बनारस- भारतीयता, सांस्कृतिक एकता का नाभिकुंड

-भारतचंद्र नायक-
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समर्थ भारत का आह्वान

जलप्लावन के समय जब सृष्टि जलमग्न होने लगी, काशी विश्वनाथ ने अपने त्रिशूल पर पृथ्वी को स्थिर कर प्राणीमात्र की रक्षा की, तभी से काशी विद्यमान है। आज काशी, वाराणसी और बनारस जो भी है, उसका सांस्कृतिक महत्व कम हुआ है, पुरानी नगरी, प्रदूषित गंगा क्षत-विक्षत नदी किनारे के घाट, नगर की घसी हुई सड़कें, भीड़ भरे संकीर्ण रास्ते मात्र उसकी पहचान रह गयी है। नरेन्द्र मोदी ने बनारस से अपना नामांकन-पत्र दाखिल करते हुए जो कहा कि ईश्वरीय प्रेरणा से बाबा विश्वनाथ की नगरी में आया हूं, इसके बहुत मायने है। उन्होंने यह भी स्पष्ट कहा कि न तो उन्हें भारतीय जनता पार्टी का निर्देश हुआ है और न कोई राजनैतिक विवशता है, शंकर सोमनाथ की नगरी से भगवान विश्ननाथ की नगरी में सेवा और कल्याण भावना से आया हूं। उन्होंने काशी की सांस्कृतिक समृद्धि पर गर्व करते हुए कहा कि काशी शांति और मोक्ष का द्वार है। गौतम बुद्ध ने प्रथम उपदेश यही दिया था। संत रविदास का जन्म इसी पावन धरा पर हुआ था, महात्मा कबीर की वाणी यही निसृत हुई थी। मिर्जा गालिब ने भी काशी को कावा-ए-हिन्दुस्तान कहा था। शिक्षा केन्द्र की स्थाना कर ज्ञान की किरणें मालवीय जी ने यहां बिखेरीं। बनारस से ही संगीत के जादूगर उस्ताद बिस्मिल्लाह खां ने एक तहजीब को स्वर लहरियों में पिरोया था। काशी के सांस्कृतिक गौरव की विरासत को सहेजने, संवारने का बोध नरेन्द्र मोदी ने ऐसे समय मुखरित किया जब हम सियासी नारों के बीच तोड़ने और जोड़ने की बहस से संस्कृति से परे हटकर सिर्फ जहरीली, तेजाबी सियासत करने पर आमादा है। नरेन्द्र मोदी ने जिस तरह सांस्कृतिक वैभव की याद की उसमें क्षरण होती समृद्धि का दर्द लेकिन उसे सहेजने और संवारने का फौलादी संकल्प है। यह कहना इसलिए भी जरूरी लगता है क्योंकि लोकसभा चुनाव के प्रचार के दौरान नरेन्द्र मोदी को देश के दुश्मन के रूप में प्रचारित करना सत्ता पार्टी का एकल सूत्रीय एजेंडा है। लेकिन उनके पास इस बात का कोई जबाव नहीं है कि देश की नव जवान पीढ़ी को हमनें संस्कृति से अलग करने का अपराध क्यों किया। आजादी के बाद भारतीयता को जितनी क्षति पांच दशकों में सत्तारूढ़ दल ने पहुंचायी है उसकी कीमत मौजूदा पीढ़ी को भुगतना पड़ रही है। धर्म निरपेक्षता की आड़ में इस पीढ़ी के साथ सांस्कृतिक आतंकवाद जैसा अपराध किया गया है। संस्कृत जो ज्ञान की जननी है, उस पर भी साम्प्रदायिक ठप्पा लगाकर रखा गया। रामायण-महाभारत के साथ इस्लाम की शिक्षा दी जाती, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। नतीजा सामने है कि गंगा-जमुनी तहजीब सिर्फ सियासी शब्दावली रह गयी है। परस्पर घृणा और नफरत के बीज बोकर फसल काटी है और वोट बटोरे गये हैं। गंगा माता के आव्हान पर नरेन्द्र मोदी का बनारस पदार्पण हुआ है यह कहकर नरेन्द्र मोदी ने वास्तव में देश को अतीत के वैभव, सामाजिक समरसता और सांस्कृतिक पुनरूत्थान का संदेश दिया है, जिसकी आज भी प्रासंगिकता है। नवजागरण मंच से व्यवहार के धरातल पर उतारा है।

देश के शासन का सूत्र कमोवेश उत्तर प्रदेश ने ही आजादी के बाद संभाला है। कितना विरोधाभास है कि जो उत्तर प्रदेश देश को पंडित नेहरू, लाल बहादुर शास्त्री, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, विश्ननाथ प्रताप सिंह, चन्द्रशेखर, चरणसिंह जैसे प्रधानमंत्री दे चुका है आज उसी प्रदेश के अनेकों अंचल भीषण गरीबी ओर पिछड़ेपन की चपेट में है। मोदी का यह कहना कि ईश्वर जब कठिन जिम्मेदारी सौंपता है तो वह प्रेरणा देकर साहस और पराक्रम भी प्रदान करता है। गोया नरेन्द्र मोदी इस जिम्मेदारी को उठाना मजबूरी की जगह दैवीय कार्य मानते है। जबकि आज लोकतांत्रिक व्यवस्था में राजनेता बड़े आराम से मजबूरी, विवषता जताने में गुरेज नहीं करते। यहां तक कह जाते है कि न तो हमारे पास विकास के लिए जादू की छड़ी है और न पैसे पेड़ पर लगते है। नरेन्द्र मोदी के साहस, उत्तर प्रदेश विशेषकर पूर्वांचल के कायाकल्प के बारे में जो दूरदृष्टि उन्होंने जाहिर की है वास्तव में वह एक महान संकल्प और देश के उज्ज्वल भविष्य की प्रस्तावना है। इसका समर्थन करके ही देश में महान परिवर्तन और परिवर्तन को स्थायित्व प्रदान किया जा सकेगा। आगामी कल के निर्माण के लिए जनता को आज का समर्पण एक सच्चे उद्देश्य के समर्थन के लिए करना पड़ेगा। नरेन्द्र मोदी के हाथ मजबूत करना एक राष्ट्रीय दायित्व बन चुका है। 16वीं लोकसभा के चुनाव में देश की जनता की अभूतपूर्व उत्सुकता, कुतुहलपूर्ण भागीदारी देखकर जनता चमत्कृत है। इसे जनता की स्वप्रेरित प्रतिक्रिया बताते हुए चुनाव विश्लेषक राजनैतिक परिवर्तन का जन अभियान बता रहे है। इसे नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारतीय जनता पार्टी का दिल्ली की सत्ता पर पदार्पण भी कहा जा रहा है। इसे देश में भारतीय जनता पार्टी और नरेन्द्र मोदी की लहर भी बताया जा रहा है। लेकिन इस लहर को धर्मनिरपेक्ष दल और क्षेत्रीय क्षत्रप नहीं देख पा रहे हैं और वे इसे लेकर मजाक भी उड़ा रहे हैं।
उनका कहना है कि मोदी लहर कहकर नरेन्द्र मोदी को सिर्फ महिमा मंडित करने का यह एक सुनियोजित प्रयास है। लेकिन वास्तविक हकीकत यह है कि पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी की आंखों से इस आशंका से नींद गायब हो चुकी है कि भारतीय जनता पार्टी के कदम बढ़ चुके हैं। भाजपा को वोट प्रतिषत यदि दहाई में पहुंचा तो तृणमूल कांग्रेस की उल्टी गिनती शुरू हो जायेगी। भाजपा की बढ़त वामपंथियों को मौका दे देगी। उड़ीसा में नवीन पटनायक ने भाजपा की हैसियत नगण्य मानी थी, लेकिन इस चुनाव में आधा दर्जन लोकसभा सीटों पर भगवा परचम फहराये जाने की भविष्यवाणियों ने पटनायक के चेहरे पर पेशानी डाल दी है। इसी तरह दक्षिण भारत में मोदी की आहट से क्षेत्रीय क्षत्रप अपनी रणनीति में बदलाव लाकर भाजपा की ओर देख रहे हैं। जहां से मोदी लहर आंरभ हुई है, वह जम्मू-कश्मीर परिवर्तन के आगाज को समझ रहा है और उमर अब्दुल्ला ने भी जाहिर तौर पर मोदी लहर का एहसास कर लिया है। लेकिन जिस तरह से कांग्रेस नरेन्द्र मोदी को देश के लिए जोखिम बता रही है इस मनोवृत्ति को भी समझना होगा।

आजादी के पहले और आजादी के बाद महात्मा गांधी ने रामराज्य की कल्पना की थी, उनका सवेरा राम नाम के मंत्र से होता था और जानकार लोग बताते हैं कि उन्होंने- हे राम- कहकर प्राण विसर्जित किये थे। लेकिन जब गांधीजी राम राज्य की कल्पना करते थे जिन्नावादी मानसिकता इसे हिन्दु राज की संज्ञा देती थी और उसने इसी मानसिकता को आगे बढ़ाकर देश का विभाजन कर दिया। भारत की तासीर सर्वधर्म समभाव भारत की है जहां न कोई हिन्दु है, न मुसलमान और न ईसाई सभी भारत के समान नागरिक है। धर्म के आधार पर कोई भेदभाव नहीं है। धर्म निरपेक्षता को सियासी परिभाषा तो सियासतदारों ने दी है लेकिन धर्मनिरपेक्षता की गारंटी तो हिन्दुत्व ने ही दी है, इतिहास गवाह है। नरेन्द्र मोदी की यही धारणा तथाकथित धर्म निरपेक्षवादियों के लिए फांस बन गयी है। जो जनता को भारतीय या हिन्दुस्थानी देखने के बजाय मुसलमान, हिन्दु, ईसाई के रूप में देखकर उनमें एक हीनग्रंथि खोजते रहते हैं। जब-जब चुनाव आते हैं, वे इस हीनग्रंथि को टटोलते, दबाते, फुसफुसाते हैं और देश की अखंडता की कीमत पर टुकड़ों में बांट देते हैं। आज देश की जनता, देश के 10 करोड़ नवजवानों ने इस मर्म को समझा है और उस समर्थ भारत के समर्थन में जज्बा और जुनून दिखाया है, नरेन्द्र मोदी जिसके संदेश वाहक, प्रवक्ता और नायक बनकर उभरे हैं। एक सशक्त, समर्थ, स्वावलंबी और शक्तिशाली भारत की जो कल्पना आजादी की लड़ाई में बनी थी, आज उसी भावना ने देश में नये परिवर्तन को दिशा दी है। भारतीयता की भावना के प्रस्फुटन की यह प्रक्रिया असली भारत की ऊर्जा है, जिसका विस्फोट देश में बढ़ते हुए मतदान के रूप में कश्मीर से कन्याकुमारी और अटक से कटक तक दृष्टिगोचर हो रहा है। यह कांग्रेस के संकट के सफर की शुरूआत और देश की जनता के कष्टों के अंत की पछुआ बयार है जिसे रोक पाना किसी के वश की बात नहीं है। वोट का जोश और बदलाव के बादलों को रोक पाना आसान नहीं है। यही नरेन्द्र मोदी की शक्ति और कांग्रेस के पराभव का संकेत है।

सेकुलरवाद ने देश में तोड़ने और जोड़ने की एक निरर्थक बहस में देश को उलझाएं रखा है, इसका एकमात्र उद्देश्य नफ़रत, लालच और निरंकुशतापूर्ण सत्ता की भूख रही है। जबकि उद्देश्य ऐसी विचारधारा जो प्यार, मोहब्बत और अमन-चैन आश्वस्त करना हो, रहना चाहिए। नरेन्द्र मोदी को लेकर 12 वर्षों से अंतहीन बहस 2002 के दंगों ने देश की जनता को मथ डाला है। अदालतों और आयोगों ने इसकी सारहीनता सामने लाते हएु नरेन्द्र मोदी को बेगुनाह साबित किया है। लेकिन कांग्रेस जो अपने को संवैधानिक संस्थाओं की पोषक बताती है अपनी खुदगर्जी के लिए अदालतों और आयोगों के निर्णय को भी स्वीकार करने को तैयार नहीं है, क्योंकि ऐसा होने पर उसके हाथ से साम्प्रदायिक का अंतिम खिलौना भी छूट जायेगा। ऐसे में राज्यसभा की पूर्व उप सभापति एवं वरिष्ठ नेत्री नजमा हेपतुल्लाह के इस कथन के बाद इस बहस को दफन कर दिया जाना चाहिए कि आजादी के बाद देश में 2002 तक 60 हजार दंगे हो चुके हैं। क्या इन देशों की जबावदेही के लिए तत्कालीन मुख्यमंत्रियों (जिनमें कांग्रेस के मुख्यमंत्री अधिकांश है) को कठघरे में खड़ा किया जायेगा। मुसलमानों के सीने में ऐसी हजारों कब्रें हैं जिनमें कांग्रेस के शासनकाल में मारे गये अल्पसंख्यक दफ़न है। नरेन्द्र मोदी का यह आह्वान कि देश के प्रति समर्पित हर बाशिंदा भारत का सम्मानीय नागरिक है। सम्प्रदाय के तमगे का इससे लेना-देना नहीं है, यही समर्थ भारत का जन आह्वान है।

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