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बोन्साई - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
मेरी ज़ड़ों को काट छाँट के, मुछे बौना बना दिया, अपनी ख़ुशी और सजावट के लिये मुझे, कमरे में रख दिया। मेरा भी हक था, किसी बाग़ मे रहूँ, ऊँचा उठू , और फल फूल से लदूँ। फल फूल तो अब भी लगेंगे, मगर मै घुटूगाँ यहीं तुम्हारी, सजावट के…