भारतीय जनता पार्टी हमेशा से ही अपने आप को सैधान्तिक ह्ढता के मामले में प्राय: सभी राजनैतिक पार्टियों से अलग बताती आई है। नि:सदेह उसके क्रियाकलाप उसे एक डिफ्रेन्ट पार्टी के रूप में खडा भी करते हैं, किंतु जिस प्रकार के रूझान मध्यप्रदेश में नगरीय निकाय चुनाव में आए हैं उससे यही लग रहा है कि सूबे की जनता ने इस बार भाजपा के अलग राजनैतिक पार्टी होने के भ्रम को तोड दिया है। इसे कोई नकार नहीं सकता है कि नगरीय निकाय चुनाव विकास का पैमाना तय करने वाली सबसे छोटी इकाई है।
प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी की सरकार है, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने जन कल्याण से जुडी अनेक योजनाएँ प्रदेश में चला रखी हैं जिनमें कई योजनाएँ ऐसी हैं जो राष्ट्रीय स्तर पर भी सराही गई हैं। यहां समीक्षा करने वाली बात यह है कि आखिर इन योजनाओं का लाभ प्रदेश की आवाम को किस सीमा तक मिला है? क्योंकि नगरीय निकाय चुनाव के पहले चरण के मतदान के बाद जो परिणाम आए हैंउनसे तो सही लगता है कि भाजपा को लेकर जनता के बीच आक्रोश बढा है, नहीं तो इतनी विकास परक योजनाओं के क्रियान्वयन के बाद कोई ऐसा कारण दिखाई नहीं देता कि जनता भाजपा को इस प्रकार की पटखनी देती।
पहले कुल 14 नगर निगमों में से 10 पर भाजपा के महापौर जीते थे जबकी इस बार पहले चरण में 12 स्थानों पर हुए मतदान में भाजपा केवल 7 स्थानों पर विजय हासिल कर पाई है। नगर पालिका और नगर पंचायतों के आए परिणाम भी इस बार पूरी तरह भाजपा के पक्ष में नहीं कहे जा सकते। सागर नगर निगम महापौर पद पर किन्नर कमला बुआ ने जीत हासिल कर यह संदेश देने का प्रयास किया है कि बुन्देल खण्ड में न केवल सत्तारूढ पार्टी भाजपा ने अपना विश्वास खोया है बल्कि केन्द्र में सरकार चला रही कांग्रेस भी जनता का विश्वास खो चुकी है। आखिर निर्दलीय प्रत्याशी वह भी किन्नर पर जनता का इस तरह विश्वास दिखाने का क्या कारण हो सकता है? सागर में लोगों के बीच यही संदेश गया कि भाजपा ने जिस महिला को अपना प्रत्याशी चुना है यदि जीत गई तो उसके नाम पर राजनीति उसके परिवार सदस्य करेंगे। क्षेत्र का विकास होगा नहीं, वादे हवा में रह जाएंगे। जबकि इस सीट को जीतने का भाजपा के पास एक सुनहरा मौका था क्यों कि पिछली बार इस पर कांग्रेस का कब्जा था जिसने बीते पाँच साल में कोई ठोस विकास के कार्य नहीं कराए जिनके बलबूते वह इस बार भी जीत पाती। यहाँ से किन्नर के जीतने का एक पक्ष यह भी है कि पिछले एक दशक से यहाँ अनेक लोकतांत्रिक संस्थाओं में सांसद,विधायक तथा अन्य पर प्राय: सत्तारूढ पार्टी भारतीय जनता पार्टी का कब्जा है,लेकिन जिस तेजी से प्रदेश के अन्य शहरों और संभाग केन्द्रों का विकास हुआ है उसके लिए आज भी सागर तरस रहा है। भाजपा नेताओं ने भी सागर की जनता को विकास के नाम पर सब्जबाग ज्यादा दिखाए हैं। सिंगरौली और सतना में बहुजन समाजवादी पार्टी प्रत्याशियों की जीत को किस प्रकार लिया जाए? बसपा की इस जीत ने यह तो बता ही दिया कि मध्यप्रदेश में जिस तीसरे दल की शक्ति को मुख्यमंत्री विभिन्न मंचों पर नकारते रहे हैं नि:सन्देह इस जीत से उसका आगाज हो चुका है, वहीं अब इस बात को भी कोई नकारा नहीं सकता कि लाख जनता के हित में विकासपरक कार्य किए जाएं किन्तु यदि आपस में फूट होगी तो कम से कम जीत का सेहरा नहीं पहना जा सकता है। भाजपा के मामले में यही बात सही सिध्दा हुई है। सिंगरौली में भाजपा कितने खेमों में बटी है यह जग जाहिर है। सतना में भी लगभग यही हालात हैं। देवास और कटनी से कांग्रेस की जीत के पीछे का कारण भी टिकिट वितरण में सही व्यक्ति का चुनाव न होना तथा भाजपा की आपसी कलह है।
भोपाल में महापौर पद पर कृष्णा गौर जीत गई हैं तब परिषद पर भाजपा ने अपना कब्जा खो दिया। कुल 70 सीटों में से भाजपा के 26 पार्षद ही जीते, कांग्रेस को एक तरफा 40 सीटों पर विजयश्री मिली है। ग्वालियर में समीक्षा गुप्ता महापौर बनी हैं किन्तु 60 वार्डों में से सिर्फ 24 पर ही भाजपा जीत दर्ज कर पाई। सतना में 45 स्थानों में भाजपा की झोली में 18 सीटें आई हैं। जबलपुर में कुल 70 सीटों में से 36, सागर में 48 स्थानों में से 22, देवास 45 में से 24, खण्डवा 50 में से 28, बुरहानपुर 48 में से 20,रीवा 45 में से 16, सिंगरौली45 में से 18 तथा इंदौर 69 में से 46 स्थानों पर ही भाजपा जीत प्राप्त कर सकी है। इसी प्रकार नगर पालिका परिषद के 41 स्थानों में से भाजपा सिर्फ 18 स्थानों पर तथा 69 नगर पंचायतों में से 33 सीटों पर ही जीत सकी है। कम से कम भारतीय जनता पार्टी के इस प्रर्दशन को कोई रोमांचकारी उपलब्धी तो नहीं कहा जा सकता ।
जब प्रदेश में खुद भाजपा की सरकार है उसके बाद भी नगरीय निकाय के चुनावों में वह अच्छा प्रर्दशन नहीं कर सके तो इससे साफ झलकता है कि सूबे की जनता के बीच लाख विकास के दावों और कार्यों के बावजूद भारतीय जनता पार्टी निरंतर अपना विश्वास खो रही है।
-मयंक चतुर्वेदी