विपक्षी दल की जगह नहीं ले सकता मीडिया

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बीपी गौतम

modi1-300x182केंद्र शासित राज्य और देश की राजधानी दिल्ली, देश की आर्थिक राजधानी मुंबई वाले राज्य महाराष्ट्र, आतंकवाद से जूझ रहे जम्मू कश्मीर के साथ बड़े राज्य उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश की तुलना में पिछले कुछ वर्षों से गुजरात और बिहार राष्ट्रीय मीडिया में छाये हुये हैं, इन दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों को अखबार के प्रथम पेज पर प्रधानमंत्री की तुलना में अधिक जगह मिलती रही है, इसके लिए नरेंद्र मोदी और नीतीश कुमार के विरोधी आरोप लगाते रहे हैं कि यह दोनों मुख्यमंत्री मीडिया मैनेज करते हैं, लेकिन यह आरोप एक हद से आगे सही नहीं कहा जा सकता। आज के दौर में प्रत्येक मीडिया हाउस को मैनेज कर पाना नामुमकिन है। असलियत में इन दोनों राज्यों में विपक्ष पूरी तरह निष्क्रिय रहा है, जिसका लाभ नरेंद्र मोदी उठा रहे हैं और अब तक नीतीश कुमार उठाते रहे हैं।

लोगों को यह समझना होगा कि मीडिया की एक सीमा है और उस सीमा से बाहर जाकर मीडिया काम नहीं कर सकता, साथ ही भारत जैसे लोकतन्त्र में सरकार चलाने के लिए सत्ता पक्ष की तुलना में विपक्ष की भूमिका बड़ी होती है और यह बात माननी ही पड़ेगी कि गुजरात में विपक्ष अपनी भूमिका नहीं निभा पा रहा है, अब तक गुजरात जैसा ही हाल बिहार का था, लेकिन भाजपा के अलग होते ही बिहार में विपक्ष पैदा हो गया और विपक्ष के पैदा होते ही नीतीश कुमार नायक की जगह फिफ्टी नायक और फिफ्टी खलनायक हो गये। सुशासन और विकास की खबरों की जगह उनके दावों की हवा निकालने वाली खबरें ले चुकी हैं। नीतीश कुमार के पक्ष में मीडिया मैनेज होता, तो आज नीतीश कुमार फिफ्टी खलनायक की भूमिका में नज़र नहीं आ रहे होते।

बिहार में हाल-फिलहाल हुई घटनाएँ राष्ट्रीय मीडिया में छाई हुई हैं, इसका कारण विपक्ष ही है, क्योंकि नीतीश कुमार द्वारा नवंबर, 2005 में राष्ट्रीय जनता दल से सत्ता छीनने के बाद विधानसभा में विपक्षी दल राष्ट्रीय जनता दल के मात्र 55 सदस्य बचे थे, जो मौन ही रहे, इसके बाद नीतीश कुमार नवंबर, 2010 में पुनः सत्ता में आये, तो राष्ट्रीय जनता दल के सदस्यों की संख्या घट कर मात्र 22 ही रह गई। विपक्ष न होने के कारण नीतीश कुमार सदन के अंदर और सदन के बाहर तानाशाह की भांति शासन किए जा रहे थे, लेकिन पिछले दिनों जब भाजपा से संबंध बिच्छेद हो गये, तो नीतीश कुमार की तानाशाह वाली अवस्था खत्म होना स्वाभाविक ही है। अब बिहार विधान सभा में भाजपा प्रमुख विपक्षी दल है, जिसके 91 सदस्य हैं, जो सदन के बाहर भी नीतीश कुमार के विरुद्ध आग उगल रहे हैं। भाजपा के स्थानीय नेताओं की व्यक्तिगत कुंठा भी है, जो समझौते के चलते लंबे समय से दबी हुई थी, इसलिए फिलहाल दोगुने जोश के साथ नीतीश कुमार पर सब हमलावर हैं। विपक्ष सशक्त होगा, तो सक्रिय होगा और सक्रिय होगा, तो मीडिया उसे जगह देगा। बिहार की स्थिति से सबक लेकर कांग्रेस गुजरात में अब भी विपक्ष को सक्रिय कर दे, तो नरेंद्र मोदी की मुश्किलें बढ़ सकती हैं, लेकिन ऐसा करने की जगह दिल्ली में बैठे कांग्रेस के बड़े नेता नरेंद्र मोदी से उलझते रहते हैं, जिससे नरेंद्र मोदी गुजरात को विकास माडल के रूप में प्रचारित करने में सफल हो जाते हैं, इससे उन्हें डबल लाभ होता है, खुद को विकास पुरुष वह खुद घोषित करा लेते हैं और हिन्दू नेता कांग्रेस घोषित कर देती है। गुजरात में विपक्ष की निष्क्रियता के चलते नरेंद्र मोदी आज प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं।

नरेंद्र मोदी राष्ट्रीय नेता अपने काम से कम कांग्रेस की गलत चाल से ज्यादा बने हैं। गुजरात कांग्रेस के नेताओं की भूमिका कांग्रेस के केंद्रीय नेताओं ने निभाई, साथ ही दंगों की जांच का केंद्र दिल्ली रही एवं गुजरात दंगा सुप्रीम कोर्ट के भी संज्ञान में है, जो दिल्ली में ही है, मतलब गुजरात स्तर के सभी मामले दिल्ली स्तर पर आ गए, तो नरेंद्र मोदी का स्तर स्वतः बढ़ गया। अगर, विपक्षी दल कांग्रेस ने नरेंद्र मोदी को गुजरात में ही घेरा होता, तो आज नरेंद्र मोदी देश के प्रभावशाली नेता न बने होते। गुजरात की स्थानीय समस्याओं को लेकर निरंतर आंदोलन वगैरह किए होते, तो नरेंद्र मोदी वहीं उलझ कर रह जाते और ऐसा हुआ होता, तो नरेंद्र मोदी दंगे में निभाई भूमिका को लेकर भी फंस जाते, पर ऐसा नहीं हुआ, साथ ही कांग्रेस के नेताओं की गलत चाल के चलते नरेंद्र मोदी का मनोबल लगातार बढ़ा, जिससे मोदी आज कांग्रेस के सब से बड़े प्रतिद्वंदी बन गए हैं। बिहार में भी कमोवेश यही हालात बन रहे थे, लेकिन भाजपा से संबंध बिच्छेद होने के बाद से स्थिति बदल गई है। निर्विवाद रूप से तानाशाह की भांति शासन किए जा रहे नीतीश कुमार के सामने अब शक्तिशाली विपक्ष है, जो बिहार से अधिक कुछ और सोचने ही नहीं देगा, साथ ही विकास पुरुष और सुशासन वाली छवि को भी तार-तार करने का प्रयास करेगा, जिससे नीतीश कुमार का राजनैतिक और सामाजिक तौर पर निश्चित ही नुकसान होगा, ऐसे में अब मीडिया मौन दिखाई दे, तो यह आरोप मानने योग्य होगा कि बिहार का मीडिया दबाव में है। कुल मिला कर मीडिया विपक्ष की भूमिका नहीं निभा सकता और अपनी विफलताओं को स्वीकारने की जगह राजनैतिक दलों को मीडिया पर आरोप लगाने से बचना चाहिए।

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  1. विपक्ष का काम सतारूढ़ दल की नीतियों व उसकी गलतियों पर होती है,जब कि मीडिया का काम दोनों पर निष्पक्ष निगाह रखना है.यह बात अलग है कि दोनों अपनी गलतियों,व असफलताओं का ठीकरा मीडिया के सर फोड़ देते हैं.विवादस्पद बयान दे कर खुद को फंसा व घिरा देख मीडिया को जिम्मेदार बता देते हैं.किसी भी बात को हवा दे कर फिर मीडिया के नाम कर देते हैं.मीडिया विपक्ष नहीं वह दोनों का उनकी गलतियों का पोस्ट मार्टम कर जनता के सामने रख देता है, जो प्रायः एक पक्ष के लिए तो कड़वा होता ही है.कुछ मीडिया हाउस व संवाददाता कभी कभी मैनेज हो जाते हैं,इसमें दो राय नहीं, पर हमेशा ऐसा नहीं होता.

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