पिछले दिनों पाक जेल में हुई भारतीय कैदी सरबजीत की मौत से पूरा देश गुस्से से लाल दिखा। हर तरफ पाकिस्तान मुर्दाबाद के नारे लगे। लोग भारत सरकार से ये मांग कर रहे थे कि वो पकिस्तान के खिलाफ सख्त रुख अपनाये। लेकिन क्या वास्तव में सरबजीत की मौत के लिए पूरी तरीके से पाक सरकार जिम्मेदार है?
कहने का तात्पर्य है कि किसी भी मसले को आज के दौर में मीडिया सिर्फ व्यावसायिक दृष्टिकोर्ण से देख रहा उस मसले का मानवीय और सामजिक पहलू क्या है मीडिया को उससे सरोकार नहीं है यही कारण है कि वो लगातार ऐसे मसलों को उठा रहा है जो आम जनमानस को उद्देलित करें और आम जनता को अन्ध्र राष्ट्रभक्ति की तरफ धकेले।
अब ताजा मामला भारत चीन सीमा विवाद का ही ले लें। इस पूरे मसले की जो तस्वीर मीडिया ने बनायीं वो कुछ इस प्रकार थी कि मानो चीन भारत से युद्ध करने जा रहा है और भारत चीन के सामने हाथ जोड़े खड़ा हो कि हमें माफ़ कर दो। जबकि परिस्थित इससे काफी दूर थी। न तो चीन युद्ध चाहता और न ही भारत। दोनों ही इस मसले का कूटनीतिक स्तर पर हल चाहते थे जो निकला भी। ये कूटनीतिक वार्ता की ही देन थी कि बिना युद्ध के ही चीन ने अपनी सेना वापस बुला ली लेकिन ये बात मीडिया कौन समझाए उसे तो सिर्फ और सिर्फ युद्ध ही नजर आ रहा था। क्योकि युद्ध ही उसे टीआरपी देता, युद्ध ही उसे विज्ञापन देता। जैसे सरबजीत मसला दे रहा था।
ऐसे न जाने कितने उदहारण हैं जहाँ मीडिया ने व्यावासिक हितों के लिए राष्ट्र हित को ही दावं पर लगा दिया। आज मीडिया के लिए वही मुद्दा जनसरोकारी मुद्दा है जो देश के आम नागरिक में चेतना से ज्यादा गुस्से को पैदा करें। बेहतर होगा कि दूसरों पर उंगली उठाने से पहले मीडिया खुद के कार्यकलापों पर विचार करें और ये निर्धारित करें कि सशक्त भारत में निर्माण में उसकी भूमिका नकरात्मक है या सकरात्मक क्योकि यदि अब अगर मीडिया ने इस पर विचार नहीं किया तो वो दिन दूर नहीं जब समाज को जाग्रत करने वाला मीडिया समाज के पतन का कारक बन जायेगा।
अनुराग मिश्र
उचित आलेख। उचित विशय। भ्रष्टाचार, कुशासन, और गलत शासक गद्दी पर बैठाने के लिए भी मिडीया ही उत्तर दायी है।
देश डूब जाएगा, डूबने दो।
टी. आर. पी. बनाते रहियो।
अपनी अपनी समालियो,
भाड में जाए देश।