यह कैसा बिहार प्रेम है?

-फखरे आलम-
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मैं कभी बड़ा हैरान और परेशान हो जाता हूं! जब बिहार के जनप्रतिनिधियों का व्यवहार देखता हूं। हमारे अपने ही प्रदेश और प्रदेश की जनता का विकास और प्रगति नहीं चाहते हैं। आपने और हमने कई बार संसद में और अन्य प्रदेशों के विधानसभाओं में सत्र के दौरान देखा है कि सांसद और विधानसभा के सदस्यों ने पार्टी और विचारों से अलग हटकर अपने अपने प्रदेश और क्षेत्रों के लिए जोरदार प्रतिरोध करके सरकार और संसद पर दबाव डालकर क्षेत्र, प्रदेश और जनता के विकास और प्रगति के लिए बड़े-बड़े फायदे का काम किया है। मगर हमने बिहार के नेताओं और बिहार से चुनकर आऐ प्रतिनिधियों का रवैया कभी भी प्रदेश और प्रदेश की जनता के प्रति सकारात्मक नहीं देखा। कभी भी हमारे प्रतिनिधियों और जनप्रतिनिधियों के द्वारा प्रदेश और प्रदेश की जनता के हित में कुछ कर गुजरने का जज्बा नहीं देखा।

अभी हाल के दिनों में प्रदेश, प्रदेश की राजधानी पटना के सड़कों पर अथवा देश की राजधनी दिल्ली की सड़कों पर प्रदेश को विशेष राज्य के दर्जों के लिए जो शक्ति प्रदर्शन था, वह सिर्फ और सिर्फ अपनी पार्टी का शक्ति प्रदर्शन था। देश के प्रधनमंत्री अभी ऐसे व्यक्ति बने हैं जो देश को अपनी माँ की नजर से देखते हैं और वह सभी भागों और प्रदेशों का संतुलित, बहुमुखी और चौमुखी विकास के पक्षधर हैं। उन्होंने अपने चुनाव अभियान के क्रम में बिहार पर विशेष ध्यान दिया था और बिहार में अपने सभाओं में बिहार के विकास के अनेक वादे किए थे।

बिहार की जनता ने प्रदेश की विकास और प्रगति के नाम पर नरेन्द्र मोदी में विश्वास व्यक्त किया था और प्रदेश से उन्हें और उनके गठबंधन को अपार जन समर्थन दिया और वर्तमान सरकार के गठन में प्रदेश की जनता का अपार सहयोग और समर्थन रहा। मगर भाजपा प्रदेश इकाई और उनके नेतृत्व का प्रयास सिर्फ और सिर्फ बिहार के सत्ता पर कब्जा जमाना मात्रा रह गया है। प्रदेश नेतृत्व अपने आधर जनादेश को हजम नहीं कर पा रही है। जबकि बिहार प्रदेश भाजपा और बिहार प्रदेश एनडीए को बिहार के लिए काम करना चाहिए कि जनता जिस प्रकार के उनके केन्द्रीय नेतृत्व में विश्वास जता चुकी है। उसी प्रकार उनके प्रयासों को देखते हुए उन्हें भी अवसर दे। मगर हैरान करने वाली बात यह है कि प्रदेश भाजपा यूनिट केन्द्रीय योजनाओं को बिहार लाने की बात तो दूर, केन्द्र सरकार को प्रदेश की सरकार को सहयोग देने से रोकती दिखाई दे रही है। जबकि एक बार अवसर प्राप्त हुआ है। बिहार के लिए कुछ कर गुजरने का। वृह्दय, हर्यक, आजातशत्रु, उदयिन, शिशुनाग, कालाशोक, नन्द, चन्द्रगुप्त, बिन्दुसार, अशोक, शुंग, कणव, कुषाण, गुप्त, पालों ने सम्पूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व किया ओर न केवल भारत का प्रतिनिधित्व किया, बल्कि आज भारत के प्रधानमंत्री जिस शान से भूटान की जमीन पर जाते हैं। उस देश में बौद्ध धर्म को हमारे शासकों ने पहुंचाया था।

जैन धर्म केे लिए ट्टषदेव, आदिनाथ, नेमिनाथ, पार्श्वनाथ और महावीर ने बौद्ध धर्म के लिए राजगृह से अजातशत्रु वैशाली से कालाशोक पाटलिपुत्र से अशोक और कश्मीर से कनिष्क ने अथक प्रयास किए और अपने शासन को दाव पर लगाऐ वहीं आज के बिहार के नेता अपनी सत्ता के लिऐ बिहार के भविष्य को दाव पर लगा दिए। इन जनप्रतिनिधियों को वीर कुंवर सिंह, अमर सिंह, खुदीराम बोस, प्रफुल्लचाकी, बैकुण्ठ शुकल, बिलायत अली और इनायत अली के देश प्रेम और बलिदान से पाठ लेना चाहिए। उन्हें आधुनिक भारत के निर्माता डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, हसन इमाम, सच्चिदानन्द सिंह, दिनकर, विलोचन शर्मा, रेणु, विद्यापति, शिवपूजन सहाय, रामवृक्ष बेनीपुरी, जानकी बल्लभ शास्त्री, केदारनाथ प्रभात, नागार्जुन को ध्यान में रखते हुए प्रदेश और केन्द्र की राजनीति करनी चाहिए।

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