देश में अब तक हुए घोटाले में सबसे बड़े कोयला घोटाले को लेकर कांग्रेस और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार कठघरे में हैं वहीं प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह की इस काली करतूत पर परदा डालने का काम किया जा रहा है। आश्चर्य की बात तो यह है कि 1.83 लाख करोड़ के इस महाघोटाले को लेकर केन्द्र सरकार दोहरा मापदंड अपना रही है। ऐसा इस कारण से क्यों कि पूर्व में केन्द्रीय मंत्री ए. राजा, कनिमोझी, सुरेश कलमाड़ी और अशोक चव्हाण जैसे नेताओं को सीएजी की रिपोर्ट के बाद घोटाला उजागर होने पर इसी सरकार ने जेल भेजा और मामले कायम किए। अब जब उसी सीएजी ने कोयला खदानों के आवंटन पर अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया है तब देश के सर्वोच्च लोकसेवक (प्रधानमंत्री) पर कार्रवाई से क्यों बचा जा रहा है? स्पष्ट है चूंकि इसमें प्रधानमंत्री लपेटे में हैं अत: सरकार और कांग्रेस अपनी किरकिरी होने से बचने के लिए कोयला आवंटन मामले में दोहरा मापदंड अपना रही है।
कोयला ब्लॉक आवंटन और कोयला उत्पादन वृद्धि पर भारत में नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (कैग) ने 17 अगस्त 2012 को अपनी रिपोर्ट संसद में पेश की। हालांकि इस रिपोर्ट के प्रस्तुत होने से पहले ही मीडिया के माध्यम से यह आरोप लगना शुरु हो गए थे कि कोयला खदानों के आवंटन मेंं तमाम अनियमितताएं हुई हैं और इसमें एक बड़ा घोटाला हुआ है। इन आरोपों को सरकार यह कहकर खारिज करती रही कि जो आरोप लगाए जा रहे हैं वह गलत हैं तथा सीएजी की रिपोर्ट प्रस्तुत होने से पहले ऐसी बयानबजी गलत है। चूंकि आरोप लगाने वालों के पास कोई तथ्य नहीं थे इस कारण वह बैकफुट पर थे। लेकिन 17 अगस्त 20012 को सीएजी की रिपोर्ट संसद में प्रस्तुत किए जाने के बाद वह आरोप सच साबित हुए और देश के सामने अब तक का सबसे बड़ा महाघोटाला सामने आया।
चूंकि जिस समय यह घोटाला हुआ उस दौरान कोयला मंत्री की कमान भी प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहनसिंह के पास थी अत: सीधे-सीधे वह विपक्ष के निशाने पर आ गए। उसी दिन से विपक्ष उनके इस्तीफे की मांग कर रहा है और संसद ठप पड़ी है। दूसरी ओर संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन सरकार के मुख्य घटक दल कांग्रेस बड़ी बेशर्मी के साथ प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह को पाक साफ बताने में लगे हैं, इतना ही नहीं कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी ने तो अपने नेताओं को यहां तक निर्देश दे डाले कि एनडीए खासकर भाजपा के आरोपों का जवाब आक्रामक शैली में दिया जाए।
दूसरी ओर प्रधानमंत्री मनमंोहनसिंह ने अपनी चुप्पी तोड़ते हुए यह तो कहा कि वह इस गलती के लिए जिम्मेदार हैं परन्तु यह भी कह दिया कि कैग की रिपोर्ट में जो तथ्य दिए हैं वह सही नहीं हैं। कैसी विडंबना है देश के सर्वोच्च संवैधानिक पद पर बैठा कोई व्यक्ति एक अन्य संवैधानिक निकाय की रिपोर्ट को गलत ठहरा रहा है और कांग्रेस उसके हां में हां मिलाए जा रहीहै। सवाल यह उठता है कि प्रधानमंत्री के इस आरोप का यदि सीएजी द्वारा उसी लहजे में उत्तर दे दिया जाए तो देश के सामने क्या स्थिति बनेगी? कुछ समय पूर्व पूरी दुनिया ने इसी तरह का तमाशा उस वक्त देखा था जब सेना के सर्वोच्च पद पर आसीन जनरल वी.के. सिंह और सरकार के बीच टकराव हुआ था। इस बात की समझदारी के लिए सीएजी को धन्यवाद दिया जाना चाहिए कि स्वयं पर इतना बड़ा आरोप लगने के बाद उन्होंने संवैधानिक मर्यादा को बनाए रखा है और अभी तक एक शब्द नहीं बोला है। मीडिया के अत्याधिक दबाव के बावजूद उन्होंने इतना भर कहा है कि वह अपनी प्रतिक्रिया जरूरत पडऩे पर उचित समय पर देंगे।
यदि इस परिपेक्ष्य में सरकार की बात की जाए तो एक नहीं अनेक बार उसके क्रियाकलापों पर संवैधानिक और न्यायिक संस्थाओं ने टिप्पणियां की हैं। कौन भूल सकता है टूजी घोटाले मामले में जब देश के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा सरकार में कई बार फटकार लगाई गई इतना ही नहीं एक अन्य संवैधानिक निकाय चुनाव आयोग ने मुस्लिम आरक्षण के मामले पर दिए बयान को लेकर केन्द्रीय मंत्री सलमान खुर्शीद को नोटिस दिया। अत: कोयला आवंटन खदानों पर सीएजी की रिपोर्ट पर सवाल खड़े करना वह भी प्रधानमंत्री द्वारा समझ से परे नजर आता है।
वैसे भी देखा जाए तो यह सरकार सीएजी की रिपोर्ट पर अब सवाल खड़े कर रही है क्योंकि प्रधानमंत्री कठघरे में हैं। परन्तु सीएजी ने इसी तरह के प्रतिवेदन टू जी स्पेक्ट्र्म राष्ट्रमंडल खेल और आदर्श सोसायटी मकान आवंटन के मामलों में भी प्रस्तुत किए थे। नियमानुसार यह प्रतिवेदन भी स्वाभाविक प्रक्रिया के तहत लोक लेखा समिति (पीएसी) को छानबीन के लिए भेजे जाने थे परन्तु शासन ने पीएसी की रिपोर्ट की प्रतिक्षा न करते हुए सीबीआई को उचित कार्रवाई के आदेश दिए थे, फलस्वरुप तत्कालीन संचार मंत्री ए राजा के साथ उनकी सहयोगी कनिमोझी को जेल जाना पड़ा था। राष्ट्र्मंडल खेल की रपट पर भी यही प्रक्रिया अपनाई गई और सीबीआई ने सुरेश कलमाड़ी के विरुद्ध भी एफआईआर दर्ज कराई। कलमाड़ी भी जेल गए और जमानत पर रिहा हैं। आदर्श सोसायटी मामले में भी महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण पर प्रकरण दर्ज किया गया है। अब विडंबना देखिए जब उसी सीएजी ने कोयला खदानों के आवंटन पर अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत किया है तब जिम्मेदार लोकसेवक (प्रधानमंत्री) पर कार्रवाई कौन करेगा? यदि इस प्रकरण में अलग तरह का दृष्टिकोण अपनाया जाता है तब क्या इसे दोहरा मापदंड नहीं कहा जाएगा। राजा और कलमाड़ी को जेल और डॉ. मनमोहन सिंह को बेल यह कहां का न्याय है? स्पष्ट है यह सम्पूर्ण घटनाक्रम यूपीए सरकार और उसके मुख्य घटक दल कांग्रेस क्रियाकलाप और ईमानदारी पर सबसे बड़ा प्रश्नचिन्ह हैं और इस पर सोनिया गांधी अपने नेताओं को आक्रामक होने के निर्देश दे रही है उनकी भलाई तो इसी में है कि चुपचाप गलती स्वीकार करें, प्रधानमंत्री का इस्तीफा लें और नया जनादेश प्राप्त करने जनता के दरबार में जाएं फिर संसद चलने की बात कहें।
कांग्रेस खुद ऐसे दोहरे माप दंड अपना सकती है,पर दूसरी पार्टियों द्वारा ऐसा करने पर हंगामा और शोर करती है.अब तो दिग्गी ने केग पर यह आरोप भी लगा दिया है कि यह सब राजनितिक उदेश्य से किया गया है.यह दल खुद को अनुशाषित दल मानता है,साडी देश भक्ति इसी के नेताओं में कूट कूट कर भरी है,दुसरे सब चोर है.यह बहुत बड़ी विडंबना है,पर इस देश का अब भगवान् ही मालिक है.कोई इमानदार सैनिक शासक ही शायद बचा पाए, जो कि मिलना असंभव ही है.