विदेशों में काला धन :सरकार की न नीयत साफ न उसके पास इच्छाशक्ति

अम्बा चरण वशिष्ठ

केवल कानून बनाने से ही कोई करिश्मा नहीं हो जाता। उसे कार्यरूप देने के लिये नीयत साफ, मन में लगन और इच्छाशक्ति की आवश्यकता होती है।

इसका एक प्रबल उदाहरण श्री टी.एन. शेषन हैं। मुख्य चुनाव आयुक्त के रूप में उनकी नियुक्ति से पूर्व तो चुनाव आयोग केन्द्र सरकार का ही एक विभाग बन कर रह गया था जो कुछ भी करने से पूर्व सरकार की ओर ही निहारता था और सरकार ने जैसे सिर हिलाया उसी के अनुसार काम करता था।

पर ज्योंहि श्री शेषन ने मुख्य चुनाव आयुक्त का कार्य सम्भाला चुनाव प्रक्रिया में तो जैसे क्रान्ति ही आ गई। उनके लिये कोई नया कानून न बना और न सरकार ने उन्हें कोई नया अधिकार ही दिया। पर जो भी कानून व अधिकार आयोग के पास थे उनका ही ईमानदारी और कड़ाई से पालन कर उन्होंने दिखा दिया कि यदि व्यक्ति में ईमानदार इच्छाशक्ति हो तो वह कुछ भी कर सकता है। यह भी वह तब कर पाये जब उनकी कार्यशैली पर सरकार की भौहें चढने लगी थी और सरकार उनके पर तक काटने की सोचने लगी। तभी एक सदस्यीय चुनाव आयोग को तीन सदस्यीय बना दिया गया। एक आयुक्त जो उस समय बनाये गये वह थे श्री एम.एस. गिल्ल जिन्होंने तब श्री शेषन के रास्ते में रोडे अटकाने का बहुत बडा काम किया। बाद में गिल्ल मुख्य चुनाव आयुक्त भी बने। यह अलग बात है कि जो लीक श्री शेषन बना गये उससे पीछे हटना उनके उत्तराधिकारियों के लिये भी सम्भव न हो सका।

इच्छाशक्ति

इसी प्रकार यदि सरकार के मन में ईमानदारी का पुट और कुछ करने की इच्छाशक्ति हो तो आज भी बहुत कुछ किया जा सकता है। उसके लिये किसी नये कानून की आवश्यकता नहीं है।

पिछले लोक सभा चुनाव प्रचार के दौरान विदेशी बैंको में भारतीयों के काले धन को भारत लाने और दोषियों को सजा देने की बात उठी थी। तब भी सरकार ने इसे विपक्ष का चुनावी शोशा बतला कर इसे नजरन्दाज करने की कोशिश की थी। पिछले 25 मास में सरकार ने इस बारे किया कुछ नहीं। केवल कुछ कोरे वादे करने की हामी अवश्य भरी थी। इसी बीच विदेशी बैंकों में भारतीयों का काला धन कम नहीं हुआ, बढा ही है।

बाबा रामदेव तो पिछले लगभग तीन वर्ष से इस बारे कुछ कारगर कदम उठाने का आग्रह करते आ रहे हैं पर सरकार की नींद नहीं खुली। लगभग दो मास पूर्व उन्होंने इस बारे अनशन पर बैठ जाने की धमकी दी थी। सरकार ने अपनी आदत के अनुसार इसे भी अनदेखा कर दिया। पर अब जब उसे लगा कि बाबा सचमुच ही अनशन पर बैठने पर अटल हैं तो मामला लटकाने के लिये उसने एक समिति का गठन कर दिया ताकि बाबा और जनता को भूलभूलैयां में डाला जा सके कि सरकार तो सब कुछ करने के लिये कटिबध्द है।

अपराधियों के ‘सम्मान’ की चिन्ता

पिछले कुछ मास से इस बारे देश के उच्चतम न्यायालय ने भी कई बार सरकार को खरी खोटी युनाई। हैरानी की बात तो यह है कि यह सरकार उन महानुभावों के सम्मान और ‘स्‍वच्‍छ’ छवि की रक्षा करना चाहती है जिन्हें गैरकानूनी व आपराधीक ढंग से काला धन कमाने और उसे विदेशी बैंकों में जमा करा कर देश के साथ गददारी करने में शर्म नहीं आई। सरकार के पास अनेक नाम हैं जिन्होंने विदेशी बैकों में आपराधिक धन जमा करा रखा है पर ‘जनहित’ का ढकोसला लगा कर उनके नाम उजागर करने से डरती है। इसी बीच कांग्रेस सरकार व पार्टी की कई नामी हस्तियों के नाम चर्चा में हैं जिनके विदेशी बैंकों में खाते बताये जाते हैं। सरकार और सम्बन्धित व्यक्ति न इन आरोपों का खण्डन करते हैं और न इनकी स्वीकारोक्ति। कारण स्‍पष्‍ट है।

आवश्यकता ईमानदारी की

सरकार यदि ईमानदार हो तो आज भी सरकार बहुत कुछ कर सकती है जिससे कि उन लोगों पर अंकुश लग सकता है जो काला धन अर्जित करने में लगे हुये हैं। निम्नलिखित कदम कारगर साबित हो सकते हैं।

केन्द्र में हमारे प्रधानमन्त्री व उनका मन्त्रिमण्डल व प्रदेशों में हमारे मुख्यमन्त्री व उनका मन्त्रिमण्डल पहल करे और सभी एक शपथपत्र जारी करें कि उनका या उनके परिवार के व्यक्तियों का देश के बाहर किसी विदेशी बैंक में खाता नहीं है। यदि है तो इसका पूरा ब्यौरा प्रस्तुत करें।

इसी प्रकार हमारे सभी सांसद व विधायक भी ऐसा ही करें। सभी संवैधानिक पदों पर बैठे व्यक्ति तथा सरकारों द्वारा नियुक्त व्यक्ति व नौकरशाह भी ऐसा ही करें।

चुनाव आयोग तथा प्रदेशों के पंचायतों तथा नगर निकाय चुनाव के लिये नियुक्त चुनाव आयोग भी संसद, विधानसभा, विधान परिषद, पंचायती राज संस्थाओं व नगर-निकायों के चुनाव के लिये सभी प्रत्याशियों के लिये यह आवश्यक कर दें कि वह अपने नामांकन पत्र के साथ किसी विदेशी बैंक में खाता न होने का शपथपत्र दाखिल करें।

सरकार से किसी टैण्डर, किसी उद्योग के लिये लाइसैंस प्राप्त करने, बैंकों में सभी खाताधारकों, बैंकों से किसी प्रकार का ऋण व खाता खोलने के लिये प्रार्थनापत्र देने के लिये, ड्राविंग लाइसैंस, पासपोर्टे, अपना आधार पहचान-पत्र प्राप्त करने के लिये, राशन-कार्ड व मतदाता पहचान-पत्र बनवाने के लिये, सरकार से किसी प्रकार की सहायता व प्रमाण-पत्र प्राप्त करने के लिये, आयकर के पहचान-पत्र आदि प्राप्त करने के लिये भी प्रार्थियों को भी ऐसा करना आवश्यक बना दिया जाना चाहिये।

पंजीकृत राजनैतिक दलों के पदाधिकारियों के लिये भी यही प्रावधान होना चाहिये।

यदि हमारे निर्वाचित प्रधानमन्त्री, मन्त्री, सांसद व विधायक, राजनैतिक दलों के पदाधिकारी ऐसा करने से कतराते हैं तो जनता स्वयं ही इसका निष्कर्ष निकाल लेने में सक्षम होगी।

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