बैंकिंग सेवा भर्ती बोर्ड की पुनर्स्थापना की आवश्यकता

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सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में विभिन्न पदों की भर्ती परीक्षा हर बैंक की ओर से स्वतंत्र रूप से आयोजित होने के कारण बेरोजगार विद्यार्थियों को परेशानी हो रही है। कई बार विभिन्न सार्वजनिक बैंकों की ओर से एक ही समय में आवेदन मंगाये जाते हैं। इससे बेरोजगार युवाकों को परीक्षा शुल्क भरने में काफी खर्च आता है। अनेक प्रतिभाशाली विद्यार्थी दो-तीन बैंकों की परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाते हैं। इससे उन्हें किसी न किसी बैंक की नियुक्ति छोडऩी पड़ती है। इससे संपूर्ण नियुक्ति प्रक्रिया पूरी होने के बाद भी बैंक में कुछ पद खाली रह जाते हैं। इसके कारण दूसरे उम्मीदवार को नौकरी नहीं मिल पाती है। जब उस पद के लिए फिर से आवेदन मंगाया जाता है, तब कई बेरोजगार युवाओं की उम्र निकल जाती है।

सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों में मार्च, 2005 से पहले सभी तरह की भर्तियां वित्त मंत्रालय की ओर से स्थापित बैंकिंग सेवा भर्ती बोर्ड के माध्यम से की जाती थी। वर्ष 2001 में यह निर्णय लिया गया कि नई भर्तियां बैंकों में नहीं की जाए तथा अतिरिक्त स्टाफ को एकमुश्त योजना के तहत विशेष स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति दे दी जाए। केंद्र सरकार के इस निर्णय के कारण ही वित्त मंत्रालय की ओर से वर्ष 2005के बजट प्रावधानों में बैंकिंग सेवा भर्ती बोर्ड को समाप्त करने का निर्णय लिया गया।

आगामी 2 से 3 वर्षों में बैंकिंग उद्योग में कार्यरत वर्तमान स्टॉफ में से 30 से 40 प्रतिशत अधिकारी और कर्मचारी सेवानिवृत हो रहे हैं। फिलहाल 2005 से अलग-अलग बैंको की ओर से नई भर्ती की गई है। केवली स्टेट बैंक ऑफ इंडिया ने वर्ष 2009 में करीब 30 हजार लिपिक व अधिकारी पदो पर भर्ती के लिए आवेदन आमंत्रित किए थे। एक ही वर्ष में कई बैंकों द्वारा भर्ती योजना के कारण बेरोजगार युवा अलग-अलग आवेदन करते हैं। प्रतिभाशाली उम्मीदवारों को दो-तीन बैंकों में एक साथ चयन हो जाता है। उस स्थिति में यह आवेदक अपनी सुविधा के अनुसार एक बैंक में ज्वाइन होते हैं। ऐसी स्थिति में बाकी बैंकों की ओर से उस उम्मीदवार की ओर से भर्ती प्रक्रिया बेकार चली जाती है। उस पद को भरने के लिए फिर से नई प्रक्रिया शुरू की जाती है।

राष्ट्रीय बैंक कर्मचारी संगठन (एनओबीडब्ल्यू) ने केंद्र सरकार से फिर से केंद्रीयकृत बैंकिंग सेवा भर्ती बोर्ड की स्थापना की मांग की है। इससे आवेदको को मनपसंद के बैंकों में नियुक्ति के विकल्प मिलेंगे। साथ ही स्थानीय आवेदकों के चयन की भी संभावना बढ़ जाएगी। इससे परीक्षा का अतिरिक्त खर्च भी नहीं लगेगा और परीक्षा शुल्क के नाम पर बेरोजगारों की जेब भी ढीली नहीं होगी।

संजय स्वदेश

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संजय स्‍वदेश
बिहार के गोपालगंज में हथुआ के मूल निवासी। किरोड़ीमल कॉलेज से स्नातकोत्तर। केंद्रीय हिंदी संस्थान के दिल्ली केंद्र से पत्रकारिता एवं अनुवाद में डिप्लोमा। अध्ययन काल से ही स्वतंत्र लेखन के साथ कैरियर की शुरूआत। आकाशवाणी के रिसर्च केंद्र में स्वतंत्र कार्य। अमर उजाला में प्रशिक्षु पत्रकार। दिल्ली से प्रकाशित दैनिक महामेधा से नौकरी। सहारा समय, हिन्दुस्तान, नवभारत टाईम्स के साथ कार्यअनुभव। 2006 में दैनिक भास्कर नागपुर से जुड़े। इन दिनों नागपुर से सच भी और साहस के साथ एक आंदोलन, बौद्धिक आजादी का दावा करने वाले सामाचार पत्र दैनिक १८५७ के मुख्य संवाददाता की भूमिका निभाने के साथ स्थानीय जनअभियानों से जुड़ाव। विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं के साथ लेखन कार्य।

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