पुस्‍तक समीक्षा/ ‘भारत क्‍या है’

कृष्ण जी मिश्र 

‘भारत क्‍या है’ के नाम से विख्यात सलिल ज्ञवाली की पुस्तक, जो भारतीय सोच और व्यापकता से प्रेरित शीर्ष वैज्ञानिकों, दार्शनिकों, और संतों के वाणी का संकलन है, उसकी उपयोगिता और महत्त्व को मैं शब्दों में वर्णित नहीं कर सकता.

यह पुस्तक एक त्रिवेणी की तरह अद्भुत चिंतन के स्रोत से निकलने वाले सभी विचारों की नदियों को जोडती है, जिससे विश्व के चिंतन-शील मनुष्यों के विचारों को स्वस्थ दिशा और मार्ग दर्शन मिलेगा.

भारत का ज्ञान एक रहस्य है, और उस खजाने को अभी खोजा नहीं जा सका है. जिन चिंतकों, ऋषियों और संतों ने इसे खोज लिया, उनका ज्ञान उनकी आत्मा को प्रकाशित कर चुका है, और उनकी कुछ पंक्तियों को पढ़ कर, इस खजाने के बारे में सिर्फ कल्पना की जा सकती है.

भारत में प्राकृतिक ज्ञान की धाराएँ, स्वाभाविक जल की तरह, सत्य की लक्ष्य प्राप्ति के उदेश्य पर चलती हैं, और वे कभी विषय नहीं बनतीं. ज्ञान प्राकृतिक होता है, इस लिए वह सहज ही प्राप्त है, और उसे सीखने के लिए कोई अलग से व्यवस्था नहीं बनायी जा सकती. हमारे ऋषियों के लिए विश्व ही प्राकृतिक नियम (धर्म) की प्रयोगशाला, सत्य उसका लक्ष्य, और प्रेम उसकी अभिव्यक्ति है. विषय या सब्जेक्ट जो हमारी बुद्धि को मोह से आधीन कर लेती हैं, इससे हम वस्तुओं और उसके उपयोगिता तक सीमित हो जाते हैं, और यह, हमें पहिले जीवन के मूल लक्ष्यों से अलग कर देता है, और फिर भी, संतुष्टि मिल नहीं सकती.

भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं कहा कि, करोडो लोगों में कोई बिरला ही इस ज्ञान को समझने की सामर्थ्य रखता है, और उसमें भी केवल कुछ ही मुझे तत्व से देख और जान सके है. अर्थात जिन विषयों को पैसे देकर सीखा जा सकता है, और जिसके लिए मनुष्य के चरित्र में परिवर्तन की कोई आवश्यकता नहीं होती, वे ज्ञान प्राप्ति की स्वाधीन परंपरा से अनभिज्ञ हैं. इस परंपरा के विपरीत, ज्ञान, प्राकृतिक नियमों और सिद्धांतो, जिसे धर्म कहते हैं, की खोज में उत्सुकता, निस्वार्थ प्रतिभा, और मासूम इच्छाओं का नाम है. मनुष्य द्वारा किये गए निर्णय, इस धर्म के ज्ञान के होने से अलग, और न होने से अलग होते हैं. गुरुत्वाकर्षण के प्राकृतिक नियम जिसकी खोज ऋषि भास्कराचार्य ने की, और ५०० वर्ष बाद जिसे इसाक न्यूटन नाम के ब्रिटिश वैज्ञानिक ने जाना, सनातन धर्म के उदाहरण हैं जो उनके जन्म से पहिले भी विद्यमान था और पूरे ब्रह्माण्ड में फैला है. आइन्स्टाइन, हैसेन्बुर्ग, नील्ज़ बोर इस तीनो समकालीन ऋषियों ने, प्रकृति के नियम और आत्म बोध (दृष्टा की निर्णय लेने स्वायत्तता) के रहस्य या शंकर (शंका-अरि, रिलेटिविटी ) की आराधना में समस्त जीवन समर्पित किया. इस तरह हम सब जानते हैं, कि धर्म, यद्यपि सनातन है और सदैव ही क्रियाशील है, किन्तु उस ज्ञान का हर व्यक्ति में एक समान होना आवश्यक नहीं है. और इसी लिए हर व्यक्ति की निर्णय लेने की क्षमता और चारित्रिक दृढ़ता जिसे स्वभाव कहते हैं, अलग अलग होती है. अर्थात, स्वभाव में परिवर्तन, या चरित्र निर्माण, ही धर्म की खोज और उसके विज्ञान का फल है. और यही ज्ञान के खोज की परंपरा ही हर प्राणी के जीवन का लक्ष्य है. जिस व्यक्ति का चरित्र, धर्म के खोज और उस से प्राप्त ज्ञान से निर्मल (अर्थात मल रहित) नहीं हो सका वे, विषयों के व्यवसाय और मल में ही सारा जीवन व्यतीत करते हैं.

भारत किसी देश या क्षेत्र का नाम नहीं है. भारत, मन की उस स्थिति को कहते हैं जहाँ मनुष्य का चित्त आत्मिक प्रकाश से भरा हो, और वह सतत-संतुष्ट हो. दरिद्र शब्द का अर्थ प्रायः असंतुष्ट, सुरक्षा के उद्योग या धन संग्रह में लगे प्राणियों के लिए है. दरिद्र के उदाहरण वे हैं, जो भ्रष्ट और निर्दय होते हैं और जो पहिले से ही अधिक धनवान और सत्ता के बल से असुरक्षित हैं. किन्तु जो व्यक्ति, प्रकृति के नियम और संसाधन से पोषित है, धन हीन है, और सुरक्षा की जिसे कोई आवश्यकता नहीं है, उसे धनञ्जय कहते हैं. दार्शनिक, लेखक, कृषक, वैज्ञानिक, ऋषि कभी धनवान, असुरक्षित या दरिद्र नहीं होते, क्योंकि वे नैसर्गिक गुण और सहृदय स्वभाव के कारण पहिले से ही धनञ्जय होते हैं.

डेविड थोरो (१८१७-१८८२) के प्राकृतिक निवास के दौरान लिखी पुस्तक वालडेन में उन्होंने लिखा कि, मैं हर रोज अपनी बुद्धि के साथ श्री मद भगवत गीता में सत्य के ज्ञान से भरे अनंत आकाश में स्नान करता हूँ जिसके सामने आज तक संग्रहीत, समक्ष भौतिक विस्तार और उसकी व्याख्या, तुच्छ और अनावश्यक लगती है.

डेविड थोरो (1817-1882) जो अमेरिका के सर्व श्रेष्ट दार्शनिक और, मोहन चंद कर्मशी गाँधी (1869 – 1948) के प्रेरणा श्रोत हैं, उन्होंने भगवत गीता को जीवन में धारण किया और, धन के बिना, प्रकृति के नियम और प्रेम के अनुभव से, भर गए. उनकी वाणी, भगवत गीता की समकालीन वाणी है. गाँधी जो पेशे से एक वकील थे, उनकी बुद्धि को थोरो के कानून विरोधी दर्शन ने इतना प्रेरित किया की उन्होंने सअवज्ञा आन्दोलन का सहारा ले, ब्रिटिश हुकूमत की आर्थिक नीव हिला दी थी. आज तथा-कथित भारत में, लोग दुश्शासन (दूषित शासन) और दुर्योधन (दूषित धन या बल) से पीड़ित हैं, और राष्ट्र को धारण करने वाला धृत राष्ट्र, असंवेदनशील और मोह से ग्रसित व्यवस्था से पोषित है. डेविड थोरो ने अमेरिका में स्वाधीनता के लिए, धृत-राष्ट्र और श्री कृष्ण के धर्म युद्ध अर्थात महा-भारत के युद्ध का तत्व-दर्शन किया. इसी दर्शन का लाभ, कालांतर में, गाँधी को प्राप्त हुआ और उन्होंने, इस भारत कहे जाने वाले इस देश में, स्वाधीनता का मन्त्र दिया.

एक कहावत है कि गंगा उलटी बहती है. अर्थात, ज्ञान की यह नदी, आत्मा को नीचे से ऊपर की ओर खींचती है. कपिल वस्तु में जन्में, सिद्धार्थ गौतम (563 BC – 483 BC) जिन्होंने धर्म (प्राकृतिक ज्ञान) और संघ (प्रेम के साथ सह अस्तित्व) और बुद्धत्व (सत्य की प्राप्ति, या निर्वाण) का सन्देश दिया, और वही ज्ञान जापान, चीन, और दक्षिण कोरिया में पल्लवित हो, मनुष्यों के कर्म और जीवन शैली को प्रकाशित कर रहा है. २७०० वर्ष के बाद भी, कपिलवस्तु और भारत कहे जाने वाले देश और नेपाल के वे क्षेत्र आज भी दरिद्रता, अज्ञान और भूख से पीड़ित हैं. जबकि जापान की चारित्रिक दृढ़ता और ज्ञान के प्रति समर्पण, उसे भौतिक और व्यवसायिक जगत में भी विश्व के अग्रणी देशों में लाता है. अमेरिका आज इस लिए प्रभावशाली नहीं है की वह विश्व-विजयी है, बल्कि, उसने मानवीय स्वाधीनता और स्वतंत्र विवेक का एक सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत किया. भारत भी, कभी एक स्वाधीन राष्ट्र था, और उन व्यक्तियों का चरित्र और प्राकृतिक धर्म-ज्ञान, सहजता और प्रेम से ह्रदय को भर देता था. राम और कृष्ण और शिव के तत्व चिंतन और आराधना का फल है, कि योरोप, अमेरिका, जापान आज विकसित देश कहलाते हैं, और कभी भारत के नाम से विख्यात इस राष्ट्र को दुश्शासन और दुर्योधन के बीभत्स भ्रष्टाचारी कार्यों से जाना जाता है. कभी स्वाधीनता चाहने वाले इस देश के नागरिक, आज ज्ञान और विज्ञान और जीवन के मर्म को सीखने और प्रयोग के लिए परदेश जाने को मुक्ति समझते हैं. यह एक दुखद सत्य है.

इस गंभीर अवस्था और ग्लानि के होते हुए भी, भारतीय निवासियों को विश्व के महान चिंतकों और दार्शनिकों और वैज्ञानिकों के चरित्र से प्रेरणा लेने का अवसर मिलता ही रहेगा. इसकी प्रेरणा लेनी चाहिए कि ज्ञान का प्राकृतिक श्रोत जो हर एक के ह्रदय में स्थित है, वह अति सरल है, किन्तु स्वाध्याय और वैज्ञानिक बलिदान से ही प्राप्त हो सकता है. श्री सलिल ज्ञवाली की पुस्तक (What is INDIA?) उन मोह से ग्रसित और विषयी लोगों की वाणी नहीं है, इस लिए इसके ज्ञान का सेवन, उन भाग्य शाली लोगों के लिए ही है, जो शराब का त्याग कर, दूध का सेवन करने को उत्सुक हैं. मैं उन सभी पाठकों और मित्रों के विचारों से मिल, उस त्रिवेणी में स्वागत करता हूँ.

पुस्‍तक समीक्षक परिचय

—- Krishna G Misra, Eminent Business consultant, Management Guru,

• Chief Executive (India Operations) at Chamber Certification Assessment Services Limited, Lichfield, England

• Vice President, and Director on Board at Golden Industries Limited

• Production Manager at Wires & Fabriks (S.A) Ltd

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