बियोंड द चाक- रणजीत सर

फर्स्ट बेस्ट इंडियन टीचर ऑफ़ द वर्ल्ड- 2020 

  • श्याम सुंदर भाटिया

महाराष्ट्र एक बार फिर सुर्ख़ियों में है, लेकिन इस दफा टेक्नोलॉजी के क्रांतिकारी उपयोग, नवाचार के संकल्प, शिक्षा के प्रति समर्पण और गर्ल्स एजुकेशन के प्रति सेवा भाव का अनूठा समन्वय है। इस सूबे की महक दुनिया शिद्द्त से महसूस कर रही है। सोलापुर के प्राइमरी टीचर रणजीत सिंह महादेव डिसले की टीचिंग ने दुनिया का दिल जीत लिया है। उन्होंने गर्ल्स एजुकेशन को बढ़ावा और क्यूआर कोड वाली पाठय पुस्तकों की क्रांति को गति देने के बूते ग्लोबल टीचर प्राइज- 2020 जीता है। इसके तहत उन्हें 7.38 करोड़ की धनराशि बतौर पुरस्कार मिलेगी। टीचिंग का यह वैश्विक अवार्ड यूनेस्को और ब्रिटेन के वार्की फाउंडेशन की ओर से दिया गया है। इस अवार्ड की दौड़ में 140 देशों के 12 हजार से शुमार थे। इनमें से रणजीत सिंह डिसले समेत 10 फाइनलिस्ट चुने गए। अंततः अदभुत शिक्षक का यह अवार्ड महाराष्ट्र के शिक्षक श्री रणजीत सिंह डिसले की झोली में गया। लंदन में ऑनलाइन समारोह में डिसले के ग्लोबल टीचर प्राइज- 2020 चुने जाने की घोषणा हॉलीवुड मशहूर अभिनेता स्टीफन फ्राई ने की। रणजीत सिंह डिसले पहले भारतीय हैं, जिन्हें यह प्रतिष्ठित सम्मान मिला है। पुरस्कार विजेता डिसले का मानना है, वह दुनिया के सभी छात्रों के लिए काम करना चाहते हैं। डिसले का मानना है, पूरी दुनिया एक कक्षा है। वह खुद हमेशा देने और साझा करने में विश्वास करते हैं।  रणजीत सिंह अब तक 12 अंतर्राष्ट्रीय और 7 राष्ट्रीय पुरस्कार जीत चुके हैं। इसके अलावा 12 एजुकेशनल पेटेंट उनके नाम पर हैं। माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्या नडेला ने रणजीत के काम की तारीफ करते हुए स्पेशल वीडियो हिट रिफ्रेश लॉन्च किया है। वार्के फाउंडेशन 2014 से हर साल ग्लोबल टीचर प्राइज दे रही है।

परितेवाड़ी जिला परिषद स्कूल में 32 बरस के डिसले ने 2009 में टीचिंग शुरु की थी। तब वहां मवेशियों को रखने के लिए शेड बना हुआ था। रणजीत ने प्रशासन और स्थानीय लोगों से गुहार लगवाकर स्कूल को ठीक करवाया। रणजीत ने बताया, मुझे नौकरी मिलने की खुशी थी, लेकिन जब मैं स्कूल पहुंचा तो स्कूल के हाल ने मुझे दुखी कर दिया। यह स्कूल कम और बकरियों को बांधने का बाड़ा ज्यादा लग रहा था। सिर्फ स्कूल ही नहीं, स्थानीय लोगों को बेटियों को स्कूल भेजने के लिए मनाने का काम भी उन्होंने किया। मुफलिसी में जीने वाले ज्यादातर लोग हर दिन अपने बच्चों को खेत में काम करने के लिए भेज देते थे। उन्हें स्कूल आने के लिए मनाने का काम आसान नहीं था। डिसले ने सबसे पहले माता-पिता को अवेयर किया, फिर घर-घर जाकर बच्चों को स्कूल लाने का काम किया। स्कूल आने वाले बच्चों को सिलेबस और किताबों से बोरियत न हो, इसीलिए छह महीने तक उन्हें किताबें खोलने ही नहीं दीं। मोबाइल और लैपटॉप की मदद से उन्हें गाने, कहानी और कार्टून दिखाए जाते। साथ ही उनकी नॉलेज बढ़ाने की कोशिश भी करते रहे। बच्चों ने धीरे-धीरे स्कूल आना शुरू कर दिया। लॉकडाउन से पहले तक स्कूल में फुल स्ट्रेंथ में बच्चे पढ़ने आते रहे।

रैगिंग से आजिज होकर इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में छोड़ने वाले रंजीत सिंह महादेव डिसले के मुताबिक दुनियाभर में बदलाव लाने वाले सिर्फ टीचर होते हैं। एक टीचर अपने हाथों में चॉक लेकर दुनिया की चुनौतियों को सॉल्व करने वाले होते हैं। डिसले ने पुरस्कार में मिली राशि के आधे हिस्से से साथी प्रतिभागियों की मदद करने का ऐलान किया है, जिससे उनके योगदान को भी वैश्विक स्तर पर सम्मान मिल सके। डिसले इनाम में मिली राशि के पचास फीसदी हिस्से को खुद के साथ चयनित अन्य नौ और उप विजेता टीचर्स में बाटेंगे ताकि वे हायर एजुकेशन से अपने सपनों को पंख देंगे। कोविड-19 महामारी के चलते शिक्षा और सम्बंधित समुदाय को मुश्किल स्थिति में लाकर खड़ा कर दिया है। वह मानते हैं, शिक्षक इनकम के लिए नहीं, बल्कि आउटकम के लिए काम करते हैं। सिर्फ शिक्षा के क्षेत्र में नहीं, रणजीत सिंह महादेव ने दुनिया के आठ देशों में घूम-घूम कर पांच हजार स्टुडेंट्स को साथ लेकर एक शांति सेना बनाई है। ये आठ देश- भारत, पाकिस्तान, ईरान, इराक, इजरायल, फिलिस्तीन, अमेरिका और उत्तर कोरिया हैं। इन देशों में शांति स्थापित करने की कोशिश में उनका लेट्स क्रॉस द बॉर्डर प्रोजेक्ट है। विदेशों में रणजीत माइक्रोसॉफ्ट, गूगल, ब्रिटिश काउंसिल, प्लिपग्रिड, प्लकर्स जैसे इंटरनेशनल ऑर्गेनाइजेशंस के साथ काम करते हैं। वर्तमान में वर्चुअल फील्ड ट्रिप प्रोजेक्ट के जरिए दुनियाभर के 87 देशों के 300 से ज्यादा स्कूलों में बच्चों को पढ़ा रहे हैं।

उन्होंने न केवल पाठ्यपुस्तकों का विद्यार्थियों की मातृभाषा में अनुवाद किया बल्कि उनमें विशिष्ट क्यूआर कोड की व्यवस्था की ताकि छात्र-छात्राएं ऑडियो कविताएं और वीडियो लेक्चर, कहानियां और होमवर्क पा सकें। क्यूआर कोड की फुल फॉर्म है- क्विक रिस्पॉन्स कोड। इसे बारकोड की अगली जेनरेशन भी कहा जाता है, जिसमें हजारों जानकारियां सुरक्षित रहती हैं। अपने नाम के ही मुताबिक ये तेजी से स्कैन करने का काम करता है। ये स्क्वायर आकार के कोड होते हैं, जिनमें सारी जानकारी होती है। किसी उत्पाद, फिर चाहे वे किताबें हों या अखबार या फिर वेबसाइट, सबका एक क्यूआर कोड होता है। ग्लोबल टीचर प्राइज- 2020 के विजेता के हस्तक्षेपों का असर यह हुआ है,अब गाँव में किशोर विवाह नहीं होते हैं। लड़कियों की स्कूल में शत-प्रतिशत उपस्थिति होती है। डिसले का स्कूल महाराष्ट्र में क्यूआर कोड पेश करने वाला पहला राज्य बन गया। राज्य सरकार तो पहले ही घोषणा कर चुकी है, वह पूरे राज्य में क्यूआर कोडित पाठ्यपुस्तकों को लागू  करेगी। पुरस्कार के संस्थापक एवं परमार्थवादी सन्नी वारके ने रणजीत सिंह डिसले की कंठमुक्त प्रशंसा करते हुए कहा, पुरस्कार राशि साझा करके आप दुनिया को देने का महत्व पढ़ाते हैं। इस अवार्ड के साझेदार-यूनेस्को में सहायक शिक्षा निदेशक स्टेफानिया गियानिनि ने कहा,रणजीत सिंह जैसे शिक्षक जलवायु परिवर्तन रोकेंगे। शांतिपूर्ण एवं न्यायपूर्ण समाज बनाएंगे। असमानताएं दूर करेंगे। आर्थिक वृद्धि की ओर चीजें ले जाएंगे।

महाराष्ट्र के इस गौरव पर हिंदुस्तान को नहीं, बल्कि पूरी दुनिया को नाज है। महाराष्ट्र के सीएम उद्धव ठाकरे तो अपने इस होनहार शिक्षक के कायल हैं। उन्होंने इस अद्भुत टीचर का सम्मान भी किया। सत्कार समारोह की खासियत यह रही, न केवल डिसले के माता-पिता की गरिमामयी मौजूदगी रही, बल्कि ठाकरे सरकार का करीब-करीब पूरा मंत्रिमंडल भी मौजूद रहा। इस मौके पर सीएम बोले, डिसले में शिक्षा के प्रति गजब का जुनून है। डिसले सरीखे तकनीकी प्रेमी और नवाचारी शिक्षकों के बूते राज्य के अंतिम छात्र तक नवाचार की अलख जगाएंगे।

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