होंगे। भारत को बार-बार आखें दिखाने वाले चीन की राजधानी बीजिंग ही नहीं चीन का उत्तर में सबसे दूर बसा नगर हार्बिन भी इसकी मार की जद मे आ गया है।

अग्नि 5 के सफल परिक्षण के बाद चीन समेत कई विकसित देशों ने यह आशंका जताई हैं कि इस परीक्षण के बाद एशियाई परिक्षेत्र में हथियारों का भण्डारण करने की होड़ लगेगी। हालांकि यह सच्चाई नहीं है। पाकिस्तान ईरान व कोरिया पहले से ही मिसाइलों के निर्माण और उनके परीक्षण में लगे हैं। विकसित व घातक हथिायारों के कारोबार में लगे देश भी अपने हथियारों को बेचने के लिए कई देशों को उकसाने में लगे रहते हैं। आज पूरी दुनिया को भस्मासुर साबित हो रहे इस्लामिक आंतकवादियों को हथियार मुहैया कराने का काम यूरोपीय देशों ने अपने हथियार खपाने के लिए ही किया था। पाकिस्तान पोषित कश्मीर में आतंकवाद और उड़ीसा व छत्तीसगढ़ में पसरा चीन द्वारा पोषित माओवादी उग्रवाद ऐसी ही बदनीयति का विस्तार हैं। हालांकि इस परीक्षण के बाद भारत के प्रति कालांतर में कई देशों की सामारिक रणनीति में बदलाव देखने को मिल सकता है।

भारत में एकीकृत विकास कार्यक्रम की शुरूआत 1983 में इंदिरा गांधी के कार्यकाल में हुई थी। इसका मुख्य रूप से उद्देश्य देशज तकनीक व स्थानीय संसाधनों के आधार पर मिसाइल के क्षेत्र में आत्मनिर्भरता हासिल करना था। इस परियोजना के अंतर्गत ही अग्नि, पृथ्वी, आकाश और त्रिशूल मिसाइलों का निर्माण किया गया। टैंको को नष्ट करने वाली मिसाइल नाग भी इसी कार्यक्रम का हिस्सा है। पश्चिमी देशों को चुनौती देते हुए यह देशज तकनीक भारतीय वैज्ञानिकों ने इंदिरा गांधी के प्रोत्साहन से इसलिए विकसित की थी, क्योंकि सभी यूरोपीय देशों ने भारत को मिसाइल तकनीक देने से इंकार कर दिया था। भारत द्वारा पोखरण में किए गए पहले परमाणु विस्फोट के बाद रूस ने भी उस आरएलजी तकनीक को देने से मना कर दिया था, जो एक समय तक मिलती रही थी। किंतु एपीजे अब्दुल कलाम की प्रतिभा और सतत सक्रियता से हम मिसाइल क्षेत्र में मजबूती से आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते रहे। सिलसिलेवार मिसाइलों के सफल परीक्षण के कारण ही वैज्ञानिक और पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम को ‘‘मिसाइल मेन’’ अर्थात ’’अग्नि-पुत्र’’ कहा जाने लगा था।

उनकी सेवानिवृत्ति के बाद इस काम को गति दी महिला वैज्ञानिक टेसी थामस ने। श्रीमती थांमस आईजीएमडीपी में अग्नि 5 अनुसंधान की परियोजना निदेशक हैं। उन्हें भारतीय प्रक्षेपास्त्र परियोजना की पहली महिला निदेशक होने का भी श्रेय हासिल है। 25 साल पहले टेसी थांमस ने एक वैज्ञानिक की हैसियत से इस परियोजना में नौकरी की शुरूआत की थी। अग्नि 5 से पहले उनका सुरक्षा के क्षेत्र में प्रमुख अनुसांधन ’री एंट्री व्हीकल सिस्टम’ विकसित करना था। इस प्रणाली की विशिष्टता है कि जब मिसाइल वायुमण्डल में दोबारा प्रवेश करती है तो अत्याधिक तापमान 3000 डिग्र्री सेल्सियस तक पैदा हो जाता है। इस तापमान को मिसाइल सहन नहीं कर पाती और वह लक्ष्य भेदने से पहले ही जलकर खाक हो जाती है। आरवीएस तकनीक बढ़ते तापमान को नियंत्रण में रखती हैं, फलस्वरुप मिसाइल बीच में नष्ट नहीं होती। इस उपलब्धि के हसिल करने के बाद से ही टेसी थांमस को ’मिसाइल लेडी’ अर्थात् ’अग्नि-पुत्री’ कहा जाने लगा। श्रीमती थांमस को रक्षा उपकारणों के अनुसंधान पर इतना नाज है कि उन्होंने अपने बेटे तक का नाम लड़ाकू विमान ’तेजस’ के नाम पर तेजस थांमस रखा है। व्हीलर तट पर मोबाईल लांचर से प्रक्षेपित की गई इस अग्नि-5 के प्रेक्षपण में मुख्य भूमिका डीआरडीओ के प्रमुख अविनाश चंदर की रही है। उन्हें भी भारतीय मिसाइल विज्ञान के क्षेत्र में अग्नि पुत्र के नाम से पहचान मिली है। इस मिसाइल को प्रक्षेपित करने का दिन 31 जनवरी 2015 उनकी सेवा का आखिरी दिन था। अग्नि मिसाइल के क्षेत्र में इन कडियों की उपलब्धियों से यह तय हो गया है कि हम स्वदेशी तकनीकियों से भी रक्षा विज्ञान के क्षेत्र में आत्मनिर्भर हो सकते हैं।

प्रमोद भार्गव

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  1. दिल्ली चुनाव् के कारन इस समाचार को जितना कवरेज मिलना चाहिए था ,नहीं मिला. दूसरे सभी विद्यालयों में अग्नि ५ की विस्तृत चर्चा होनी चाहिए.विद्यालयीन स्तर से बच्चो में एक जिज्ञासा उत्पन्न हो आइए कार्यक्रम रेडिओ या टीवी के जरिये प्रसारित हों। थॉमस बहिन को बधाई। आपके लेख में इसकी मारक क्षमता बतायी किन्तु यह बोफोर्से की तुलना में है या नहीं इसकी जानकारी मिलती तो अच्छा होता.

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