प्रदेश में जातिवादी राजनीति का खेल शुरू

मृत्युंजय दीक्षित

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव  होने में अभी एक साल का पूरा समय है। कुछ समय 2017 का भी होगा लेकिन प्रदेश के सभी राजनैतिक दलों ने अपने आप को मथना शुरू कर दिया है। लेकिन अभी से जिस प्रकार के बयान सभी दलों की ओर से आ रहे हैं उसे यह साफ संकेत जा रहा है कि प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावों में लगभग सभी दलों की ओर से जातिवादी राजनीति को और अधिक जहरीला बनाया जायेगा। सभी दलों को लग रहा है कि इस बार के विधानसभा चुनावों में अब जाति और धर्म के आधार पर ही वोटों का ध्रुवीकरण होगा जो दल इसमें अपनी स्थिति समय रहते संभाल लेगा वहीं 2017 में विजय हासिल करने में सफल होगा।

जातिवादी राजनीति के खेल में सबसे पहले बात करनी होगी बसपा सुप्रीमो मायावती की। 28 जनवरी को अपनी प्रेसवार्ता में बसपा सुप्रीमो मायावती ने केंद्र सरकार पर जातिवादी राजनीति करने का घनघोर और बेहद झूठा आरोप लगाकर सनसनी बटोरने का असफल प्रयास किया है। बसपा सुप्रीमो मायावती का कहना है कि हैदराबाद के दलित छात्र रोहित की मौत पर पीएम मोदी की भावुकता राजनैतिक स्टंट है। मोदी सरकार दलित विरोधी और आरक्षण विरोधी सरकार है। मायावती ने लोकसभाअध्यक्ष के ताजा बयान पर हमला बोला। मायावती पता नहीं केंद्र सरकार के कामकाज से डर गयी हैं तभी वह अभी से ही हल्ला मचाने लग गयी हैं कि केंद्र सरकार दलितों व पिछड़ों का वोट पाने के लिए मान्यवर कांशीराम को  भारतरत्न देने का ऐलान कर सकती हैं। उन्होनें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय और जामिया मिलिया के अल्पसंख्यक दर्जे की संभावित समाप्ति पर भी तीखा हमला बोला और भाजपा व केंद्र सरकार को मुस्लिम विरोधी भी करार दिया। साथ ही प्रदेश सरकार पर तीखे हमले बोले और कहा कि प्रदेश में गुंडाराज कायम है। वे अभी से ही इतनी उत्साहित हो रही हैं कि अगली सरकार उन्हीं की बनने जा रही हैं इसलिए वे घोषणा भी कर डालती हैं कि प्रदेश में उनकी सरकार बनने पर सारे गुंडे जेल में होंगे।

बसपा सुप्रीमो मायावती ने प्रेसवार्ता में जिस प्रकार की भाषाशैली का प्रयोग किया है उससे साफ पता चल रहा है कि वह बहुत अधिक तनाव में आ चुकी हैं तथा उनके मन में  कुछ न कुछ शंका व भय व्याप्त हो चुका है। तभी तो वे पीएम मोदी पर खुलकर हमला बोल रही है। यही खेल उन्होनें लोकसभा चुनावों में  खेला था और तब बहुकोणीय मुकाबले में  उनकी हैसियत शून्य पर पहुच गयी थी। वह तो गनीमत है कि राज्यसभा में उनके 12 सांसद है। जिनके बल पर वे इतना उचक रही हैं और सारी की सारी मर्यादा को लांध रही है। बसपा सुप्रीमो का बयान एक प्रकार से उल्टा चोर कोतवाल को डांटे वाली कहावत को चरितार्थ कर रहा है। मायावती यह भूल गयी हैं कि उनके दल का मूल आधार  जातिवाद ही है। मायावती जातिवाद का जहर घोलकर सत का सुख तो प्राप्त कर सकती हैं लेकिन उनके पास दलितों और पिछड़ों के वास्तविक विकास का एजेंडा क्या है? बसपा सुप्रीमो मायावती को अनर्गल बयानबाजी करने की बजाय दलितों और पिछड़ों के बीच जाकर वास्तविक विकास के एजेंडे पर काम करना चाहिये।

बसपा सुप्रीमो मायावती ने महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर के विवाद को भी अपने एजेंडे में शामिल करके यह आरोप लगाया है कि दलितों पिछड़ों और महिलाओं को  मंदिरों में पूजा करने का समान अधिकार नहीं हैं तथा उन्हें पूजा करने से रोका जाता है। बसपा सुप्रीमो मायावती प्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के लिये बहुत अधिक बैचेन तथा व्यग्र हो रही हैं यही कारण है कि वे  अब अपनी राजनीति को चूकाने के लिये झूठ की बुनियाद पर आधारित जातिवाद की राजनीति का जहर घोलने की शुरूआत कर रही है। उन्होनें जो भी मुददे उठाये हैं वे बहुत ही जल्द समाप्त भी हो जायेंगे। फिर वे किस बात पर हमला बोलेंगी। समाजवादी पार्टी भी अब दलितों, पिछड़ों व अल्पसंख्यकों के हितों पर काफी तीखी राजनीति करने जा रही है। सपा मुखिया मुलायम सिंह यादव में भी एक अजीब – सी छटपटाहट देखी जा रही है।

सपा मुखिया मुलायम सिंह का मानना है कि अगर 2017 में समाजवादी सरकार नहीं वापस आयी तो फिर कभी वापस नहीं आयेगी। यही कारण है कि वे अब मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के कामकाज की सराहना कर रहे हैं  और केंद्र सरकार व भाजपा पर झूठे वादे करने का आरोप लगा रहे हैं ।  एक बेहद सोची समझी रणनीति के तहत सपा मुखिया बयानबाजी कर रहे हैं ।  सपा मुखिया मुलायम सिंह ने 25 साल बाद अयोध्या में कारसेवकों पर गोली चलाने की घटना पर अफसोस जताया और यहीं नहीं उन्होनें यहां तक कहाकि उस घटना के बाद ही सपा मजबूत होकर उभरी तथा बाबरी मस्जिद को बचाया जा सका। उनके बयान को लेकर मीडिया में जोरदार बहस हुयी। कुछ लोगों का कहना थाकि  कारसेवकांें पर गोली चलाने पर अफसोस मांगना महज एक राजनैतिक स्टंट हैं जबकि कुछ लोगों का मत था कि वे राजग में  जाने का मध्यमार्ग तलाश रहे हैं। विगत दिनों जब पी.म मोदी और मुलायम सिंह  ने कुछेक अवसरों पर एक दूसरे की प्रशंसा के पुल बांधे थे तब लग रहा था लेकिन हाल के ताजा बयानों से ऐसा नहीं प्रतीत होता अपितु अब उनके बयानों से ऐसा लग रहा है कि वह एक प्रकार से उन लोगों को परोक्ष रूप से  धमका भी रहे हैं जो यह कह रहे हैं कि राममंदिर का निर्माण 2017 से पहले ही शुरू हो जायेगा। दूसरी तरफ मुलायम सिंह ने दादरी कांड पर तीन भाजपा नेताओं के शामिल होन का आरोप लगाया है तथा कहा है कि वे उनके नाम तभी बतायेंगे जब पीएम मोदी उनसे पूछेंगे। एक पकार से समाजवादी पार्टी और बसपा का एजेंडा तय हो चुका है दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के वोटबैंक का घनघोर तुष्टीकरण।

इसमें एक विशेष बात यह समाने आ रही है कि इस बार दोनों ही दलों में सवर्णों पर अभी चुप्पी है।  अब सबसे मजेदार प्रसंग आ रहा है कांग्रेस पार्टी का।  कांग्रेस पार्टी प्रदेश में पूरी तरह से हाशिये पर जा चुकी है तथा कांग्रेस का संगठनात्मक ढांचा भी बेहद कमजोर है। इस समय उसके पास कोई भी वोटबैंक नहीं है। अपने पुराने वोटबैंक को वापस पाने के लिए कांग्रेस भी लालायित हो चुकी है। यही कारण है कि प्रदेश के तीन विधानसभा उपचुनावों में तीनों मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारकर जहां सपा व बसपा को चैंकाने का प्रयास किया हैं वहीं मुस्लिमों के बीच अपनी मुस्लिम परस्त छवि को भी उतारने का प्रयास किया है। अब उपचुनावों में कांग्रेस का यह खेल कितना सफल होता हैं यह तो परिणामों से ही पता चल पायेगा। रही बात भाजपा की तो अभी उसने अपने पत्ते नहीं खोले हैं लेकिन आज भाजपा के सामने एक बार फिर वैसी ही परिस्थितियां आ गयी है जैसा कि लोकसभा चुनावों के पहले थी। लेकिन तब भाजपा अध्यक्ष अमित शाह उप्र के चुनाव प्रभारी बनाकर भेजे गये थे।अब वे देश के अध्यक्ष हैं लिहाजा  उप्र में भाजपा की नाक बचाने की सबसे अधिक ज़िम्मेदारी उन पर तो आ ही गयी हैं साथ ही साथ प्रदेश भाजपा के सभी सांसदों की भी। अब प्रदेश की राजनीति में जो खेल शुरू होने जा रहा है उसमे सबसे अधिक चुनौती समाजवादी पार्टी को अपना गढ़ बचाने की हैं वहीं दूसरी ओर भाजपा के सामने भी उतनी ही अधिक गंभीरतम चुनौती भी है। इस बार के विधानसभा चुनाव सबसे कठिन ओर चुनौतीपूर्ण होने जा रहे है सभी दलों के लिये।

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