सतर्क वार्ता के अवसर

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अनिल अनूप 
करतारपुर कॉरिडोर की आधारशिला रखने के कार्यक्रम में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान ने भारत के साथ संबंध सुधारने के इरादे के साथ कहा कि इस मुद्दे पर उनकी सरकार, फौज व अन्य सियासी दल एक ही खेमे में है। इमरान खान ने दोनों देशों के पास परमाणु हथियारों के होने का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसे हालात में लड़ाई का जो सोचते हैं वह बेवकूफ है। ऐसे में सिर्फ दोस्ती का ही रास्ता है। पाक प्रधानमंत्री खान ने कहा कि दोनों देशों का मजबूत इरादे वाला नेतृत्व कश्मीर मसले को सुलझा सकता है। खान ने कहा कि भारत अगर एक कदम दोस्ती का बढ़ाएगा तो हम दो कदम बढ़ाएंगे। दोनों देशों के 70 वर्ष से विवाद चल रहा है। दोनों देशों से गलतियां हुई हैं, मगर हम तब तक आगे नहीं बढ़ सकते जब तक अतीत की जंजीरे नहीं तोड़ेंगे। जंगों में एक-दूसरे के लाखों लोग मारने वाले फ्रांस और जर्मनी साथ हो सकते हैं और उनकी सीमाएं खुली है तो हम क्यों नहीं बढ़ सकते। इमरान ने दो तरह के सियासतबाजों का उदाहरण देते हुए कहा कि एक नेता जोखिम उठाकर बड़ा सपना देखता है, दूसरी तरह का नेता डर-डर के वोट बैंक देखता है। एक नफरत फैलाकर वोट लेता है, तो दूसरा इंसान को जोड़कर वोट लेता है। इमरान ने कहा कि ‘मैं यह उम्मीद रखता हूं कि ये न हो कि हमें सिद्धू का इंतजार करना पड़े कि जब वो भारत के वजीर-ए-आजम बनेंगे तब पाकिस्तान और हिन्दोस्तान की दोस्ती होगी।’
पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान द्वारा भारत के प्रति दोस्ती को लेकर जो भाव प्रकट किए हैं उनसे उनके इरादे एक सीमा तक तो नेक ही लगते हैं। पाकिस्तान की तरफ से बेशक पहली बार इस तरह का ब्यान आया है लेकिन भारत तो अतीत में एक बार नहीं कई बार अपने नेक इरादों को केवल प्रकट ही नहीं बल्कि उन पर अमल करने की कोशिश भी कर चुका है। अतीत में पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेयी  की लाहौर बस यात्रा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की बिन बुलाए पाकिस्तान की यात्रा की लेकिन भारत के दोनों प्रयासों का उत्तर पाकिस्तान द्वारा नकारात्मक ही रहा।पाकिस्तान आज भी आतंकियों और अलगाववादियों की शरणस्थली बना है और यह दोनों धड़े भारत में विशेषतया घाटी और पंजाब में नकारात्मक खेल ही खेल रहे हैं। भारत विरोधियों को संरक्षण व समर्थन देकर भारत की तरफ दोस्ती का हाथ बढ़ाना पाकिस्तान की दो मुंही नीति को ही उजागर करता है।इमरान खान ने कश्मीर के मुद्दे को उठाया है। अगर साथ में यह भी घोषणा करते कि वहां आतंकियों की घुसपैठ नहीं होगी और युद्ध विराम भी बना रहेगा तब तो उनके प्रकट भावों को दम मिलता और भारत भी समझता कि इमरान की कथनी और करनी में अंतर नहीं है। इससे आपसी बातचीत का माहौल भी बनता। आतंकियों और अलगाववादियों को साथ लेकर चलने वाले इमरान खान की दो मुंही नीति को देखते हुए ही भारत सरकार ने टिप्पणी करते हुए कहा कि जब तक पाकिस्तान भारत में आतंकी गतिविधियां बंद नहीं करता तब तक उससे बातचीत नहीं हो सकती।भारत और पाकिस्तान के रिश्तों में सुधार आये, यह सीमा के उस पार और इस पार भी आम जन का सपना है। लेकिन इस सपने के साकार होने में अगर सबसे बड़ी बाधा है तो पाकिस्तान द्वारा भारत विरोधी तत्वों को संरक्षण व समर्थना देना ही है। पाकिस्तान अगर अपने यहां नकारात्मक तत्वों को संरक्षण व समर्थन देना बंद करे और भारत विरोधी सोच का त्याग कर दे तो आपसी रिश्तों में सुधार लाने के लिए संवाद का आधार बन सकता है। आपसी विश्वास की कमी के होते संवाद की आशा पूरी नहीं हो सकती। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान के इरादों को मजबूत आधार देना भी इमरान खान की प्राथमिकता होनी चाहिए। भारत सरकार को देश की सुरक्षा को सम्मुख रख सतर्कतापूर्वक बातचीत करने के अवसर पर गंभीरतापूर्वक विचार कर कदम उठाना ही उचित रहेगा।

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