ईश्वर द्वारा जीवात्माओं को सुधार के अवसर देने की कोई सीमा नहीं

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मनमोहन कुमार आर्य

हमारा स्वभाव ऐसा है कि जो लोग हमसे जुड़े हैं वह सभी हमारे अनुकूल हों और हमारी अपेक्षाओं को पूरा करें। यदि कोई हमारे अनुकूल नहीं होता व अपेक्षायें पूरी नहीं करता तो प्रायः हम उससे दूरी बना लेते हैं। ऐसे ही कारणों से पति व पत्नी के संबंध तक टूट जाते हैं व मित्र आपस में मित्र नहीं रहते। ईश्वर की बात करें तो ईश्वर सर्वव्यापक और सर्वान्तर्यामी चेतन सत्ता है। जीवात्मायें एकदेशी, अल्पज्ञ, ससीम, सूक्ष्म एवं एक बिन्दू के समान व उससे भी कहीं सूक्ष्म चेतन सत्तायें हैं जिसका आकार व प्रकार इतना सूक्ष्म है कि उन्हें आंखों से देखा नहीं जा सकता। ईश्वर अनादि, अजन्मा व नित्य है और इसी प्रकार सभी जीवात्मायें भी हैं। जीवात्माओं को सुख प्रदान करने के लिए ही ईश्वर ने अपने नित्य ज्ञान, सर्वज्ञता व सर्वशक्तिमत्ता से इस ब्रह्माण्ड को बनाया है। ईश्वर ने यह ब्रह्माण्ड और इसके नियम ऐसे बनायें हैं कि इससे अच्छा ब्रह्माण्ड और नियम बन ही नहीं सकते थे। कर्मानुसार जीवों की भी अनेकानेक श्रेणियां होती है। कुछ के कर्मों का पूर्व का लेखा बहुत अच्छा होता है तो कुछ का मध्यम वा सामान्य और कुछ व अधिकों का बुरा भी। इन सब जीवों को ईश्वर उनके कर्मानुसार सुख व दुःख का विधान करता है। हमारे ऋषि मुनियों ने अपनी पवित्र सूक्ष्म बुद्धि से जाना कि मनुष्य के यदि शुभ व अशुभ कर्म बराबर हों तो उसे अगला जन्म मनुष्य योनि में मिला करता है। यदि अशुभ व पाप अधिक हों व पुण्य कम, तो मनुष्येतर पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि की योनियां मिलती हैं जहां उन अशुभ कर्मों का फल भोग कर शुभ व अशुभ कर्मों का खाता बराबर व समान होने पर पुनः मनुष्य जीवन मिलता है। जीवात्माओं को दण्ड का विधान अर्थात् कर्मानुसार सुख-दुःख का भोग मनुष्य को शुभ कर्मों को करके उन्नति करने के उद्देश्य से ईश्वर ने किया है। कई लोगों को कर्मानुसार व परिस्थितियोंवश अच्छा परिवेश व वातावरण मिलता है तो वह वेद विहित ईश्वरेच्छा के अनुसार अच्छे कर्म कर उन्नति को प्राप्त होते हैं। जो पुरुषार्थ न कर विद्या प्राप्ति में शिथिलता करते हैं और वेद निषिद्ध कर्मों को करके द्रव्य, धन, ऐश्वर्य आदि को प्राप्त कर सुख भोगते हैं, वह कर्म फल बन्धन में फंसते हैं जिसे उन्हें शेष जीवन और मृत्यु के बाद के जन्मों में ईश्वर की व्यवस्था के अनुसार भोगना पड़ता है।

 

ईश्वर एक सच्चे न्यायाधीश के समान है। वह अकारण किसी को सजा व कष्ट देना नहीं चाहता परन्तु वह अपने विधि विधान को भी नहीं छोड़ सकता। यदि किसी जीवात्मा वा मनुष्य ने अच्छा कर्म किया है तो उसे उसके अच्छे कर्म के बदले में सुख की प्राप्ति होगी। यदि वह निष्काम भाव से कर्म करता है तो वह कर्म उसके पुण्य कर्मों में संग्रहीत होकर मोक्ष की प्राप्ति में सहायक हो सकते हंै। अतः ज्ञानी मनुष्य को पूर्ण विद्या से युक्त होकर निष्काम कर्मों अर्थात् दूसरों की सेवा व परोपकार आदि के अधिक से अधिक कार्य करने चाहिये। इसके लिए वेदों व वैदिक साहित्य का अध्ययन कर वेद विहित कर्मों का आचरण करने के साथ श्री राम, श्री कृष्ण, आचार्य चाणक्य और महर्षि दयानन्द जी आदि महापुरुषों के जीवन चरित्र का भी अध्ययन कर जिज्ञासु मनुष्य अपना कर्तव्य निर्धारित कर सकते हैं। जो ऐसा करते हैं वह मोक्ष की ओर अग्रसर होते हैं और जो अच्छे शुभ सकाम करते हैं वह जीवन उन्नति करते हुए सुख भोगने के साथ मृत्यु के बाद भी मनुष्य जन्म पाते हैं। इसके विपरीत अविद्यायुक्त जीवन व्यतीत करने व अशुभ कर्म करने वालों की उन्नति न होकर अवनति व पतन ही होता है जिसका परिणाम जन्म-जन्मान्तरों में दुःख का मिलना ही होता है। अतः मनुष्य को विद्या प्राप्ति में सजग रहकर शुभ कर्मों का ही आश्रय लेना चाहिये।

 

ईश्वर का यह स्वभाव है कि वह न्यायाधीश के समान किसी जीवात्मा के अच्छे कर्मों के लिए पारितोषिक देने व बुरे कर्म करने वालों को दण्ड देने में किंचित भी रियायत नहीं करता। यदि वह किसी के कर्मों को क्षमा करेगा तो उसकी न्याय व्यवस्था समाप्त हो जायेगी और फिर विश्व में सर्वत्र अव्यवस्था ही रहेगी। ईश्वर शुभ कर्म करने वालों की उन्नति करता है। वह ईश्वरोपासना, यज्ञों का अनुष्ठान, माता-पिता-आचार्यों-अतिथियों की सेवा सहित सभी पशुओं व इतर योनियों के प्राणियों को मित्र के समान देखने वालों व वेदों के स्वाध्याय, सदाचरण व योगाभ्यास में निरत रहने वालों को मोक्ष प्राप्त कराकर जन्म व मरण के बन्धन से मुक्त कर सुदीर्घकाल तक उन्हें सुख व आनन्द का लाभ करता है। जो लोग अविद्या आदि के कारण आत्म हनन करते हैं वह अवनति को प्राप्त होकर दुःख ही भोगते हैं। ऐसे लोगों व जीवात्माओं के प्रति ईश्वर की सहानुभूति होती है। वह उन्हें शुभ कर्मों में प्रवृत्त होने की प्रेरणा करता है। ईश्वर की कृपा दृष्टि उन पर कभी बन्द नहीं होती। ऐसे मनुष्यों के जो अच्छे कार्य होते हैं उनसे उन्हें सुख मिलता है ओर जो अच्छे कार्य न होकर अशुभ कर्म होते हैं उनका दण्ड उसे जन्म जन्मान्तर में मिलता है। कई लोग बुरे काम करते हैं और पकड़े नहीं जाते तो वह समझते हैं कि वह ईश्वर के दण्ड से बच जायेंगे। ऐसे लोग भारी अविद्या से ग्रस्त होते हैं। उनका सेाचना व विचार उचित नहीं है। उन्हें समाज में उन लोगों को देखना चाहिये जो अनेकानेक दुःखों से ग्रस्त हैं जिनका कारण उन दुःखी लोगों को ज्ञात नहीं होता। इसका कारण उनके पूर्व जन्म के कर्म ही प्रायः हुआ करते हैं। अतः ऐसे लोगों को देख कर शिक्षा लेनी चाहिये और किसी अशुभ कर्म को करने का विचार भी नहीं करना चाहिये भले ही उसकी कितनी भी क्षति होती हो। इसका कारण यह है कि उसे अपने उस किये जाने वाले कर्म का फल भविष्य में अवश्य ही भोगना होगा, वह उससे बच नहीं सकता।

 

सृष्टि में अनन्त संख्या में जीवात्मायें हैं। ईश्वर उन सभी को उनके पूर्व जन्मों के कर्मों के आधार पर जाति, आयु और भोग देता है। जाति का अभिप्राय मनुष्य, पशु, पक्षी आदि जातियों से हैं। जीवात्मा जिस भी योनि में जन्म ले, उस योनि के अनुसार कुछ काल बाद उसकी मृत्यु होती है। अशुभ कर्म भोग लेने पर फिर मनुष्य योनि में आकर उन्नति करने का अवसर मिलता है। मनुष्य को इस अवसर को गंवाना नहीं चाहिये। संसार में देखने में आ रहा है कि परमात्मा ने सब जीवों को अनेकानेक योनियों में जन्म दिया हुआ है और वहां उनका भलीभांति पालन हो रहा है। यह क्रम ऐसे ही चलता रहेगा। इसका आदि नहीं है और न ही अन्त। हां, बीच में रात्रि रूप में प्रलय अवश्य आती है। प्रलय के बाद ईश्वर पुनः सृष्टि करता है जिसके बाद जीवात्माओं को कर्मानुसार जन्म मिलना आरम्भ हो जाता है। इस लेख में की गई चर्चा से यह सिद्ध होता है कि ईश्वर सभी जीवों को सुधार के बार-बार अवसर देता रहता है और जो जीवात्मायें अपना सुधार कर व विद्यावान होकर पुरुषार्थ और वेदविहित शुभ कर्मों को करती हैं उनकी उन्नति होकर उन्हें मोक्ष अवश्य प्राप्त होता है। मोक्ष प्राप्ति विषयक तर्क व युक्तियों को अधिक विस्तार से जानने के लिए जिज्ञासु बन्धुओं को सांख्य दर्शन का अध्ययन करना चाहिये। अन्य दर्शनों का भी अध्ययन करने पर उन्हें वेदों का अभिप्राय तर्क व युक्तियों के आधार पर ज्ञान हो सकेगा जैसा कि विज्ञान में विषयों का निरुपण होता है।

 

हम सबकों ईश्वर व उसकी व्यवस्था में दृण विश्वास रखना चाहिये। हमारा यह जीवन ईश्वर ने हमें दिया है। हमें प्रयास करना चाहिये कि हम वेदोक्त ईश्वरोपासना, यज्ञ आदि शुभ कर्मों को करके अपनी आत्मा की उन्नति करें जिससे परजन्म में भी उन्नति होकर सुख प्राप्त होने के साथ हम मोक्ष मार्ग पर अग्रसर रहें वा उसे प्राप्त कर लें। जब तक हमारा मोक्ष नहीं होगा, ईश्वर हमारा साथ नहीं छोड़ेगा और मोक्ष व उसके बाद भी वह सदा हमारे साथ रहेगा। वह एक सच्चे मित्र, माता-पिता-आचार्य-बन्धु के समान हमारे साथ रहेगा और हमें सदकर्मों को करने की प्रेरणा देता रहेगा। ऐसे अपने परम हितैषी ईश्वर को हम नमन करते हैं। ओ३म् शम्।

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