हम कमरे में बैठे टकटकी लगाये बाहर देख रहे थे कि कब गृहलक्ष्मी अपने कामों से फ्री हो और हमें भोजन मिले। पर गृहलक्ष्मी की स्थिति यह थी कि वह क्या कर रही है? किस कार्य में लगी है। मालूम ही नहीं चल रहा था। हमने उसे बार-बार पूछा कि आज क्या बात है, वह किस कार्य में लगी है जो भोजन में इतनी देर हो रही है। वह बोली तुमको पता नहीं प्रत्येक घर में सौ दिन की योजना बनाने के लिये रात दिन एक कर दिये है। ताकि कार्य में नयापन आये और सभी लोग कार्य करते दिखें। एक तुम हो जो हाथ पर हाथ धरे बैठे हो, अपने पडोस के वर्मा जी को देखो वे और उनकी पत्नी व बच्चे किस प्रकार अपने-अपने काम की सौ दिन के कार्य की योजना बना रहे है। ‘लक्ष्मी के हाथ में कागज कलम देखकर हमने पूछा तुम क्या कर रही हो? वह तुनक कर बोली’ तुम योजना नहीं बनाओगे तो क्या, दूसरा भी नहीं बनाएगा। मुझे घर में नया करके दिखाना है। सो दिन की योजना से सारे कामों को पलक झपकते ही निपटाया जा सकता है, तुम देखना। लक्ष्मी ने भडाक से दरवाजा खोला और वर्मा जी की पत्नी को आवाज देकर बुलाया। श्रीमती वर्मा के आते ही सो दिन की योजना को किस प्रकार अंजाम दिया जाय, लम्बी चर्चा मंत्रणा के बाद सो दिन की योजना बनाई गई कि किस प्रकार एक एक दिन कार्य कर योजना को सफलीभूत किया जाय। योजना का मजमून तैयार हुआ कि सुबह कितने बजे उठना होगा। बैड टी ली जाय या नहीं। यदि ली जाय तो उसे कौन तैयार करे, इसे तैयार करने में कितना वक्त लगे। बैड टी को बैड तक पहुचाया जाय या रसोई में ही दी जावे। उसके बाद फ्रेश होने के लिए पहले कौन जायेगा। इस सूची को तैयार किया गया। नहाने का नम्बर व समय तय किये गये। नाश्ता कौन तैयार करे. यह तय किया गया। अखबार मंगाया जाय या नहीं, यदि मंगाया जाय तो कौनसा? अखवार को पहले व बाद में कौन पढेगा। तथा कितनी देर तक पढेगा। भोजन कब बनेगा। कैसा बनेगा। उसमें किसका कितना सहयोग होगा। निश्चित किया गया। बर्तन कौन साफ करेगा। कपडे धोबी से धुलाये जाय या घर में ही धोये जाय। यदि घर में ही धोये जाय तो उसमें किसका कितना योगदान होगा। घर में आने वाले मेहमानो को कौन अटेण्ड करेगा। उनके लिये चाय नाष्ता कौन तैयार करेगा या बाजार से रेडिमेड लाया जायेगा।
इन सब बातो के अलावा पति के कर्तव्य एवं दायित्व क्या-क्या होंगे। पत्नी किन-किन अधिकारो का उपयोग करेगी या उसे करना चाहिये को चिन्हित किया गया। इस योजना को बनाने में सुबह से शाम हो गई लेकिन फाईनल नहीं हो पाई। लक्ष्मी पूरा दिन योजना बनाने बिगाडने में लगी रही। खाना तक नहीं बनाया। हां लक्ष्मी ने श्रीमती वर्मा के साथ दो बार चाय के साथ पकोडे नमकीन मंगाकर खा लिये थे। हमारे खाली पेट में गैस के गुब्बार उठ रहे थे और हम उन्हे पानी पी-पी कर शान्त करने की असफल कोशिश कर रहे थे।
वैसे भूखे के दिमाग में विचार नहीं विकार उत्पन्न होते है इसके बावजूद भी हम सोच रहे थे कि लक्ष्मी सौ दिन की कार्य योजना बना कर इस घर को चलाने पर आमादा है लेकिन अब तक यह घर कैसे चल रहा था इसे कौन चला रहा था। वही जो अब योजना बना कर चलाने की सोच रही है। पहले भी सब कुछ हो रहा था और जो पहले कुछ नही कर पाये वे अब कौनसा सा निषाना साध लेगें। खैर, हम बहुत कोशिश के बाद भी किसी नतीजे पर नहीं पहुच पा रहे थे, कारण कि हमारा भूख से बुरा हाल था, जितना इस मसले पर सोच रहे थे उतनी ही अंतडियां दोहरी हो रही थी। भूख के मारे हमारी सारी इन्द्रियां जबाब दे चुकि थी। लेकिन लक्ष्मी को एक ही धुन सवार थी, सो दिन की कार्य योजना बस। मै तपेदिक के मरीज की तरह खाट में पडा बाहर की ओर बार बार ताक रहा था कि कही उसे रहम आये। उसी समय तनसुख ने घर में कदम रखा ,आते ही बोला चचा इस प्रकार क्यों पडे हो। हमारे मुख से निकला घर में सो दिन की कार्य योजना बन रही है। वह बोला क्या मतलब, हमने कहा मतलब यही कि इस कार्य योजना के चक्कर में हम भूखे मर रहे है। वह हो हो करके हंसा और बोला क्या चाची भी उसी लाईन पर है जिस लाईन पर केन्द्र सरकार के मंत्री। हमने कहां चितवन हमारे समझ में नही आ रहा है। वह बोला चचा यह सब तुम्हारे समझ में आने वाली बात नही है। यह बताओ सुबह से चाची ने तुम्हे कुछ खिलाया या नही। हमारे मुख से निकला चितवन यदि कुछ खिलाया पिलाया होता तो हम इस प्रकार क्यों पडे रहते। वह बोला चाची सुबह से काम करती नजर आ रही होगी। आपको लगता है कि वह बहुत ही व्यस्त है। हमने कहा हां, वह बोला ”चचा यही तो बात है, काम नही करना है, काम करते हुए दिखाई देना है। बस। यदि काम ही करना है तो उसके लिये किसी भी योजना की आवश्यकता नही है काम नही करने के लिये ही ऐसी योजना बनाई जाती है ताकि जनता कुछ दिन तक बोराई रहे। चचा तुम्हीं बताओ, सरकार में पिछले पांच वर्षो तक सत्ता में कौन था। आज जो सत्ता में है वे ही तो थे। यह समझ में नही आता कि जो काम वे पिछले पांच वर्षो में नही कर पाये उसे सो दिन में किस प्रकार कर देगें।
चचा मेरे पडौस में चौधरी के यहां पर कल दिन भर योजना को लेकर चर्चा चलती रही पति पत्नी में इस कदर तू तू मैं मैं हुई कि शाम तक चूल्हा नहीं जला (मतलब गैस पर कोई कार्य नहीं हुआ) तुम्हारे यहां पर भी यही हो रहा है पता नहीं क्यों इस प्रकार योजना बनाने में समय बर्बाद किया जा रहा है। जबकि प्रत्येक का कर्तव्य निर्धारित है। यदि वह बिना किसी हीलहुज्जत के कार्य करे तो अपने आप ही समय पर सारे कार्य सम्पादित हो सकते है। पर यहां समय की कोई कीमत नहीं हैं अधिकारो की चितां रहती है। कर्तव्य का मतलब येन केन प्रकारेण अपना कार्य दूसरे पर थोपना ही रह गया है। घर पति व पत्नी के आपसी सामजस्य से चलता है। अधिकार एवं कर्तव्य आवष्यकता के अनुसार निर्धारित है।यह कहता हुआ चितवन चला गया। हम पुन: विचार करने लगे कि सब कुछ विधानानुसार होने पर भी लक्ष्मी के दिमाग में सौ दिन की योजना का भूत इस कदर सवार हुआ कि रोजमर्रा की सारी व्यवस्था ही गडबडाई गई। अब सहयोग एवं समपर्ण नहीं है। अब तो योजना की कार्य सूची पत्नी के हाथ में रहती है और हम बे वजह उठक बैठक करने में।
-रामस्वरूप रावतसरे
बहुत ही बढ़िया
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