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वरूण ने बिछाया श्वेत जाल - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
डॉ. मधुसूदन बाहर था हिमपात निरंतर, उदास मन,बैठा था घरपर, पढी आप की काव्य पंक्तियाँ। उडा ले गयींं कहीं पंखों पर। अचरज अचरज अपलक अपलक पल में हिम भी रुई बन गया। और रुई का फूल हो गया। श्वेत पँखुडियाँ होती झर-झर॥ अब,श्वेत पँखुडियाँ झरती बाहर। शीतकाल,बसंत बन गया॥ "आ…