मर्दों को तनख्वाह देकर बतौर शौहर रख रही हैं अरब की महिलाएं

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-फ़िरदौस ख़ान

यह बात सुनने में ज़रूर अजीब लगे, मगर है सोलह आने सच. हालांकि सऊदी अरब इस्लाम, तेल के कुंओं, अय्याश शेखों और जंगली क़ानून के लिए जाना जाता है, लेकिन पिछले कुछ बरसों में यहां की जीवन शैली में ख़ासा बदलाव आया है. यहां की महिलाएं भी अब इंसान होने का हक़ मांगने लगी हैं. वे ऐसी ज़िन्दगी की अभिलाषा करने लगी हैं, जिसमें उनके साथ ग़ुलामों जैसा बर्ताव न किया जाए. शायद इसलिए ही वे तनख्वाह पर शौहर रखने लगी हैं.

मैमूना का कहना कि यहां की महिलाएं बंदिशों के बीच ज़िन्दगी गुज़ारती हैं. उन्हें हर बात के लिए अपने पिता, भाई, शौहर या बेटे पर निर्भर रहना पड़ता है, लेकिन अब बदलाव की हवा चलने लगी है. जो लड़कियां यूरोपीय देशों में पढ़कर आती हैं, वे इस माहौल में नहीं रह पातीं. उनकी देखा-देखा देखी यहां की लड़कियों में भी बदलाव आया है. यहां की महिलाएं विदेशी लड़कों को पसंद करने लगी हैं, क्योंकि वो उन पर ज़ुल्म नहीं करते. उनके जज़्बात को समझते हैं. उनके साथ जंगलियों जैसा बर्ताव नहीं करते. वे हिन्दुस्तान और पाकिस्तान से रोज़गार के लिए आने वाले बेरोज़गार लड़कों को एक समझौते के तहत अपना शौहर बनाती हैं और इसके लिए बाक़ायदा उन्हें तनख्वाह देती हैं. उनका मानना है कि ऐसे रिश्तों में महिलाएं अपनी बात रख सकती हैं और उनकी ज़िन्दगी ग़ुलामों जैसी नहीं होती.

अरब न्यूज़ के मुताबिक़ कुछ अरसे पहले ही ऐसी शादी करने वाली रिग़दा का कहना है कि इस विवाह से उसकी कई परेशानियां दूर हो गई हैं. उसने बताया कि अपनी पहली नाकाम और तल्ख़ अनुभव वाली शादी के बाद उसने तय कर लिया था कि अब वह कभी शादी नहीं करेगी, लेकिन एक दिन उसकी एक सहेली ने उसे सलाह दी कि वह किसी बेरोज़गार लड़के से शादी कर ले. उसने बताया कि पहले तो उसे यह बात मज़ाक सी लगी, लेकिन जब मिसालें सामने आईं तो ऐसा लगा जैसे यह ‘सौदा’ दोहरे फ़ायदे का है यानी एक तो क़ानूनी सरपरस्त (संरक्षक) मिल जाएगा और वह हुक्म देने वाले के बजाय हुक्म मानने वाला होगा. उसने बताया कि वह जब भी किसी बात की इजाज़त मांगती थी तो उसका शौहर उसे बहुत प्रताड़ित और परेशान किया करता था और इस तरह उसके हर काम में महीनों की देर हो जाती थी, लेकिन अब हालत यह है कि उसका तनख्वाह वाला शौहर उसे हर काम की फ़ौरन इजाज़त दे देता है.

इसी तरह का विवाह करने वाले माजिद ने बताया कि शादी से पहले वो टैक्सी ड्राइवर था. एक दिन उसे वह सवारी मिल गई, जो अब उसकी बीवी है. उसने बताया कि बतौर ड्राइवर जहां वह बड़ी मुश्किल से दो हज़ार रियाल (अरब की मुद्रा) कमा पाता था, वहीं अब उसे बीवी से छह हज़ार रियाल मिल जाते हैं. माजिद ने बताया कि उसकी बीवी ने तो यहां तक कह दिया है कि अगर वो उच्च शिक्षा हासिल करना चाहता है तो उसका ख़र्च भी वह उठाने के लिए तैयार है. उसकी बीवी उम्र में उससे 14 साल बड़ी है. माजिद ने कहा कि उसकी बीवी ने उससे यह भी वादा किया है कि कुछ साल बाद वो किसी जवान लड़की से उसकी शादी करा देगी.

रीम नाम की एक महिला ने बताया कि उसने भी एक बेरोज़गार लड़के से शादी की थी. इसके लिए बाक़ायदा वो अपने शौहर को तनख्वाह देती है, लेकिन उसने यह काम अपने घर वालों से छुपकर किया. जब लड़के को इस बात का पता चला तो वो उससे ज़्यादा पैसों की मांग करने लगा. इसके बावजूद यह रिश्ता फ़ायदे का ही रहा.

हाल ही में सऊदी अरब से हिन्दुस्तान आए मुबीन (हंसते हुए) कहते हैं कि मैं भी सोच रहा हूं कि क्यों न एक निकाह वहां भी कर लूं. आख़िर चार निकाह का ‘विशेषाधिकार’ जो मिला हुआ है. वे बताते हैं कि उनके शादीशुदा पाकिस्तानी दोस्त अबरार ने वहां की महिला से शादी कर ली. उसे अपनी बीवी से हर माह सात हज़ार रियाल मिल जाते हैं. इसके अलावा उसे रहने को अच्छा मकान भी मिल गया है. कपड़े और खाने का ख़र्च तो उसकी बीवी ही उठाती है. वे यह भी बताते हैं कि शादी का यह सौदा दोनों के लिए फ़ायदेमंद साबित हो रहा है. जहां बेरोज़गार लड़कों को शादी रूपी नौकरी से अच्छी तनख्वाह मिल जाती है, वहीं महिलाओं को भी उनकी पसंद के कम उम्र के लड़के मिल जाते हैं.

जयपुर की शायदा इस मुद्दे पर हैरानी जताते हुए कहती हैं कि क्या सचमुच सऊदी अरब में ऐसा हो रहा है. शायदा के शौहर परवेज़ को अरब गए पांच साल हो गए. उनके तीन बच्चे भी हैं. मगर पलभर ही वे उदास होते हुए कहती हैं कि कहीं उनके शौहर ने भी तो वहां नया घर नहीं बसा लिया. अगर ऐसा हुआ तो उसका क्या होगा? यह सब कहते हुए उसकी आंखें भीग जाती हैं और गला रुंध जाता है. शायदा का सवाल उन औरतों के दर्द को बयां करता है, जिनके शौहर रोज़ी-रोटी के लिए परदेस गए हैं और लालच या मजबूरी में वहां अपने घर बसाए बैठे हैं.

क़ाबिले-गौर है कि सऊदी अरब में शरिया (इस्लामी क़ानून) लागू है. यहां की महिलाओं पर तरह-तरह की बंदिशें हैं. शायद इसलिए अमीर औरतें शादी का ‘सौदा’ कर रही हैं. इनमें ज़्यादातर वे अमीर महिलाएं शामिल हैं, जिनकी शादीशुदा ज़िन्दगी अच्छी नहीं है और वो बेहतर ज़िन्दगी जीने की हिम्मत रखती हैं. वरना यहां ऐसी औरतों की कमी नहीं है, जिनका अपना कोई वजूद नहीं है. बस वह एक मशीनी ज़िन्दगी गुज़ार रही हैं, जिसमें उनकी ख़ुशी या गम कोई मायने नहीं रखता. वैसे ऐसी औरतें हर जगह पाई जाती हैं, जो सारी उम्र सिर्फ़ औरत होने की सज़ा झेलती हैं.

सऊदी अरब के न्याय मंत्रालय की 2007 की वार्षिक रिपोर्ट के मुताबिक़ सऊदी अरब में हर रोज़ क़रीब 357 निकाह होते हैं, लेकिन 78 जोड़े रोज़ तलाक़ भी ले लेते हैं. तलाक़ के कुल 28 हज़ार 561 मामलों में से 25 हज़ार 697 में तो पति और पत्नी दोनों ही सऊदी अरब के थे, जबकि अन्य मामलों में दंपति में सिर्फ़ एक ही इस देश का था. रिपोर्ट में बताया गया है कि इस दौरान मुल्क में एक लाख 30 हज़ार 451 निकाह हुए. मक्का में सबसे ज़्यादा 34 हज़ार 702 निकाह हुए और 8318 तलाक़ हुए, जबकि 28 हज़ार 269 शादियों और 9293 तलाक़ के मामलों के साथ रियाद दूसरे स्थान पर था. एक हज़ार 892 दंपत्तियों ने अदालत में तलाक़ की अर्जी दाख़िल करने के बावजूद समझौता कर लिया और उनकी शादी बच गई.

क़ाबिले-गौर यह भी है कि सऊदी अरब में विवाह के लिए लड़कियों की न्यूनतम उम्र भी निर्धारित नहीं है. इसका फ़ायदा उठाते हुए बूढ़े शेख़ गरीब घरों की कम उम्र की बच्चियों से शादी कर लेते हैं. कुछ साल बाद समझदार होने पर ये अमीर हुई लड़कियां अपने लिए शौहर खरीद लेती हैं. तब तक कुछ विधवा हो चुकी होती हैं और कुछ तलाक़ ले लेती हैं.

इसी साल अप्रैल में रियाद के बुराइधा क़स्बे की एक अदालत ने 12 साल की एक लड़की को उसके 80 साल के शौहर से तलाक़ दिलाया था. पिछले इस लड़की की मर्ज़ी के खिलाफ़ उसके परिवार वालों ने उसकी शादी उसके पिता के 80 वर्षीय चचेरे भाई से कर दी गई थी. बदले में उसके परिवारवालों को क़रीब साढ़े 14 हज़ार डॉलर मिले थे. इस ज़ुल्म के खिलाफ़ लड़की ने आवाज़ उठाई और रियाद के बुराइधा क़स्बे की एक अदालत में तलाक़ के लिए अर्ज़ी दाख़िल कर दी. लड़की की क़िस्मत अच्छी थी उसे तलाक़ मिल गया. राहत की बात यह भी है कि अब वहां की सरकार इस मसले पर पहली बार लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र तय करने पर गौर कर रही है. मानवाधिकारों संगठनों ने भी लड़कियों की शादी की न्यूनतम उम्र 16 साल निश्चित करने की सिफ़ारिश की है. अब सरकार ने इस बारे में फ़ैसला लेने के लिए तीन समितियों का गठन किया है.

यह खुशनुमा अहसास है कि सऊदी अरब में भी बदलाव की बयार बहने लगी है. कभी न कभी वहां की महिलाओं को वे सभी अधिकार मिल सकेंगे, जो सिर्फ़ मर्दों को ही हासिल हुए हैं. बहरहाल एक नई सुबह की उम्मीद तो की ही जा सकती है.

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फ़िरदौस ख़ान
फ़िरदौस ख़ान युवा पत्रकार, शायरा और कहानीकार हैं. आपने दूरदर्शन केन्द्र और देश के प्रतिष्ठित समाचार-पत्रों दैनिक भास्कर, अमर उजाला और हरिभूमि में कई वर्षों तक सेवाएं दीं हैं. अनेक साप्ताहिक समाचार-पत्रों का सम्पादन भी किया है. ऑल इंडिया रेडियो, दूरदर्शन केन्द्र से समय-समय पर कार्यक्रमों का प्रसारण होता रहता है. आपने ऑल इंडिया रेडियो और न्यूज़ चैनल के लिए एंकरिंग भी की है. देश-विदेश के विभिन्न समाचार-पत्रों, पत्रिकाओं के लिए लेखन भी जारी है. आपकी 'गंगा-जमुनी संस्कृति के अग्रदूत' नामक एक किताब प्रकाशित हो चुकी है, जिसे काफ़ी सराहा गया है. इसके अलावा डिस्कवरी चैनल सहित अन्य टेलीविज़न चैनलों के लिए स्क्रिप्ट लेखन भी कर रही हैं. उत्कृष्ट पत्रकारिता, कुशल संपादन और लेखन के लिए आपको कई पुरस्कारों ने नवाज़ा जा चुका है. इसके अलावा कवि सम्मेलनों और मुशायरों में भी शिरकत करती रही हैं. कई बरसों तक हिन्दुस्तानी शास्त्रीय संगीत की तालीम भी ली है. आप कई भाषों में लिखती हैं. उर्दू, पंजाबी, अंग्रेज़ी और रशियन अदब (साहित्य) में ख़ास दिलचस्पी रखती हैं. फ़िलहाल एक न्यूज़ और फ़ीचर्स एजेंसी में महत्वपूर्ण पद पर कार्यरत हैं.

3 COMMENTS

  1. sachmuch firdaus alekh dar alekh aapke lekhon me nikhar hota chala ja raha hai. main to stabdh hoon aisi jaankariyan lekhika nirdosh bhav se, mehnat se juta rahi hain.
    saudi me badlav ki bayar jaan kar achchha laga. saudi sarkar samay rahte yadi nahi cheta to wahan sabhi mard kunware hi mar jayenge. majhabi kattar logon se kaun shaadi karna chahega? jo roj biwi ko tang karta ho.
    mujhe in saudi mahilaon par naz hai. sharia se ladne ka ye bahut achchha rasta hai.

  2. hi firdost
    aapne saudi arab me mahilaon takhaba par rakh rahi he pati ko ingit kiya he. aur yese ko chun rhi he jo unki bhavna ko samjh sake. sirf mamala itana nhi he is jara se ye vaha ki mahilaon ki sistiti ki tasveer kya hogi sochne par vivas karti he. firost desh duniya me pitrasatta har jagah he. aur yeh satta samta me nhi badlegi tab tak mahilaye sosit hongi. par ab ve khud isse nijat pane ke upaye dund rhi he.

  3. bahot achchha aalekh likhane par badhai . dunia me ho rahe parivartano avam vikas ko dhyan se dekhane ki jarurat hai.
    P.C. RATH

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