उत्तराखंड के विकास के लिए शासन का स्थिर होना जरूरी

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गौतम चौधरी

कागजों पर उत्तराखंड के विकास पर लगातार टिप्पणी जारी है। आंकडे बता रहे हैं कि विगत एक साल में उत्तराखंड ने प्रगति के नये प्रतिमान स्थापित किये हैं। हालांकि जिस विकास को वर्तमान मुख्यमंत्री गति दे रहे हैं उसका आधार निर्वतमान मुख्यमंत्री जनरल खंडूडी ने ही बनाया लेकिन सीमित समय में विकास को पटरी पर लाना कोई साधारण बात नहीं है।

केन्द्रीय संख्यिकी संगठन की मानें तो उत्तराखंड का राष्ट्रीय विकास दर के मामले में छतीसगढ और गुजरात के बाद तीसरा स्थान है। यह स्थान राज्य ने वर्ष 2009-10 में प्राप्त किया है। उत्तराखंड के विकास की गति 9.41 प्रतिशत बतायी जा रही है। राज्य बनने के समय प्रदेश के विकास की गति मात्र 2.9 प्रतिशत थी लेकिन आज प्रदेश राष्ट्रीय फलक पर अपना स्थान बनाने लगा है। यही नहीं राज्य में प्रतिव्यक्ति आय का आंकडा भी ऊंचा हुआ है। सामान्य रूप से विकास का मापदंड आम व्यक्ति के जीवन स्तर में सुधारने है। ऐसे पहाड पर शिक्षा का स्तर पहले से अच्छा रहा है लेकिन पहाड़ की सबसे बडी समस्या पलायन की है। गोया पलायन में जितनी कमी आनी चाहिए उतनी तो नहीं लेकिन आंकडों पर भडोसा करें तो विगत एक वर्ष में इस दिशा में सकारात्मक परिवर्तन देखा जा रहा है। कृषि, पर्यटन, आधारभूत ढांचा निर्माण, औद्योगिक विकास, ऊर्जा आदि आधारभूत विकास के क्षेत्रों में प्रगति के लिए जो विगत एक वर्ष में प्रयास किये गये उसका प्रतिफल अब सामने है। इन तमाम प्रकार के विकासों के लिए आखिर जिम्मेवार कौन है? हालांकि जल्दबाजी में किसी एक व्यक्ति को या किसी एक समूह को इस मामलों के लिए जिम्मेवार ठहरा देना अतिश्‍योक्ति जैसा लगेगा लेकिन आज उत्तराखंड के शासन एवं शासन के लिए जिस कार्य संस्कृति का विकास किया जा रहा है उसमें नि:संदेह प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ0 रमेष पोखरियाल निशंक की भूमिका सराहनीय है। ऐसा कहना न तो फंतासी है और न ही पूर्वाग्रह जैसा। इस प्रकार की टिप्पणी ठोक-बजाकर की जा रही है। विगत पांच दिनों से उत्तराखंड की राजधानी देहरादून में हूं। पहले भी देहरादून में रह चुका हूं। आज शासन में कसाबट एवं कार्य संस्कृति में गति अनुभव कर रहा हूं। वर्तमान मुख्यमंत्री की सबसे बडी चुनौती जनता का दिल जीतना है। इस काम में वे कितने खडे उतरे हैं इसका जवाब तो आसन्न विधानसभा चुनाव के बाद ही दिया जा सकेगा लेकिन तमाम पड़ताल के बाद कार्य संस्कृति के कसाबट के पीछे जो कारण जिम्मेबाद दिखता है वह मुख्यमंत्री की सकारात्मक सोच है।

हालांकि डॉ0 निशंक को काम करने का मौका बहुत कम मिला है। डॉ0 निशंक विगत एक वर्ष से प्रदेश के मुख्यमंत्री है लेकिन उन्होंने कई ऐसे काम किये जिसे मील का पत्थड कहना गलत नहीं होगा। सबसे बडा काम तो उन्होंने अपनी पार्टी, संबंधित अनुषांगिक संगन एवं सरकार के बीच में तालमेल बिठाकर किया है। प्रदेष के नौकरशाहों के बीच एक नई कार्य संस्कृति का श्रीगणेश हुआ है जो न केवल प्रदेश को प्रगति दे रहा है अपितु इससे विचारधारा को भी बल मिलने लगा है। वर्तमान मुख्यमंत्री ने अपने व्यवहार और सकारात्मक कार्य सोच से क्षेत्रवादी मनोवृति पर भी लगाम लगाया है। अब मैदानी मूल के लोगों को सरकार के प्रति विश्‍वास पैदा हो रहा है। लोग मानने लगे हैं कि प्रदेश सरकार में पूर्वाग्रह नहीं है। विकास की गति का बढना, बेरोजगारी में कमी, संसाधनों के नित नवीन आयामों की खोज और शासन की कार्यपद्धति में सकारात्मक परिवर्तन यह साबित करता है कि प्रदेश की गति विकासोन्मुख है। हालांकि प्रदेश में जो कल-कारखाने आज दिख रहे हैं उसके लिए नारायण दत्त तिवारी का शासन जिम्मेबार है लेकिन उनके समय अनियमितताओं के कई मामले भी सामने आये।

कुल मिलाकर देखें तो राज्य में जो विकास की गति पैदा की गयी है वह सराहनीय है, लेकिन राज्य एवं प्रदेश के मुखिया के लिए कुछ चुनौतियां भी है जिसका समाधान किये बिना सत्ता को स्थायित्व नहीं दिया जा सकता है। और जबतक सत्ता में स्थायित्व नहीं होगा तब तक विकास की स्थाई गति संभव नहीं है। बिहार, गुजरात, मध्य प्रदेश, छतीसगढ, उडीसा आदि प्रांतों में विकास की गति तेज इसलिए भी है कि वहां की सरकार में स्थिरता है। विकास के लिए नीति का स्थिर होना जरूरी है और नीति तभी स्थिर होगा जब शासन का सूत्रधार स्थिर हो। दावे के साथ तो नहीं लेकिन कुल प्रयासों की मीमांसा यह संकेत दे रहा है कि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में उत्तराखंड का वर्तमान मुख्यमंत्री सकारात्मक पहल कर रहे हैं। राज्य के हित में इसकी सराहना होनी चाहिए अन्यथा प्रदेश के विकास की गति खंडित होगी।

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