नहीं डूबना चाहिए नौसेना का हौसला

-शैलेंद्र जोशी

sindhurakshakहमारी नौसेना को स्वतंत्रता दिवस की वर्षगांठ के उत्साह के बीच एक बड़े हादसे का सामना करना पड़ा। मुंबई में हमारी तटरक्षक पनडुब्बी सिंधुरक्षक समुद्र की गहराई में समा गई और साथ में नौसेना के जवान भी शहीद हो गए। पनडुब्बी में 18 नौसैनिक थे, भारी मशक्कत के बाद शनिवार तक पांच शव निकाल पाए हैं, बाकी के क्या हाल हैं अभी कह नहीं सकते। ये शव भी इतने क्षत-विक्षत हैं कि उनकी पहचान तक मुश्किल हो गई है। नौसेना को भी उनके जीवित बचने की कम ही उम्मीद है। यह एक हादसा है लेकिन नि:संदेह इस दुर्घटना में कहीं न कहीं कोई लापरवाही तो है ही। यह लापरवाही सेना के क्षेत्र में है, इसलिए यह बड़ी चिंता का विषय भी है। ऐसे में यह उम्मीद ही की जा सकती है कि हमारी सेनाएं हादसों के प्रति अब और भी जागरूकता अपनाएं। यह भी सच है कि दुनिया की कोई भी सेना हादसों से पूरी तरह मुक्त या सुरक्षित नहीं हो सकती, लेकिन फिर भी सेना को जोखिम तो उठानी ही पड़ती है। इसके बावजूद हादसों को न्यूनतम स्तर तक पहुंचाने के प्रयास की दिशा में आगे बढ़ने के ठोस प्रयास तो करने ही होंगे।

इससे बड़ी कोई विडंबना नहीं हो सकती कि भारतीय नौसेना अपनी नाभिकीय पनडुब्बी आईएनएस अरिहंत की सक्रियता और स्वदेशी विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत के अवतरण के रूप में मिली उपलब्धि का जश्न मना भी नहीं पाई थी उसकी पनडुब्बी सिंधुरक्षक एक भयावह हादसे का शिकार हो गई। यह भारतीय नौसेना के साथ-साथ देश के लिए एक बड़ा आघात है। यह आघात इसलिए कहीं अधिक तकलीफ देने वाला है, क्योंकि उसके क्षतिग्रस्त होने के साथ-साथ हम बहादुर नौसेनिकों को भी गंवा बैठे हैं। यह बात भी चिंताजनक है कि नौसेना अध्यक्ष इसमें किसी साजिश की आशंका से इनकार नहीं कर रहे हैं। यह आशंका इसलिए भी बलवती है,क्योंकि हादसे की वजह बैटरी चार्ज करते समय हाईड्रोजन गैस बनने से आग लगना बताई जा रही है, जिससे पनडुब्बी के शस्त्रागार में आग लग गई। यह सब-कुछ अस्वाभाविक-सा जान पड़ता है।

यह गनीमत रही कि अग्निशमन दल की तत्परता की वजह से एक अन्य पनडुब्बी सिंधुरत्न को किसी बड़े नुकसान होने से बचा लिया। किसी भी दशा में सिंधुरक्षक की तबाही को अनदेखा नहीं किया जा सकता। दुर्घटना के जांच के आदेश दे दिए गए हैं लेकिन यह सुनिश्चित करना बहुत आवश्यक है कि तकनीकी खामी अथवा मानवीय भूल के लिए किसी को जिम्मेदार ठहराकर कर्तव्य की इतिश्री न कर ली जाए। यदि पनडुब्बी का रखरखाव, संचालन और दुर्घटना की स्थिति में सक्रिय होने वाले आपदा तंत्र ने अपेक्षित सजगता का परिचय दिया होता तो इस आघातकारी घटना से बचा जा सकता था। यह अच्छी बात नहीं कि सैन्य तैयारियों के क्रम में हमारी सेनाएं ऐसे हादसों से दो-चार होती रहे, जो बड़े झटके के रूप में इंगित हो। किसी भी दशा में इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि जहां रक्षा तैयारियां लक्ष्य से पीछे चल रही हैं, वहीं युद्धक विमानों के दुर्घटनाग्रस्त होने की दर कम होने का नाम ही नहीं ले रही हैं।

गौरतलब है कि जिस आईएनएस सिंधुरक्षक में विस्फोट के बाद आग लगी और वह डूबकर तबाह हो गई, उसकी हाल ही में रूस के ज्वेज्दोचका पोत कारखाने में मरम्मत कराई गई थी। रूस में 1995 में निर्मित पनडुब्बी (आईएनएस सिंधुरक्षक) को दिसंबर 1997 में भारत को सौंपा था। 877 ईकेएम (नाटो किलो-क्लास) परियोजना वाली पनडुब्बी आईएनएस सिंधुरक्षक (एस63) की मरम्मत और आधुनिकीकरण के लिए जून 2010 में अनुबंध किया गया था। भारतीय नौसेना की इस डीजल इलेक्ट्रिक पनडुब्बी को मरम्मत की जरूरत थी और उसे करार के मुताबिक रूस भेजा गया था। मरम्मत के दौरान पनडुब्बी में क्लब एस क्रूज मिसाइल और 10 भारतीय एवं विदेश निर्मित प्रणालियां जोड़ी गई थीं। इसके अलावा जहाज की सैन्य क्षमता और सुरक्षा बढ़ाने के लिए पनडुब्बी को ठंडा रखने वाली प्रणाली को उन्नत किया गया था। एक साथ 52 नौसैनिकों की लेकर चलने की क्षमता वाले सिंधुरक्षक में 19 नॉट्स (35 किलोमीटर प्रति घंटा) की रफ्तार और समुद्र में 300 मीटर की गहराई तक जाने की क्षमता थी।

परमाणु ऊर्जा वाली पनडुब्बियों की मरम्मत में निपुण ज्वेज्दोचका पहले भी चार भारतीय डीजल इलेक्ट्रिक पोतों सिंधुवीर (एस58), सिंधुरत्न (एस59), सिंधुगोश (एस55) और  सिंधुद्वज (एस56) की मरम्मत कर चुका है। रूस में निर्मित पनडुब्बी आईएनएस सिंधुरक्षक को 400 करोड़ रुपए में भारतीय नौसेना ने इसे 1997 में हासिल किया था, इसके सोलह साल बाद उसकी मरम्मत में ही उसकी कीमत से ज्यादा 450 करोड़ रुपए का खर्च आया था। इसी के चलते रूस के उप प्रधानमंत्री दिमित्री रोगोजिन ने सिंधुरक्षक में हुए विस्फोट के मामले की जांच करने में भारतीय नौसेना की मदद करने के लिए  रूसी नौसेना के इंजीनियरों को तैनात करने की बात कही है, हालांकि रूसी विशेषज्ञ इस हादसे के पीछे किसी तरह की तकनीकी खामी नहीं मान रहे हैं। उप प्रधानमंत्री ने युनाइटेड शिपबिल्डिंग कारपोरेशन को आदेश भी दे दिया है कि भारत के साथ हुए समझौते के मुताबिक विशेषज्ञों को जल्द भारत भेजा जाए ताकि सभी जरूरी सहयोग मुहैया कराई जा सके।

नौसेना के लिए ही नहीं समूचे भारत के लिए यह बड़ा हादसा है। इस हादसे से न केवल भारत का हर नागरिक बल्कि पूरी दुनिया के मित्र देशों ने भी गहरा अफसोस जताया है। यह सच है कि हादसों को रोका नहीं जा सकता लेकिन लापरवाही और गलतियों को सुधारकर उसे कम किया सकता है। हमारे लिए यह बहुत जरूरी है कि हम इस हादसे से सीख लें और पता लगाएं कि किन गलतियों का खामियाजा हमने अपने सिंधुरक्षक और 18 नौसैनिकों को खोकर किया है। यह भी सुनिश्चित करना जरूरी है कि भविष्य में ऐसा हादसा न हो। इसके साथ ही दु:ख से निकलना होगा क्योंकि पनडुब्बी तो डूब गई लेकिन नौसेना का हौसला नहीं डूबना चाहिए।

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