बंगलादेशी मुस्लिम आ सकते हैं तो पाकिस्तानी हिंदू क्यों नहीं!

इक़बाल हिंदुस्तानी

हम अपनी नालायक़ी का क़सूरवार कब तक दूसरों को ठहरायेंगे?

मैंने कुछ दिन पहले फेसबुक पर एक पोस्ट में पाकिस्तान के हिंदुओं के साथ भी अन्याय और पक्षपात बंद करने की अपील की थी। इस पोस्ट पर जहां कई लोगों के सकारात्मक कमैंट आये और कुछ ने लाइक किया वहीं एक साहब ने मुझे फोन पर भविष्य में ऐसी पोस्ट ना लिखने की सख़्त लहजे में हिदायत दी जो धमकी अधिक लग रही थी। जब मैंने उनसे पूछा कि आदमी तो आदमी होता है उसे हिंदू मुसलमान के ख़ानों में क्यों बांट रहे हो तो वे अपशब्दों पर उतर आये। उनका दावा था कि हम जैसे सेकुलर लोगों की वजह से ही आज मुसलमानों पर जुल्म हो रहा है और मैं हिंदुओं पर जुल्म का मामला उठाकर ‘‘असली मुद्दे” से ध्यान हटा रहा हूं। मैंने इन बहादुर साहब का नम्बर जानना चाहा तो पता लगा ये डरपोक जनाब किसी पीसीओ से धमका रहे थे।

बहरहाल मैं इनकी यह गलतफहमी दूर करने को दोबारा लिख रहा हूं कि मैं अपने उसूलों पर खरा हूं लिहाज़ा देखना चाहत हूं कि फिर से ऐसा लिखने पर यह क्या बिगाड़ सकते हैं? मेरा सवाल है कि अगर बंगलादेश से असम में बड़ी तादाद में अवैध रूप से आने वालों को शरण दी जा सकती है तो पाक से भारत आने वाले वहां के अल्पसंख्यकों को यहां पनाह क्यों नहीं दी जा सकती? मानवता के दो पैमाने कैसे बनाये जा सकते हैं? अगर आदमी से प्यार करना अपराध है तो मैं यह अपराध बार बार करता रहूंगा चाहे इसका नतीजा कितना ही ख़तरनाक और भयानक ही क्यों ना हो।

पूर्वोत्तर के लोगों ने हालांकि अपने अपने कार्यस्थलों वाले विभिन्न राज्यों और नगरों को वापस आना शुरू कर दिया है लेकिन सवाल यह है कि हम अपनी नालायकी और काहिली के लिये कब तक दूसरों को क़सूरवार ठहराकर खुद को धोखा देते रहेंगे। हमारे गृहसचिव को यह बात आज पता लगी कि हमारे पड़ौसी देश पाकिस्तान ने असम और बर्मा में मुसलमानों के एकतरफा क़त्लेआम के फ़र्जी पोस्ट इंटरनेट पर डालकर और पूर्वाेत्तर के लोगों को मोबाइल एसएमएस के द्वारा यह अफवाह फैलाकर डराया था कि रम्ज़ान के बाद उनकी खैर नहीं। हम यह क्यों नहीं क़बूल करते कि हमारी खुफ़िया एजंसियां और पुलिस नाकारा और लापरवाह है। हमारी सरकार सदा आग लगने पर ही पानी की तलाश के लिये क्यांे दौड़भाग करती है। एक महीने से ज़्यादा समय बीत गया इस दुष्प्रचार को चलते हुए कि बर्मा और असम में केवल मुसलमानों का नरसंहार हो रहा है।

जब हमारे मीडिया ने इस अफवाह को कोई तवज्जो नहीं दी तो यह चर्चा फैलाई गयी कि यह हिंदूवादी मीडिया है जो मुसलमानों के साथ अन्याय और अत्याचार होने पर एक सोची समझी रण्नीति के तहत सच को छिपा रहा है। यह बात हमारी समझ से बाहर है कि इसी मीडिया ने गुजरात के दंगों को लेकर पूरी दुनिया को ईमानदारी से सच बताया लेकिन अगर यही मीडिया वह झूठ और अफवाह नहीं फैला रहा जो पाकिस्तान से प्रायोजित है तो यह अब कुछ कट्टरपंथियों में गलत ठहराया जा रहा है। हम मानते हैं कि असम में मुसलमानों को कमज़ोर और अल्पसंख्यक होने से दंगों में और समुदाय से कुछ अधिक नुकसान हुआ हो लेकिन इस वास्तविकता से भी नज़रे नहीं चुराई जा सकती कि असम का विवाद हिंदू मुस्लिम ना होकर मूल असमी बोडो और गै़र बोडो का है।

पूरी दुनिया जानती है कि हमारा पड़ौसी पाकिस्तान हमसे एक दो नहीं बल्कि चार चार जंग हार चुका है। उसका कश्मीर और पंजाब में आतंकवाद फैलाकर उनको आज़ाद कराने का दिन दहाड़े देखा गया मंुगेरी लाल का हसीन सपना भी काफी पहले बिखर चुका है। वह हमें बंगलादेश बनवाने का कसूरवार मानकर बदले की आग में जल रहा है लेकिन हमारा कुछ भी नहीं बिगाड़ पा रहा है। वह कारगिल में भी मंुह की खा चुका है। ऐसे में अगर पाकिस्तान हमारे देश में अराजकता और आतंकवाद फैलाने का कोई मौका नहीं चूकना चाहता तो यह उसका कुंठित और विकृत सोच का मिशन बन चुका है। मानसिक और आर्थिक रूप से दिवालिया ऐसे पड़ौसी से सावधान रहना हमारा पहला काम है। हमारा कहना तो यह है कि अगर किसी को दुनिया के किसी कोने में हो रही हिंसा और अन्याय का विरोध भी करना है तो मानवता के आधार पर विरोध दर्ज किया जाये।

किसी भी वर्ग और समुदाय को जाति और धर्म आदि के नाम पर सार्वजनिक रूप से एकत्र होकर विशाल रैली और प्रदर्शन की कानूनन छूट ही नहीं दी जानी चाहिये। जब हमारा देश लोकतांत्रिक होने के साथ ही धर्मनिर्पेक्ष भी है तो फिर सभी देशवासी भारतीय ही हैं। वे सब समान अधिकार वाले नागरिक हैं। उनके अधिकार के साथ ही समान कर्तव्य भी हैं। भारतीयों को आपस में बांटनेवाले किसी भी काम की सरकार आज़ादी कैसे और क्यों दे सकती है। सही मायने में मुंबई के आज़ाद मैदान में किसी भी एक वर्ग को रैली, सभा और प्रदर्शन करने की इजाज़त दी ही नहीं जानी चाहिये थी। इसके बाद शांतिपूर्ण विरोध दर्ज करानेेे वाले जब अचानक उग्र और हिंसक हो उठे तो उनको सख़्ती से दबाना कानून व्यवस्था के लिये ज़रूरी था। इसके बाद जवाबी विरोध रैली महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना के राज ठाकरे द्वारा बिना पुलिस प्रशासन की अनुमति के निकालना उतना ही गलत था जितना इससे पहले विरोध प्रदर्शन के नाम पर एकत्र हुयी भीड़ का अराजक हो जाना ।

आज हम लोग धन दौलत के लिये कुछ भी करने को तैयार हो जाते हैं। हम हर कीमत पर सफलता प्राप्त करना चाहते हैं। इसका नतीजा यह हो रहा है कि हम सही गलत का भेद भूलकर पूंजी के पीछे भाग रहे हैं। दरअसल पूंजीवाद और समाजवाद का अंतर धीरे धीरे हमारे सामने आने लगा है लेकिन दौलत और शोहरत के पुजारी मुट्ठीभर लोग इस सच्चाई को लगातार झुठलाने का प्रयास कर रहे हैं कि पैसा कमाने की होड़ समाज से रिश्ते नातों, धर्म, मर्यादा और नैतिकता को पूरी तरह ख़त्म करती जा रही है। पूंजीवाद के सबसे बड़े वैश्विक गढ़ अमेरिका की हालत दिन ब दिन पतली और समाजवाद के आज भी मज़बूत किले चीन की हालत लगातार मज़बूत होने से भी हमारी आंखे नहीं खुल रही हैं। सच यह है कि आज हम इतने स्वार्थी और एकांतवादी होते जा रहे हैं कि व्यक्तिगत स्वतंत्रता और अपनी मनमानी करने के लिये हम रिश्तों नातों को कच्चे धागों की तरह तोड़ने में एक पल भी नहीं लगाते।

अगर थोड़ा झगड़ा और रूठना मनाना होकर ये सम्बंध फिर से प्यार मुहब्बत की डोर में बंध जायें तो फिर भी आपसी तालमेल और साझा जीवन का एक रास्ता निकल सकता था लेकिन आज तो हालत यह हो गयी है कि साझा परिवार टूटते जा रहे हैं। हम यह सच जितना जल्दी स्वीकार कर लें उतना ही अच्छा है कि हम अपनी सभ्यता और संस्कृति की श्रेष्ठता का राग अलापने के बावजूद अंधविश्वास, कट्टरता और संकीर्णता से जकड़े हुए हैं। हमारे स्वार्थ और सोच देश और मानवता से ऊपर हो चुके हैं। हमारे नेता धर्म और जाति की राजनीति करके हमें इंसान और नागरिक नहीं वोट बैंक मानते हैं। हम मंे जातिवाद और क्षेत्रवाद कूट कूट कर भरा हुआ है। दुनिया चांद पर पहंुच गयी और मंगल गृह पर बसने की तैयारी कर रही है लेकिन हम अभी भी ज़मीन के नीचे प्राचीन विवादित धार्मिक स्थलों के अवशेष तलाश कर रहे हैं। हम भ्रष्टाचार, नक़ल और मिलावट में विश्व में सर्वोच्च स्थान बनाने की ओर अग्रसर हैं।

अब समय आ गया है कि हम धर्म, जाति और क्षेत्र के दायरे से बाहर निकल कर प्रगतिशील और विकासपरक सोच से निष्पक्ष उन्नति का सर्वांगीण रास्ता चुनें वर्ना अल्लामा इक़बाल का वह शेर हम पर लागू हो जायेगा।

खुदा ने आज तक उस कौम की हालत नहीं बदली,

ना हो जिसको ख़याल खुद अपनी हालत बदलने का।

 

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

1 COMMENT

  1. भाई इक़बाल जी, आपका इक़बाल बुलंद रहे.बंगलादेश से अवैध रूप से आने वालों को सरकार अपनी वोट बेंक राजनीती के तहत गले लगाती है जबकि पाकिस्तान से वहां हो रहे अत्याचारों से तंग आकर भारत आने वाले हिन्दुओं में उसे कोई वोट बेंक नजर नहीं आता. संयुक्त राष्ट्र के कानूनों के अनुसार धार्मिक उत्पीडन से परेशां होकर आने वाले ‘शरणार्थियों’ को हर प्रकार से सहयोग और संरक्षण देना सदस्य देशों का दायित्व है जबकि अवैध रूप से घुसपेठ करने वाले बंगलादेशीयों को देश से बहार करना फोरेनार्स एक्ट, १९४६ के अंतर्गत कानूनी बाध्यता है. ये अलग बात है की सरकार इन पर अपनी वोट बेंक राजनीती के चलते कोई कारवाही नहीं करना चाहती. यही आसाम के झगडे की असली वजह भी है.

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