भारत में बढ़ता सोना

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प्रमोद भार्गव

बृहत्तर भारत में सोने का भण्डार लगातार बढ़ रहा है। यह सोना देश के स्वर्ण आभूषण विक्रेताओं, के घरों और भारतीय रिजर्व बैंक में जमा है। विश्व स्वर्ण परिषद् द्वारा जारी एक रिपोर्ट के अनुसार भारत में कुल 18 हजार टन सोने का भण्डार है। सोने की उपलब्धता की जानकारी देने वाली यह रपट ‘इंडिया हार्ट ऑफ गोल्ड 2010’ शीर्षक से जारी की गई है। यह रिपोर्ट विश्व के तमाम देशों में सोने की वस्तुस्थिति के सिलसिले में किए गए एक अध्ययन के रुप में सामने आई है। 2009 में अंतरराट्रीय मुद्रा कोस से केंद्र सरकार द्वारा खरीदे गए 200 टन सोने की खरीदने भी देश को सोने की कीमतों में आए उछाल के कारण मालामाल कर दिया है। यह सोना जब खरीदा गया था तब इसकी कीमत 15 हजार रूपए प्रति 10 ग्राम थी, जो अब लगभग 30 हजार प्रति 10 ग्राम के इर्दगिर्द है। दुनिया का 32 प्रतिशत सोना भारत के पास है। 2010 में ही भारत में सोने की मांग 25 प्रतिशत बढ़कर 963.1 टन पर पहुंच गई है। भारत में इस विपुल स्वर्ण भंडार की उपलब्धता तब है जब प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर सरकार के कार्यकाल 1991 में बैंक ऑफ इंग्लैण्ड में गिरवी रखा गया सोना आज तक वापस नहीं आया है। यदि यह सोना वापस आ जाता है तो भारत की स्वर्ण शक्ति में और वृद्धि दर्ज हो जाएगी। देश में सोने की मजबूत स्थिति ने साबित कर दिया है कि जो देश एक समय सोने की चिड़िया कहलाता था आज वही देश एक बार फिर सोने की चिड़िया बनने की ओर प्रयत्नशील है।

हमारे देश में इस समय 18 हजार टन सोने के भण्डार हैं। देश का यह सोना दुनिया में उपलब्ध कुल सोने का 32 प्रतिशत है। अतंरराष्ट्रीय बाजार में इस सोने की कुछ समय पहले तक कीमत करीब 800 अरब डॉलर थी, जो अब बढ़कर करीब एक लाख करोड़ रूपये हो गई है। भारतीय रिजर्व बैंक के पास विदेशी मुद्रा भण्डार के रूप में सुरक्षित सोना ही लगभग 557.7 टन है। यदि इस सोने को देश की कुल आबादी में बराबर-बराबर टुकड़ों में बांटा जाए तो देश के प्रत्येक नागरिक के हिस्से में करीब आधा औंस सोना आएगा। हालांकि प्रति व्यक्ति सोने की यह उपलब्धता पश्चिमी देशों के प्रति व्यक्ति की तुलना में बहुत कम है। लेकिन विशेषकर भारतीय महिलाओं में स्वर्ण-आभूषणों के प्रति लगाव के चलते कालांतर में इसमें बढ़ोत्तरी की और उम्मीद है। वैसे भी हमारे यहां के लोग धन की बचत करने में दुनिया में सबसे अग्रणी हैं। भारतीय अपनी कुल आमदनी का तीस फीसदी हिस्सा बचत खाते में डालते हैं। इसमें अकेले सोने में 10 फीसदी निवेश किया जाता है। इसी दीपावली को जब देश भर के डाकघरों में सोने के सिक्के बेचने की शुरुआत हुई तो ये सिक्के इतनी बड़ी संख्या में बिके कि सभी डाकघरों में सिक्के कम पड़ गए। धनतेरस को सोना-चांदी खरीदा जाना शुभ माना जाता है इसलिए भी प्रत्येक दीपावली के अवसर पर सोने-चांदी की बिक्री खूब होती है। शादियों में भी बेटी-दामाद को स्वर्ण आभूषण दान में देना प्रचलन मंे है इसलिए भी सोने की घरेलू मांग हमारे देश में हमेशा बनी रहती है। इसलिए चांदी के दाम आसमान छू रहे हैं।

भारत के स्वर्ण बाजार को खयाल में रखते हुए विश्व स्वर्ण परिषद् द्वारा यह रिपोर्ट इस मकसद से जारी की गई है जिससे विदेशी बहुराष्टीय कंपनियां यहां निर्मित स्वर्ण आभूषण बाजार में पूंजी निवेश करने की संभावनाएं तलाश सकें। इसी सिलसिले में परिषद् के निवेश अनुसंधान मामलों की निदेशक एली आंग ने रिपोर्ट जारी करते हुए मीडिया के सामने कहा भी कि भारत दुनिया में सोने का सबसे बड़ा बाजार है। यहां सोने की घरेलू मांग वैश्विक आर्थिक मंदी के पहले की स्थिति मेें आने की संभावना है। ऐसे में अंतरराष्ट्रीय सराफा बाजार के लिए भारत के आभूषण बाजार बेहद महत्वपूर्ण हैं। वैसे सोना भारतीय समाज का अंतरंग हिस्सा है। देश में सोना जमीन-जायदाद व अन्य अचल संपत्तियों से भी महत्वपूर्ण माना जाता है। घरों में सोना रखना इसलिए भी जरुरी माना जाता है, जिससे विपरीत परिस्थिति, मसलन हारी-बीमारी में सोना गिरवी रखकर नकद रकम हासिल की जा सके। सोने में बचत निवेश लोग इसलिए भी अच्छा मानते हैं क्योंकि इसके भाव कुछ समय के लिए स्थिर भले ही हो जाएं घटते कभी नहीं हैं। लिहाजा सोने में पूंजी निवेश को कमोबेश सुरक्षित ही माना जाता है। बशर्ते चोरी न हो। वर्तमान में उंची कीमतों के बावजूद लोग सोने में खूब निवेश करने में लगे हैं।

परिषद् के आकलन के मुताबिक 2009 में देश में सोने की मांग 19 अरब डॉलर तक पहुंच गई थी। यह मांग दुनिया में सोने की कुल मांग की 15 प्रतिशत आंकी गई। पिछले एक दशक के सालों में सोने की घरेलू मांग में 13 फीसदी प्रतिवर्ष की दर से वृद्धि दर्ज की जा रही थी जो 2010 में 25 फीसदी तक पहुंच गई है।

भारतीय रिजर्व बैंक में वित्तीय वर्ष 2009 में सोने का कुल भण्डार 357.8 टन था। हालांकि पिछले छह वित्तीय वर्षों में रिजर्व बैंक में स्वर्ण भंडार की यही उपलब्धता दर्ज बनी चली आ रही है। मसलन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सरकार के सात सालों के कार्यकाल में इस भंडार में कोई इजाफा नहीं हुआ है। अटलबिहारी वाजपेयी सरकार से जो स्वर्ण भंडार उन्हें विरासत में मिला था उसमें राई-रत्ती भी बढ़ोतरी अथवा घटोतरी नहीं हुई।

देशी की वित्तीय हालत खराब होने पर 1991 में देश के तात्कालीन प्रधानमंत्री चन्द्रशेखर द्वारा 65.27 टन सोना बैंक ऑफ इंग्लैण्ड और बैंक फॉर इंटरनेशनल सेटलमेंट में गिरवी रखा गया था। यह सोना 19 साल बीत जाने के बावजूद यथास्थिति में है। देश की जनता के लिए यह हैरानी में डालने वाली बात है। जबकि इस दौरान देश में पीवी नरसिम्हा राव, अटलबिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिंह तीन प्रधानमंत्री रह चुके हैं। इस गिरवी रखे गए सोने के बदले जो विदेशी पूंजी भारत सरकार ने उधार ली थी, उसका हिसाब भी चूकता हो चुका है। इसके बावजूद इतने बड़े स्वर्ण भंडार को लंदन से वापस लाने में सरकारों ने क्यों दिलचस्पी नहीं ली यह आश्चर्य में डालने वाली बात है। हैरानी इस बात पर भी है कि रिजर्व बैंक इस सोने को विदेशी निवेश मानकर देश के मुद्रा भंडार में भी दर्ज नहीं करता ?

इस बाबत बैंकिंग मामलों से जुड़े जानकारों का मानना है कि इस सोने के प्रति जो लापरवाही बरती जा रही है, वह रिजर्व बैंक अधिनियम 1934 की खुली अवहेलना है। इस अधिनियम के अनुच्छेद 33 (5) के अनुसार रिर्जव बैंक के स्वर्ण भंडार का 85 प्रतिशत भाग देश में रखना जरुरी है। यह सोने के सिक्कों, बिस्किट्स, ईंटों अथवा शुद्ध सोने के रुप में रिजर्व बैंक या उसकी एजेंसियों के पास आस्तियों अथवा परिसंपत्तियों के रुप में रखा होना चाहिए। इस अधिनियम से सुनिश्चित होता है कि ज्यादा से ज्यादा 15 फीसदी स्वर्ण भंडार ही देश के बाहर रखे जा सकते हैं। लेकिन इंग्लैण्ड में जो 65.27 टन सोना रखा है वह रिजर्व बैंक में उपलब्ध कुल सोने का 18.24 प्रतिशत है। जो रिजर्व बैंक की कानूनी-शर्तों के मुताबिक ही 3.24 फीसदी ज्यादा है। इस सोने पर रिजर्व बैंक को केवल एक प्रतिशत से भी कम रिटर्न हासिल होता है। हालांकि 2008-2009 में जिस तेजी से सोने के अंतर्राष्ट्रीय मूल्य में वृद्धि दर्ज हुई है उस हिसाब से रिजर्व बैंक में मौजूद कुल स्वर्ण भंडार की कीमत 39,548.22 करोड़ बैठती है। बहरहाल सोने का मूल्य जो भी हो इंग्लैण्ड के बैंकों में सोने के रुप में देश की जो अमानत पड़ी है, उसे वापस लाकर देश के स्वर्ण भंडार में शामिल किया जाना चाहिए। वैसे भी यह खरा सोना देश की आर्थिक स्थिति मजबूत करने में लगे लोगों के खून-पसीने की खरी कमाई है, इस नाते इस स्वर्ण को सम्मानपूर्वक देश में तत्काल लाने की प्रक्रिया शुरु होनी चाहिए।

3 COMMENTS

  1. स्वेता जी, आपकी बात मानेगा कौन?ऐसे भी लोग आश्चर्य चकित हो रहे होंगे एक भारतीय महिला के कलम से निकली इस टिप्पणी को पढ़कर.

    • भारत की समृद्धि स्वर्ण खरीदने के चक्कर में पश्चिमी मुलुको के खजाने में जमा हो रही है. सोने की खदानों पर उनकी ही मल्कियत है. विदेशो में जमा पैसे पर इतनी हायतोबा हो रही है. हमने जो पैसा विदेशो में भेज कर बदले में इस बेकार धातू को आयात कर अपनी समृद्धि पर मोदे हो रहे है यह सरासर बेवकूफी है.

  2. श्री प्राप्ति के लिए शास्त्र एवं परम्पराओं के अनुकुल आचरण करना आवश्यक है। आर्यावर्त (जम्बुद्धीप) या कहे आज का दक्षिण एसिया इसलिए कंगाल है क्यो कि हम शास्त्रों के निर्देशो का पालन नही कर रहे है। हमारे यहाँ अमीर भी कंगाल जैसा हीं है। अगर हम सामुहिक रुप से शास्त्रो के निर्देशों के अनुकुल आचरण करें तो कोई कारण नही की हमारा देश समृद्ध एवं सुखी नही बन सकता। शास्त्रों में यह बात बहुत स्पष्ट रुप से कही गई है कि स्वर्ण मे कलि का वास होता है। कलि दुषित है एवं सत्य के विपरीत भी है। अतः अपने पास स्वर्ण रखना शास्त्र के प्रतिकुल है।

    हिरण्यकश्यप का अर्थ सोने का राक्षस होता है। अगर कोई व्यक्ति अपने पास एक रती भी सोना रखता है तो उसे गो-हत्या के आघे का पाप चढता है। अगर आप व्यक्तिगत एवं राष्ट्रिय समृद्धि चाहते है तो अविलम्ब अपने पास रखे स्वर्ण एवं उससे बने आभुषण आदि बेच डाले। बेच कर प्राप्त होने बाले धन का निवेश रोजगार, उद्योग, शेयर अथवा स्वदेशी बैंक में करें। यही मुक्ति का मार्ग है यही स्वराज्य का रास्ता भी है।

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