मणिपुर में शुरु की भाजपा ने पहली पारी

डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

मणिपुर के चुनावों की चर्चा यहीं से शुरु की जाए कि वहाँ भारतीय जनता पार्टी की सरकार बन गई है । उसके एन बीरेन सिंह राज्य के नए मुख्यमंत्री बन गए हैं । पूर्वोत्तर में मणिपुर सर्वाधिक महत्वपूर्ण प्रान्त है । शताब्दियों पहले मणिपुर के मोरेह से शुरु होकर म्यांमार , थाईदेश से होते हुए कम्बोडिया में अंगकोर मंदिर की तीर्थ यात्रा पर साधु संत निकलते थे । यह शायद विश्व की सबसे लम्बी यात्रा थी । परिस्थितियाँ बदलीं , भूगोल बदले और वह यात्रा बन्द हुई । लेकिन मणिपुर विधान सभा को फ़तह करने में भारतीय जनता पार्टी को इतना समय नहीं लगा । भाजपा ने इम्फ़ाल तक पहुँचने की यह यात्रा भी कुछ दशक पहले ही शुरु की थी । मणिपुर विधान सभा के लिए भाजपा की पूर्ववर्ती भारतीय जनसंघ ने 1972 के विधान सभा चुनावों में पहली बार अपना एक प्रत्याशी चुनावों में उतारा था । 1972 में ही मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला मिला था । जनसंघ के प्रत्याशी की ज़मानत जबंत हुई और उसे मात्र 1004 वोट मिले । दो साल बाद 1974 में राज्य की विधान सभा के लिए फिर चुनाव हुए । लेकिन इस बार भारतीय जनसंघ ने चुनाव में अपना कोई प्रत्याशी नहीं उतारा । 1975 में उस समय की प्रधानमंत्री इन्दिरा गान्धी ने आपात स्थिति की घोषणा कर दी । उसके बाद जनसंघ का नई बनी जनता पार्टी में विलय हो गया । 1984 में जनता पार्टी में असहज अनुभव करने के बाद जनसंघ के लोगों ने भारतीय जनता पार्टी का गठन किया । 1984 के विधान सभा चुनावों में भाजपा ने एक बार फिर इम्फ़ाल की यात्रा शुरु की । उसने अपने 11 प्रत्याशी मैदान में उतारे , जीता तो कोई नहीं अलबत्ता 11 ने अपनी ज़मानत भी गँवाई । कुल मिला कर भाजपा को 6173 वोट मिले । 1990 के विधान सा चुनावों में पार्टी ने फिर 11 प्रत्याशी खड़े किए । जीता तो कोई नहीं लेकिन इस बार वोटें 18549 मिलीं और तीन प्रत्याशी ज़मानत बचाने में भी सफल रहे । मणिपुर में भाजपा ने पहली बार एक सीट 1995 में जीतीं । उसने पहली बार बीस सीटों पर चुनाव लड़ा था । 3.35 प्रतिशत मत प्राप्त किए । लेकिन ज़मानतें इस बार भी 14 प्रत्याशियों ने गँवाई । इससे उत्साहित होकर उसने 2000 के विधान सभा चुनावों में अपने 39 प्रत्याशी खड़े कर दिए । पार्टी ने 11.28 प्रतिशत प्राप्त कर 6 सीटें जीत लीं । 2002 के चुनावों में भाजपा ने 46 प्रत्याशी उतार कर बड़ा हाथ मारना चाहा । लेकिन 9.44 प्रतिशत लेकर उसके चार प्रत्याशी ही जीत पाए ।
लेकिन 2002 के चुनावों के बाद शायद मणिपुर की घाटी में भाजपा का भाग्य धुँधला होता नज़र आने लगा । 2007 के चुनावों में उसने 14 प्रत्याशी खड़े किए । कुल मिला कर 12536 मत प्राप्त किए और 13 प्रत्याशियों ने ज़मानत जबंत करवाई । जीता कोई नहीं । 2012 के चुनाव में भाजपा ने 19 लोग खड़े कर दिए । 17 ने अपनी ज़मानत जब्त करवाई और 29663 वोट मिले । विजयश्री किसी के भाग्य में नहीं थी । लेकिन लगता है 2024 के लोकसभा चुनावों में ही भाजपा के विकास और परिवर्तन की लहर इम्फ़ाल की घाटियों में पहुँचनी शुरु हो गई । भाजपा ने इन चुनावों में 12 प्रतिशत मत प्राप्त किए । इसके कुछ समय बाद ही कांग्रेस के भीतर और उसके समर्थकों में बेचैनी बढ़नी शुरु हो गई क्योंकि कांग्रेस के मुख्यमंत्री इबोबी सिंह के प्रति आक्रोश बढ़ता जा रहा था । मणिपुर विधान सभा अध्यक्ष ने तृणमूल कांग्रेस के तीन विधायकों को सदन की सदस्यता से फ़ारिग़ कर दिया । एक को तो उच्च न्यायालय से राहत मिल गई लेकिन दो सदन से बाहर हो गई । नबम्वर 2015 में विधान सभा की इन दोनों सीटों के लिए उपचुनाव हुए । भाजपा ने भी अपने प्रत्याशी उतारे । भाजपा के दोनों प्रत्याशी कांग्रेस को हराकर जीत गए ।
उसके बाद भारतीय जनता पार्टी ने पूर्वोत्तर के केन्द्र असम में 2016 के विधान सभा चुनावों में विधान सभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त कर लिया । भाजपा की यह पूर्वोत्तर में सबसे बडी दस्तक थी । कार्य विस्तार के लिए भाजपा ने पूर्वोत्तर के छोटे छोटे राजनैतिक दलों को मिला कर नार्थ ईस्ट डैमोक्रेटिक एलांयस ( एनईडीए) बनाया ताकि सभी राष्ट्रवादी शक्तियों को संगठित किया जा सके । असम में सरकार बनाने के बाद ही इस बात की चर्चा होने लगी थी 2017 में मणिपुर में होने वाले विधान सभा चुनावों में भाजपा विजय पताका फहरा स्थिति है । पूर्वोत्तर में संगठन को मज़बूत करने के लिए भाजपा ने हिमाचल प्रदेश से अजय जम्बाल को संगठन मंत्री बना कर भेजा जो पहले भी अरुणाचल प्रदेश में लम्बे अरसे तक काम कर चुके हैं ।
ऐसा नहीं कि कांग्रेस अपनी सत्ता पर आया संकट देख कर भी चुपचाप देखती रही । पन्द्रह साल से मणिपुर में कांग्रेस की सरकार चला रहे इबोबी सिंह ने अन्ततः वही पत्ता चला जिसके बलबूते कांग्रेस लम्बे अरसे से पूर्वोत्तर में अपना शासन चलाती रही है । उसने राज्य के नौ जिलों को तोड़ कर उनके सोलह ज़िले बना दिए । मणिपुर के नौ जिलों में से चार ज़िले तो घाटी में हैं और पाँच ज़िले पहाड़ में हैं । जनसंख्या के हिसाब से घाटी में रहने वाले लोगों को मैतेयी कहा जाता है और पहाड़ जनजातियों के लोग रहते हैं । ये जनजातियाँ भी कूकी और नागा के नाम से आपस में बंटी हुई हैं । कूकी नागा के आपस में झगड़े भी चलते रहते हैं । राज्य की ज़्यादा आबादी , घाटी में रहती है लेकिन घाटी का क्षेत्रफल राज्य का मात्र ३० प्रतिशत है । ज़मीन पहाड़ में है लेकिन वहाँ आबादी बहुत कम है । घाटी का मैतेयी पहाड़ पर ज़मीन नहीं ख़रीद सकता जबकि पहाड़ का जनजाति समाज घाटी में ज़मीन ले सकती है । इससे घाटी में जनसंख्या घनत्व बढ़ता जा रहा है । इन सब कारणों से मैतेयी और जनजाति समाज के सम्बंधों में तनाव बना रहता है । कूकी और नागा का तनाव तो पुराना है ही । नागालैंड के उग्रवादी समूह कभी हिंसात्मक और कभी अहिंसात्मक तरीक़े से यह माँग भी करते रहते हैं मणिपुर के नागा बहुल जिलों को नागालैंड में मिला दिया जाए । जब भी इनमें से किसी भी मसले पर नंगा और मणिपुर में तनाव बढ़ता है तो नंगा लोग मणिपुर पहुँचने का एक मात्र राजमार्ग रोक जगाते हैं जिससे घाटी में आम चीज़ों का मिलना दुर्लभ हो जाता है । चीज़ों का दाम आसमान छूने लगता है ।
इबोबी सिंह मणिपुर के इन गली मुहल्लों को सबसे ज़्यादा जानते हैं । वैसे भी कांग्रेस को पूर्वोत्तर में इस प्रकार के हथकंडों का उस्ताद माना जाता है । उन्होंने चुनाव से ऐन पहले दिसम्बर 2016 में सात नए ज़िले बना दिए । पहाड़ के पाँचों जिलों ऊखरुल, सेनापति,तामेंगलोंग, चन्देल,चूडचन्द्रपुर को तोड़ कर पाँच और जिलों अस्तित्व में आए । ध्यान रहे इन पाँच जिलों में से चूडचन्द्रपुर को छोड़ कर बाक़ी सभी ज़िले नागा बहुल हैं । चूडचन्द्रपुर कूकी बहुल ज़िला है । घाटी के दो जिलों इम्फ़ाल पूर्व और विष्णुपुर को विभाजित कर दो नए ज़िले बना दिए । इबोबी सिंह जानते थे इस बिन बाद । की बरसात से जो तूफ़ान उठेगा वही कांग्रेस की नैया पार लगाएगा । नागाओं ने आरोप लगाया कि कांग्रेस सरकार इन इलाक़ों में नंगा बहुलता को समाप्त करना चाहती है । मणिपुर को जाने वाले मार्ग की घेराबन्दी शुरु हो गई । इसका इबोबी सिंह को भी पता था । वे जानते थे कि इस घेराबन्दी से घाटी की मैतेयी जनसंख्या का जीवन संकटमय हो जाएगा । लेकिन वे यह भी जानते थे कि नागालैंड में भारतीय जनता पार्टी नंगा पीपुल्ज फ़्रंट के साथ है । अत इम्फ़ाल घाटी के लोग इस घेराबन्दी के लिए अन्ततः भाजपा को ज़िम्मेदार मान लेंगे । जिसके कारण वे उससे छिटक सकते हैं । 14 दिसम्बर को जब पहाड़ में इबोबी सिंह नए बनाए जिले तेंगनौपाल का उद्घाटन करने पहुँचे तो उनके काफ़िले पर घात लगा कर हमला किया गया , जिसमें तीन कमांडो मारे गए । मणिपुर में आम चर्चा होने लगी कि यह हमला केवल सहानुभूति अर्जित करने के लिए करवाया गया है । घाटी में कुल मिला कर 41 सीटें हैं । पहाड़ों पर केवल 19 । घाटी के मैतेयी यदि पहाड़ों के कूकी- नागा के ख़िलाफ़ डट जाएँगें तो इन 41 सीटों पर ध्रुवीकरण हो सकेगा । मणिपुर को जा रहे राजमार्गों की घेराबन्दी से यक़ीनन भाजपा घिर जाएगी । न खाते बनेगा और न ही निगलते । राज्य में जो वैमनस्यपूर्ण बढ़ेगा , उससे कांग्रेस को कुछ लेना देना नहीं था ।
लेकिन भाजपा ने सबसे पहले तो इबोबी सिंह की रक्षा पंक्ति तोड़ डाली । कांग्रेस के क्षेत्रीय क्षत्रप कांग्रेस से छिटक कर भाजपा में आ गए । मैतेयी मतदाता को गोलबन्द करने के लिए भाजपा मणिपुर के महाराजा निंगथो लेईशाम्बा संजोबा को मंच पर ले आई । मणिपुर के महाराजा को आजतक कांग्रेस ने तिरस्कृत ही किया था । महाराजा को मंच पर सम्मान देकर भाजपा ने मैतेयी स्वाभिमान को छूने का प्रयत्न किया । यहाँ तक रोज़ रोज़ मणिपुर को जाते राजमार्ग पर की जाती घेराबन्दी को तोड़ने का प्रश्न था , आम आदमी को लगा , इस पर भाजपा तो क़ाबू पा सकती है । कांग्रेस के बस का यह काम नहीं है क्योंकि कांग्रेस इसका राजनीतिकरण करती है । इस पृष्ठभूमि में भाजपा को साठ सदस्यीय विधान सा में 21 और कांग्रेस को 28 सीटें प्राप्त हुईं । चार-चार सीटें नैशनल पीपुल्ज पार्टी और नागा पीपुल्ज फ़्रंट को मिलीं । एक एक सीट लोक जन शक्ति पार्टी और तृणमूल कांग्रेस को मिली । एक सीट निर्दलीय के खाते में गई । यहाँ तक प्राप्त मतों का सवाल है , भारतीय जनता पार्टी को 36.3 और कांग्रेस को 34.6 प्रतिशत मत प्राप्त हुए । 2012 के विधान सभा चुनावों में कांग्रेस को 42.42 और भाजपा को केवल 2.12 प्रतिशत मत मिले थे । कांग्रेस को घाटी की चालीस सीटों में से 19 सीटें मिलीं और भाजपा को 16 सीटें । पहाड़ की बीस सीटों में से कांग्रेस को 9 और भाजपा को 5 सीटें मिलीं । साठ में से शेष बची ग्यारह सीटें स्थानीय राजनैतिक दलों को मिलीं । कांग्रेस के प्रति जन आक्रोश कितना था इसका अंदाज़ा इसी से लगाया जा सकता है कि कांग्रेस को इक्कतीस का जादुई आँकड़ा छूने के लिए केवल तीन विधायकों की जरुरत थी लेकिन एक भी विधायक उसे समर्थन देने के लिए आगे नहीं आया । इसके विपरीत भाजपा को सरकार बनाने के लिए दस दूसरे विधायकों की जरुरत थी और प्रदेश के अन्य सभी दस विधायक भाजपा के साथ चलने को राज़ी हो गए । लेकिन इस सबके बीच भाजपा के दो प्रत्याशियों की पराजय सभी को आश्चर्य चकित कर गई । भाजपा के पूर्व प्रदेश अध्यण चोयबा सिंह और प्रदेश के उपाध्यक्ष प्रेमानन्द शर्मा । लेकिन सबसे बड़ा झटका लगा इरोम शर्मिंला को । वह राज्य के मुख्यमंत्री इबोबी सिंह के ख़िलाफ़ खड़ी थी और उसे केवल 90 वोट मिले । उसकी पार्टी प्रजा का भी कोई प्रत्याशी जीत नहीं सका । शर्मिंला पिछले 16 साल से राज्य में से सेना को विशेषाधिकार देने सम्बंधी क़ानून हटाने के लिए भूख हड़ताल पर बैठी थी । कुछ मास पहले ही उसने अपना व्रत छोड़ा था और कांग्रेसी मुख्यमंत्री के ख़िलाफ़ क़िस्मत आज़माने का फैसला लिया था । उसे मिले 90 वोटों से अन्दाज़ा लगाया जा सकता है कि राज्य में यह मुद्दा था ही नहीं । वैसे भी मणिपुर में चर्चा थी कि कुछ उग्रवादी समूह शर्मिंला को ज़बरदस्ती भूख हड़ताल पर बिठाए हुए हैं । शर्मिंला ने आगे से राजनीति से तौबा कर ली है ।

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