बंगाल में ममता का टूटता तिलिस्म

-ललित कुमार-  mamta

पश्चिम बंगाल में ममता का सिंहासन डोलने लगा है. बंगाल में ममता का प्रभाव अब तक कोई खास असर नहीं छोड़ पाया है. ममता बनर्जी ने जिन मुद्दों के आसरे करीब 35 साल के वाम पार्टी के किलों को ध्वस्त किया था. उससे तो यही लगता था कि ममता बनर्जी राज्य के लिए एक नई दशा और दिशा तय करेगी लेकिन ममता के सभी दावे छोटे और बोने साबित होते दिखे हैं. हाल ही में कोलकाता मध्यग्राम रेपकांड को लेकर तृणमूल कांग्रेस की फ़जीहत साफ़ देखी गई. बंगाल के मालदा और सिलीगुड़ी बम धमाकों के बाद से लेकर भी ममता का रूतबा कम हुआ है. विपक्षी दल सड़कों पर उतरकर अपने इस आन्दोलन को हवा देने में लगे हैं. साथ ही भाजपा और कांग्रेस भी ममता को चारों से घेरने में लगी हुई है.

करीब 35 साल से बंगाल की सियासत का स्वाद चखे बैठा वाम दल अब फिर से एकजुट होता दिख रहा है. ऐसे में वाम पार्टी के बिखरे हुए लोगों का फिर से सक्रिय होना ममता के लिए परेशानी का सबब बन सकता है. वो भी ऐसे दौर में जब देश में प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार को लेकर नरेंद्र मोदी चर्चा में बने हुए हैं. ऐसे में अगर मोदी का जादू पश्चिम बंगाल में चलता है तो दीदी के लिए संकट घेरा सकता है. राज्य में भाजपा पहले से बहुत ख़राब स्थिति में है. 2014 के लिए मोदी को बंगाल से सीटें निकाल पाना सबसे बड़ी चुनौती बनी है. बंगाल में अगर मोदी अपना प्रभाव छोड़ने में कामयाब होते हैं तो वाम पार्टी के लिए रास्ता साफ़ हो जाएगा लेकिन ममता की किरकिरी होना कहीं न कहीं, उनके अपने अंदर के नेताओं का एक ऐसा बड़ा समूह है जो टिकट और पद की चाह में अभी से गुणा-भाग करने लगे हैं. तृणमूल कांग्रेस के लिए सबसे बड़ी मुसीबत वो लोग खड़े किये हैं जो वाम दल छोड़कर टीएमसी में शामिल हुए, यही लोग पार्टी को अंदर ही अंदर खोखला करे जा रहे हैं.

राज्य को हसीन सपने दिखाने वाली ममता अब खुद ही इन सपनों के चक्रव्यूह फंसती जा रही है. 35 साल से बंगाल का विकास सही से अपनी पटरी पर नहीं लौट सका, तो अब क्या उम्मीद की जा सकती है? राज्य में बढ़ रही लगातार रेप की घटनाओं से बंगाल की स्थिति भी पश्चिमी उत्तर प्रदेश और दिल्ली एनसीआर जैसी हो गई है. कभी ममता की मुखालफ़त करने वाली महिला वामपंथी संगठनों ने अब एकजुट होकर मुख्यमंत्री के खिलाफ़ हल्ला बोल दिया है. मध्यग्राम रेपकांड के बाद से बंगाल की जनता का गुस्सा टीएमसी के खिलाफ़ सातवें आसमान पर है. जनता इसका जवाब आने वाले लोकसभा चुनाव में देगी. मौजूदा दौर में अब सभी राजनीतिक दल ममता के विरोध में खड़े हैं. वाम पार्टी द्वारा खेली जा रही मामा सकुनी वाली चाल ममता को औंधे मुंह गिरा सकती है.

कुछ दिनों पहले जब मेरी मुलाकात जब वाम पार्टी के एक घोर समर्थक कार्यकर्ता से हुई. मैंने जब उससे बंगाल की राजनीति के बारे में जानने की कोशिश कि तो उसने सारी बातें मेरे सामने बड़े ही अच्छे ढंग से रखी. उसका कहना था कि ममता अभी वाम पार्टी को सही से नहीं पहचान पाई. वाम दल के कुछ बड़े नेता जो पार्टी छोड़कर टीएमसी में शामिल हुए हैं, वहीं एक दिन ममता के सिंहासन के लिए बड़ी मुसीबत खड़ी कर सकते हैं। टीएमसी संसद सोमेन मित्रा पार्टी छोड़ चुके हैं. सोमेन अब बंगाल से कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में शामिल हैं. साफ तौर अगर देखा जाए तो पर टीएमसी के नेताओं में बड़ी बगावत ममता के खिलाफ़ शुरू हो चुकी है. जनता की जो अपेक्षाएं ममता दीदी से थी, वो अब हवा हवाई होने लगी है.

ममता के राज में शराब तस्करी बड़े पैमाने पर खुलेआम हो रही है. दुर्गा पूजा में भी ममता बनर्जी ने चौबीसो घंटे शराब के ठेके खुले रहने की बात कही थी, इस पर भी विपक्ष ने खूब हंगामा किया था. पश्चिम बंगाल के मिदनापुर जिले के आमलासोल क्षेत्र में औरतें कच्ची शराब सड़कों पर बैठकर बाज़ार में बेचती हैं. आमलासोल का इलाका कोकराझार से लगा हुआ है. अभी कुछ दिनों पहले ममता ने कहा कि यहां की जनता अब कभी भूखी नहीं रहेगी। यानी ममता दी जनता के बीच जाकर जो वादें करती हैं वो फाइलों तक ही सीमित हो जाते हैं. ममता जहां राज्य के युवाओं को आगे बढ़ने की बात को लेकर तरह-तरह के तर्क जनता के सामने रखती हैं, उसका युवाओं पर कोई खास असर नहीं है। लेकिन आमलासोल के युवाओं का भविष्य शराब में नशे में चकनाचूर हो रहा है। उन्हें नशे के आलावा कुछ नहीं दिखाई देता है। इलाके के लोग सब्जी कम और शराब की खरीदारी ज्यादा करते हैं. यहां सबसे बड़ा सवाल अब शराब तस्करी का भी है.

राज्य में 5 फरवरी को मोदी की रैली कोलकाता में होने जा रही है. जनता का जनमत किस ओर है, यह तो रैली से ही पता चल जायेगा। यानी मोदी के बलबूते भाजपा राज्य में कमल खिलना चाहती है, लेकिन यह अभी भविष्य के गर्भ में है। जब से वरुण गांधी को बंगाल की कमान सौंपी गई है, तब से उनका लगातार भाजपा कार्यकर्ताओं के बीच सक्रिय होना, यह साफ ज़ाहिर करता है कि भाजपा की धूमिल छवि से कुछ धूल तो हट ही सकती है.

ममता की छवि को धूमिल करने के लिए भी वाम दल पूरी ताकत के साथ टीएमसी को चारों ओर से घेरने में लगा है. ममता को पिछले चुनाव की अपेक्षा इस बार लोकसभा चुनाव में कम सीटें मिलने के आसार भी नजर आने लगे हैं. ममता ने कांग्रेस से नाता तोड़कर बंगाल की जनता पर भले ही यह भरोसा कायम किया हो कि हम कांग्रेस की रणनीति के खिलाफ़ हैं, लेकिन टीएमसी की रणनीति भी तो राज्य में पूरी तरह से फ्लॉप होती दिख रही है. ममता ने राज्य में जिस तरह से बंगाल में नेताओं को टॉप ऑर्डर के तहत बल्लेबाजी करना का मौका दिया था. अब वही टॉप ऑर्डर एक के बाद एक बिखरता जा रहा है. ऐसे में सवाल अब ममता की साख और सियासत का भी हो गया है। यानी ममता का टॉप ऑर्डर बिखर रहा है और जनता नेताओं को फ्लॉप करार दे रही है. मौजूदा दौर में ममता के पास अभी भी कई मौके हैं, राज्य को पटरी पर लाने के, नहीं तो ममता को आगामी लोकसभा चुनाव के साथ–साथ विधानसभा चुनाव में बहुत भारी नुकसान उठाना पड़ सकता है.

कोलकाता महानगर में आम आदमी पार्टी के कार्यकर्ताओं का रुतबा बढ़ता देख टीएमसी को एक नया विकल्प दिखने लगा है. महानगर में क्राइम की घटनाओं का ग्राफ तेज़ी से बढ़ रहा है. रोजाना ममता के खिलाफ़ विरोध प्रदर्शन से महानगर की जनता टीएमसी से ऊब चुकी है. करीब पिछले 4-5 महीनों से राजधानी में कई बड़ी हिंसक घटनाएं हुईं, लेकिन ममता का प्रशासन किसी काम का नहीं रहा. ममता दीदी सही में अगर बंगाल का विकास चाहती हैं तो उनको अभी से संभलना होगा नहीं तो फिर ममता का तिलिस्म टूटने के कगार पर है.

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