अब पश्चिमी यूपी के हिंदू कालेज में गहराया बुर्का विवाद

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संजय सक्सेना

    उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद के हिंदू कॉलेज में ड्रेस कोड लागू होने के बाद इस पर सियासत तेज हो गई है। ड्रेस कोड लागू होने के बाद बुर्का पहनकर आने वाली छात्राओं से ज्यादा उपद्रव वह लोग मचा रहे हैं जिनका इससे कुछ भी लेना-देना नहीं हैं। ड्रेस कोड का विरोध शहर ही सीमाएं लांघकर अलीगढ़,रामपुर से लेकर अन्य जिलों में भी पहुंच गया है। समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक जमीर उल्लाह ने बुर्का पर रोक को गलत बताते हुए कहा कि बुर्का पर पाबंदी लगाने वालों को बिना कपड़ों के घुमाए ताकि पता चले कि बेपर्दी क्या होती है। बुर्के पर बात करने वाले लोग जाहिल हैं। खासकर समाजवादी पार्टी से जुड़े नेता कुछ ज्यादा ही गुस्से में नजर आ रहे हैं। मुरादाबाद के सांसद और सपा नेता डा0हसन  कॉलेज के इस नियम पर कुछ छात्र-छात्राओं ने विरोध जताया और धरने पर बैठ गए। यहां तक कि उनके समर्थन में समाजवादी छात्र सभा के नेताओं और  सांसद डॉ. एसटी हसन ने कॉलेज के इस नियम को छात्रों की तौहीन करना बताया है।इधर, शहर के इमाम सैयद मासूम अली ने कहा कि जब एक कॉलेज ने अपना ड्रेस कोड लागू कर दिया है तो यह सबके लिए ही किया होगा। अब बुर्के का फैसला उनके अभिभावकों को ही करना पड़ेगा कि वहां भेजना चाहिए या नहीं। वहीं मुरादाबाद के हिंदू कॉलेज में बुर्के के लेकर चल रहा विवाद राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग तक भी पहुंच गया है। रामपुर के आरटीआई कार्यकर्ता दानिश खान ने इसकी शिकायत मानवाधिकार आयोग में की है। उन्होंने कहा है कि कॉलेज प्रबंधन ड्रेस कोड के नाम पर मुस्लिम छात्राओं का उत्पड़ीन कर रहा है। यह धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन है। खैर, ऐसा नहीं है कि कॉलेज में पढ़ने वाली सभी मुस्लिम छात्राओं को इस नियम से समस्या है। कुछ छात्राओं ने ड्रेस कोड के नियम को सही बताया है और कहा कि उन्हें किसी भी प्रकार परेशानी नहीं है।
       गौरतलब हो,पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद मंडल के सबसे बड़े हिंदू पोस्ट ग्रेजुएट कॉलेज में हिंदू-मुस्लिम मिलाकर तकरीबन 12 हजार छात्र-छात्राएं पढ़ते हैं। अनुशासन बनाए रखने और छात्र-छात्राओं की आसानी से पहचान के लिए कॉलेज प्रशासन ने पिछले वर्ष अक्टूबर में ही ड्रेस कोड अनिवार्य कर दिया था। सर्दियों की छुट्टियों के बाद 9 जनवरी से कॉलेज खुला तो छात्रों को यूनिफार्म का अनुपालन कराया जाने लगा। जो छात्राएं बुर्का पहने थीं,उन्हें चेंजिंग रूम में बुर्का उतार कर आने को कहा गया। इसी बीच 16 जनवरी को यूनिफार्म के अलावा दूसरे कपड़ों में पहुंचे छात्रों के प्रवेश पर कॉलेज प्रशासन ने सख्ती दिखाते हुए रोक लगा दी। कॉलेज की इस सख्ती पर 17 जनवरी को छात्राओं ने स्कूल प्रशासन के खिलाफ धरना शुरू कर दिया और नारेबाजी करते हुए विरोध जताने लगीं। इस बारे में स्कूल प्रशासन का कहना था कि कई बार समझाने-बुझाने के बाद भी 17 जनवरी को भी कुछ छात्राएं बिना स्कूल यूनिफार्म के कालेज पहुंची तो उन्हें कॉलेज के प्रवेश द्वार पर ही नियंता दल के सदस्यों ने उन्हें रोककर बिना बुर्का के सिर्फ यूनिफार्म में आने के लिए कहा तो वे उनसे बहस करने लगीं। चीफ प्रॉक्टर ने भी छात्राओं को काफी समझाने का प्रयास किया, लेकिन किसी ने एक नहीं सुनी। इस बात की जानकारी समाजवादी पार्टी छात्र सभा के नेताओं को मिली तो वह भी कालेज के बार हुड़दंग मचाने लगे।
    बहरहाल,ड्रेस कोड के बारे में जब कालेज की अन्य कई मुस्लिम छात्राओं से बात की गई तो उन्होंने बताया कि यूनिफार्म से ही उनकी पहचान होती है। छात्रा जेबा ने कहा कि यूनिफार्म पहनकर जब घर से निकलते हैं तो हमारी पहचान सिर्फ विद्यार्थी के रूप में होती है। स्कूल या कॉलेज में अगर यूनिफार्म पहनकर न पहुंचे तो उसका कोई अर्थ नहीं है। वहीं बीएससी प्रथम वर्ष की छात्रा अर्शी ने बताया कि बीएससी प्रथम वर्ष जब से कॉलेज में ड्रेस कोड लागू हुआ है। यूनिफार्म पहनकर ही कॉलेज पहुंच रहे हैं। यूनिफार्म में आने से हमें किसी तरह की कोई दिक्कत नहीं है। इधर, शहर के इमाम सैयद मासूम अली ने कहा कि जब एक कॉलेज ने अपना ड्रेस कोड लागू कर दिया है तो यह सबके लिए ही किया होगा। अब बुर्के का फैसला उनके अभिभावकों को ही करना पड़ेगा कि वहां भेजना चाहिए या नहीं। कॉलेज प्रबंधन अगर मुस्लिम बच्चियों को ड्रेस कोड के साथ बुर्का पहनने की इजाजत दे दे तो अच्छी बात होगी, वरना उन बच्चियों के माता-पिता को सोचना चाहिए कि वहां पढ़ाना है या नहीं। प्राचार्य ने समाप्त करवाया धरना
  उधर, बुर्के का विरोध करने वाली छात्राओं का कहना था कि वे पहली बार कॉलेज में बुर्का पहनकर नहीं आई हैं, पहले से बुर्के में आ रही हैं और आगे भी इसी तरह ही आएंगी। कॉलेज में अव्यवस्थाओं को होते देख प्राचार्य पहुंचे। छात्राओं ने समाजवादी छात्र सभा की राष्ट्रीय सचिव दुर्गा शर्मा के नेतृत्व में प्राचार्य को ज्ञापन दिया। इस पर प्राचार्य ने छात्राओं को समझाकर धरना समाप्त कराया। प्राचार्य प्रो. सत्यव्रत सिंह रावत ने बताया कि यूनिफार्म का विरोध करने के लिए पहुंचे छात्र-छात्राओं से सबसे पहले जब आइडी कार्ड मांग कर उनकी कॉलेज के पंजीकृत छात्रों के रूप में पहचान करनी चाही तो सिर्फ दो से तीन के पास ही आइडी कार्ड था।उन्होंने कहा कि कॉलेज में बाहरी व्यक्ति का प्रवेश न हो। छात्रों की आसानी से पहचान की जा सके, सिर्फ उद्देश्य से यूनिफार्म और आइडी कार्ड की व्यवस्था की गई है। कहा कि विद्यार्थियों को कॉलेज के नियमों का हर हाल में पालन करना ही पड़ेगा। हिंदू कालेज में प्रोफेसर डॉ. जावेद अंसारी ने कहा कि कालेज में ड्रेस कोड लागू हो चुका है। यह व्यवस्था सभी के लिए है। किसी एक के लिए नहीं है। इसमें सवाल बुर्के का नहीं है। 

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संजय सक्‍सेना
मूल रूप से उत्तर प्रदेश के लखनऊ निवासी संजय कुमार सक्सेना ने पत्रकारिता में परास्नातक की डिग्री हासिल करने के बाद मिशन के रूप में पत्रकारिता की शुरूआत 1990 में लखनऊ से ही प्रकाशित हिन्दी समाचार पत्र 'नवजीवन' से की।यह सफर आगे बढ़ा तो 'दैनिक जागरण' बरेली और मुरादाबाद में बतौर उप-संपादक/रिपोर्टर अगले पड़ाव पर पहुंचा। इसके पश्चात एक बार फिर लेखक को अपनी जन्मस्थली लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र 'स्वतंत्र चेतना' और 'राष्ट्रीय स्वरूप' में काम करने का मौका मिला। इस दौरान विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं जैसे दैनिक 'आज' 'पंजाब केसरी' 'मिलाप' 'सहारा समय' ' इंडिया न्यूज''नई सदी' 'प्रवक्ता' आदि में समय-समय पर राजनीतिक लेखों के अलावा क्राइम रिपोर्ट पर आधारित पत्रिकाओं 'सत्यकथा ' 'मनोहर कहानियां' 'महानगर कहानियां' में भी स्वतंत्र लेखन का कार्य करता रहा तो ई न्यूज पोर्टल 'प्रभासाक्षी' से जुड़ने का अवसर भी मिला।

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