राजधानी में कूड़ा या कूड़े में राजधानी

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अनिल अनूप

वह दिन दूर नहीं जब राजधानी को कूड़े की राजधानी कहा जाएगा। क्योंकि राजधानी में हर रोज उत्पन्न होने वाला कूड़ा यही कहानी बयाँ कर रहा है। 1485 वर्ग किलोमीटर में बसी देश की राजधानी की सूरत में कूड़ा बदनुमा दाग साबित हो रहा है। अगर यही स्थिति रही तो 2030 तक दिल्ली में जगह-जगह कूड़े के पहाड़ नजर आएँगे। ऐसी स्थिति अभी से बनने लगी है। आपको जानकर हैरानी होगी कि राजधानी की मौजूदा आबादी 187 लाख में प्रतिदिन 490 ग्राम कूड़ा प्रतिव्यक्ति उत्पन्न करता है। मौजूदा समय में राजधानी में 9400 टन प्रतिदिन कूड़ा उत्पन्न हो रहा है। वर्ष 2020 तक राजधानी की आबादी बढ़कर 223 लाख हो जाएगी और कूड़े का उत्सर्जन भी प्रतिदिन 560 ग्राम प्रति व्यक्ति हो जाएगा। ऐसा होने पर एक दिन में कूड़े का उत्सर्जन 12500 टन तक बढ़ जाएगा।

यही आलम रहा तो 2030 तक दिल्ली की आबादी बढ़कर 245 लाख हो जाएगी और प्रति व्यक्ति जनरेट होने वाला कूड़ा भी बढ़कर 690 ग्राम प्रतिदिन हो जाएगा। 2030 में कूड़े का कुल उत्सर्जन 17000 टन प्रतिदिन होगा। वह दिन दूर नहीं जब राजधानी में कूड़ा नहीं, बल्कि कूड़े में राजधानी होगी।
2020 के बाद कूड़ा निपटान बनेगी समस्या

सिविक एजेंसियों का रिकॉर्ड बताता है कि राजधानी में उत्पन्न होने वाले 9400 टन प्रतिदिन कूड़े में से महज 5500 टन कूड़े का ही निपटान हो पा रहा है। 3900 टन प्रतिदिन कूड़े के निपटान की अभी भी कोई व्यवस्था नहीं है। अगर यही हालात रहे तो वर्ष 2020 में नगर निगम लाख कोशिशों के बाद भी 7000 टन प्रतिदिन कूड़े का निपटान नहींं कर सकेगा। वर्ष 2030 में कूड़े के निपटान की समस्या और भी विकराल रूप धारण कर लेगी। वर्ष 2030 में कूड़ा राजधानी की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक बन जाएगा। 11500 टन प्रतिदिन उत्पन्न होने वाले कूड़े का निस्तारण नहीं हो पाएगा।
लैंडफिल कर चुकी है पहाड़ का रूप धारण

राजधानी से निकलने वाले कूड़े और खपाए जा रहे कूड़े में भी जमीन आसमान का फर्क है। इसी फर्क के बीच राजधानी के तीनों ओखला, बवाना और गाजीपुर लैंडफिल साइटों ने पहाड़ का रूप धारण कर लिया है। राजधानी की लैंडफिल साइटें अपनी क्षमता से ज्यादा कूड़ा ढो रही हैं। अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ओखला लैंडफिल साइट की ऊँचाई राजधानी की सबसे ऊँची इमारत के बराबर हो गई है। ओखला लैंडफिल साइट पर कूड़े के पहाड़ की ऊँचाई 160 फीट हो गई है।

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली में बढ़ते कूड़े और मुंबई में बाढ़ जैसे हालात को देखते हुए राज्य सरकारों को जमकर फटकार लगाई है. सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और मुंबई का जिक्र करते हुए कहा कि दिल्ली कूड़े के पहाड़ तले दबती जा रहा है और मुंबई पानी में डूब रही है, लेकिन यहां की सरकारें इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठा रही हैं. यहीं नहीं सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को 10 राज्यों सहित दो केंद्र शासित प्रदेशों पर भी जुर्माना लगाया है. इन पर जुर्माना इसलिए लगाया गया है क्योंकि इन्होंने कोर्ट में एफिडेविट देकर यह नहीं बताया कि कचरे के प्रबंधन के लिए क्या कदम उठाए हैं.

सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र और दिल्ली सरकार से इस बारे में रुख स्पष्ट करने को कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में कूड़े के पहाड़ों  को साफ करने की जिम्मेदारी किसकी है. उपराज्यपाल अनिल बैजल के प्रति जवाबदेह अधिकारियों की या मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के प्रति जवाबदेह अधिकारियों की? हम जानना चाहते हैं कि कूड़ा साफ करने के लिये जिम्मेदार कौन है, जो उपराज्यपाल के प्रति जवाबदेह हैं या जो मुख्यमंत्री के प्रति जवाबदेह हैं.’’ शीर्ष अदालत ने यह निर्देश ऐसे समय दिया जब कुछ दिन पहले उसने उपराज्यपाल और आम आदमी पार्टी सरकार के बीच सत्ता संघर्ष पर फैसला सुनाते हुये व्यवस्था दी थी कि उपराज्यपाल के पास फैसले करने की कोई स्वतंत्र शक्ति नहीं है और वह निर्वाचित सरकार की मदद एवं सलाह से काम करने के लिये बाध्य हैं.

न्यायमूर्ति एम बी लोकूर और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने कहा ‘‘अब, हमें फैसले का फायदा है. दिल्ली विशेषकर भलस्वा, ओखला और गाजीपुर में कूड़े के पहाड़ हैं. हम जानना चाहते हैं कि कूड़ा साफ करने के लिये जिम्मेदार कौन है, जो उपराज्यपाल के प्रति जवाबदेह हैं या जो मुख्यमंत्री के प्रति जवाबदेह हैं.’’ सुनवाई शुरू होने पर पीठ ने केन्द्र की ओर से पेश अतिरिक्त सालिसिटर जनरल पिंकी आनंद और दिल्ली सरकार के वकील से पूछा कि कूड़ा प्रबंधन किसके क्षेत्राधिकार में आता है.

दिल्ली हाई कोर्ट ने आप सरकार और नगर निगमों से सोमवार को पूछा कि अगर आप अपने स्कूलों से कचरा नहीं हटा सकते तो आप किस तरह की शिक्षा देंगे.

कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश न्यायमूर्ति गीता मित्तल ने कहा, ‘‘इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता कि कचरे को एकत्रित करने, उसे हटाने और उसका निस्तारण करने की जिम्मेदारी दिल्ली के नगर निगम की है जो एमसीडी अधिनियम के तहत कार्य करती है.’’ पीठ में न्यायमूर्ति सी हरि शंकर भी शामिल थे. पीठ ने नगर निगमों को डांट लगाते हुए कहा कि निराशाजनक रूप से वे अपने काम को करने में असमर्थ हैं.

देश की राजधानी दिल्ली में कूड़ा संकट को देखते हुए केंद्र सरकार ने एक बड़ी योजना को मंजूरी दी है. केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजधानी में गंभीर कूड़ा संकट को देखते हुए ठोस अपशिष्ट प्रबंधन में उल्लेखनीय सुधार लाने के लिए 300 करोड़ रुपये की योजना को मंजूरी दी है. नए आवास और शहरी कार्य राज्यमंत्री हरदीप सिंह पुरी ने शुक्रवार को यह जानकारी दी. उन्होंने कहा कि इस योजना के तहत उत्तरी, दक्षिणी और पूर्वी नगर निगमों को 100-100 करोड़ रुपये दिए जाएंगे, ताकि वे ठोस कचरे के संग्रह, परिवहन और भंडारण के लिए मशीनों की खरीद की जा सके.

यहां ‘पब्लिक अफेयर्स फोरम ऑफ इंडिया’ द्वारा आयोजित ‘पब्लिक अफेयर्स  इफेक्टिव एडवोकेसी एंड पब्लिक पॉलिसीज स्ट्रेटेजीज’ सम्मेलन को संबोधित करते हुए पुरी ने कहा, ‘सभी वाहनों और मशीनी उपकरणों की खरीद इस साल दिसंबर तक कर ली जाएगी.’

दिल्ली में कूड़े को लेकर बवाल मचा हुआ है. शुक्रवार को गाजीपुर लैंडफिल साइट का एक हिस्सा ढहने से दो लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद उपराज्यपाल अनिल बैजल ने नगर निगम के साथ बैठक करके आदेश दिया कि अब गाजीपुर में कोई कूड़ा नहीं डाला जाएगा. अस्थायी तौर पर बाहरी दिल्ली के मुंडका के रानीखेड़ा गांव की जमीन पर एक हफ्ते के लिए कूड़ा डालने का फैसला किया गया. लेकिन वहां के लोगों ने इसका जमकर विरोध किया और रविवार को वहां कूड़ा डालने आए ट्रक की हवा निकाल दी. सोमवार को भी रानीखेड़ा और उसके आसपास की कॉलोनी के लोग प्रस्तावित कूड़ा डालने की जगह पर जमे रहे. रानीखेड़ा गांव के पदम सिंह ने कहा, ‘ये सिर्फ कहने की बात है कि कूड़ा केवल एक हफ्ते के लिए डालने दिया जाएगा. एक बार यहां कूड़ा डालना शुरू हो गया तो फिर वो चलता रहेगा. गाजीपुर में कूड़ा डालना बंद हो गया है, भलस्वा में भी कूड़ा नहीं डालने दे रहे हैं, तो ऐसे में बचा सिर्फ रानीखेड़ा. इसलिए हम बिल्कुल भी अपने यहां कूड़ा नहीं डालने देंगे.’

कूड़ा विरोधी आंदोलन में महिलाएं भी बड़ी संख्या में शामिल होने प्रदर्शन स्थल पर पहुंच रही है. कोई ट्रैक्टर से तो कोई कार से तो कोई पैदल. महिलाओं ने बताया कि वो रविवार सुबह से वहां बैठी हैं और रातभर से वहीं हैं, लेकिन कोई हमारी बात नहीं सुन रहा. महिलाओं के मुताबिक बाहरी दिल्ली के इस इलाके में कोई सुविधा नहीं, लेकिन फिर भी हमको कोई शिकायत नहीं थी, क्योंकि यहां जीने के लिए साफ हवा तो थी, लेकिन सरकार से वो भी देखा नहीं गया. गाजीपुर में कूड़ा डालना मना है, रानीखेड़ा में डालने नहीं दे रहे, ऐसे में कूड़ा उठाये ड्राइवर गाजीपुर प्लांट पर कूड़ा डालने आए, जहां कूड़े से बिजली बनती है लेकिन बताते हैं कि सुबह से खड़े हैं अब तक यहां कूड़ा नहीं डाल पाए. श्याम सिंह नाम के ड्राइवर ने बताया कि आमतौर पर हम दिन में 4 चक्कर लगाते हैं, लेकिन आज पहला चक्कर ही शाम तक नहीं हुआ.

पर्यावरण के लिए काम करने वाली गैर सरकारी संस्था सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट(सीएसई) के ताजा सर्वेक्षण में यह बात कही गई है। भारतीय शहरों में ठोस कचरा निस्तारण पर ‘नॉट इन माइ बैक यार्ड’ शीर्षक से प्रकाशित इस रिपोर्ट के अनुसार अलपुझा और मैसूरु के अलावा गोवा के पणजी शहर में भी कचरा निबटारे की उत्तम व्यवस्था है जबकि राजधानी होते हुए भी दिल्ली इस मामले में सबसे पीछे है। सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण का कहना है कि देश का कौन सा शहर कितना साफ है या कितना गंदा है,यह जानने के लिए वहां के कचरा प्रबंधन को मानक बनाकर सर्वेक्षण कराया गया क्योंकि इससे यह पता लगता है कि शहर के गंदा रहने या साफ रहने का मुख्य कारण क्या है। कारण का पता होने पर भविष्य की नीतियां तय करने में मदद मिलती है।

रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली में ठोस कचरे को निबटाने के लिए अभी तक पंरपरागत तरीके अपनाए जाते हैं। एक स्थान पर कचरा ले जाकर जमा कर दिया जाता है जिसके कारण शहर के पास कचरे के पहाड़ बन गए हैं। कचरे को अलग तरीके से निबटाकर खत्म करने की तकनीक अभी तक विकसित नहीं की गई है। सीएसई ने 2009 के सरकारी आंकड़ों का हवाला देते हुए कहा है कि देश के शहरी क्षेत्रों में हर रोज 80 हजार टन कचरा निकलता है। साल 2047 तक शहरों से सालाना 260 करोड़ टन कचरा निकलने लगेगा जिसे एक स्थान पर रखने और निबटाने के लिए हैदराबाद,मुबंई और चेन्नई शहरों को मिलाकर जितनी जमीन चाहिए उतना स्थान यानी कि करीब 1400 वर्ग किलोमीटर वर्ग क्षेत्र की आवश्यकता पड़ेगी।

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