चाह है तेरे दरबार में आने की

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चाह नहीं अब कुछ खाने की |
चाह नहीं अब और कमाने की ||
चाह बस केवल प्रभु जी मेरी |
तेरे ही दरबार में बस आने की ||

चाह नहीं अब किसी खजाने की |
चाह नहीं अब मकान बनाने की ||
करो प्रभुजी आदेश तुम यम को 
मुझको अपने दरबार बुलाने की ||

हर चाह को मैंने त्याग दिया |
रिश्ते नातो को  त्याग दिया ||
क्यों कर रहे हो प्रभुजी देरी ?
क्या मेर समय नहीं हुआ ||

कब होगा मिलन तुमसे मेरा ?
दिखता है चारो तरफ अँधेरा ||
क्यों नहीं तुम पास बुलाते ?
क्या कसूर है प्रभु अब मेरा ||

सुबह शाम तुझको याद करता |
फिर भी मेरा मन नहीं भरता ||
कैसे बिसराऊ मै अब तुझको |
क्यों नहीं बुलाने का आदेश करते ?

किसी चाह की कोई चाह नहीं |
अपनों से मिलने का मोह नहीं ||
चाह मोह को मैंने त्याग दिया |
फिर भी तुम मुझको बुलाते नहीं ||

गीत गाता हूँ तेरे सदा मै |
भजनों को भज लेता हूँ मै || 
मै से मै को निकाला मैंने |
आने को अब लालायित मै ||

आर के रस्तोगी 

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आर के रस्तोगी
जन्म हिंडन नदी के किनारे बसे ग्राम सुराना जो कि गाज़ियाबाद जिले में है एक वैश्य परिवार में हुआ | इनकी शुरू की शिक्षा तीसरी कक्षा तक गोंव में हुई | बाद में डैकेती पड़ने के कारण इनका सारा परिवार मेरठ में आ गया वही पर इनकी शिक्षा पूरी हुई |प्रारम्भ से ही श्री रस्तोगी जी पढने लिखने में काफी होशियार ओर होनहार छात्र रहे और काव्य रचना करते रहे |आप डबल पोस्ट ग्रेजुएट (अर्थशास्त्र व कामर्स) में है तथा सी ए आई आई बी भी है जो बैंकिंग क्षेत्र में सबसे उच्चतम डिग्री है | हिंदी में विशेष रूचि रखते है ओर पिछले तीस वर्षो से लिख रहे है | ये व्यंगात्मक शैली में देश की परीस्थितियो पर कभी भी लिखने से नहीं चूकते | ये लन्दन भी रहे और वहाँ पर भी बैंको से सम्बंधित लेख लिखते रहे थे| आप भारतीय स्टेट बैंक से मुख्य प्रबन्धक पद से रिटायर हुए है | बैंक में भी हाउस मैगजीन के सम्पादक रहे और बैंक की बुक ऑफ़ इंस्ट्रक्शन का हिंदी में अनुवाद किया जो एक कठिन कार्य था| संपर्क : 9971006425

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