भारत के लिए खतरे की घंटी

उज्जैन-भोपाल पैसेंजर रेल में हुई विस्फोट की आतंकी घटना बेहद खतरनाक है। यह घटना अब तक हुई आतंक की सबसे खतरनाक घटना है, क्योंकि ये आतंकी उन आतंकियों के मुकाबले ज्यादा खतरनाक हैं, जो पाकिस्तान से आते हैं। अब यह आग अपने घर में ही फैलने लगी है। भारत के लिए खतरे की घंटी बज रही है। लगभग दर्जन भर आतंकी पकड़ लिए गए हैं। कानपुर, इटावा, लखनऊ तथा अन्य स्थानों से भी वे पकड़े जा रहे हैं।

लखनऊ के ठाकुरगंज इलाके में लंबी मुठभेड़ के बाद सैफुल्लाह मारा गया है। यह इन आतंकियों का सरगना है। सभी आतंकी के घर से जो कागजात, पुर्जे, बारुद और हथियार मिले हैं, उनसे पता चलता है कि उज्जैन के करीब हुए विस्फोट का बम यहीं बना था। पुलिस और आतंक-विरोधी संगठन की कार्रवाई बहुत सराहनीय है लेकिन यह सवाल भी खड़ा होता है कि इन आतंकियों को वे बम-विस्फोट के पहले ही क्यों नहीं पकड़ पाए? यह तो अच्छा हुआ कि इस विस्फोट में कोई मरा नहीं लेकिन बेहतर होता कि इन लोगों और इनके-जैसे अन्य लोगों को पहले ही पकड़ लिया जाता। यह तो अब भी होना ही चाहिए।

ये आतंकी इसलिए सबसे खतरनाक हैं कि ये किसी खास देश के एजेंट नहीं हैं बल्कि ये एक ऐसी विचारधारा के एजेंट हैं, जो बिल्कुल अंधी है। वह दुनिया के मुसलमानों को आत्महत्या के मार्ग पर ले जा रही है। उसका नाम निजामे-मुस्तफा है, इस्लामी राज्य है। आईएसआईएस है। सीरिया के शिया और सुन्नियों के आपसी झगड़े को उन्होंने पहले राजनीतिक रुप दिया और अब उसे धार्मिक रुप दे दिया है।

मजहब का बुर्का ओढ़कर यह विचारधारा अब #अफगानिस्तान और #पाकिस्तान में भी घुस गई है। ये दोनों मुल्क परेशान हैं। आईएसआईएस के आतंकियों ने अब तक जिनकी हत्या की है, उनमें लगभग सभी मुसलमान हैं। उज्जैन-विस्फोट ने भारत के भी कान खड़े कर दिए हैं। यह आतंक का अंतरराष्ट्रीयकरण है। इसका मुकाबला करने के लिए सउदी अरब और ईरान तथा अमेरिका और रुस जैसे परस्पर विरोधी राष्ट्र एक हो रहे हैं तो भारत, पाकिस्तान और अफगानिस्तान मिलकर इसका मुकाबला क्यों नहीं करते?

इस तरह के आतंक का मुकाबला सिर्फ हथियारों से पूरी तरह नहीं हो सकता। इसके लिए उन गुमराह नौजवानों के दिमाग को पल्टा खिलाने की जरुरत है। क्या हमारे नेता उसके लिए तैयार हैं?

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