भारत की विकास दर को लेकर अमेरिका का व्यर्थ संदेह

डॉ. मयंक चतुर्वेदी

indian-economyभारत के संदर्भ में दुनिया के कई देशों के बीच ऐसा पहली बार हो रहा है कि भारत तेजी से आर्थ‍िक ग्रोथ के साथ ढॉचागत प्रगति भी कर रहा है। इस समय भारत आर्थिक विकास दर साढ़े सात फीसद की तेज गति से बढ़ रही है जोकि विश्व के स्तर पर किसी भी देश की तुलना में सबसे ज्यादा है। लेकिन इस तेज कदम से आगे बढ़ते भारत की प्रगति जैसे भारत के कुछ पड़ौसी देशों को नहीं सुहाती, वैसे ही कल तक रक्षा, व्यापार और तमाम क्षेत्रों में बराबरी से सहयोग देने का वायदा करने वाले अमेरिका को भी अब रास नहीं आ रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तेज रफ्तार के पहले ही विश्व के कई देश मुरीद बन चुके हैं, यहां तक कि अमेरिका में भी भारतीय प्रधानमंत्री के प्रति श्रद्धा, प्रेम और विश्वास रखने वालों की संख्या कहीं ज्यादा है। इन वर्तमान उभरी परिस्थ‍ितियों को देखकर लगता है कि अमेरिका भी उन सभी पूर्व की गई भविष्यवाणियों से डरने लगा है, जो भारत को 21 वीं सदी में दुनिया का शक्तिसम्पन्न समृद्ध राष्ट्र बन जाने की घोषणा करती हैं। नहीं तो भला क्या कारण हो सकता है कि अमेरिका जैसा दुनिया का सबसे ताकतवर देश भारत की विकास दर को जूठा बताने के प्रयत्न करे।

यह बात आज इसलिए चर्चा में आई है, क्यों कि अमेरिकी विदेश मंत्रालय को लगता है कि भारत वास्तव में प्रगति नहीं कर रहा है, उसकी यह ग्रोथ बढ़ा-चढ़ाकर बताई गई है। रपट कितनी वास्तविक है, वह इसमें कही गई बातों से समझा जा सकता है। रिपोर्ट में भारतीय सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के आंकड़ों पर संदेह जताते हुए कहा गया है कि नरेंद्र मोदी सरकार आर्थिक सुधारों के अपने वादों को पूरा करने की दिशा में धीमी रही है। अमेरिकी विदेश विभाग के आर्थिक एवं कारोबार ब्यूरो की ओर से तैयार यह रिपोर्ट यह भी बताती है कि दुनिया की प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं में भारत की विकास दर सबसे तेज है। लेकिन निवेशकों के कमजोर पड़ते रुझान से संकेत मिलता है कि करीब 7.5 फीसद की यह वृद्धि दर वास्तविकता से अधिक बताए गई है।

रिपोर्ट के मुताबिक, कई प्रस्तावित आर्थिक सुधारों को संसद में पारित कराने के लिए सरकार को कड़ा संघर्ष करना पड़ रहा है। इस कारण राजग सरकार के समर्थन में आगे आए कई निवेशक पीछे हट रहे हैं। मोदी सरकार संसद में भूमि अधिग्रहण बिल पर पर्याप्त राजनीतिक समर्थन नहीं जुटा पाई है। वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) के मामले में भी यही हाल है। जीएसटी संविधान संशोधन बिल संसद से पारित नहीं हो सका है। सरकार की ओर से इस को लेकर विपक्षी दलों के साथ अब भी विचार-विमर्श चल रहा है। यानि कि भारत में आर्थ‍िक दृष्ट‍ि से जो कुछ इन दिनों हो रहा है वह पूरी तरह सही नहीं है।

हालांकि यहां आगे इस बात का भी कहीं जिक्र है कि मोदी सरकार ने नौकरशाही और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) के क्षेत्र में बाधाओं को कम करने की दिशा में कई सही कदम उठाए हैं, जिनके कारण विदेशी धन का प्रवाह भारत की ओर तेजी से हुआ है। परन्तु जो मूल बात इस रपट की है वह यही है कि भारत की विकास दर सही नहीं, वह वास्तविकता से दूर बढ़ा चढ़ाकर बताई जा रही है। वस्तुत: यहां कहना होगा कि अमेरिकी विदेश मंत्रालय ऐसी रपट प्रस्तुत कर दुनिया के सामने भारत के विषय में भ्रम फैलाने का कार्य कर रहा है, जिससे कि विश्वभर में तेजी से भारत के प्रति बन रहे उत्साहवर्धक और सकारात्मक माहौल को रोका जा सके।

वास्तव में अमेरिका द्वारा फैलाए जा रहे इस झूठ को इससे भी समझा जा सकता है कि पिछले दो वर्षों में आईं तमाम रपटें चाहे वे विश्व बैंक, एशि‍यन बैंक, अंतरराष्ट्रीय मुद्राकोष, हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी, संयुक्त राष्ट्र या अन्य किसी की क्यों न हों, सभी ने एक स्वर में यह बात स्वीकारी है कि भारत आज विकसित, विकासशील और तीसरी दुनिया के देशों के बीच सबसे ज्यादा तेज गति से विकास कर रहा है।

अमेरिकी विदेश मंत्रालय की यह रिपोर्ट क्या हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी के पिछले वर्ष ही किए गए उस अध्ययन को झुठला सकती है, जिसके निष्कर्ष बताते हैं कि भारत के जीडीपी (सकल घरेलू उत्पाद) की वृद्धि दर दुनिया के प्रमुख देशों में सबसे ज्यादा रहेगी और भारतीय अर्थव्यवस्था अगले आठ साल तक सालाना औसतन 7.9 प्रतिशत की रफ्तार से दौड़ते हुए चीन को पीछे छोड़ देगी। यदि हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर इंटरनेशनल डेवलपमेंट (सीआइडी) की जमीनी स्तर पर तैयार की गई रिपोर्ट सही है तो निश्चिततौर पर कहना होगा कि अमेरिका आज जो बात भारत की ग्रोथ को लेकर कह रहा है, वह भ्रम फैलाने के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं है। इसी प्रकार संयुक्त राष्ट्र की गत वर्ष की एक रिपोर्ट बताती है कि भारत की मौजूदा आर्थिक वृद्धि दर की जो रफ्तार है उस हिसाब से भारत चीन को पीछे छोड़ देगा। यहां यह भी बताया गया था कि 2016 में भारत के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) की वृद्धि 7.7 प्रतिशत रहेगी।

वस्तुत: भारत के विकास के कुछ संकेत इससे भी समझे जा सकते हैं कि जब से काले धन पर अंकुश लगाने के प्रयास भारत सरकार की ओर से शुरू किए गए, तब से लेकर अब तक लगातार स्वि‍स बैंक हो या अन्य किसी देश के बैंक उनमें भारतीयों की काली कमाई का प्रतिशत लगातार घट रहा है। देश के व्यापारी या अन्य प्रतिष्ठि‍त जनता जनार्दन के बीच श्रेष्ठी जन, जो भी हैं, बहुत तेजी से इस बात को स्वीकार करने लगे हैं कि एक नंबर में रुपया रखना ही बेहतर है। विदेश में धन जमा करने से अच्छा है कि अपने ही देश में उसे व्यापार के नए आयामों में व्यय किया जाए, जिससे कि उसका अधि‍क से अधि‍क सद्उपयोग होने के साथ लोगों को भी रोजगार मिले। वस्तुत: वर्तमान ग्रोथ जो दिख रही है, वह इस सोच के कारण भी है, ऐसा भी कहा जाए तो कुछ गलत नहीं होगा।

इसके अलावा भी तमाम अन्य कारणों में विशेष महत्व का मोदी सरकार के लिए गए पिछले दो सालों के निर्णय हैं, जोकि सभी क्षेत्रों में समान रूप से लिए गए, इस विकास के जिम्मेदार ठहराए जा सकते हैं। देश में लगातार हो रहे ढ़ाचागत सुधार, स्टार्टअप और पूंजीगत सुधार भी बड़ा कारण हैं कि पिछले वित्त वर्ष 2015-16 की चौथी तिमाही में भारत की जीडीपी ग्रोथ रेट 7.9 फीसद रही। पूरे वित्त वर्ष 2015-16 में आर्थिक विकास दर 7.6 फीसद रही थी। जो कि ग्लोबल आधिकारिक अनुमान के मुताबिक ही है। इसके पूर्व वर्ष को भी देखें तो भारतीय विकास दर इस संदर्भ में की गई वैश्विक घोषणाओं के अनुसार ही रही थी, 2014-15 में देश की जीडीपी 7.2 फीसद थी।

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मयंक चतुर्वेदी
मयंक चतुर्वेदी मूलत: ग्वालियर, म.प्र. में जन्में ओर वहीं से इन्होंने पत्रकारिता की विधिवत शुरूआत दैनिक जागरण से की। 11 वर्षों से पत्रकारिता में सक्रिय मयंक चतुर्वेदी ने जीवाजी विश्वविद्यालय से पत्रकारिता में डिप्लोमा करने के साथ हिन्दी साहित्य में स्नातकोत्तर, एम.फिल तथा पी-एच.डी. तक अध्ययन किया है। कुछ समय शासकीय महाविद्यालय में हिन्दी विषय के सहायक प्राध्यापक भी रहे, साथ ही सिविल सेवा की तैयारी करने वाले विद्यार्थियों को भी मार्गदर्शन प्रदान किया। राष्ट्रवादी सोच रखने वाले मयंक चतुर्वेदी पांचजन्य जैसे राष्ट्रीय साप्ताहिक, दैनिक स्वदेश से भी जुड़े हुए हैं। राष्ट्रीय मुद्दों पर लिखना ही इनकी फितरत है। सम्प्रति : मयंक चतुर्वेदी हिन्दुस्थान समाचार, बहुभाषी न्यूज एजेंसी के मध्यप्रदेश ब्यूरो प्रमुख हैं।

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