‘छद्यम पहचान’ बनाने को लालायित रहने वाले नीतीश जी से चन्द प्रश्न ?

0
150

-आलोक कुमार-

nitish

सार्वजनिक मंचों पर और विशेषकर जब चुनाव नजदीक आते हैं तो नीतीश कुमार “जाति- बंधन तोड़ने वाले ” के रूप में अपनी ‘छद्यम पहचान’ बनाने को लालायित दिखते हैं और अपने समालोचकों को उनकी सच बयानी पर आड़े हाथों भी लेते हैं l नीतीश जी के बारे में सबसे बड़ी सच्चाई तो यही है कि वे खुद मंडल कमीशन के “पौरुष” से उत्पन्न हुए हैं। क्या बिहार की जनता इस सच को नहीं जानती कि वर्ष १९९४ के पहले वे किसके साथ थे और आज फिर से किसके साथ हैं l आज नीतीश जिनके शरणागत हैं उनकी राजनीति का मुख्य आधार क्या था और क्या है ?, इससे भी हर कोई वाकिफ है l

क्या नीतीश इस सच को झुठला सकते हैं कि जब ‘भूरा बाल साफ करो ‘ जैसा घृणित, द्वेषपूर्ण और सामाजिक समरसता को विखंडित करने वाला ब्यान आया था तो इनके ‘मुखार-वृंद ‘ से भर्त्सना का एक शब्द भी नहीं निकला था ?

क्या नीतीश आज इस प्रश्न का जवाव देने की स्थिति में हैं कि जिस लालू यादव को १९९४ में एक समाचार -पत्र को दिए गए इंटरव्यू में उन्होंने ‘जातिवादी और नव-ब्राह्मणवादी ‘ बताया था और कहा था कि “लालू सिर्फ अपनी जाति यादव को सत्ता के केंद्र में रखना चाहते हैं और बाकी जातियों को हाशिए पर रखना चाहते है” , उन्हीं के समक्ष आज घुटने टेकने को वो क्यों विवश हो गए ?

क्या श्री कुमार इस बात से इन्कार करने का साहस कर सकते हैं कि उन्होंने ही मंडल कमीशन लागू होने के बाद “आरक्षण सिर्फ पिछड़ी जातियों का हक” की बात कही थी ?

क्या १९९४ में जनता दल के विभाजन के पश्चात नीतीश के द्वारा समता पार्टी के गठन के पीछे की मंशा सिर्फ और सिर्फ बिहार के पिछड़ी जातियों के मतों में विभाजन की नहीं थी ?

क्या ये सच नहीं है कि अपने मुख्य- मंत्रित्वकाल में पूरे प्रदेश को नजरंदाज कर अपने गृह-जिले और विशेषकर राजगीर में महती – परियोजनाओं का अम्बार लगाने के पीछे भी नीतीश की मंशा सिर्फ और सिर्फ स्वजातीय -वोटरों पर अपनी पकड़ कायम करने की थी ?

क्या नीतीश इस सच को नकार सकते हैं कि उनके शासनकाल में प्रदेश की नौकरशाही में व सूबे के अन्य महत्वपूर्ण ओहदों पर उनके स्वजातीय लोगों को चुन-चुन कर बैठाया गया ?

क्या ये सच नहीं है कि नीतीश ने अपने शासनकाल में सूबे की वास्तविक रूप से अत्यंत पिछड़ी जातियों व दलित समुदाय को अपनी जाति के आगे करीब-करीब बौना ही रखा और समाजवाद व जेपी के सपनों के उल्ट जाति की राजनीति का सबसे गंदा खेल खेला ?

मंडल कमीशन की बात यदि आज के संदर्भ पुरानी और अप्रसांगिक लगे तो बिहार में सवर्ण आयोग के गठन के उदाहरण को ही लें। अब क्या श्री कुमार इस बात से भी इन्कार कर सकते हैं कि इस अजीबोगरीब आयोग का गठन उन्होंने सिर्फ सवर्णों का वोट हासिल करने के लिए नहीं किया था ? अजीबोगरीब इसलिए कि यह आयोग अपने गठन के अनेकों सालों के अस्तित्व के बाद भी बिहार में न तो गरीब सवर्ण ढुंढ सका है और न ही उसने कोई अंतरिम सिफ़ारिश ही की l

लोकसभा चुनावों के प्रचार के दौरान नीतीश जी की ही पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष शरद यादव ने कहा था कि “लालू-नीतीश ने बस जाति की राजनीति की और ये दोनों जात-पात से ऊपर नहीं उठ सके ” l शरद यादव के इस बयान पर अपनी सफाई पेश करने की हिम्मत नीतीश अब तक क्यूँ नहीं जुटा सके ?

क्या नीतीश जी के महादलित फॉर्मूले का जाति की राजनीति से कोई सरकोर नहीं था ?

क्या किसी भी चुनाव में प्रत्याशियों के चयन में नीतीश जातिगत समीकरणों से ऊपर उठ सके ?

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here