बुखारी और दानव अधिकार आयोग

डॉ. वेदप्रताप वैदिक
कश्मीर के वरिष्ठ पत्रकार शुजात बुखारी की निर्मम हत्या का अर्थ क्या है ? यह हत्या उस समय की गई है जबकि रमजान का पवित्र त्यौहार चल रहा है। ईद आने को है। क्या इस हत्या को इस्लामी कहा जा सकता है ? क्या यह इस्लाम का सम्मान है ? या अपमान है ? ईद के मौके पर इतना घृणित पाप उस हत्यारे को कहां ले जाएगा ? दोजख में या बहिश्त में ? कश्मीर तो अपनी ऊंची संस्कृति के लिए जाना जाता है। ईद के मौके पर एक बेगुनाह और एक सच्चे कश्मीरी की हत्या किस बात का सबूत देती है ? क्या इसका नहीं कि आतंकवादियों ने कश्मीरियत की छाती को छलनी कर दिया है। आतंकवादियों ने सिद्ध किया है कि उनमें इंसानियत नाम की कोई चीज़ नहीं हैं और वे हद दर्जे के कायर हैं। शुजात बुखारी कोरे पत्रकार ही नहीं थे। वे कश्मीर की शांति के छोटे-मोटे मसीहा भी थे। वे भारत-पाक संवाद के पक्षधर थे। उनके दिल में किसी के लिए दुश्मनी नहीं थी। उनकी हत्या करके इन मूर्ख आतंकवादियों ने देश के सारे पत्रकार समाज को अपने खिलाफ खड़ा कर लिया है। स्वर्गीय शुजात भाई को मेरी हार्दिक श्रद्धांजलि !
इधर शुजात बुखारी की हत्या होती है और उधर संयुक्तराष्ट्र संघ के मानव अधिकार आयोग की रपट जारी होती है। इस रपट में भारत के खिलाफ जहर उगला गया है। आतंकवादियों को नेता कहा गया है। भारत सरकार पर तरह-तरह के उपदेश झाड़े गए हैं। पाक-अधिकृत कश्मीर को पाकिस्तान का हिस्सा बताया गया है। कश्मीर गए बिना ही अपने दफ्तर में बैठकर इस आयोग ने 49 पृष्ठ घसीट डाले हैं। भारत से कहा गया है कि वह कश्मीर में आत्म-निर्णय करवाए। जनमत संग्रह ! आयोग के अध्यक्ष जायद राद अल-हुसैन ने आतंकवादी गिरोहों को ‘सशस्त्र समूह’ कहा है। उन्हें वे ‘आतंकवादी’ नहीं बोल रहे हैं, जैसे गांव की हिंदू पत्नियां अपने पति का सही नाम बोलने से घबराती हैं। जायद हुसैन को शुजात बुखारी, अन्य निर्दोष नागरिकों और सेना के जवानों की होनेवाली नित्य हत्याएं बिल्कुल दिखाई नहीं पड़ीं। इस रपट की भारत सरकार ने भर्त्सना की। ठीक किया। इसे कूड़े की टोकरी के हवाले करना चाहिए और जायद हुसैन को मानव अधिकार आयोग के अध्यक्ष पद से बर्खास्त करने की मुहिम चलानी चाहिए। संयुक्त राष्ट्रसंघ से हमें पूछना चाहिए कि यह मानव अधिकार आयोग है या दानव अधिकार आयोग ?

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