खून बहाते खूनी रिश्ते , कौन दोषी, कौन जिम्मेदार ?

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tolaratrवर्तमान समाज में खूनी रिश्तों में इतनी नफरत बढ़ रही है कि खूनी रिश्ते ही एक दूसरे का खून बहा रहे है रिश्तों में आ रही कड़वाहट एक त्रासदी बन रही है आज जर ,जोरू ,जमीन के कारण रिश्तों का कत्लेआम हो रहा है ,जायदाद के लिए बेटे मां-बाप को मौत के घाट उतार रहे हैं भाई-भाई एक दूसरे की हत्या कर रहे है। आज रिश्तों की परिभाषा बदलती जा रही है रिश्तों में दरार आ गई है आज भेड़ बकरियों की तरह एक दूसरे का खून बहाया जा रहा है यह बहुत ही लज्जाजनक है कि एक ही मां के बेटे खून के प्यासे हो रहे है।रिश्तों की डोर ढीली पड़ती जा रही है आज का इन्सान माया के कारण इतना अंधा हो गया है कि रिश्तों की अहमियत भूलता जा रहा है अपनों के खून से ही अपने हाथ रंग रहा है प्रतिदिन समाचार पत्रों में ऐसी घटनाएं सुर्खियां बनती है जिन मां-बाप ने सैकड़ों कष्ट झेलकर अपने बच्चों पर आंच तक न आने दी वही आज उनके दुश्मन बन गये हैं, अपना पेट काटकर जिन्हे पाला आज यमराज बन गये है बेरहमी से काट रहे हैं । समाज का यह विकृत चेहरा बेहद भयानक है यदि समय रहते इस पर रोक न लगाई तो आने वाला कल निश्चित रूप से घातक सिद्ध होगा यह प्रलय की आहट है इस पर मंथन करना होगा इसके कारण ढूंढने होगें, 9 मार्च 2013 को उतरप्रदेश के बहराइच में एक भाई ने कुल्हाड़ी से सगी बहन की गर्दन काट दी,सोनीपत में एक भानजे ने अवैध संबधों के कारण अपने मामा की हत्या कर दी । पंजाब के बठिंडा में लड़की की चाहत में एक बाप ने 18 दिन पहले पैदा हुई बच्ची का गला घोटने की कोशिश मगर बच्ची की नानी ने छुड़ा लिया। गत वर्ष मेरठ में एक लड़की ने प्यार मे दीवार बने अपने पूरे परिवार को मौत के घाट उतार दिया था, मध्यप्रदेश में एक पति ने अपनी पत्नी व साली के चरित्र पर संदेह होने के कारण उनकी बेरहमी से हत्या कर दी और खुद भी आत्महत्या कर ली थी, उतरप्रदेश में महज चंद चांदी के सिक्कों के कारण एक मौसेरे भाई ने अपने भाई की नृशंस हत्या कर दी थी । मुम्बई में जायदाद के विवाद के कारण एक बाप ने अपने दो बेटों को गोली मारकर मौत की नींद सुला दिया , राजस्थान में एक बाप ने बेटी के चरित्र पर शक के चलते हत्या कर दी । दिल्ली में एक पत्नी ने दामाद से मिलकर अपने पति की हत्या कर दी क्योंकि पति उसके नाजायज संबधों पर उंगली उठाता था। दिल्ली में एक भाई ने बहन को प्रेमी के साथ संदिग्ध अवस्था में देखा तो उसने दोनों को मौत के घाट उतार दिया । मां ने अपने प्रेमी की खातिर अपने बच्चों का कत्ल करवा दिया जालन्धर में एक भतीजी ने लाठी के प्रहार से अपने सगे चाचा की हत्या कर दी थी। दिल्ली  में एक दामाद ने संपति के लिए सास की हत्या कर दी थी । आज से कुछ दशक पहले ऐसी स्थिति नहीं थी, इतिहास गवाह है कि खुन के रिश्ते इतने मजबूत होते थे कि भाई -बहन एक दूसरे की खातिर जान तक की बाजी लगा देते थे मगर आज इतिहास बदलता नजर आ रहा है , मानव अपनी सभ्यता और संस्कृति को भूलकर राक्षसों जैसा आचरण कर रहा है। आज संपति के लिए जो कुछ हो रहा है बहुत ही त्रासद है । मानव धनलिप्सा की मृगतृष्णा में फंसता जा रहा है वह अपनी सोचने की शक्ति खो चुका है। इस मृगमरीचिका का परिणाम क्या होगा इसके पीछे मानव वैसे ही भाग रहा है जैसे हिरन पानी के पीछे भागता है। रिश्तों में बिखराव बेहद घातक है । छोटे-छोटे स्वार्थो के लिए खूनी रिश्तों की बलि चढ़ाई जा रही है । रिश्तों के रूप बदलते जा रहे है, रिश्तों में छल -कपट घर करता जा रहा है । बढ़ती महत्वकाक्षाएं भी रिश्तों के विघटन का कारक बन रही हैं। संपति के कारण आज न जाने कितने परिवार खत्म हो गये, और कितने ही सलाखों के पीछे है। आज संवेदनाएं मृतप्राय हो चुकी हैं । खून के रिश्ते अर्थहीन होते जा रहे हैं । एक समय था कि रिश्तों में मिठास होती थी लेकिन आज खटास आती जा रही है । आज जमीन के एक छोटे से टुकड़े के लिए हत्या की जा रही है । रिश्तों की  दीवारें दरकने लगी हैं इन दीवारों को  बचाना होगा क्योंकि यदि दीवार का एक भी पत्थर निकल जाए तो दीवार कभी भी धराशायी हो सकती है । खूनी रिश्तों को अटूट बनाना होगा । एक उदारवादी दृष्टिकोण अपनाना चाहिए । ताकि समाज में आ रहे इस तरह के संकंट से मुक्ति मिल सके । और खूनी रिश्तों में मिठास घुल सके। रिश्तों पर जमी नफरत की इस बर्फ को पिघलाना होगा । रिश्तों में सामजस्य स्थापित करना होगा, ताकि आने वाली पीढ़ियां नफरत की इस आग में झुलसने से बच सके और भाईचारा बना रहे और एक नये युग का सूत्रपात हो सके।

1 COMMENT

  1. आज नाते रिश्ते टूट गए है,भावनाएं भी सब शुन्य हो गयी हैं.,स्वार्थ ऐसा सर पर, चढ़ा है कि न जाने किस रिश्ते को बलि देने की कब बारीआ जाये
    माँ को भूले ,बाप को भूले ,बहन बहनोई सब को भूल गएँ हैं,, पति पत्नी भी रिश्तों कि मर्यादा भूल गएँ हैं.
    मित्रों व आसपास के लोगों की तो बात ही क्या? धन्य है ये पाश्चात्य सभ्यता ,धन्य है इकीसवी शताब्दी, जिसका यह सब असर है.जब पारिवारिक मूल्य ही ख़तम हो रहें हैं,तो सामाजिक मूल्यों कि बात तो सोचना,व कुछ अपेक्षा करना अतिवादिता होगी.कहाँ जायेगा यह समाज,कल्पना कठिन ही है.

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