ये कैसी अजनबी आहट है ..
कौन है यहाँ , किसकी आहट है ये …
जो मन में नए भाव जगा रही है .
ये तो तुम हो मेरे प्रभु….
हे मेरे मनमंदिर के देवता
कबसे तुझसे मिलने की प्यास थी मन में .
आज एक पहचानी सी आहट आई
तो देखा की तुम थे मेरे मन मंदिर के द्वार पर .
अहा …कितना तृप्त हूँ मैं आज तुम्हे देखकर .
बरसो से मैंने तुम्हे जानना चाहा ,
पर जान न पाया
बरसो से मैंने तुम्हे देखना चाहा
पर देख न पाया
तुम्हे देखने और जानने के लिए
मैंने इस धरती को पूरा ढूंढ डाला .
पर तुम कहीं न मिले ..
और देखो तो आज तुम हो
यहाँ मेरे मन मंदिर के द्वार पर ..
और तुम्हे यहाँ आने के लिए कोई भी न रोक पाया .
न तुम्हारे बनाये हुए सूरज और चन्द्रमा
और न ही मेरे बनाये हुए झूठे संसार की बस्ती.
अचानक ही पहले प्रेम की और फिर मृत्यु की आहट हुई ,
मैं नादान ये जान नहीं पाया की वो दोनों तुम्हारे ही भेजे हुए दूत थे
जो की मुझसे कहने आये थे ,
कि अब तुम आ रहे हो ..आने वाले हो …
आओ प्रभु ,
तुम्हारा स्वागत है ..
जीवन के इस अंतिम क्षण में तुम्हारे दर्शन हुए..
अहा , मैं धन्य हो गया .
तुम्हारे आने से मेरी वो सारी व्यथा दूर हो जायेंगी ,
जब तुम मुझे अपनी बाहों में समेटकर मुझे अपना लोंगे ..
और न जाने क्यों , अब मुझे कोई भय नहीं रहा ,
तुम्हे जो देख लिया है
तुम्हारी आहट ने
मेरे मन में एक नयी उर्जा को भर दिया है ;
कि
मैं फिर नया जन्म लूं
और तुम्हारे बताये हुए रास्तो पर चलूँ
मेरा प्रणाम स्वीकार करो प्रभु ….
अहा… इस आहट से मधुर और क्या होंगा …