‘‘भारत रत्न’’ मेजर ध्यान चंद को ही मिलना चाहिये।

dhyanchandrशादाबजफर ‘‘शादाब’’

यकीनन भारत रत्न के सब से बडे हकदार हॉकी के जादूगर कहे जाने वाले मेजर ध्यान चंद ही है। ये सच है कि आज की पीढी ने मेजर ध्यान चंद को हॉकी खेलते नही देखा। इस सब की एक खास वजह ये भी है कि उस वक्त मीडिया इतना हाईफाई नही था। आज मीडिया बहुत हाईफाई है ये ही वजह है कि वो सचिन जितना लोकप्रिय नही हो सके पर ये भी सच है कि हॉकी में उन जैसा दूसरा खिलाडी आज तक दुनिया में पैदा नही हुआ, वह वाकई में हॉकी के जादूगर थे। हॉकी क्यो कि हमारे देश का राष्ट्रीय खेल है इस कारण भी खेल में ‘‘भारत रत्न’’ पर पहला हक मेजर ध्यान चंद का ही बनता है। खेल मंत्रालय ने भारत के सर्वोच्च नागरिक सम्मान ‘भारत रत्न’ के लिए महान हॉकी खिलाड़ी मेजर ध्यानचंद के नाम की सिफारिश की है। हालांकि दिग्गज क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को यह पुरस्कार दिए जाने की मांग काफी प्रबल थी। खेल सचिव पीके देब की माने तो ‘भारत रत्न’ के लिए ध्यानचंद के नाम की सिफारिश का पत्र पहले ही प्रधानमंत्री को भेज दिया गया है। उन्होंने कहा, इस सर्वोच्च सम्मान के लिए मंत्रालय ने सिर्फ ध्यानचंद के नाम की सिफारिश की है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह को भेजी गई इस सिफारिश का आगे अध्ययन किया जाएगा, जिसके बाद इसे राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी को स्वीकृति के लिए भेजा जाएगा।

मेजर ध्यान चंद और हॉकी देश में एक दूसरे के पर्याय है। मेजर ध्यान चंद को देश का पहला ऐसा खिलाडी भी कहा जाता है जिसने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय हॉकी को पहचान दिलाई। लगातार तीन ओलम्पिक खेलो में हॉकी में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने वाले हॉकी के इस जादूगर ने सन् 1936 के बर्लिन ओलम्पिक में भारतीय विजय की कप्तानी भी की थी। हॉकी के जादूगर का खिताब पाने के लिये मेजर ध्यान चंद ने हॉकी मे कडी मेहनत की और अकेले इस खिलाडी ने ओलम्पिक में 101 और अन्य अंतर्राष्ट्रीय मैचो में लगभग 300 गोल किये, जो खुद बखुद मेजर ध्यान चंद को एक महान खिलाडी बनाता है। 29 अगस्त सन् 1905 को प्रयाग में उनका जन्म हुआ था। बचपन से ही खिलाडी प्रवृत्ति के ध्यान चंद जब सोलह वर्ष के हुए तभी सेना में भर्ती हो गयें। सेना में ही इन्होने हॉकी खेलना शुरू किया। बहुत ही कम समय में हॉकी के खेल को ध्यान चंद इतना समझ गये कि सन् 1928 में एम्सटर्डम जाने वाली भारतीय हॉकी ओलम्पिक टीम के लिये इनका चयन हो गया। इस ओलम्पिक में भारत ने स्वर्ण पदक जीतकर कर दुनिया को चौका दिया। इस मैच में भारत की ओर से कुल 28 गोल हुए जिन में से 11 गोल अकेले ध्यान चंद के थें। ये वो मैच था जिसने ध्यान चंद को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारतीय हाकी में पहचान दिलाई। जब भारत को आजादी मिली तब इन्हे मेजर बना दिया गया। हॉकी में देश-विदेश में पर्याप्त सम्मान पाने के कारण ही भारत सरकार ने उन्हे 1956 में ‘‘पद्मभूषण’’ की उपाधि से भी सम्मानित किया। इस के साथ ही 1936 में बर्लिन में ‘‘ जैतून मुकुट’’ एंव सन् 1968 में मैक्सिको ओलम्पिक में ‘‘विशेष अतिथि’’ के रूप में उन्होने सम्मान पाया। 3 दिसम्बर 1979 को इस दुनिया से रूख्सत हो जाने के बाद भी वह प्रोरणस्रोत के रूप में देश के प्रत्येक युवा व वरिष्ट हॉकी खिलाडी के दिल में आज भी बसे है।

सचिन तेंदुलकर को ‘‘भारत रत्न’’ देने की मांग के बीच देश के ऐसे महान खिलाडी को हॉकी ओलिंपियनो और देश के हॉकी खिलाडियो की मांग और खेलो में देश के सर्वोच्च सम्मान भारत रत्न के लिये सचिन से पहले मेजर ध्यान चंद का नाम और दावेदारी बिल्कुल सही लगती है। क्यो कि क्रिकेट आज भी दुनिया के केवल दर्जन भर देश खेलते है जबकि हॉकी आज भी वैश्विक खेल होने के साथ साथ भारत का राष्ट्रीय खेल है। लिहाजा देश के लिये खेल के क्षेत्र में आज भी सचिन से ज्यादा मेजर ध्यान चंद का योगदान कई अधिक है। इस कारण मेजर ध्यान चंद खेलो में इस पुरस्कार के पहले हकदार बनते है। देश का सर्वोच्च सम्मान ‘‘भारत’’ रत्न अभी तक 41 व्यक्तियो को दिया जा चुका है जिन में दो विदेशी नागरिक दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति डा0 नेल्सन मंडेला और मदर टेरेसा का नाम शामिल है। इन 41 व्यक्तियो में कोई भी खिलाडी नही है। वजह इस पुरस्कार देने के नियम इन नियमो के हिसाब से भारत रत्न सम्मान कला, साहित्य, और विज्ञान के विकास में असाधारण सेवा के लिये तथा सर्वोच्च स्तर की जनसेवा की मान्यता स्वरूप दिया जाता है। इस पुरस्कार नियमावली में बिना संशोधन किये बगैर न तो ये सम्मान सचिन को मिल सकता है न मेजर ध्यान चंद को। हालाकि सरकार ने भारत रत्न देने के लिये नियमो में बदलाव कर खेल के क्षेत्र में इसे देने की घोषणा अभी नही कि है पर ऐसे संकेत सरकार की ओर से मिलने लगे है कि इस संबंध में सरकार ठोस कदम उठा चुकी है।

2 जनवरी 1954 को तत्कालीन राष्ट्रपति डा0 राजन्द्र प्रसाद जी के कार्यकाल में जब ये पुरस्कार स्थापित किया तो मूल कानून में ‘‘भारत रत्न’’ मरणोपरान्त देने का प्रावधान नही था। लेकिन जनवरी 1955 में इस पुरस्कार में ‘‘भारत रत्न’’ मरणोपरान्त देने का प्रावधान जोड दिया गया और इसके बाद दस से अधिक लोगो को ‘‘भारत रत्न’’ सम्मान मरणोपरान्त दिया जा चुका है। जिस में से एक मात्र भारतीय हस्ती नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जी को दिया गया यह अंलकरण वापस लिया जा चुका है। उन को यह पुरस्कार देने की घोषणा 1992 में मरणोपरान्त कि गई थी लेकिन पुरस्कार समिति ये साबित नही कर सकी कि नेता जी का निधन हो चुका है। आने वाले वक्त में हो सकता है कि ये बहस और राजनीति का मुद्दा बन जाये कि पहले खेल में असाधारण सेवा के लिये भारत रत्न सचिन को दिया जाये या मेजर ध्यान चंद को पर सही मायने में सचिन से पहले मेजर ध्यान चंद को ही ‘‘भारत रत्न’’मरणोपरान्त मिलना चाहिये।

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