व्यंग्य बाण – बयानवीर

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विजय कुमार 

imagesकिसी ने कहा है ‘वीर भोग्या वसुंधरा।’ अर्थात वीर लोग ही इस धरती पर सत्ता सुख भोगते हैं। सत्ता के साथ सभी तरह की भौतिक सुख-सुविधाएं अपने आप ही आ जाती हैं।

कुरुक्षेत्र के मैदान में जब अर्जुन दोनों ओर अपने नाते-रिश्तेदारों को देखकर मोह से ग्रस्त हुआ, तो भगवान श्रीकृष्ण ने उसे गीता का उपदेश देते हुए यही कहा था कि यदि जीते तो पृथ्वी का राज्य भोगने का अवसर मिलेगा, और यदि वीरगति को प्राप्त हुए, तो स्वर्ग का। उनकी बात मान कर अर्जुन अपना गांडीव उठाकर रणक्षेत्र में उतर गये और आगे की बात तो सारी दुनिया को पता ही है।

लेकिन ऐसे रणवीरों के साथ ही धर्मवीर, कर्मवीर, दानवीर, प्रणवीर और कलमवीर जैसे लोग भी होते हैं। इनमें से हर एक का अपना अलग ही महत्व है; पर मीडिया के बढ़ते प्रभाव से वीरों की इस प्रजाति में पिछले कुछ समय से एक नये समूह का उदय हुआ है, जिसे हमारे परममित्र शर्मा जी ‘बयानवीर’ कहते हैं।

ये बयानवीर ‘मान न मान मैं तेरा मेहमान’ की तरह हर जगह घुसकर अपनी बात कहने लगते हैं। कैमरे देखते ही इनकी जुबान में खुजली होने लगती है। प्रायः ये लोग इससे अपनी छीछालेदर ही कराते हैं; पर ‘बदनाम गर हुए तो, कुछ नाम ही तो होगा’ के समर्थक ये बयानवीर अपनी बदजुबानी से बाज नहीं आते।

पिछले दिनों दिल्ली में 23 वर्षीय युवती के साथ सामूहिक दुष्कर्म हुआ। उससे जो आग पूरे देश में भड़की, उसमें ऐसे कुछ बयानवीरों ने भी तेल डाला। शर्मा जी ऐसी ही कुछ अखबारी कतरनें मुझे दिखा रहे थे।

आंध्र प्रदेश के कांग्रेस अध्यक्ष बोत्सा नारायण राव का कहना था कि देश को आजादी आधी रात में मिलने का अर्थ यह नहीं है कि महिलाएं भी आधी रात में सड़कों पर घूमने लगें। आखिर वह लड़की इतनी रात में वहां क्या कर रही थी ? उसे तो इस समय अपने घर में होना चाहिए था।

बोत्सा जी ! आपने बिल्कुल ठीक फरमाया; पर उस लड़की को न जाने क्यों यह भ्रम हो गया था कि दिल्ली राज्य और केन्द्र में कांग्रेस की सरकार है। कांग्रेस की सर्वेसर्वा और दिल्ली की मुख्यमंत्री महिला होने के कारण यहां महिलाएं सुरक्षित हैं। खैर, अब तो जो हुआ सो हुआ; पर आशा है बाकी महिलाएं और लड़कियां इसका ध्यान रखेंगी।

मध्य प्रदेश की कृषि वैज्ञानिक अनिता शुक्ला के अनुसार यदि वह लड़की उन दरिंदों के सम्मुख समर्पण कर देती, तो कम से कम उसकी आंतें तो बच जातीं। महिला होकर भी यह कहने वाली शुक्ला मैडम को शायद नहीं पता कि महिला के लिए इज्जत बहुत बड़ी चीज होती है। अब उस युवती की मृत्यु के बाद शुक्ला मैडम का क्या कहना है, यह पता नहीं लगा।

वर्तमान राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी के पुत्र अभिजीत मुखर्जी संसद में नये-नये आये हैं; पर हैं तो खानदानी कांग्रेसी। यानि करेले पर नीम चढ़ा। उनका कहना है कि आजकल मोमबत्ती मार्च निकालने का भी फैशन चल पड़ा है। इस कांड के विरोध में प्रदर्शन करने वाली अधिकांश महिलाएं रंगी-पुती होती हैं। वे दिन में प्रदर्शन करती हैं और रात को डिस्को क्लब में जाती हैं। जब उनके बयान पर सब तरफ थू-थू हुई, तो उन्होंने बेशर्मी से माफी मांग ली। कांग्रेस ने तो उन्हें माफ कर दिया; पर जनता ने किया या नहीं, यह अगले चुनाव में ही पता लगेगा।

बंगाल में सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस के विधायक चिरंजीत चक्रवर्ती के अनुसार ऐसी दुर्घटनाओं के लिए लड़कियां ही जिम्मेदार हैं, चूंकि उनकी स्कर्ट हर दिन छोटी होती जा रही है। जबकि उनकी सुपर नेता और मुख्यमंत्री ममता बनर्जी का विचार है कि मां-बाप द्वारा लड़कियों को दी जा रही अत्यधिक आजादी इसका कारण है। वे आधी रात को नाइट क्लब में जाती ही क्यों हैं ?

कुछ दिन पूर्व ममता बनर्जी ने 24 परगना की एक बलात्कार पीड़िता चंपाला सरदार को अपने कार्यालय में बुलाकर बीस हजार रु0 मुआवजा दिया था। इसकी आलोचना करते हुए मार्क्सवादी नेता और पूर्व मंत्री अनीसुर्रहमान अभद्रता पर उतर आये। उन्होंने उत्तर दिनाजपुर के इटाहार में हुई एक सार्वजनिक सभा में पूछा कि यदि मुआवजा देना ही बलात्कार का निदान है, तो ममता जी इसके लिए कितने पैसे लेंगी ?

ऐसी ही एक टिप्पणी दो साल पूर्व उ0प्र0 की मुख्यमंत्री मायावती के लिए तत्कालीन प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती रीता (बहुगुणा) जोशी ने भी की थी।

हरियाणा प्रदेश कांग्रेस कमेटी के प्रवक्ता धर्मवीर गोयल के अनुसार 90 प्रतिशत मामलों में लड़कियां परस्पर सहमति से ही यौन संबंध बनाती हैं; पर जब बात खुल जाती है, तो वे पुरुषों पर आरोप लगाने लगती हैं।

शर्मा जी के पास ऐसी कई कतरनें और भी थीं, जिन्हें सुनने में मेरी कोई रुचि नहीं थी। इसलिए उन्हें बीच में ही रोककर मैंने पूछा कि इतनी बड़ी दुर्घटना के बाद भी हमारे महान देश की अति महान पार्टी के अत्यधिक महान नेता श्री राहुल बाबा तब तक चुप क्यों रहे, जब तक वह लड़की मर नहीं गयी ?

– शायद गुजरात का सदमा दिल में ज्यादा गहरा बैठ गया है।

– और मनमोहन सिंह जी ?

– वे तो ‘ठीक है’ की उलझन को ठीक करने में लगे हैं।

शर्मा जी के मुंह से साल के अंतिम दिन निकली यह बात सचमुच बहुत मार्के की है। मैं तो इससे पूरी तरह सहमत हूं, और आप…..?

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