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तेरी कविताओं को काली स्याह सड़कें नहीं पढ़ती - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
---विनय कुमार विनायकबार-बार जिसके खिलाफ लिखते कवितावे पढ़ते नहीं,मरती नहीं उनकी मानसिकताहर बार मर जाती तेरी कविता! जिसे रोज-रोज ही नोनिआए ईंट के माफिकएक-एक सड़े अवयव को फेंकते रहतेऔर चिपका देते हो तुम नव खरपाक ईंटेंफिर क्यों बालू की भीत सीभहरा-भहरा जाती तेरी लिखी कविताएं!! तेरी कविता तेरी रहती,होती नहीं…