आदिम युग की बर्बरता

संदर्भः पाकिस्तानी सेना द्वारा भारतीय  सेना के सिर काटना

प्रमोद भार्गव
पाकिस्तानी फौजियों द्वारा भारतीय सीमा के मेंढ़र सेक्टर में 250 मीटर अंदर घुसकर भारतीय सेना और सीमा सुरक्षक्षा बल के दो सैनिकों की हत्या स्तब्ध कर देने वाली घटना है। क्योंकि पाक सैनिक भारतीय सैनिको के साथ आदिम बर्बरता दिखाते हुए उनके सिर भी काटकर ले गए। इस हरकत की जिम्मेबारी ‘मुजाहिद बटालियन’ ने ली है। इस घटना ने अंतरराष्ट्रियराष्ट्रियराष्ट्रियराष्ट्रियसीमा के उल्लंघन और संघर्श विराम की शर्त को एक बार फिर खुली चुनौती दी है। रिश्तों में सुधार की भारत की ओर से ताजा कोशिशों  के बावजूद पाकिस्तान ने साफ कर दिया है कि   कायम रखने और निर्धारित शर्तों को मानने के लिए कतई गंभीर नहीं हैं। और हम हैं कि मुंहतोड़ जवाब देने की बजाए, मुंह ताक रहे हैं ? पाकिस्तान के प्रति रहमदिली का रुख रखने वाले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में पाक को अंतरिक्षक्ष में निशुल्क उपग्रह प्रक्षक्षेपण के लिए कहा था, इस उदारता का परिचय पाक सेना ने हमारे सैनिकों के सिर कलम करके दिया है। यहीं नहीं इस घटना को अंजाम देने के 6 घंटे बाद कुलगाम में दूसरी वारदात को जन्म देकर जम्मू-कश्मीरबैंक की कैश वैन लूटते हुए 5 पुलिसकर्मी और 2 बैंककर्मियों की हत्या कर दी। इन क्रूर घटनाओं से पूरा देश सकते में है और भारत सरकार सेे अब आश्वासन नहीं, ठोस जवाबी कार्रवाई चाहता है।
इसी तर्ज पर 30 जुलाई 2011 को शहीद जयपाल सिंह और देवेन्द्र सिंह के सिर काट ले गए थे। 8 जनवरी 2013 हेमराज सिंह और सुधाकर सिंह की पाक सैनिकों ने पूंछ इलाके के ही मेंढर क्षक्षेत्र में करीब आधा किलोमीटर भीतर घुसकर हत्या कर दी थी, फिर शहीद सैनिक हेमराज का सिर काट ले गए थे। 22 नवंबर 2016 को मांछिल में हुई मुठभेड़ में तीन जवान शहीद हुए, इनमें से प्रभु सिंह का सिर काटा। 28 अक्टूबर 2016 को शहीद जवान मंदीप सिंह को शव को मांछिल मेंक्षत-विक्षत किया था। कारगिल युद्ध के समय ऐसी ही हिंसक बर्बरता पाक सैनिकों ने कप्तान सौरभ कालिया के साथ बरती थी। यही नहीं सौरभ का शरीर क्षत-विक्षत करने के बाद शव बमुश्किल लौटाया था। अब इन्हीं हरकतों की पुनरावृत्ति हुई है। युद्ध के समय भी अंतरराष्ट्रियकानून के मुताबिक ऐसी वीभात्सा बरतने की इजाजत नहीं है। ये वारदातें युद्ध अपराध की श्रेणी में आती हैं। लेकिन भारत सरकार इस दिशा में कोई पहल नहीं करती और युद्ध अपराधी, निरपराधी ही बने रहते हैं। भारत की यह सहिश्णुता विकृत मानसिकता के पाक सैनिकों की क्रूर सोच को प्रोत्साहित कर रही है। यहां दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति यह भी है कि ऐसी जघन्य हालत में पाक के साथ भारतीय सेना नायक क्या बर्ताव करें, इस परिप्रेक्षक्ष्य में भारत के नीति-नियंताओं के पास कोई स्पश्ट नीति ही नहीं दिखाई देती है। यही वजह है कि बड़ी से बड़ी घटना भी आश्वासन और आश्वस्ति के छद्म बयानों तक सिमटकर रह जाती है। भारत इन घटनाओं को अंतरराष्ट्रियमंचों पर उठाने का भी साहस नहीं दिखा पाता। नतीजतन संबंध सुधार के द्विपक्षक्षीय प्रयास इकतरफा रह जाते हैं। हकीकत तो यह है कि संबंध सुधार के लिए बातचीत ही समस्या की जड़ बन गई है, इसी कारण भारत बार-बार धोखा और मात खा रहा है। किंतु अब समय आ गया है कि पाकिस्तान संबंधी नीतियों में आमूलचूल परिवर्तन किया जाए। साथ ही कश्मीरके परिप्रेक्षक्ष्य में भी नई और ठोस रणनीति अमल में लाई जाए। क्योंकि कश्मीरमें हालात दिन प्रतिदिन बिगड़ रहे हैं। जिस तरह से एक ही दिन पाक ने सेना और पुलिस को भारत की सीमा में निशाना बनाया है, उससे साफ है, कि पाक के इरादे नेक नहीं हैं। वहां की सेना कश्मीरके हालात और खराब करने पर आमादा है।

इस ताजा घटना के संदर्भ में गौरतलब है कि जम्मू-कश्मीरमें नियंत्रण रेखा पर डेढ़ दशक से जारी युद्धविराम भारत और पाकिस्तान के बीच संबंध सुधारने की दिशा में सबसे पुख्ता शर्त है। 26 नवंबर 2003 को यह शर्त लागू हुई थी। बाबजूद रेखा पर कमोबेश अघोषित  हमले जैसी स्थिति बनी हुई है।
हमेश की तरह पाकिस्तान ने जिस तरह से इस घटना को नकारा है, उससे साफ हो गया है कि पाक के जो निर्वाचित प्रतिनिधि इस्लामाबाद की सत्ता पर सिंहासनारुढ़ हैं, उनका अपने ही देश की सेना पर कोई नियंत्रण नहीं है। वह पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के चंगुल में है। हुकूमत पर आईएसआई का इतना जबरदस्त प्रभाव है कि वह भारत के खिलाफ सत्ता को उकसाने का भी काम करती है। यही वजह है कि सेना की अमर्यादित दबंगई भाड़े के सैनिकों को भारत में घुसपैठ कराकर आतंकी घटनाओं को अंजाम देने की भूमिका रचती है। दरअसल पाकिस्तानी शासन-प्रशासन और सेना की बीच संबंध मधुर नहीं है। प्रधानमंत्री नवाज शरीफ पर जब से पनामा मामले में आरोप तय होने के बाद अदालत में सुनवाई शुरू हुई है तब से नवाज शरीफ की हैसियत सेना के बरक्षक्ष दोयम दर्जे की हो गई है। जब-जब ये संबंध बिगड़ते हैं, तब-तब पाकिस्तान का भारत के खिलाफ क्रूरतम बर्ताव सामने आता है। पाकिस्तानी सेना के प्रमुख कमर वहीद बाजवा ने पिछले तीन माह के भीतर सीमा के निकट हाजी पीर सेक्टर की चार बार यात्रा की है। यात्रा के दौरान भारत के विरुद्ध तीखे एवं खून खौलाने वाले बयान दिए थे। इन बयानों से ही भारत की सेना और सरकार को समझ जाना चाहिए था कि खतरा मंडरा रहा है। क्योंकि बाजवा ने कश्मीरमें चल रहे राजनीतिक संघर्श का समर्थन किया था और कश्मीरमें चल रही भारतीय सुरक्षक्षा बलों की कार्रवाई को राज्य प्रायोजित आतंकवाद कहा था।
पाक के इरादे भारत के प्रति नेक नहीं हैं, यह हकीकत सीमा पर घटी इस ताजा घटना ने तो साबित की ही है, इसी नजरिए से वह आर्थिक मोर्चे पर भारत से छद्म युद्ध भी लड़ रहा है। देश में नकली मुद्रा की आमद नोटबंदी के बाद भी जारी है। आतंकियों के पास भारतीय मुद्रा की कमी न रहे इसीलिए बैंक की कैश वैन को लूटा गया है। इसमें 50 लाख रुपए नकद थे। नोटबंदी के बाद भी नकली नोटों की तश्करी कश्मीर, राजस्थान, नेपाल और दुबई तथा समुद्री जहाजों से हो रही है। जाली मुद्रा के लेन-देन में अब तक सैंकड़ों लोग पकड़े जा चुकने के बाद जमानत पर छूटकर इसी कारोबार को अंजाम देने में लगे हैं। कानून सख्त न होने के कारण यह व्यवसाय उनके कैरियर का हिस्सा बन गया है। भारत की बढ़ती विकास दर और प्रति व्यक्ति आय बढ़ोत्तरी में इस जाली मुद्रा की भी अहम् भूमिका है।
नरेंद्र मोदी प्रधानमंत्री बनने के बाद से अब तक कई मुस्लिम देशों की यात्रा कर चुके हैं, लेकिन इन देशों को आतंकवाद की लड़ाई में पाकिस्तान के विरुद्ध करने में सफल नहीं हुए हैं। लिहाजा जरूरत है कि द्विपक्षक्षीय वार्ता में इस्लामी देशों को पाकिस्तान से अलग-थलग किए जाने की ऐसी बाध्यकारी शर्तें शामिल हों, जो कि पाक को कश्मीरके मुद्दे पर नकारने का काम करें। बहरहाल भारत यह मानकर चले कि अब उंगली टेढ़ी किए बिना घी निकलने वाला नहीं है।
प्रमोद भार्गव

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