बुढ़ापे पर सवार अजगर

आत्माराम यादव पीव
बड़ी मासूमियत से
बुजुर्ग पिता ने कहा-
बेटा]
बुढ़ापा अजगर सा आकर
मेरे बुढ़ापे पर सवार हो गया है
जिसने जकड़ रखे है मेरे हाथ पैर
न चलने देता है
न उठने-बैठने देता है।
बेटा,
मेरे बाद
तेरी माँ को
अपने ही पास रखना।
पिता के चेहरे पर
पॅसरी हुई थी उदासी ओर भविष्य की चिंता
सारा दर्द छिपाकर वे
मुस्कुराने का अभिनय कर रहे थे।
उनकी बेबशी पर
मैं अबाक था!
पिता के गालों पर
अनगिनत झुर्रिया
रोज-रोज बढ़ती जाती है
और उनके पैरों पर सूजन है।
मेरी पूरी कोशिश
मेरा पूरा उपक्रम
पिता को निरोगी रखने में लगा है
और वे स्वस्थ्य रहने का
हर विधान का पालन भी करते है।
मेरा पूरा विश्वास
पिता के मन में
अंतिम साँसों तक
जीवन से कभी हार न मानने
मौत से अपराजेय रहने की
असीम ताकत जुटाने में लगा है।
वे टूट जाते है
जब उन्हें अपनी ही औलाद
खून के आँसू रूलाती है
बिना बातचीत किये
बेशर्मी से उनके पास से गुजर जाती है।
वे खुद पर झल्लाते है
अपने बुढ़ापे से विद्रोह कर
बुढ़ापे को अजगर बताते है, ताकि
मजबूर और लाचार करने
सपनों को मुर्दा करने वाली संतान, उन्हें न भूले।
पीव उन औलादों को
वे आज भी सीने से लगाने को
तरस रहे है
और अपने बुढ़ापे की मजबूरी में
उनका मन भर आने के बाद भी
औलाद को माफ करके
उनके लौट आने के
विश्वास में सारा दर्द पीकर
खुद अकेले कमरे में
बुढ़ापा को गले लगाकर जी रहे है।

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