हिंग्स बोसोन: भारत स्वयं को समझे

राकेश कुमार आर्य

ब्रहमांड के अनसुलझे रहस्यों की खोज में लगे वैज्ञानिकों ने जिस हिग्स बोसोन की खोज की है, उससे निश्चित ही मानवता लाभान्वित होगी। इसे हमारे वैज्ञानिकों ने गॉड पार्टिकल या ईश्वरीय कण का नाम दिया है।

हमारे यहां प्राचीन काल में वैज्ञानिकों को ऋषि (चिंतन का अधिष्ठाता) कहा जाता था। चिंतन की गहराई कोई न कोई नया अनुसंधान कराती है, तो चिंतन का थोथलापन उपलब्ध ज्ञान को भी विकृत कर देता है। चिंतन की गहराई में उतरते उतरते आज के वैज्ञानिकों ने जिस ईश्वरीय कण की खोज की है, उसमें भारत के एक ऋषि सत्येन्द्रनाथ बोस का नाम भी है और यह हमारे लिए गर्व और गौरव की बात है कि हिंग्स बोसोन में बोसोन शब्द इन्हीं सत्येन्द्रनाथ बोस के उपनाम बोस का कीर्तिस्मारक बनकर विज्ञान की दुनिया में अमर हो गया है। मां भारती की कोख धन्य हो गयी है।

ईश्वरीय कण की खोज करने की दिशा में जो भी प्रगति हुई है, अभी इसे बहुत दूर चलना है। इसे ईश्वर की खोज की दिशा में भौतिक विज्ञान के द्वारा उठाया गया पहला कदम ही कह सकते हैं। यह कदम उत्साह वर्धक है। हमें अपनी मंजिल की ओर बढऩे के लिए नई आशा की किरणें फूटती दीख रही हैं। पर यह भी सत्य है कि ईश्वर की खोज यह भौतिक विज्ञान नहीं करा पाएगा। इसने ऊर्जा के नाम पर कण को तोड़ते तोड़ते जिस कण को भगवान का कण कहा है वह भगवान नहीं है। भगवान को ईशोपनिषद ने अपने पहले ही मंत्र में यूं कहा है:-

ईशावास्यमिदम् सर्वमयत्किंच जगत्याम् जगत्। अर्थात ईश्वर इस जग के कण-कण में व्याप्त है। इसका अभिप्राय है कि जो कण खोजा गया है ईश्वर उसमें भी व्याप्त है। यह कण ईश्वर नहीं है, अपितु उस कण में भी ईश्वर है। इस रहस्य को समझने के लिए यह भौतिक विज्ञान हमारी सहायता नहीं कर सकता। यह हमें घमण्डी तो बना सकता है, पर ऋषि नहीं बना पाएगा। गीता में यह ईश्वर अपनी खोज को सरल करते हुए हमें बताता है कि हे अर्जुन! देख मुझ अशरीरी का निर्गुण का शरीर। पानी में रस मैं हूं। सूर्य चंद्र में तेज मैं हूँ, वेदों में आंकार मैं हूं, आकाश में ध्वनि मैं हूं, पुरूषों में पराक्रम मैं हूं, पृथ्वी में गंध मैं हूं, अग्नि में प्रकाश मैं हूं, बुद्घिमान में बुद्घि मैं हूं, बलवान में बल मैं हूं…. सबमें मैं हूं, मेरे आश्रय में सब टिके हैं। मैं सब जगह प्रकृति के इन दृश्यमान पर्दों के पीछे से झांक रहा हूं।

जहां तक भौतिक पदार्थों की बात है तो रसायन शास्त्र ने कभी 106 मूल तत्व स्वीकार किये थे फिर 102 मूल तत्व कहे। बाद में घटाते-घटाते ये मूलतत्व तीन कर दिये गये। जिन्हें आजकल इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन तथा न्यूट्रान कहा जाता है। सांख्य दर्शन में भी ऋषि ने खोज करते-करते सत्व, रजस, तमस नामक तीन तत्वों की खोज की। उन्होंने इसे प्रकृति की साम्यावस्था कहा था। कहने का अभिप्राय ये है कि वर्तमान भौतिक विज्ञान को जिन इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन, न्यूट्रॉन नामक तीन तत्वों तक पहुंचने में इतना समय लगा है, उसे हमारे सांख्य दर्शन के ऋषि ने हजारों वर्ष पहले स्थापित कर दिया था। लेकिन विशेष बात ये है कि ऋषि के उस सिद्घांत को परीक्षण के उपरांत हमारे समकालीन वैज्ञानिकों ने अपनी सहमति और स्वीकृति प्रदान की।

ईश्वर, जीव और प्रकृति हमारी संस्कृति का यह त्रैतवाद है। भौतिक विज्ञान केवल प्रकृति तक सीमित रहा है। इसका पूरा पार भी अभी यह नहीं पा सका है। इसके पार पहुंचने के लिए इसे अध्यात्मविज्ञान का सहारा लेना पड़ेगा, लेकिन वह भी जीव तक की ही साधना करा सकेगा। उससे पार जाने के लिए यानि ईश्वर तक पहुंचने के लिए इसे ब्रहमविज्ञान का आश्रय लेना पड़ेगा। भौतिकविज्ञान से ब्रहमविज्ञान तक का सफर सचमुच बहुत लंबा है। अभी यह नहीं कहा जा सकता कि जो कण खोजा गया है वह ईश्वर है। क्योंकि कण की सत्ता अलग है और ईश्वर की सत्ता अलग है। वह ईश्वर इस जगत की परम चेतना शक्ति है। जैसे आत्मा हमारे शरीर को गतिमान किये रखता है वैसे ही ईश्वर इस जगत को और फिर ब्रहमांड को चेतनित कर रहा है, गतिमान कर रहा है। वह हमारी आत्मा का ध्येय है और उसी के द्वारा योग के माध्यम से अनुभूति के रूप में पकड़ में आ सकता है। महर्षि पतंजलि ने इसके लिए हमें योगदर्शन दिया है। जिसमें अष्टांग योग का उल्लेख है।

वेद ने कहा है कि यस्मान ऋते किञ्चन कर्म न क्रियते…अर्थात जिसके बिना यह शरीर कोई कार्य नही कर सकता-वह चेतन तत्व आत्मा है, ऐसा ही परमेचतन तत्व ईश्वर है जिसके बिना यह ब्रहमाण्ड गतिशील नहीं रह सकता। फिर भी गॉड पार्टिकल के विषय में यह सच है कि वह ब्रहमाण्ड की उत्पत्ति के रहस्यों को समझने में मदद करेगा। स्विटजरलैंड स्थित यूरोपीय सेंटर फॉर न्यूक्लियर रिसर्च (सर्न) के वैज्ञानिकों ने पांच दशक तक जो अनथक प्रयास किये और एक मुकाम तक पहुंचे उसके लिए वह साधुवाद के पात्र हैं।

पश्चिमी जगत को यथाशीघ्र समझना होगा कि वह केवल प्रकृति को ही सृष्टिï उत्पत्ति के या जीवोत्पत्ति के लिए एक कारण ना मानें बल्कि ईश्वर जीव और प्रकृति के त्रैतवाद को स्वीकार करें और भारत के ऋषियों के इसी चिंतन को आधार मानकर अपनी अगली खोजों का सिलसिला आगे बढ़ायें। हिंग्स बोसोन ईश्वर की उस अनंत प्रवाहमान ऊर्जा की मात्र एक झलक है जो इस ब्रहमाण्ड को अपनी अनंत ऊर्जा से टिकाये हुए है और चला भी रही है। इससे ब्रहमाण्ड की रचना हुई यह बात सत्य के कहीं निकट हो सकती है लेकिन रचनाकार तक पहुंचने के लिए अभी और भी साधना करनी पड़ेगी। इस खोज से भारतीय मत की पुष्टि हुई है कि संसार को ईश्वर ने बनाया है, इसलिए अब नास्तिकवादियों के पास कोई तर्क शेष नहीं रह गया है। अब उन्हें भी मानना पड़ेगा कि ईश्वर कहीं ना कहीं है और उसके बिना कुछ भी होना असंभव है। ब्रहमाण्ड के सारे ताम झाम के पीछे कोई अदृश्य सत्ता अवश्य है जो इसे चला रही है।

गॉड पार्टिकल से मानवता के लिए अब वैज्ञानिक बहुत कुछ कर पाएंगे। ऊर्जा का इतना भारी स्रोत अब हमें मिल जाएगा कि इंटरनेट की गति सौ गुणा तेज हो जाएगी। कहीं अंधेरा नहीं रहेगा। पानी से ऊर्जा पैदा की जा सकेगी, वाहनों की गति बढ़ जाएगी, अंतरिक्ष के रहस्यों से पर्दा उठेगा। इतनी महत्वपूर्ण उपलब्धि के लिए हिंग्स बोसोन मिशन में सम्मिलित रहे सभी वैज्ञानिकों को भूमण्डल के सभी लोग मिलकर उनका जितना वंदन, अभिनंदन और नमन करें, उतना ही कम है। भारत को इस दिशा में विशेष चिंतन करना होगा। हम पश्चिम की ओर देखने के अभ्यासी हो गये हैं और पश्चिम हमारी उपलब्धियों पर अपनी मुहर लगा रहा है भारत के लिए उचित होगा कि वह स्वयं को समझें। हमें याद रखना चाहिए कि विमान बनाने की तकनीक ऋषि भारद्वाज के वृहद विमान भाष्य में लिखित है। जिसे पढ़कर मुंबई के बापू जी तलपदे नामक व्यक्ति ने पहला विमान बनाने में सफलता हासिल की थी, लेकिन अंग्रेजों ने इसकी तकनीक बापूजी तलपदे से जब्त की और राइट ब्रदर्स के द्वारा विमान बनवाया। यह सिलसिला है जो चला आ रहा है कि तकनीक हमारी और मुहर उनकी। अब यह सिलसिला बंद होना चाहिए, हम स्वयं को पहचानें।

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