भ्रष्टाचार विरोध यानी मौत को दावत?

0
201


तनवीर जाफ़री
हम भारतवासियों के दोहरे चरित्र को उजागर करने वाली यह कहावत पूरे देश में बेहद प्रचलित है कि-‘सौ में से नब्बे बेईमान फिर भी मेरा भारत महान? पूर्व जस्टिस मार्केंडय काटजू तो देश की उस न्याययिक व्यवस्था पर भी भ्रष्टाचार का आरोप लगा चुके हैं जिसपर हमारा देश काफी हद तक भरोसा करता आ रहा है। भ्रष्टाचार को लेकर देश की राजनैतिक व प्रशासनिक व्यवस्था का क्या आलम है इस पर तो चर्चा करना ही व्यर्थ है। और जहां तक तथाकथित स्वयंभू ‘चौथे स्तंभ’ का प्रश्र है तो उसकी मौजूदा हालत अपने-आप यह बयान कर रही है कि वह कितना निष्पक्ष,कितना व्यवसायिक और कितना भ्रष्ट है? मज़े की बात तो यह है कि हमारे देश में जिस प्रकार चारों ओर लगभग सभी धर्मों के धर्माधिकारी धार्मिक लोगों के सम्मुख अपने-अपने धर्म संबंधी कार्यकलापों में सक्रिय तो ज़रूर दिखाई देते हैं परंतु वास्तव में समाज में धर्म के बजाए अधर्म का बोलबाला होता जा रहा है। ठीक उसी प्रकार भ्रष्टाचार का विरोध भी एक फैशन का रूप ले चुका है। जिस नेता या अधिकारी को देखिए वही भ्रष्टाचार के विरुद्ध भाषण देता या भ्रष्टाचार को मिटाने के दावे करता नज़र आता है। आए दिन नए-नए गैर सरकारी संगठन भ्रष्टाचार के विरुद्ध झंडा,बैनर लिए सडक़ों पर दिखाई देते हैं। अन्ना हज़ारे व अरविंद केजरीवाल जैसे लोग भ्रष्टाचार विरोध के ही चलते देश में अपनी अलग पहचान बना सके हैं। हमारे देश में जनलोकपाल के समर्थन में भ्रष्टाचार विरोधी इतना बड़ा आंदोलन पहले कभी नहीं देखा गया जो 2012 में दिल्ली की सडक़ों पर देखने को मिला।
परंतु आख़िर इन सब का परिणाम क्या निकलता है? क्या हमारे देश से भ्रष्टाचार कभी समाप्त हो सकेगा? भ्रष्टाचार की प्रकृति आख़िर है क्या और इसकी जड़ें कहां हैं क्या कभी हमारे देश के तथाकथित भ्रष्टाचार विरोधी नेताओं या अधिकारियों ने ईमानदारी से यह सोचने की कोशिश की है? और इस कठिन दौर में क्या किसी सच्चे व ईमानदार व्यक्ति के लिए भ्रष्टाचार का विरोध करना या इसके विरुद्ध कठोर कदम उठाना अथवा निर्णायक कार्रवाई करना कोई आसान काम है? क्या भ्रष्टाचार अथवा भ्रष्टाचारियों का विरोध कर कोई ईमानदार व्यक्ति सुरक्षित भी रह सकता है? और ऐसे दौर में जबकि भ्रष्टाचार के विरोध का अर्थ मौत हो तो इन परिस्थितियों में क्या भ्रष्टाचार का विरोध करने वाले लोगों को उन्हें अपनी जान पर खेलने के लिए प्रोत्साहित किया जा सकता है? गत् 17 मई को लखनऊ विधानसभा के करीब मीराबाई रोड पर स्थित राज्य अतिथि गृह के समीप सड़क के बीच में 36 वर्षीय प्रशासनिक अधिकारी अनुराग तिवारी का शव संदिग्ध अवस्था में मिला। 2007 बैच के कर्नाट्क कैडर के इस होनहार अधिकारी की संदिग्ध परिस्थितियों में हुई मौत की सीबीआई जांच कराने के आदेश दे दिए गए हैं। बताया जा रहा है कि बहराईच जि़ले से संबंध रखने वाले मध्यवर्गीय परिवार के अनुराग एक होनहार,ईमानदार आईएएस अधिकारी थे।
अनुराग तिवारी की इस रहस्यमयी मृत्यु के बाद कर्नाट्क के ही एक सेवानिवृत आईएएस एम एन विजयकुमार ने पिछले दिनों बैंगलूरू में एक पत्रकार सम्मेलन बुलाकर जो रहस्योद्घाटन किए हैं वह चौंकाने वाले हैं। पूर्व प्रशासनिक अधिकारी ने यह दावा किया है कि कर्नाट्क में आईएएस माफिया  का बोलबाला है। और इस राज्य में जो भी अधिकारी ईमानदारी से काम करना चाहता है अथवा भ्रष्टाचार या भ्रष्टाचारियों पर नकेल कसना चाहता है यह आईएएस माफ़िया उन ईमानदार अधिकारियों की हत्या करवा देता है। विजय कुमार ने आरोप लगाया कि कर्नाट्क के मुख्य सचिव एससी कुंठिया भी इस माफ़िया के सदस्य हैं। विजय कुमार के मुताबिक़ अनुराग तिवारी ने राज्य के खाद्य एवं रसद विभाग में रहते हुए अपनी केवल 40 दिन की सेवा के दौरान ही दो हज़ार करोड़ रुपये का घोटाला पकड़ लिया था। इस घोटाले से जुड़े कई वरिष्ठ अधिकारियों को इस बात का डर सताने लगा था कि यदि अनुराग इस विभाग में रहे तो उनकी भी पोल खुल जाएगी। इसके बाद अनुराग पर दबाव पडऩे लगा था कि वे इस मामले में पीछे हट जाएं अन्यथा राज्य के सीनियर प्रशासनिक अधिकारी उनके ख़िलाफ़ हो जाएंगे। परंतु उन्होंने इसकी भी चिंता नहीं की। यहां तक कि उन्हें इसी मामले को दबाने के लिए रिश्वत के रूप में मोटी रक़म देने की कोशिश भी की गई। परंतु जब अनुराग ने घूस लेना भी स्वीकार नहीं किया तो उन्हें जान से मारने की धमकियां मिलने लगीं।
विजय कुमार ने यह भी कहा कि अनुराग की मौत की जांच किसी विदेशी फ़ोरेंसिक लैब से करवानी चाहिए क्योंकि आईएएस माफ़िया इतनी शक्तिशाली है कि वह फ़ोरेंसिक जांच की दिशा भी बदलवा सकता है। उनके अनुसार कर्नाट्क में वरिष्ठ आईएएस अधिकारी अपने कनिष्ठ अफ़सरों का शोषण करते हैं। और भ्रष्टाचार के मामले दबाने में लगे रहते हैं। उन्होंने दावा किया कि सेवाकाल के दौरान तीन बार उनकी हत्या की कोशिश की गई। उन्होंने इसकी जानकारी भी शासन को दी परंतु किसी ने कोई सहायता नहीं की। उन्होंने अपने सेवाकाल में कई घोटाले भी पकड़े। इस संबंध में उन्होंने अपने सीनियर अधिकारियों से सहायता भी मांगी परंतु किसी ने उनकी कोई सहायता नहीं की। उन्होंने बताया कि अनुराग ने अपनी तीसरी ट्रेनिंग पर जाने से पहले इन घोटालों से जुड़े दस्तावेज़ शासन को सौंपे थे और ट्रेनिंग से वापस आने पर कुछ अन्य दस्तावेज़ देने की बात भी कही थी। परंतु वह नौबत ही नहीं आ सकी और अनुराग तिवारी की लखनऊ में रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हो गई।
अनुराग तिवारी देश के पहले आईएएस अधिकारी नहीं हैं जिनकी ईमानदारी के रास्ते पर चलते हुए रहस्यमयी परिस्थितियों में मौत हुई हो। हमारे देश में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में सच्चाई व ईमानदारी अर्थात् सत्य एवं धर्म के रास्ते पर चलने वालों को हमेशा से ही तलवार की धार पर चलना पड़ा है। सैकड़ों अधिकारी व सामाजिक कार्यकर्ता ईमानदारी के रास्ते पर चलते हुए शहीद हो चुके हैं। ऐसे में यह सवाल ज़रूरी है कि क्या भ्रष्टाचार का विरोध करना या भ्रष्टाचार को उजागर करना एक ऐसा ‘अपराध’ है जिसके बदले में किसी ईमानदार व्यक्ति को अपनी जान की क़ुर्बानी देनी पड़े? हमारे देश में भ्रष्टाचार की जो सबसे प्रमुख जड़ है वह राजनीति के दलदल में धंसी हुई है। यहां राजनेता व राजनैतिक पार्टियां बिना किसी हिसाब-किताब के जब और जिससे चाहें संगठन के नाम पर चंदा वसूलती रहती हैं। दूसरी ओर राजनीतिज्ञों से अपना उल्लू सीधा करवाने की लालसा रखने वले लोग उनका पेट पैसों से भरते रहते हैं। हमारे देश की लोकतांत्रिक व्यवस्था में चूंकि कार्यपालिका संसदीय व्यवस्था के अंतर्गत् काम करती है इसलिए उसे न केवल सत्ताधारी नेताओं का भय रहता है बल्कि वह किसी प्रकार के विरोध अथवा विवाद में पडऩे के बजाए स्वयं भी उसी भ्रष्ट व्यवस्था का एक हिस्सा बन जाती है। नतीजतन दोनों वर्ग मिल-बांटकर खाने लग जाते हैं।
ज़ाहिर है इस ‘सौाहर्द्रपूर्ण’ भ्रष्ट वातावरण में यदि कोई अनुराग तिवारी टपक पड़े तो वह कबाब में हड्डी के समान ही खटकता है। परंतु ऐसी घटनाओं से देश के चरित्रवान व ईमानदार अधिकारियों को घबराने की ज़रूरत नहीं है। इतिहास गवाह है कि सच्चाई के रास्ते पर चलने वालों को तकलीफें ज़रूर उठानी पड़ी हैं परंतु अंत्तोगत्वा सच्चाई की ही जीत हुई है और झूठ एवं भ्रष्टाचार का मुंह काला हुआ है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here