एफ डी आई बनाम सीबीआई यानी जननीति पर राजनीति भारी?

इक़बाल हिंदुस्तानी

आखि़र सपा बसपा के सपोर्ट की बिल्ली थैले से बाहर आ ही गयी!

राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था कि ‘‘समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध’’। लोकसभा में मल्टीब्रांड एफडीआई पर विपक्ष का प्रस्ताव 218 के मुकाबले 253 मतों से गिर गया। इसका कारण सपा के 22 और बसपा के 21 सदस्यों का मतदान के समय सदन से वॉकआउट रहा। हालांकि कुल 71 एमपी वोटिंग के दौरान सदन से बाहर रहे लेकिन अगर अपने पहले के रूख़ पर कायम रहते हुए मुलायम और मायावती के सांसद सरकार के खिलाफ मतदान करते तो यह सरकार 6 वोट से धराशायी हो जाती लेकिन राजनीति के जानकार लोग पहले से ही अंदाज़ लगा रहे थे कि जिस तरह से आय से अधिक केस में मुलायम और मायावती को यूपीए सरकार ने सीबीआई से राहत दिलाकर साधा है उससे वे दोनों रिटेल एफडीआई और मनमोहन सरकार के खिलाफ चाहे जितना आग उगलें लेकिन जब सरकार को गिराने या बचाने का निर्णायक सवाल आयेगा तो वे सरकार के साथ भले ही खड़े नज़र ना आयें लेकिन किसी कीमत पर उस तोते को नहीं मरने देंगे जिसमें उनकी जान बसती है।

राज्यसभा में सरकार के अल्पमत में होने की समस्या को बसपा ने उसका वहां खुलकर साथ देने का एलान करके हल कर दिया है। उधर सपा ने एक बार फिर तटस्थ रहने का बीच का रास्ता अपनाकर जनता को यह धोखा देने का भ्रम पाला है जैसे वह सरकार और रिटेल एफडीआई के आज भी वास्तव में खिलाफ हो? आपको याद होगा इससे पहले ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस ने जब यूपीए सरकार से समर्थन वापस लेकर उसे एफडीआई के मुद्दे पर गिराने के लिये अविश्वास प्रस्ताव लाने का प्रयास किया था तो तभी किसी पार्टी ने उसका इतना समर्थन भी नहीं किया कि उनके साथ 50 अनिवार्य सांसदों की संख्या जुट जाये और अविश्वास प्रस्ताव संसद में पेश कर दिया।

राजनीति के पारखी तब ही समझ गये थे कि पक्ष विपक्ष में से कोई सांसद नहीं चाहता कि यह सरकार समय से पूर्व चली जाये क्योंकि इससे उनकी सदस्यता भी जाती रहेगी और कल किसको टिकट मिले और कौन जीते कौन हारे क्या कहा जा सकता है? हर किसी को अपनी सीट प्यारी है। इसी तरह से सपा बसपा जैसे दल सोचते हैं। आज की यूपीए सरकार उनके रहमो करम पर जिं़दा है। उनके मुखिया सरकार को ब्लैकमेल करके जो हासिल करना चाहें उनके एक इशारे पर मिल रहा है। मायावती तो केवल आय से अधिक मामले में जेल जाने से बचने केे लिये ही मनमोहन सिंह को नाराज़ नहीं करना चाहतीं लेकिन मुलायम सिंह तो एक तीर से कई शिकार कर रहे हैं। एक तरफ वे सीबीआई के फंदे से बचते नज़र आ रहे हैं और दूसरी तरफ यूपी में अपने बेटे की सरकार के लिये केंद्र से ख़ज़ाने का मुंह खोलने की शर्त मनवाने मंे कामयाब हो रहे हैं।

इतना ही नहीं मुलायम को चन्द्रशेखर और चरण सिंह की तरह एक बार चाहे जैसे चाहे जितने दिन का प्रधानमंत्री बनाने का सपना भी कांग्रेस ने बड़ी चालाकी से दिखा दिया है। यह राजनीतिक गणित भी साफ है कि बिना कांग्रेस के सपोर्ट के मुलायम कुछ भी करलें पीएम बनने का ख्वाब पूरा कर नहीं सकते। एक बार को मायावती तो एनडीए की वाजपेयी सरकार की तरह एनटाइम पर यूपीए सरकार के विरोध में अपने सांसदों के वोेेट डलवा भी सकती थीं लेकिन मुलायम ऐसा चाहकर भी नहीं कर सकते वजह साफ है। अगर आज यूपीए सरकार मुलायम सिंह की सपा की वजह से गिर गयी और कल चुनाव होने पर वह बहुमत में नहीं आयी तो वह किसी कीमत पर भी मुलायम के चार दिन का पीएम बनने का सपना पूरा नहीं होने देगी। इसके साथ ही मायावती ने महाराष्ट्र में अंबेडकर स्मारक के लिये मंुबई चीनी मिल की भूमि देने और बाबासाहब अंबेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर पूरे देश में 6 दिसंबर को छुट्टी घोषित कराकर अपनी मांगे मनवाने का रास्ता तलाश लिया है।

अभी समय बतायेगा कि इस सपोर्ट की मायावती क्या क्या और कीमत मनमोहन सररकार से वसूल करती हैं? इतिहास गवाह है कि एक बार वाजपेयी की एनडीए सरकार एक वोट से गिरने के बाद जब सोनियां गांधी ने मुलायम सिंह की सपा को सेकुलर मानकर अपने साथ होने का राष्ट्रपति के पास जाकर दावा किया और सरकार बनाने का इरादा जताया तो वे भाजपा के दबाव में पलटी मार गये और सोनिया के विदेशी मूल का होने का मुद्दा उठाकर उनको शपथ लेने से रोक दिया। सोनिया उस समय तो खून का घंूट पीकर खामोश रह गयीं लेकिन उन्होंने मुलायम को उसी समय सबक सिखाने की क़सम खा ली थी। उस एक भूल का खामियाजा मुलायम आज तक भुगत रहे हैं। 2004 में वामपंथियों के लाख जोर देने के बावजूद सोनिया ने मुलायम का बिन मांगे दिया गया समर्थन भी नहीं स्वीकार किया।

इसके बाद 2009 मंे एक बार फिर मुलायम यूपीए में घुसने की दिलो जान से कोशिश करते रहे लेकिन सोनिया 1998 का मुलायम का धोखा चूंकि अभी तक नहीं भूली थीं सो वे इस बार भी उनको उनकी औकात बताती रहीं। सोनिया गांधी यह भी जानती थीं कि यूपीए को सपोर्ट करके उनका वरदहस्त हासिल करना मुलायम की मजबूरी हो सकती है उनकी कांग्रेस की नहीं। साथ ही कांग्रेस के रण्नीतिकारों को यह भी अच्छी तरह से मालूम था कि जिस भाजपा से मिलीभगत करके मुलायम ने सोनिया को शपथ लेने से रोका था उस भाजपा के साथ वह खुलकर खड़े नहीं हो सकते। भाजपा से निकाले जा चुके कल्याण सिंह के साथ मिलकर 2009 का चुनाव लड़कर मुलायम सिंह की आंखे पहले ही खुल चुकी थीं।

कांग्रेस को राजनीतिक रूप से भी यह सौदा फायदे का नज़र आ रहा था, इसलिये उसने मुलायम को इस बात की चुनौती पेश कर दी कि वह भाजपा के साथ जाकर दिखायें जिससे मुसलमानों का विश्वास हमेशा हमेशा के लिये खो बैठें। इसी लिये आज मुलायम अपनी भूलसुधार कर कांग्रेस के साथ रहने का मजबूर नज़र आ रहे हैं। इसके साथ ही यह बात समझ से बाहर है कि एक तरफ हम अमेरिका के नक्शे कदम पर चलना चाहते हैं और मल्टीब्रांड रिटेल में एफडीआई से लेकर पेंशन बीमा तक को निजी क्षेत्र की मनमानी के लिये खोलना चाहते हैं और दूसरी तरफ उसी अमेरिका में वॉलमार्ट पर रिपोर्ट आ रही है कि वह छोटे दुकानदारों के ताबूत में आखि़री कील ठोक रहा है। खुद ओबामा हर सप्ताह वहां किसी बड़े शॉपिंग मॉल में ना जाकर नुक्कड़ की छोटी दुकान से अपने परिवार के साथ ख़रीदारी करके क्या संदेश दे रहे हैं?

50 साल पहले चालू हुयी अमेरिकी कम्पनी वालमार्ट ने वहां किसानों को लगभग गायब कर दिया है। वालमार्ट का कुल कारोबार 450 अरब डालर है जिसने किसानों का बर्बाद करने की कीमत पर कुल 21 लाख लोगों को रोज़गार दिये हैं जबकि भारत में खुदरा कारोबार 420 अरब डालर का है जिसने 4.4 करोड़ लोगों को काम दिया है। अमेरिका में इस कारण ही गरीबी बढ़ी और इसी साल भुखमरी ने 14 साल का रिकॉर्ड तोड़ा है। अमेरिका में 2008 में 5 साल के लिये किसानों को 307 अरब डॉलर की सब्सिडी दी गयी। 2009 में इस सब्सिडी में 13 लाख करोड़ रू0 का इज़ाफा किया किया गया। 30 धनी देशों के समूह आईसीडी ने भी अपने देशों में 2008 में 21 प्रतिशत और 2009 में 22 प्रतिशत सब्सिडी बढ़ाई है। 2009 में यह सब्सिडी बढ़कर 12.60 करोड़ रू0 हो चुकी है।

यूरूप कृषि को सहायता में सबसे आगे है। इसके साथ ही रिटेल एफडीआई ने मैक्सिको और ब्राजील की हालत ख़राब कर दी है यह सच सारी दुनिया के सामने आ चुका है। यह बात अभी हमारी सरकार को पता नहीं क्यों समझ नहीं आ रही है या वह समझना नहीं चाहती। एक तरफ सरकार यह झूठ फैला रही है कि हमारे देश के फल और अनाज का 35 से 40 प्रतिशत हिस्सा ठीक रखरखाव ना होने से ख़राब हो जाता है और दूसरी तरफ खुद सरकारी रिपोर्ट बताती है कि केवल 17 प्रतिशत ही खराब होता है। सरकार कहती है कि खुदरा बाज़ार में विदेशी निवेश आने से बिचौलिये गायब हो जायेंगे जिससे लोगों को सस्ता सामान मिलेगा। चीनी मिलों और किसानों के बीच में कोई बिचौलिया नहीं है लेकिन गन्ने के दाम से लेकर उसके भुगतान तक में मिलें कितनी मनमानी और अन्याय कर रही हैं यह किसी से छिपा नहीं है।

0मुहब्बत के लिये कुछ ख़ास दिल मख़सूस होते हैं,

ये वो नग़मा है जो हर साज़ पे गाया नहीं जाता।

 

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इक़बाल हिंदुस्तानी
लेखक 13 वर्षों से हिंदी पाक्षिक पब्लिक ऑब्ज़र्वर का संपादन और प्रकाशन कर रहे हैं। दैनिक बिजनौर टाइम्स ग्रुप में तीन साल संपादन कर चुके हैं। विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में अब तक 1000 से अधिक रचनाओं का प्रकाशन हो चुका है। आकाशवाणी नजीबाबाद पर एक दशक से अधिक अस्थायी कम्पेयर और एनाउंसर रह चुके हैं। रेडियो जर्मनी की हिंदी सेवा में इराक युद्ध पर भारत के युवा पत्रकार के रूप में 15 मिनट के विशेष कार्यक्रम में शामिल हो चुके हैं। प्रदेश के सर्वश्रेष्ठ लेखक के रूप में जानेमाने हिंदी साहित्यकार जैनेन्द्र कुमार जी द्वारा सम्मानित हो चुके हैं। हिंदी ग़ज़लकार के रूप में दुष्यंत त्यागी एवार्ड से सम्मानित किये जा चुके हैं। स्थानीय नगरपालिका और विधानसभा चुनाव में 1991 से मतगणना पूर्व चुनावी सर्वे और संभावित परिणाम सटीक साबित होते रहे हैं। साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के लिये होली मिलन और ईद मिलन का 1992 से संयोजन और सफल संचालन कर रहे हैं। मोबाइल न. 09412117990

5 COMMENTS

  1. ** लेखक इकबाल जी ने उद्धृत की हुयी पंक्तियाँ समीचीन हैं.
    “राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था कि

    ‘‘समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध,
    जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध’’।

    वालमार्ट की कूटनीति ===>(१) वालमार्ट प्रारम्भ में ग्राहकों को सस्ते मूल्यपर वस्तुएं बेचेगा|
    (२) इसके कारण दूसरे छोटे व्यापारियों का धंधा मंदी से ग्रस्त होगा, और वें बाहर होने के रास्ते ढूंढेंगे –और आजीविका से हाथ धो डालेंगे.
    (३) फिर वालमार्ट भी दाम बढ़ाएगा.
    सरकार भारत को धीरे धीरे बेच रही है.

    अमरीका में भी इसका यही विजय-मन्त्र है.
    भारत में वालमार्ट क्या दान-धर्म करने के लिए, १२५ करोड़ खर्च कर रहा है?

    ज़रा सोचिये भी तो.
    इकबाल जी आलेख के लिए धन्यवाद.

  2. वैसे तो हम जानते हैं जन्नत की हकीकत क्या है, दिल बहलाने को ग़ालिब ख्याल अच्छा है.आदरनीय श्री रमाश सिंह जी जो बुराइयाँ ( सही या गलत) आपने गिनाई हैं उनका समाधान ऍफ़ डी आई इन रिटेल नहीं है. बल्कि कानून का सख्ती से पालन करने से ही ये बुराईयाँ दूर हो सकेगी.छोटे छोटे पदों पर भी स्थानांतरण के लिए मंत्री स्तर तक रिश्वत खायी जाती है.और रिश्वत देकर पाई गयी पोस्टिंग में कमाई तो करेंगे ही. इसके लिए दोषी व्यवस्था को बदलना जरूरी है न की रिटेल में ऍफ़ डी आई का लाया जाना. ऍफ़ डी आई की तो एंट्री से पहले ही सवा सौ करोड़ की रिश्वत सामने आ गयी है आने पर क्या होगा राम जाने.

    • अनिल गुप्ता जी ,मैं आपकी भावनाओं का आदर करता हूँ .मैंने पहले भी बार बार लिखा है कि कोई भी बड़ा व्यापारी ,चाहे वह देशी हो या विदेशी हमारे छोटे और मझोले ईमानदार व्यापारियों के प्रतिस्पर्धा में ठहर ही नहीं सकता।आज भी अगर हमारे व्यापारी यह चुनौती स्वीकार कर लें तो वालमार्ट का रिश्वत भी किसी काम नहीं आयेगा और न उसका ताम झाम।आज जिस तरह भारतीय बाजार चंद हाथों में गिरवी है,उसमें न उपभोक्ता की आवाजंसुनने वाला कोई है और न छोटे किसानों की आवाज सुनी जाती है और न ईमानदार व्यापारियों की।व्यवस्था परिवर्तन और भ्रष्टाचार निवारण में इसका समाधान कुछ हद तक अवश्य है,पर एक झटका भी आवश्यक है।खुदरा व्यापर में विदेशी पूंजी निवेश वही झटका है।इससे उपभोक्ता को तो लाभ होगा ही,साथ साथ छोटे इमानदार व्यापारी भी इससे लाभान्वित होंगे।मेर ख्याल से तो किसानों को भी लाभ होगा ,पर वह तो भविष्य ही बता पायेगा।

  3. इकबाल हिन्दुस्तानी जी आपके विचारों का मैं कद्र करता हूँ,पर खुदरा व्यापार में विदेशी निवेश के मामले में मेरा आपसे मतभेद सामान्यतः इस बात पर है कि आपलोगों के किसी भी तर्क में आम उपभोक्ता का कोई स्थान नहीं है,जबकि कोई भी सर्विस या उत्पादन उपभोक्ता के लिए ही होती है।प्रवक्ता के इसी अंक में मैंने डाक्टर अग्नि होत्री से एक प्रश्न किया है ,मैं केवल उनके नाम की जगह आपका नाम रखकर अपना प्रश्न दुहराता हूँ।
    इकबाल हिन्दुस्तानी जी से केवल एक प्रश्न.वालमार्ट ने तो भारत के बाजार में प्रवेश पाने के लिए १२५ करोड़ रूपये खर्च किये.क्या आप बता सकते हैं कि हमारे भारतीय और खुदरा व्यापारी घटिया और मिलावटी सामग्री( नकली दवाईयां,यूरिया और देजर्तेंत से बने दूध ,चमड़े के टूकड़े मिले हुए चाय,घोड़े की लीद मिले हुए मसाले,ईंट के बुरादे मिली हुई हल्दी,केरोसीन मिला हुआ डीजल इत्यादि) सरे आम बेचने के लिए हमारे राजनेताओं और सरकारी कर्मचारियों को नित्य कितना रिश्वत देते हैं?मेरे विचार से यह प्रतिदिन दिए जानेवाला रिश्वत इस पूरे लॉबिंग की रकम से ज्यादा ही होता होगा.

  4. इकबाल जी सारा मामला 150 करोड़ की रिश्वत का हो है, इन लोगों ने इतनी मोटी रकमें खा रखी हैं वालमार्ट से की अब इन्हें कुछ ना सुनाई दे रहीं हैं ना ही दिखाई दे रहीं हैं। मुलायम और मायवती अपने बनाए जाल में खुद की फंस गए हैं। आज तो सुप्रीम कोर्ट का निर्णय भी मुलायम के विरुद्ध आ गया है आय से अधिक का। कांग्रेस के बने जाल में ये बुरी तरह फंस गए हैं, जाल से निकलने की कोशिश करते हैं लेकिन इन दोनों के पीछे सी बी आई का हाथ दिखाई देते ही ये फिर से जाल में वापिस आ जाते हैं। ये दोनों कांग्रेस के बुने जाल के अंदर ही फंस गए हैं। तथ्यों की तरफ देखा जाए वालमार्ट का अपने देश में ही नाम ख़राब है, बाहर ये क्या करेगा वो जगजाहिर है, फिर भी राष्ट्रीय हितों को न देख (शायद अपने हित सधते हों) आँख मूँद कर जबरदस्ती आमंत्रण देना, एक बड़े षड्यंत्र की तरफ इशारा है। आपकी उक्ति बिलकुल ठीक है
    राष्ट्र कवि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा था कि ‘‘समर शेष है, नहीं पाप का भागी केवल व्याध, जो तटस्थ हैं समय लिखेगा उनका भी अपराध’’।


    सादर,

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