भारत में मजदूर संगठनों के जनक दत्तोपंत ठेंगडी

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dattopantप्रारम्भिक दौर में मजदूर राजनीति भारत में सदैव विवादित भी रही व अविश्वास के वातावरण से सराबोर भी. मध्य में एक समय ऐसा भी था जब मजदूर संगठनों के नेता अपनी विश्वसनीयता को परवान तो चढ़ा ले रहे थे किन्तु अचानक कुछ ऐसा घटित होता था जिससे संगठन का सम्पूर्ण ढांचा ही चरमरा का ढह जाता था. इस दौर में मजदूर राजनीति में भारतीय फिल्म उद्योग ने भी रुचि लेकर बहुत सी फ़िल्में भी बनाई क्योंकि भारतीय जनमानस इन फिल्मों में अपने दैनंदिन जीवन का अक्स देख रहा होता था. विश्वास के तेजी से उपजने व उससे भी अधिक तीव्रता से अविश्वास में बदल जानें के इस दौर में ही श्रमिक राजनीति में दंतोपंत ठेंगडी नाम के नए धूमकेतु का अभ्युदय हुआ था. आज सम्पूर्ण भारत वर्ष में ही नहीं बल्कि विश्व भर के मजदूर-किसान और श्रमिक वर्ग में दत्तोपंत ठेंगड़ी जी का नाम अत्यंत आदर और श्रद्धा के साथ लिया जाता है. स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात जब हमारा देश अपनें पैरों पर खड़ा होनें और आर्थिक आत्म निर्भरता के लिए ओद्योगीकरण की राह पर चलनें को उद्दृत हुआ तब पचास व साथ के दशक में देश में मजदूर संगठन और मजदूर राजनीति नाम के नयें ध्रुवों का उदय हुआ था. मजदूर संगठन और मजदूर राजनीति के बारीक किन्तु बेहद महत्वपूर्ण और संवेदनशील भेद को भारत में पहलेपहल दत्तोपंत ठेंगडी ने ही समझा और आत्मसात किया था. मजदूरों से बात करते-उनकी समस्याओं को सुनते और संगठन गढ़ते-करते समय जैसे वे आत्म विभोर ही नहीं होतें थे वरन सामनें वाले व्यक्ति या समूह की आत्मा में बस जाते थे और उसके मुख से वही निकलवा लेते थे जो वे चाहते थे और जिस रूप में वे चाहते थे.
भारत में मजदूर संगठनों के दौरे-दौरा को स्थापित करनें और प्रारम्भ करनें वाले दत्तोपंत ठेंगडीजी का जन्म 10 नवम्बर 1920 के दिन आर्वी जिला वर्धा, महाराष्ट्र में हुआ था. मात्र 15 वर्ष की किशोरावस्था में में ही वे आर्वी नगरपालिका हाईस्कूल के अध्यक्ष निर्वाचित हो गए थे और इस अध्यक्षीय कार्यकाल में अपोनी संवेदन शीलता का परिचय देते हुए इन्होनें निर्धन विद्यार्थियों के लिए स्कालरशिप की योजना बना डाली थी. आर्वी में अपनें बचपन और युवावस्था के समय में दत्तोपंत जी पूत के पावँ पालनें में दिखनें वाली कहावत को चरितार्थ करते हुए कई कार्य किये. वे भारतीय राष्ट्रीय कॉंग्रेस के ‘वानर सेना’ नाम के युवा संगठन आरवी नगर के अध्यक्ष भी रहे. राष्ट्र वाद, भारतीयता और संस्कृति के आग्रही इस युवक ने किशोरावस्था में ही धीरे धीरे आर्वी से लेकर नागपुर तक अपनें कार्यों और ध्येय निष्ठा से अपनी पहचान बना ली थी.
दत्तोपंत जी स्नातक की डिग्री लेनें के पश्चात कानून की शिक्षा प्राप्त कर वकील बनें किन्तु वकालत उन्हें अधिक रास नहीं आई और वे आर एस एस के प्रचारक रूप में निकल गए. प्रचारक कार्य जैसे तपस्या पर निकलनें की प्रेरणा के मूल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के द्वितीय सरसंघचालक श्री गोलवलकरजी का सान्निध्य और उनकें साथ किये प्रवास ही रहे किन्तु उनके स्वयं के ह्रदय में धधकती देश भक्ति और राष्ट्र निर्माण की ज्वाला का योगदान भी इस ऋषि को संघ कार्य से जोडनें का सेतु बना होगा.
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के मूल विचारों से सदा प्रेरित और उद्वेलित दत्तोपंत जी सन 1942 से सन 1945 तक केरल में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रांत प्रचारक के दायित्व को निर्वहन कर 1945 से सन 1948 तक बंगाल में प्रांत प्रचारक के दायित्व को संभालें रहे और तब 1949 में गुरूजी ने ठेंगड़ीजी को मजदूर क्षेत्र का संगठन और नेतृत्व करने का आदेश दिया. इसके बाद तो जैसे दत्तोपंत जी का जीवन किसान मजदूर क्षेत्र की ही पूंजी बन गया. अक्तूबर 1950 में दत्तोपंत जी को इंटक का (Indian National Trade Union Congress) राष्ट्रीय परिषद का सदस्य बनाया गया और फिर इन्हें मध्यभारत के इंटक के संगठन मंत्री का दायित्व सौंपा गया. इसके बाद 1952 से 1955 के मध्य कम्युनिस्ट प्रभावित ऑल इंडिया बैंक एम्प्लाईज असो. जैसे मजदूर संगठन के प्रांतीय संगठन मंत्री रहे और पोस्टल, जीवन-बीमा, रेल्वे, कपडा उद्धोग, कोयला उद्धोग से संबंधित मजदूर संगठनों के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया. राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सृजनात्मक कार्यो के लिए एक विस्तृत पृष्ठभूमि तैयार करते हुए उन्होंने भारतीय किसान संघ, सामाजिक समरसता मंच, सर्व पंथ समादर मंच,स्वदेशी जागरण मंच आदि कई राष्ट्रवादी और महात्वाकांक्षी संगठनों की स्थापना की, और उनके अनुभवी व संवेदनशील नेतृत्व में इन सभी संगठनों का तीव्र विकास होता रहा. ठेंगड़ी जी ही ने बाद में संस्कार भारती, अखिल भारतीय अधिवक्ता परिषद, भारतीय विचार केंद्र, अखिल भारतीय ग्राहक पंचायत आदि संगठनों की स्थापना में सूत्रधार की भूमिका का निर्वहन किया था. अपनें पचास वर्षीय कार्य जीवन में ठेंगड़ी जी से इस देश का शायद ही कोई मजदूर क्षेत्र और संगठन रहा होगा जिसमें इनका दखल न रहा हो. देश के सभी मजदूर संगठन और इनसें जुड़े लोगों को दत्तोपंत जी में अपना स्वाभाविक नेतृत्व और विश्वस्त मुखिया का आभास और विश्वास मिलता था. दलित संघ, रेल्वे कर्मचारी संघ, उसी प्रकार कृषि, शैक्षणिक, साहित्यिक आदि विविध क्षेत्रों के संगठनों को उनके सक्रिय और वैचारिक मार्गदर्शन का लाभ मिला. प्रचंड वाणी, तीव्र प्रत्युत्पन्नमति, तेज किन्तु संवेदनशील मष्तिष्क के धनी दत्तोपंत जी ने अपनें जीवन में मजदूरों-किसानों के संगठन और उनके हितों को अपना ध्येय मान सादा जीवन जिया और मृत्यु पर्यंत अपनें उद्देश्य की ओर शनैः शनैः किन्तु अनवरत बढ़ते रहे. तीव्र मेघा व संज्ञेय मानस के धनी ठेंगड़ी जी ने अपने जीवन काल में 26 हिंदी, 12 अंग्रेजी और 2 मराठी किताबें लिखी. इनमें से “राष्ट्र” और “ध्येय पथ पर किसान” नामक किताबें मजदूर वर्ग और कार्यकर्ताओं में प्रकाश स्तम्भ के रूप में पढ़ी जाती हैं.
ठेंगड़ी जी के संगठन जीवन पर दृष्टिपात करें तो आश्चर्य जनक रूप से यह देखनें में आता है वे संघ के विराट संसार में जैसे एक घुमते-विचरते धूमकेतु थे अनेकों आनुषांगिक संगठनों को उनका स्पर्श और स्नेह मिला.हिंदुस्तान समाचार के आप संगठन मंत्री रहे और 1955 से 1959 तक मध्यप्रदेश तथा दक्षिण में भारतीय जनसंघ की स्थापना और जगह-जगह पर जनसंघ के विस्तार का कार्य भी सम्भाला. अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के संस्थापक सदस्य रहे और भारतीय बौद्ध महासभा, मध्य प्रदेश शेडयूल्ड कास्ट फेडरेशन के कार्यों में सतत निर्णायक दृष्टि रखते रहे.ठेंगड़ीजी ने 1955 मे पर्यावरण मंच की स्थापना की और सर्व धर्म समादर मंच की स्थापना भी की. इन सभी कार्यों को करते हुए दत्तोपंत जी ने 23जुलाई 1955 को भारतीय मजदूर संघ का स्थापना यज्ञ पूर्ण किया. आज भारतीय मजदूर संघ 60 लाख सदस्यों वाला एक विराट संगठन है. 1967 में भारतीय श्रम अन्वेषण केन्द्र की स्थापना कराई और 1990 में स्वदेशी जागरण मंच स्थापित किया. भारतीय संसद में राज्यसभा के सदस्य रहते हुए भारतीय मजदूर संघ का ध्वज उठाये दत्तोपंत जी ने अनेकों देशों की यात्राएं की थी. पुरे विश्व में मजदूर संगठनों के कार्यक्रमों में इन्हें बुलाया जाता रहा और वे जाकर अपनें शोध और अध्ययन कार्य को अनथक विस्तार देते रहे. विश्व के सभी छोटे बड़े देशों सहित चीन और अमेरिका के मजदूर संगठनों के कार्यों और पद्धतियों में ठेंगड़ी जी ने अपनी छाप छोड़ी थी. इनके चीन प्रवास के दौरान तो मजदूरों को दिए इनके द्वारा दिए भाषण का चीनी रेडियो पर प्रसारण भी किया गया था जो चीन जैसे बंद खिड़की वालें देश में एक आश्चर्य अखिल भारतीय मजदूर संघ और अजूबे का विषय बन गया था.
आज इस मनीषी के जन्म दिवस पर देश और विश्व के सभी मजदूर-श्रमिक-किसान संगठनों और इस देश के प्रत्येक नागरिक की ओर से पुण्य स्मरण और शत शत वंदन-नमन.

 

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