कांग्रेस के इस अंजाम पर किसी ने न सोचा होगा

-निशा शुक्ला-
narendra-modi

जिस अंग्रेजी हुकूमत के दौरान कांग्रेस का गठन हुआ। इसी के बैनर तले कई आजादी की लड़ाइयां लड़ी गईं। उसी कांग्रेस से एक भावनात्मक लगाव रखने वाले पंडित जवाहर लाल नेहरू, महात्मा गांधी जैसे महान शख्स थे। उस कांग्रेस का आज ये हाल हो जाएगा कि जनता उसे एक झटके में ताज से फर्श पर घसीट देगी, ऐसा शायद किसी ने न सोचा होगा। भले ही इसकी पूर्व परिकल्पना न हो, लेकिन आजादी के दौरान की पार्टी आज विपक्षी में बैठने लायक सीट भी नहीं ला पाएगी, यह पल भी इतिहास के सुरक्षित पन्नों में दर्ज होगा। याद जरूर किया जाएगा कि एक वो कांग्रेस थी जिसके नेता हिन्दुस्तान के हित के लिए लड़ाई और सोच रखते थे। आज एक कांग्रेस है जिनके नेताओं पर उनकी पूर्ववर्ती 10 वर्षों तक सरकार रहते भ्रष्टाचार, घोटाला के कई आरोप ज़ड़े गए। ये पल याद करेगा, क्योंकि नरेंद्र मोदी ने अकेले रिकॉर्ड रैलियां कीं, और ‘अबकी बार मोदी सरकार’ जैसे चुनौतीपूर्ण नारों और उस पर आधारित बैनर्स पूरे देश में लगाते हुए अपने नाम पर चुनाव लड़ा, और नतीजा सबसे सामने है। भले ही कुछ नेता ये कहें कि यह भाजपा की जीत है, लेकिन मुझे नहीं लगता, पार्टी मायने रखती है, लेकिन इस बार का चुनाव व्यक्ति विशेष को लेकर था। जिसमें सीधे नरेंद्र मोदी से सबकी टक्कर थी। जनता ने कई भाजपा के उम्मीदवारों को तार दिया, कई भाजपा के विधयक जो सांसद बनने के लिए तरस रहे थे, उसे मोदी इफेक्ट में टिकट मिला और वो भारी अंतर से जीत भी गए, इसे मोदी लहर न माना जाए तो और क्या है।

अब ज़रा हम आपको आजादी के काल से अब तक एक संक्षिप्त व्याख्या करते हुए बताते हैं कि कैसे यह चुनाव महत्वपूर्ण था और इस अच्छे दिन के लिए भाजपा का कितना लंबा संघर्ष रहा। एक ऐसे नेतृत्व की तलाश रही, वो अपने नाम पर पूरी भाजपा को सत्ता पर ला सके।

1885 में बंबई के गोकुलदास तेजपाल संस्कृत महाविद्यालय में जनरल एओ ह्यूम के नेतृत्व में 72 प्रतिनिधियों के लेकर स्थापित की गई कांग्रेस ने देश की आजादी में तो अहम भूमिका तो अदा की ही, साथ ही इसने अपनी नीतियों के चलते देशवासियों के दिलों पर भी राज किया। 1947 में देश की आजादी के बाद कांग्रेस देश की सबसे बड़ी पार्टी थी जिसे जनता का भरपूर प्यार औऱ जनसमर्थन मिला। यही वजह है कि आजादी के बाद महात्मा गांधी के प्रस्तावित नए दल के गठन और कांग्रेस को पूर्णतया समाप्त करने के प्रस्ताव को कांग्रेसियों ने ठुकरा दिया। लेकिन कांग्रेस की कुछ नीतियां लोगों को नहीं पसंद थी जिसके कारण कई छोटी-छोटी पार्टियां भी बनी, जिसने समय-समय पर कांग्रेस की नीतियों की विरोध भी किया। जिसमें से एक जनसंघ भी है जो वर्तमान समय में भाजपा के नाम से जानी जाती है। कांग्रेस की नीतियों का विरोध करने वाली इन छोटी-छोटी पार्टियों को जनता ने कभी भी अपना समर्थन देना जरूरी नहीं समझा था और इन्हें महज दो-चार सीटों पर ही संतोष करना पड़ता था। किन्तु उसी कांग्रेस ने लोगों भावनाओं को कभी समझने की जरूरत समझी और न ही उनकी उम्मीदों पर खरा उतरने की कोशिश की जिसका नतीजा यह रहा कि इस बार कांग्रेस के देशवासियों ने विपक्ष में बैठने लायक भी नहीं छोड़ा।

अंग्रेजी हुकुमत से मुक्त होने के बाद देश में पहली बार लोकसभा का गठन हुआ और पंडित जवाहर लाल के नेतृत्व में कांग्रेस ने सरकार बनाई। 17 अप्रैल 1952 में गठित लोकसभा ने 4 अप्रैल 1957 तक पना कार्यकाल पूरा किया। इस बीच कांग्रेस को चुनौती देने के लिए और भी पार्टियां मैदान में आ चुकी थीं, जिनमें से एक जनसंघ भी है जो आज भारतीय जनता पार्टी के नाम प्रसिद्ध है। 1951 में श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जनसंघ की स्थापना की थी। इसके साथ ही दलित नेता भीम राव अंबेडकर ने भी अनूसिचत जाति महासंघ जिसे बाद में रिपब्लिकन पार्टी नाम दिया गया को पुनर्जीवित कर दिया। 1952 से 1971 तक लगातार देश की सत्ता की बागडोर संभालने वाली कांग्रेस को 1977 में हुए लोस चुनाव में भारी हार का सामना करने पड़ा। वजह साफ थी। आपात काल में लोगों पर हुई ज्यादती और विपक्ष के साथ कांग्रेस का अत्याचार। इसके साथ ही 1975 से 77 तक कांग्रेस द्वारा सभी नागरिक स्वतंत्रता का समाप्त कर देना। इसके बाद हुए चुनाव में कांग्रेस (ओ), भारतीय लोकदल और समाजवादी पार्टी ने जनता पार्टी के रूप में मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया और जीत दर्ज की। देश में पहली बार गैर कांग्रेसी सरकार यानी जनता पार्टी की सरकार बनी और मोरारजी देसाई को भारत का प्रधानमंत्री बनाया गया, लेकिन समाजवादियों और हिन्दू राष्ट्रवादियों के मिश्रण में बनी जनता पार्टी 1076 में विभाजित हो गई। 1980 में बिहारी बाजपेयी और लालकृष्ण आडवाणी ने जनता पार्टी छोड़ दी और बीजेएस ने सरकार से समर्थन वापस ले लिया, जिस पर मोरारजी देसाई ने संसद में विश्वास मत खो दिया और उन्हें प्रधानमंत्री पद छोड़ना पड़ा। इसके बाद जनता पार्टी के वह कार्यकर्ता और नेता जो भारतीय जनसंघ से जुड़े थे, ने भारतीय जनता पार्टी की स्थापना की, जिसका अध्यक्ष अटल बिहारी बाजपेई को बनाया गया। कांग्रेस से आम चुनावों में दो-दो हाथ करने को तैयार भाजपा ने कांग्रेस और इंदिरा गांधी के ऑपरेशन ब्लूस्टार यानी 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों का पुरजोर विरोध किया। 1984 में हुए आम चुनाव में भाजपा को मात्र दो सीटें ही हासिल हुईं। इसके बाद तो अटल के नेतृत्व में गठित हुई भाजपा ने पीछे मुड़ कर नहीं देखा। इधर भाजपा ने अयोध्या में राममंदिर बनाने को अपना मुद्दा बना लिया। देश की अधिकांश हिन्दू भाजपा के पक्ष में हो गया। 1992 में विश्व हिन्दू परिषद, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भाजपा के हजारों कार्यकर्ताओं व नेताओं ने मिलकर अयोध्या में स्थापित बाबरी मस्जिद को तोड़ दिया। देशभर में हिन्दू-मुस्लिम दंगा फैल गया। घटना के बाद सरकार ने विश्व हिन्दू परिषद पर रोक लगा दिया और लाल कृष्ण आडवाणी सहित भाजपा के कई नेताओं को जेल में डाल दिया। हालंकि देशभर में इस दंगे की काफी निंदा हुई, लेकिन भाजपा अपने मकसद यानी हिन्दुओं का समर्थन हासिल करने में सफल रही और भाजपा को देशभर में हिन्दूवादी पार्टी के रूप में देखा जाने लगा। 1993 के दिल्ली और 1994 के गुजरात व महाराष्ट्र में हुए चुनावों में पार्टी को विजय मिली। पार्टी की जीत का क्रम यहीं नहीं रुका इसी साल कर्नाटक में हुए चुनाव में भी पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया और भाजपा एक शक्तिशाली पार्टी के रूप में उभरती चली गई। पार्टी की दूरदूर्शिता व हिन्दूवादी छवि के कारण पार्टी ने 1996 में हुए लोकसभा चुनाव में भी बेहतर प्रदर्शन किया व सबसे ज्यादा सीटें जीती और अन्य पार्टियों से समर्थन लेकर भाजपा ने सरकार बनाई। अटल बिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री बने लेकिन पूर्ण बहुमत न होने के कारण उन्हें मात्र 13 दिन में ही इस्तीफा देना पड़ा। 1998 में भाजपा ने कई क्षेत्रीय पार्टियों के साथ मिलकर चुनाव लड़ा और इसे भारतीय जनतांत्रिक गंठबंधन यानी एनडीए का नाम दिया गया। इस गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला। एक बार फिर अटल बिहारी बाजपेयी प्रधानमंत्री पद पर आसीन हुए लेकिन एक पार्टी के सरकार से समर्थन वापस ले लेने के काऱण सरकार एक बार फिर एक साल के अन्दर 1999 में गिर गई। इसके बाद 1999 में हुए मध्याविधि चुनाव में भारतीय जनतंत्रिक गठबंधन को फिर से पूर्ण बहुमत मिला और अटल बिहारी बाजपेयी तीसरी बार देश के प्रधानमंत्री बने। इस बार अटल ने पूरे पांच साल तक सरकार चलाई, लेकिन 2004 व 2009 में हुए लोकसभा चुनावों में इस गठबंधन को करारी हार का सामना करना पड़ा। परन्तु इस दस वर्षों में सत्ता से दूर रहकर पार्टी ने अपनी हार की समीक्षा तो की ही साथ ही सत्ता की बागडोर संभाले कांग्रेस की हर गलती को भुनाकर माहौल अपने पक्ष में करने का कोई मौका नहीं छोड़ा। साथ ही मोदी को प्रधानमंत्री बनाने की घोषणा करके पार्टी ने और समझदारी का काम किया। कांग्रेस की झूठे आश्वासनों, महंगाई, भ्रष्टाचार, घपलों, घोटालों और आए दिन सीमापार से हो रही आतंकी घटनाओं पर सरकार की चुप्पी से नाराज जनता हर हाल में कांग्रेस से छुटकारा पाना चाहती थी और मोदी उसे एक विकल्प के रूप में दिखे, तो जनता ने कांग्रेस को उसकी गलतनीतियों का जवाब चुनावों में उसे करारी शिकस्त देकर किया। मोदी लहर ने कांग्रेस की रही सही उम्मीद भी खत्म कर दी और कांग्रेस को इस बार देश भर में महज 44 सीटों के साथ ही संतोष करना पड़ा। बीते दस वर्षों में कांग्रेस का सत्ता में रहकर देशवासियों के प्रति जो रवैया रहा, उससे जनता में त्राहि-त्राहि मची रही लेकिन देश की बागडोर संभाल कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी व पार्टी के युवराज कहे जाने वाले राहुल गांधी लोगों की परेशानियों को न तो कभी समझा और न ही उसका हल निकलने की कोशिश की।

इस लोकसभा चुनाव में भाजपा को जिस तरह से ऐतिहासिक जीत हासिल हुई उसी तरह से यह भी कहा जा सकता है कि कांग्रेस की इस बार ऐतिहासिक हार हुई है तो अतिश्योक्ति न होगी, क्योंकि इस बार कांग्रेस को पिछले चुनावों की अपेक्षा सबसे कम सीटें यानी मात्र 44 सीटों पर संतोष करना पड़ा। इस चुनाव में कांग्रेस के बड़े-बड़े दिग्गज भी मोदी लहर के आगे टिक नहीं सके और उन्हें भी चुनाव में हार का सामने करना पड़ा। इस बार ऐसा क्या हुआ कि कांग्रेस पर सबसे ज्यादा भरोसा करने वाली जनता ने सत्ता देने सौंपने की बात तो दूर उसे बिना अन्य पार्टियों के समर्थन के विपक्ष में भी बैठने लायक भी नहीं छोड़ा। वजह साफ है बीते दस सालों में कांग्रेस ने आम जनता को राहत देने के बजाय, महंगाई, अपराध, भ्रष्टाचार, घोटलों और आतंकी घटनाओं के हवाले कर दिया, जिसका बदला जनता ने इस बार कांग्रसियों को हरा कर लिया।

1 COMMENT

  1. ap galat soch rhi h ye vo congresh ni h jo 1883 me astitva me aayi. presene ki congress ki isthapna 1969 me indira ghandhi ne ki thi…………

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here