और क्या कर लेगी ऐसी सरकारी व्यवस्था ?

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-मिलन सिन्हा-
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हाल में पटना से प्रकाशित समाचार पत्रों में बिहार के नगर विकास मंत्री से संबंधित एक रिपोर्ट छपी थी जिसपर थोड़ी चर्चा लाजिमी है। आइये पहले उक्त खबर को देख लें -“नगर विकास मंत्री ने केंद्र सरकार से बिहार में शहरीकरण की योजनाओं में तेजी लाने के लिए 50 हजार करोड़ रुपये की मांग की है. मंत्री जी ने दिल्ली में इस संबंध में केंद्रीय नगर विकास मंत्री से मिल कर बिहार की योजनाओं का प्रस्ताव दिया. इन योजनाओं में मोनो व मेट्रो रेल परियोजना, मैरिन ड्राइव, वाटर ट्रीटमेंट प्लांट और 10 लाख शहरी गरीब परिवारों को आवास की सुविधाएं उपलब्ध करानी हैं…” नगर विकास मंत्री ने करदाताओं के पैसे से दिल्ली जाकर केंद्र सरकार के नगर विकास मंत्री से मिल कर बिहार की योजनाओं का प्रस्ताव दिया जिसमें बिहार में शहरीकरण की योजनाओं में तेजी लाने के लिए बहुत बड़ी रकम की मांग की गयी है। आखिर इसमें नया क्या है? पिछले कुछ महीनों में हम सबने विकास के बिहार मॉडल बनाम गुजरात मॉडल पर पक्ष-विपक्ष की बहुत सारी सच्ची-झूठी बातें सुनी। जमीनी हकीकत से बिहार की जनता भी वाकिफ है और गुजरात की जनता भी, फिर हमारे छोटे-बड़े सब राजनीतिक नेता झूठ को सच बनाने में क्यों लगे रहते हैं? बहरहाल, चर्चा को नगर विकास और वह भी बिहार की राजधानी पटना तक सीमित कर लें तब भी कुछ बुनियादी बातों को समझना आसान हो जाएगा।

पिछले एक दशक में पटना में कंक्रीट का जंगल (बहुमंजिला इमारतें, अपार्टमेंट आदि) बहुत ही बेतरतीब ढंग से फैला है, अनेक मामलों में तो कानून की घोर अवहेलना करके यह सब हुआ है जिस पर हाईकोर्ट तक ने पटना नगर निगम व नगर विकास विभाग को कई बार फटकार लगाई है। महंगाई और भ्रष्टाचार से बेहाल जनता की गाढ़ी कमाई के कर राजस्व से सड़क और नाले के नाम पर करोड़ों खर्च किये गए, लेकिन मात्र दो दिनों की सामान्य बारिश पहले से ही गंदे और अनियोजित इस शहर को नरक बनाने के लिए काफी है।

दिल्ली में बैठकर पटना शहर की स्थिति का गुणगान करने वाले वैसे सभी महानुभावों से गुजारिश है कि राज्यपाल, मुख्यमंत्री व अन्य मंत्रियों के आवास के पास से गुजरते रास्तों को छोड़कर, वे कम-से-कम पटना के कुछ जाने माने इलाकों जैसे पाटलिपुत्र कॉलोनी, बोरिंग रोड, बेली रोड, राजेंद्र नगर, कंकड़बाग, पटेल नगर आदि का हाल स्वयं देख लें, पटना के बाकी इलाकों की बदहाली का अंदाजा तो उसी से लग जाएगा। पानी से भरे गढ्ढों के बीच सड़क होने का नाम है बेली रोड, कम से कम शेखपुरा से जगदेव पथ तक। यूं कहें कि बेली रोड तो इस समय धन्नासेठ के बेली यानी पेट और गरीब जनता के बेली (पेट) का साक्षात रूप का एहसास करवाता है। हजारों लोग कैसे इस सड़क से रोज गिरते-पड़ते गुजरते हैं, बिना एक बार गुजरे इस त्रासदी को जानना मुश्किल है। ऐसी स्थिति अन्य अनेक इलाकों की भी है जिसकी तस्वीर स्थानीय अखबारों में छपती रहती है। क्या इसे सुधारने के लिए भी केन्द्र सरकार के मदद की जरूरत है ? क्या पटना नगर निगम और नगर विकास विभाग के अधिकारियों के साथ साथ पथ निर्माण विभाग के अधिकारियों को संबंधित मंत्रीगण द्वारा शहर के विभिन्न इलाकों में कायम इस नारकीय स्थिति को सुधारने का निर्देश देने व उसका अनुपालन सुनिश्चित करने से किसी ने रोका है? अगर इतना छोटा काम भी नहीं हो सकता तो अगर कारण- अकारण केन्द्र सरकार बड़ी राशि दे भी देती है तो उसका दुरुपयोग छोड़कर और क्या कर लेगी ऐसी सरकारी व्यवस्था ? दरअसल, सोचने-समझने और करने की बात तो यह है कि इन मूलभूत कार्यों के लिए राज्य सरकार का जो बजटीय प्रावधान है उसका 100% सदुपयोग करने की ईमानदार व त्वरित कोशिश अनिवार्य है, अन्यथा सब कोरी बातें हैं जिनका बिहार की आम जनता के लिए कोई मतलब नहीं!

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